देश में बुलेट ट्रेन आ रही है। गनीमत यह है कि यह उसी तरह बैलगाड़ी पर लदकर नहीं आ रही जैसे टीवी बैलगाड़ी पर लदकर गांव पहुंचता है।
यह बुलेट ट्रेन जापान से आ रही है और संघी प्रधानमंत्री कें हिसाब से लगभग मुफ्त में। बस वे यह बताना भूल गये कि जापानी अपने सारे प्रयास के बावजूद अमरीकियों को यह बुलेट बेचने में नाकामयाब रहे हैं। कि जापान की बुलेट ट्रेन बनाने वाली कंपनियां आर्डन न मिलने से परेशान हैं। कि इस बुलेट ट्रेन के सारे साजो-सामान जापान से आयेंगे- दो गुने या तीन गुने दाम पर। कि यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पिछड़े देशों में व्यवसाय करने का पुराना तरीका है। कि पांच साल में यह कीमत रुपये के अवमूल्यन के कारण पांच से दस गुना बढ़ चुकी होगी। कि इस सौदे की आड़ में अन्य रक्षा सौदे किये जा रहे हैं। कि जापानी दोस्त के इस उपहार की कीमत एशिया में जापानी और अमरीकी साम्राज्यवादियों का लठैत बनकर चुकानी पड़ेगी।
संघी सरकार यह सब नहीं बतायेगी और न ही इसके प्रचार में लगा पूंजीवादी प्रचारतंत्र। लेकिन इस कारण यह सच छिप नहीं सकता कि देश की 95 प्रतिशत जनता का इस बुलेट से कोई लेना-देना नहीं केवल इसी रूप में होगा कि अंततः वही इसकी कीमत चुकाएगी जबकि वह इसमें कभी यात्रा नहीं करेगी। यह कीमत इतनी है कि पुराने रेल मंत्री के अनुसार इससे पुरानी रेल पटरियां बदली जा सकती हैं या जर्जर होती जाती रेल सुरक्षा को ठीक किया जा सकता है। सरकार के पास इसके लिए पैसा नहीं है। नतीजा यह कि आये दिन रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं।
इस देश की नब्बे प्रतिशत आबादी या तो खचाड़ा पैसेन्जर रेजगाड़ियों में यात्रा करती है या फिर एक्सप्रेस रेलगाड़ियों के सामान्य डिब्बे में। इनकी हालत केवल इनमें यात्रा करने वाले ही बयां कर सकते हैं। मोदी और उनकी भगवा ब्रिगेड का इनसे कोई सरोकार नहीं है। इसीलिए इन रेलगाड़ियों की संख्या बढ़ाने या उनकी हालत बेहतर करने की इन्हें कोई चिन्ता नहीं है।
बुलेट ट्रेन महज इसकी एक और बानगी है कि देश में असमानता कितनी तेजी से बढ़ छकड़ों और बैलगाड़ियों के इस देश में अब बुलेट ट्रेन भी चलेगी और उसकी कीमत चुकाएंगे साइकिल, छकड़े या बैलगाड़ी पर चलने वाले। भारत जैसे पिछड़े पूंजीवादी देशों के पूंजीवादी विकास का यही चरित्र है।
मोदी और उनके समर्थक बुलेट ट्रेन का बाजा बजाएंगे। उनका देश तरक्की कर रहा है। पर जिनकी कीमत पर यह तरक्की हो रही है उन्हें मोदी एण्ड कंपनी समेत सारे पूंजीपति वर्ग का बैण्ड बजाने की तैयारी करनी चाहिए।
खस्ताहाल भारतीय रेल बनाम बुलेट ट्रेन
ReplyDeleteखस्ताहाल भारतीय रेल को दुरुस्त किए बिना चंद सुविधा संपन्न लोगों एवं इलाकों के लिए 1.20 हजार करोड़ की बुलेटट्रेन चलाना देश के 120 करोड़ लोगों और देश के अन्य इलाकों के साथ गद्दारी है। इससे देश के अन्य इलाकों में संसाधनों की लुट और और छोटे से इलाके में आर्थिक फायदा होगा। बुलेट कर्ज पर चलाने से फ़ायदा होगा गुजरात महाराष्ट्र के चंद शहरों को। और कर्ज की आदायगी के लिए भुगतान करेगा सारा देश, बिहार, बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ की खनिज संपदा बेच कर..... सोचे-विचारे... शेयर करें!!!
सुप्रभात...
अश्विनीकुमार सुकरात
जनचेतना-से-जनमुक्ति
9210473599, 8178499080
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