24 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय की एक नौ सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित कर दिया। इस अधिकार का विरोध करने वाली सरकार से लेकर सारे पूंजीवादी बुद्धीजीवी इस फैसले का गुणगान कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो देश में सब कुछ बदल जाने वाला है।
मजदूर वर्ग के लिए यह सहज सा सवाल है कि संविधान में पहले से दर्ज मौलिक अधिकारों का क्या हाल है ? क्या मजदूर और एवं अन्य मेहनतकश उन मौलिक अधिकारों का जरा भी इस्तेमाल कर पा रहे हैं ? क्या एक अदना सा सरकारी अधिकारी, थाने का इंस्पेक्टर, फैक्टरी का मालिक और मकान मालिक लगातार मजदूरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते ? क्या मजदूर इन अधिकारों को लागू करवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है ? जब इस पूंजीवादी व्यवस्था में उसके जिन्दा रहने की स्थिति ही खतरे में पड़ी हुई हो तो इन मौलिक अधिकारों का क्या मतलब रह जाता है।
स्पष्ट है कि यदि संविधान में दर्ज मौलिक अधिकारों का कोई मतलब है तो वह शासक पूंजीपति वर्ग और उसके चाकरों के लिए ही है। वे ही यह हैसियत रखते हैं कि उसे लागू करवा सकें और उल्लंघन होने र अदालत जा सकें। अंबानी-अडानी को तो वे अधिकार भी हासिल हैं जो संविधान में दर्ज नहीं हैं। पूंजीवादी व्यवस्था में इससे भिन्न कुछ नहीं हो सकता है।
वैसे भारत के संविधान के बारे में कहा जाता है इसमें मूल पाठ में मौलिक अधिकार घोषित करने के बाद इसे हाशिये के प्रावधानों द्वारा छीन लिया जाता है। संविधान में दर्ज सारे मौलिक अधिकार उन कानूनों के मातहत हैं जिन्हें अंग्रेजो ने यहां शासन करने के लिए बनाये थे। इसीलिए थाने का इंसपेक्टर भी पलक झपकते ही इन अधिकारों की ऐसी-तैसी कर देता है।
निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करते समय भी सर्वोच्च न्यायालय ने यही कहा कि अन्य मौलिक अधिकारों की तरह ही इस पर भी प्रतिबन्ध और सीमाएं होंगी। सरकार द्वारा छेद से हाथी निकालने के लिए इतना ही पर्याप्त होगा। रही-सही कसर सरकारी अधिकारी और पुलिस वाले पूरी कर देंगे। अगर तब भी कुछ बाकी रह गया तो संघी लंपट तो हैं हीं।
इसीलिए मजदूर वर्ग को निजता को मौलिक अधिकार घोषित किये जाने पर जश्न मनाने का कोई कारण नहीं दीखता। उदारीकरण के इस दौर में उसके सारे ही अधिकार निलंबित हो गये हैं। केवल उसकी संगठित ताकत और इसके बल पर संघर्ष ही उसकी स्थिति में कोई बेहतरी कर सकता है।
निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किये जाने पर जश्न पूंजपति वर्ग के चाकरों के लिए छोड़कर संघर्ष के लिए कमर कसनी चाहिए।
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