Saturday, April 22, 2017

बाबरी मस्जिद मामले में न्याय का ढोंग

आखिरकार भारत का सर्वोच्च न्यायालय इस नतीजे पर पहुंच गया कि बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने के मामले में भाजपा नेताओं पर षडयंत्र का मुकदमा चल सकता है। इस नतीजे पर पहुंचने में देश की न्याय व्ववस्था को पूरे पच्चीस साल लग गये। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने दो साल में फैसला सुनाने का आदेश दिया है पर यह शायद ही हो। जब तक फैसला आयेगा तब तक मुख्य आरोपी अपने भगवान राम के पास जा चुके होंगे। वैसे भी केन्द्र में भाजपा की सरकार को देखते हुए सी.बी.आई. द्वारा चलाये जा रहे इस मुकदमे का फैसला पहले से ही तय है।
    बाबरी मस्जिद का पूरा मामला ही भारत की समूची पूंजीवादी व्यवस्था के घृणित चरित्र का आइना है। इस मामले को उठाककर मुसलमानों के खिलाफ हिन्दुओं का साम्प्रदायिक धु्रवीकरण करते हुए भाजपा ऊपर उठी और आज पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र और सोलह प्रदेशों में सत्ता में है। बाकी पूंजीवादी पार्टियां में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि इसके खिलाफ दृढ़ता से खड़े हों। भारतीय संसद अपने सामने बाबरी मस्जिद ध्वस्त होने का नजारा देखती रही। रही देश के न्यायालयों की बात तो बाबरी मस्जिद का विध्वंस सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देश के खिलाफ हुआ। होना तो यह चाहिए था कि इस अपराध के लिए भाजपा के शीर्ष नेताओं को जेल में डाला जाता पर हुआ यह कि उनके खिलाफ महज मुकदमा चलाने का फैसला सुनाने में सर्वोच्च न्यायालय ने पच्चीस साल लगा दिये।
    कहा जाता है कि तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव को बाबरी मस्जिद को ढहाने के षडयंत्र की पूरी जानकारी थी। इसीलिए 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद-विध्वंस के वक्त अपने घर के पूजाघर में घुसे रहे। उनका सचिव उन्हें पूरी जानकारी देता रहा और वे तभी बाहर निकले जब बाबरी मस्जिद का नामोनिशान मिट चुका था।
    ये सारे तथ्य यह दिखाते हैं कि भारत की समूची पूंजीवादी व्यवस्था साम्प्रदायिकता की चपेट में है। संघी हिन्दू फासीवादी तो महज इसकी चरम अभिव्यक्ति हैं। इसीलिए माकमा-भाकपा जैसे मजदूर वर्ग के गद्दारों द्वारा व्यवस्था के भीतर हिन्दू साम्प्रदायिकता को रोकने के नाम पर विभिन्न पूंजीवादी पार्टियों से गठजोड़ उनके पतन का केवल एक और प्रभाव मात्र है।
    आज हिन्दू साम्प्रदायिकता और हिन्दू फासीवाद का मुकाबला केवल सड़ी-गली पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी संघर्ष के जरिये ही किया जा सकता है। केवल मजदूर वर्ग ही अपनी क्रांतिकारी चेतना और क्रांतिकारी लामबंदी से हिन्दू फासीवाद को पराजित कर सकता है। केवल इसी के जरिये ही अन्य वास्तविक हिन्दू फासीवाद विरोधी ताकतों को गोलबंद किया जा सकता है। दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

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