जैसा कि अंदेशा था, भारत के एक सम्मानित न्यायालय ने पूंजीपति वर्ग को आश्वस्त करने के लिए और उसकी बदले की भावना को तुष्ट करने के लिए मारुति मामले में तेरह मजदूरों को आजीवन कैद की सजा सुना दी। इसी के साथ चार अन्य मजदूरों को पांच साल की तथा चौदह को उनके जेल प्रवास की सजा सुनाई गई। इन पर जुर्माना भी किया गया जिसके अदा होने तक इन्हें जेल में रहना होगा। आजीवन कारावास पाने वालों में बारह तत्कालीन यूनियन के पदाधिकारी थे।
17 जुलाई 2012 की घटना के बाद 148 मजदूरों को सरकार ने पकड़ कर बन्द कर दिया था। काफी मशक्कतों के बाद करीब तीन साल बाद उन्हें जमानत मिलनी शुरू हुई। कुछ को तो अंत तक जमानत नहीं मिली। माननीय न्यायालय ने यह नहीं बताया कि बेकसूर घोषित किये गये 117 मजदूरों के जेल में बिताये गये समय का क्या होगा। इनकी नौकरी से बर्खास्गी का क्या होगा ? न्यायालय इन छोटे-मोटे मामलों की चिन्ता नहीं करती। उसे तो पूंजीपति वर्ग की, उसके मुनाफे की, उसके निवेश की चिन्ता होती है। मजदूर और उनका जीवन उसके लिए उसी तरह महत्वहीन है जैसे पूंजीपति वर्ग के लिए।
इस देश में गुजरात में हजारों की हत्या करवाने वाले दो शातिर अपराधी न केवल छुट्टे सांड की तरह घूम रहे हैं बल्कि देश पर शासन भी कर रहे हैं। स्थानीय अदालतों से लेकर देश के सर्वोच्च न्यायालय तक को इन्हें जेल में डालने लायक सबूत नहीं मिलता। पर एक फैक्टरी प्रबन्धक की घुटन से हुई मौत पर तेरह मजदूरों को आजीवन कारावास देने लायक सबूत इन्हें मिल जाता है। इन अदालतों को बिहार में दलितों के सामूहिक नरसंहार के अपराधियों को सजा देने लायक सबूत नहीं मिलता पर मालिकों के खिलाफ आंदोलन करने वाले मजदूरों के खिलाफ पक्का सबूत मिल जाता है। असल में तो भारत की अदालतों ने मारुति मजदूरों के खिलाफ पहले ही फैसला सुना दिया था जब उन्हें सालों तक जमानत नहीं दी गई। आज तो फैसले की केवल औपचारिकता निभाई गई है।
यह फैसला मजदूरों के लिए बहुत कष्टप्रद है। पर मजदूर वर्ग अपनी मुक्ति की ओर बिना कष्ट के नहीं बढ़ सकता। अदालत का मजदूर वर्ग के खिलाफ यह राजनीतिक फैसला उन्हें पूंजीपति वर्ग की समूची व्यवस्था के खिलाफ खड़े होने में मदद करेगा। यह उन्हें व्यवस्था के असली चरित्र से वाकिफ करायेगा।
इस फैसले का हर तरह से विरोध करते हुए इसके असली राजनीतिक चरित्र का हर मजदूर के सामने खुलासा किया जाना चाहिए।
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