Thursday, December 21, 2017

पूंजीवाद में कानूनी लूट

बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में अततः अदालत का फैसला आ गया। अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया। आरोपियों में ए.राजा और कानीमोझी जैसे बड़े नेता थे तो अनिल अंबानी की कंपनी के बड़े अधिकारी भी।
न्यायाधीश ने बहुत कड़े शब्दों में फैसला सुनाया और सी.बी.आई. को कटघरे में खड़ा किया। कम से कम इस मामले में सी.बी.आई. पर स्वतः लापरवाही का आरोप नहीं लगाया जा सकता क्योंकि उसे नियंत्रित करने वाली वर्तमान सरकार का पूरा हित था इसमें। कुछ समय पहले यदि करुणानिधि की मोदी से दोस्ताना मुलाकात में कुछ छिपा हो तो आश्चर्य नहीं कहा जा सकता।

Sunday, November 19, 2017

मोदी की गिरती साख बचाने की जी-तोड़ कोशिश

संघी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस समय काफी संकट में हैं और भारत का पूंजीपति वर्ग ही नहीं, साम्राज्यवादी पूंजीपति वर्ग भी उनकी रक्षा में जी-जान से आ जुटा है
पिछले महीने भर में साम्राज्यवादी संस्थाओं की ओर से कम से कम तीन रपटें मोदी की रक्षा में जारी की गई हैं। पहले बदनाम विश्व बैंक ने बताया कि भारत में व्यवसाय करने की स्थिति बेहतर हो गई है। भारत सरकार ही नहीं, समस्त भारतीय पूंजीवादी प्रचार-तंत्र ने इसे मोदी सरकार की वाहवाही के रूप में प्रचारित किया इस बात को पूर्णतया छिपाते हुए कि यदि यह सच भी है तो इसकाकेवल यही मतलब है कि पूंजीपति वर्ग को लूट की और ज्यादा छूट मिल गई है। इसके बाद इस महीने प्यू नाकम सर्वेक्षण कंपनी ने रपट जारी की कि साढ़े तीन साल सत्ता में रहने के बाद भी मोदी की लोकप्रियता बनी हुई है। तीन चौथाई से ज्यादा भारतीय उन्हें पसन्द करते हैं। बस प्यू ने यह नहीं बताया कि मोदी को पसंद करने वाले ये भारतीय आत्महत्या करते किसान, बेरोजगार मजदूर, भूखे आदिवासी हैं या तेजी से और ज्यादा अमीर होते पूंजीपति ? अंत में अभी-अभी मूडी नामक रेटिंग एजेन्सी ने भारत की उधार साख को एक स्तर बेहतर कर दिया है। यह उसने तेरह साल बाद किया। मोदी के सारे समर्थक भी इसे ले उड़े बिना इस बात की चिन्ता किये हुए कि स्वयं मोदी सरकार के कारकूनों ने इस एजेन्सी की साख पर सवाल खड़े कर रखे हैं।

Friday, September 15, 2017

छकड़ों और बैलगाड़ियों के देश में बुलेट ट्रेन

        देश में बुलेट ट्रेन आ रही है। गनीमत यह है कि यह उसी तरह बैलगाड़ी पर लदकर नहीं आ रही जैसे टीवी बैलगाड़ी पर लदकर गांव पहुंचता है। 
यह बुलेट ट्रेन जापान से आ रही है और संघी प्रधानमंत्री कें हिसाब से लगभग मुफ्त में। बस वे यह बताना भूल गये कि जापानी अपने सारे प्रयास के बावजूद अमरीकियों को यह बुलेट बेचने में नाकामयाब रहे हैं। कि जापान की बुलेट ट्रेन बनाने वाली कंपनियां आर्डन न मिलने से परेशान हैं। कि इस बुलेट ट्रेन के सारे साजो-सामान जापान से आयेंगे- दो गुने या तीन गुने दाम पर। कि यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पिछड़े देशों में व्यवसाय करने का पुराना तरीका है। कि पांच साल में यह कीमत रुपये के अवमूल्यन के कारण पांच से दस गुना बढ़ चुकी होगी। कि इस सौदे की आड़  में अन्य रक्षा सौदे किये जा रहे हैं। कि जापानी दोस्त के इस उपहार की कीमत एशिया में जापानी और अमरीकी साम्राज्यवादियों का लठैत बनकर चुकानी पड़ेगी। 

Friday, August 25, 2017

निजता का अधिकार: मजदूर वर्ग क्यों और कैसे जश्न मनाए ?

24 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय की एक नौ सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित कर दिया। इस अधिकार का विरोध करने वाली सरकार से लेकर सारे पूंजीवादी बुद्धीजीवी इस फैसले का गुणगान कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो देश में सब कुछ बदल जाने वाला है।
मजदूर वर्ग के लिए यह सहज सा सवाल है कि संविधान में पहले से दर्ज मौलिक अधिकारों का क्या हाल है ? क्या मजदूर और एवं अन्य मेहनतकश उन मौलिक अधिकारों का जरा भी इस्तेमाल कर पा रहे हैं ? क्या एक अदना सा सरकारी अधिकारी, थाने का इंस्पेक्टर, फैक्टरी का मालिक और मकान मालिक लगातार मजदूरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते ? क्या मजदूर इन अधिकारों को लागू करवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है ? जब इस पूंजीवादी व्यवस्था में उसके जिन्दा रहने की स्थिति ही खतरे में पड़ी हुई हो तो इन मौलिक अधिकारों का क्या मतलब रह जाता है। 

Wednesday, August 23, 2017

फासीवादियों और प्रतिक्रियावादियों के एजेण्डे को आगे बढ़ाता फैसला

आखिरकार देश के सर्वोच्च न्यायालय ने मुसलमान औरतों को उनके जुल्मी पतियों से मुक्ति दिला दी, उस सर्वोच्च न्यायालय ने जिसने बामुश्किल सप्ताह भर पहले अखिला उर्फ हादिया मामले में यह कहा था कि चैबीस साल की लड़की या औरत अपने बारे में फैसला करने में सक्षम नहीं है। यही नहीं संघी फासीवादियों के सुर में सुर मिलाते हुए उसने ‘लव-जिहाद’ के लिए प्रयासरत आई एस आई एस के बारे में जांच का भी आदेश देश की सर्वोच्च आतंकवाद विराधी एजेन्सी को दे दिया।

Sunday, July 30, 2017

नितीश ‘कुर्सी’ कुमार

पूंजीवाद में भ्रष्टाचार जितना आम है, भ्रष्टाचार को लेकर पूंजीवादी राजनीति भी उतनी ही मुखर है। हर कोई गले तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है पर वह इसी के नाम पर दूसरे को पटखनी देने में लगा हुआ है। अभी भारत में नितीश ‘कुर्सी’ कुमार ने भ्रष्टाचार के नाम पर पाला बदला ही था कि पाकिस्तान से खबर आई कि वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के कारण अयोग्य करार दिया। 
नितीश ‘कुर्सी’ कुमार अभी चार साल पहले ही हिन्दू साम्प्रदायिक और गुजरात नरसंहार रचने वाले नरेन्द्र मोदी के भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के कारण-विरोध स्वरूप राजग से बाहर आ गये थे। 2014 के लोकसभा चुनावों में बुरी तरह पिट जाने के बाद उन्होंने भ्रष्ट लालू प्रसाद की शरण ली और 2015 में विधान सभा चुनाव जीतकर फिर बिहार के मुख्यमंत्री बन गये। अब दो साल बाद उन्हें अचानक लालू के भ्रष्टाचार का अहसास हुआ और अचानक ही नरेन्द्र मोदी की साम्प्रदायिकता का अहसास गायब हो गया। रातों-रात पाला बदल कर वे मोदी-शाह की गोद में जा बैठे और यथावत अपनी कुर्सी पर बने रहे। ऐसा करके उन्होंने अपने बहुत सारे मुरीदों का दिल तोड़ दिया। 

Saturday, July 22, 2017

बजबजाती पूंजीवादी राजनीति की दलित पक्षधरता

       यह लाक्षणिक है कि एक ही समय रामनाथ कोविन्द राष्ट्रपति भवन में सुशोभित होने के लिए चुने गये जबकि बहन मायावति ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। मायावति ने इस्तीफा देने का कारण भाजपा द्वारा उन्हें दलित उत्पीड़न पर बोलने से टोका जाना बताया जबकि भाजपा ने गाजे-बाजे के साथ एक दलित को राष्ट्रपति भवन में प्रतिष्ठित किया। दलित प्रेम के इस मौसम में कांग्रेसी व अन्य भी पीछे नहीं रहना चाहते थे। उन्होंने भी एक अन्य दलित मीरा कुमार को राष्ट्रपति भवन का अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। 
महत्वपूर्ण बात यह है कि रामनाथ कोविन्द, मीरा कुमार, मायावती या भाजपा कोई भी बहुसंख्यक दलितों के लिए यानी दलित सर्वहारा के लिए लड़ने वाला नहीं है। यही नहीं, हिन्दुत्वादी भाजपा तो जातिगत उत्पीड़न को जारी रखने का प्लेटफॉर्म है। बाकी ज्यादा से ज्यादा दलित पूंजीपति वर्ग या मध्यम वर्ग के झंडादरबार हो सकते हैं। जहां तक राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवारों की बात है, वे पालतू दलितों की किस्म के लोग हैं। एक को फासीवादी हिन्दुत्ववादियों ने पाला-पोसा था तो दूसरे को ‘धर्मनिरपेक्ष’ कांगेस ने।

Thursday, May 11, 2017

पूर्ण विद्रोह ही अवस्था में कश्मीर

कश्मीर घाटी इस समय पूर्ण विद्रोह की अवस्था में है। भारत के शासक वर्गीय हलकों में बहुत सारे लोग इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि पिछले दो दशकों में सबसे खराब हालात हैं। स्थिति वहां पहुंच गयी है जहां सेना द्वारा फर्जी या असली मुठभेड़ की जगह निहत्थे लोग पहुंच कर सेना के सामने खड़े हो जा रहे हैं। भारी मात्रा में छात्राएं भी अब सड़क पर उतर आयी हैं। सेना के स्थानीय मुखबिर भी अब कोई सूचना नहीं पहुंचा रहे हैं। 
खराब हालात का एक सूचक चुनाव आयोग द्वारा अनन्तनाग का चुनाव रद्द करना रहा। श्रीनगर चुनाव में महज पांच-छः प्रतिशत वोट पड़ने के बाद भारत सरकार अब अपनी और ज्यादा फजीहत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। 

Saturday, April 22, 2017

बाबरी मस्जिद मामले में न्याय का ढोंग

आखिरकार भारत का सर्वोच्च न्यायालय इस नतीजे पर पहुंच गया कि बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने के मामले में भाजपा नेताओं पर षडयंत्र का मुकदमा चल सकता है। इस नतीजे पर पहुंचने में देश की न्याय व्ववस्था को पूरे पच्चीस साल लग गये। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने दो साल में फैसला सुनाने का आदेश दिया है पर यह शायद ही हो। जब तक फैसला आयेगा तब तक मुख्य आरोपी अपने भगवान राम के पास जा चुके होंगे। वैसे भी केन्द्र में भाजपा की सरकार को देखते हुए सी.बी.आई. द्वारा चलाये जा रहे इस मुकदमे का फैसला पहले से ही तय है।
    बाबरी मस्जिद का पूरा मामला ही भारत की समूची पूंजीवादी व्यवस्था के घृणित चरित्र का आइना है। इस मामले को उठाककर मुसलमानों के खिलाफ हिन्दुओं का साम्प्रदायिक धु्रवीकरण करते हुए भाजपा ऊपर उठी और आज पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र और सोलह प्रदेशों में सत्ता में है। बाकी पूंजीवादी पार्टियां में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि इसके खिलाफ दृढ़ता से खड़े हों। भारतीय संसद अपने सामने बाबरी मस्जिद ध्वस्त होने का नजारा देखती रही। रही देश के न्यायालयों की बात तो बाबरी मस्जिद का विध्वंस सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देश के खिलाफ हुआ। होना तो यह चाहिए था कि इस अपराध के लिए भाजपा के शीर्ष नेताओं को जेल में डाला जाता पर हुआ यह कि उनके खिलाफ महज मुकदमा चलाने का फैसला सुनाने में सर्वोच्च न्यायालय ने पच्चीस साल लगा दिये।

Monday, March 20, 2017

वाजपेयी -> आडवाणी-> मोदी ->योगी

मोदी-शाह की रंगा-बिल्ला की जोड़ी ने अपने सारे उदारपंथी समर्थकों के गालों पर तमाचा जड़ते हुए ‘योगी’ आदित्यनाथ (अजय सिंह बिष्ट) को उत्तर प्रदेश की गद्दी पर बैठा दिया। जैसा कि किसी ने टिप्पणी की, यह ’डेवलेपमेन्ट’ की नयी ‘स्पेलिंग’ है। इसमें यह जोड़ना होगा कि मोदी के ‘डेवलेपमेन्ट’ की यही सही स्पेलिंग है।
भारत के बड़े पूंजीपति वर्ग और पूंजीवादी व्यवस्था के उदारपंथी पैरोकारों ने पिछले कुछ सालों में मोदी के खूनी चेहरे को धो-पोंछकर और लीप-पोतकर काफी ‘मानवीय’ बनाने का प्रयास किया है। इसके लिए उन्होंने हर संभव तर्क पेश किये हैं। मोदी के हर कुकर्म को ढंकने की कोशिश की है। 

मजदूर वर्ग के खिलाफ एक पूर्व निश्चित फैसला

जैसा कि अंदेशा था, भारत के एक सम्मानित न्यायालय ने पूंजीपति वर्ग को आश्वस्त करने के लिए और उसकी बदले की भावना को तुष्ट करने के लिए मारुति मामले में तेरह मजदूरों को आजीवन कैद की सजा सुना दी। इसी के साथ चार अन्य मजदूरों को पांच साल की तथा चौदह को उनके जेल प्रवास की सजा सुनाई गई। इन पर जुर्माना भी किया गया जिसके अदा होने तक इन्हें जेल में रहना होगा। आजीवन कारावास पाने वालों में बारह तत्कालीन यूनियन के पदाधिकारी थे।  
17 जुलाई 2012 की घटना के बाद 148 मजदूरों को सरकार ने पकड़ कर बन्द कर दिया था। काफी मशक्कतों के बाद करीब तीन साल बाद उन्हें जमानत मिलनी शुरू हुई। कुछ को तो अंत तक जमानत नहीं मिली। माननीय न्यायालय ने यह नहीं बताया कि बेकसूर घोषित किये गये 117 मजदूरों के जेल में बिताये गये समय का क्या होगा। इनकी नौकरी से बर्खास्गी का क्या होगा ? न्यायालय इन छोटे-मोटे मामलों की चिन्ता नहीं करती। उसे तो पूंजीपति वर्ग की, उसके मुनाफे की, उसके निवेश की चिन्ता होती है। मजदूर और उनका जीवन उसके लिए उसी तरह महत्वहीन है जैसे पूंजीपति वर्ग के लिए। 

Saturday, March 11, 2017

विधानसभा चुनाव परिणामों के खतरनाक संकेत

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभा के चुनावों ने स्वयं भाजपा को भी चौंका दिया होगा। वे दावा तो प्रचण्ड बहुमत का कर रहे थे, पर इस पर किसी को भी यकीन नहीं था-भाजपा समर्थक ‘एक्जिट पोल’ वालों को भी नहीं। उनमें से भी किसी ने भाजपा गठबंधन को तीन सौ से ज्यादा सीटें उत्तर प्रदेश में नहीं दी थीं। इसके पहले जमीनी स्तर की सारी रपटें भी किसी एक के बहुमत से इंकार करती थीं।
ऐसे में यदि बसपा अध्यक्ष मायावती दावा करती हैं कि वोट मशीनों में छेड़छाड़ की गई है तो इसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। खासकर बसपा के इतने बुरे प्रदर्शन की किसी को उम्मीद नहीं थी। मुसलमान बहुल इलाकों से भी भाजपा को वोट मिलने की बात यदि सच है तो इस आरोप की सत्यता बहुत बढ़ जाती है। वैसे अमित शाह और नरेन्द्र मोदी के पुराने रिकाॅर्ड को देखते हुए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता विशेषकर स्वयं भाजपा के भीतर भी इन दोनों का भविष्य दांव पर लगा हुआ था। ऐसे में ये किसी भी हद तक जा सकते थे। 

Wednesday, February 1, 2017

मोदी सरकार का चौथा बजट: वही लूट, वही बांट बखरा

अरुण जेटली ने आज मोदी सरकार का चौथा बजट पेश किया। विपक्षी पार्टियां परेशान थीं कि पांच राज्यों में विधान सभा के चुनाव के मद्देनजर मोदी सरकार जनता पर न जाने क्या-क्या लुटा देगी। पर ऐसा न होना था और न हुआ। 
अभी कल ही सरकार द्वारा पेश किये गये आर्थिक सर्वेक्षण में स्वीकार किया गया था कि नोटबंदी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर आधे से लेकर एक प्रतिशत तक प्रभाव पड़ सकता है यानी आज की कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद में इतनी गिरावट आ सकती है। यह पचहत्तर हजार रुपये से लेकर डेढ़ लाख करोड़ तक की गिरावट है। गौरतलब है कि यह ऐसी गिरावट है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। 

Saturday, January 21, 2017

स. रा. अमेरिका में मसखरे का काल प्रारंभ

संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप नामक मसखरे का शासन शुरु हो गया है। इस मसखरे ने कल राष्ट्रपति पद संभाल लिया।
अमेरिका में अभी भी लोग इस बात को स्वीकार नहीं कर पाये हैं कि एक मसखरा उनका देश चलाये। इसीलिए इस मसखरे के शपथ ग्रहण के दिन पूरे अमेरिका में लाखों लोगों ने उसके खिलाफ प्रदर्शन किया। पर जैसा कि कहावत है, अब पछतावे होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत !

Sunday, January 1, 2017

झूठा-मक्कार मदारी चौराहों पर नहीं आया

इकत्तीस दिसंबर को देश में न जाने कितने लोग देश के छोटे-बड़े चौराहों पर हाथों में जूते-चप्पल लिये खड़े थे। कुछ ने तो रात ठंडे पानी में भी भिगो रखे थे।   
इन सबको हर जहग नरेन्द्र मोदी का इंतजार था। मोदी ने कह रखा था कि उन्हें केवल पचास दिन चाहिए यानी तीस दिसंबर तक। यदि इस दिन तक देश में काला धन खत्म नहीं हुआ तो उन्हें जिस चैराहे पर बुलाया जायेगा, वे आ जायेंगे। पर मोदी किसी भी चौराहे पर नहीं पहुंचे।