पूंजीवाद में भ्रष्टाचार जितना आम है, भ्रष्टाचार को लेकर पूंजीवादी राजनीति भी उतनी ही मुखर है। हर कोई गले तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है पर वह इसी के नाम पर दूसरे को पटखनी देने में लगा हुआ है। अभी भारत में नितीश ‘कुर्सी’ कुमार ने भ्रष्टाचार के नाम पर पाला बदला ही था कि पाकिस्तान से खबर आई कि वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के कारण अयोग्य करार दिया।
नितीश ‘कुर्सी’ कुमार अभी चार साल पहले ही हिन्दू साम्प्रदायिक और गुजरात नरसंहार रचने वाले नरेन्द्र मोदी के भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के कारण-विरोध स्वरूप राजग से बाहर आ गये थे। 2014 के लोकसभा चुनावों में बुरी तरह पिट जाने के बाद उन्होंने भ्रष्ट लालू प्रसाद की शरण ली और 2015 में विधान सभा चुनाव जीतकर फिर बिहार के मुख्यमंत्री बन गये। अब दो साल बाद उन्हें अचानक लालू के भ्रष्टाचार का अहसास हुआ और अचानक ही नरेन्द्र मोदी की साम्प्रदायिकता का अहसास गायब हो गया। रातों-रात पाला बदल कर वे मोदी-शाह की गोद में जा बैठे और यथावत अपनी कुर्सी पर बने रहे। ऐसा करके उन्होंने अपने बहुत सारे मुरीदों का दिल तोड़ दिया।
जहां तक आज नवाज शरीफ की बात है, उनके खिलाफ भारत के केजरीवाल की तरह ही ‘स्वच्छ’ और ‘ईमानदार’ इमरान खान ने भ्रष्टाचार का मोर्चा खोला हुआ है। ‘पनामा’ पेपर्स’ के बाद तो उसमें और गति आ गई। यह बात और है कि नवाज शरीफ की तरह इमरान की भी कई आॅफशोर कंपनियां हैं। अब वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने एक तकनीकी आधार पर नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद के अयोग्य ठहरा दिया। तकनीकी मामला यह है कि नवाज शरीफ ने अपने चुनावी पर्चे में उस आय का जिक्र नहीं किया था जो दुबई की एक कंपनी के एक कर्मचारी के तौर पर उन्हें वेतन के रूप में अदा की गई थी पर जिसे उन्होंने वास्तव में लिया नहीं था। जहां तक ‘पनामा पेपर्स’ के मामलों की बात है, जांच जारी है।
नवाज शरीफ के मामले में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को वहां की न्यायपालिका की स्वतंत्रता के तौर पर कुछ लोग देख रहे हैं तो कुछ लोग इसके पीछे सेना का हाथ देख रहे हैं। (जांच टीम में सेना के अधिकारी भी हैं)। कुछ इसे जनतंत्र की मजबूती के तौर पर देख रहे हैं तो कुछ इसके लिए खतरे के तौर पर।
पर भारत-पाकिस्तान के इन दोनों मामलों में जनतंत्र कहीं नहीं है। यहां तो पूंजीवादी व्यवस्था का सड़ा-गला बदबू करता चेहरा ही सामने आ रहा है। इसके सारे खिलाड़ी नैतिकता की दुहाई देते हुए हर तरह के कुकर्म में कोई भी सीमा पार करने को तैयार हैं। पूंजीवादी व्यवस्था का यह वह दौर है जहां सारे कुकर्म नैतिकता के नाम पर ही किये जा रहे हैं।
पूंजीवादी व्यवस्था के इन पतित खिलाड़ियों में किसी का पक्ष लेने के बदले इन सब पर और इनकी सारी व्यवस्था पर लानत भेजने का रुख होना चाहिए।
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