Wednesday, February 1, 2017

मोदी सरकार का चौथा बजट: वही लूट, वही बांट बखरा

अरुण जेटली ने आज मोदी सरकार का चौथा बजट पेश किया। विपक्षी पार्टियां परेशान थीं कि पांच राज्यों में विधान सभा के चुनाव के मद्देनजर मोदी सरकार जनता पर न जाने क्या-क्या लुटा देगी। पर ऐसा न होना था और न हुआ। 
अभी कल ही सरकार द्वारा पेश किये गये आर्थिक सर्वेक्षण में स्वीकार किया गया था कि नोटबंदी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर आधे से लेकर एक प्रतिशत तक प्रभाव पड़ सकता है यानी आज की कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद में इतनी गिरावट आ सकती है। यह पचहत्तर हजार रुपये से लेकर डेढ़ लाख करोड़ तक की गिरावट है। गौरतलब है कि यह ऐसी गिरावट है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। 
सरकार की इस स्वीकारोक्ति के बाद यह उम्मीद की जा सकती थी कि वह इसके शिकार गरीब लोगों का कुछ खयाल रखेगी। पर यदि ऐसा होता तो यह अंबानी-अडाणी की सरकार न होती। जनता को राहत देने के नाम पर ढाई से पांच लाख रुपये की आय पर आयकर दस से पांच प्रतिशत कर दिया गया। पर हमारे प्यारे देश में इतनी कमाई वाले लोग मध्यम वर्ग में आते हैं, गरीब जनता में नहीं जिसका नोटबंदी के कारण काम ठप हो गया।
झुट्ठों-बेइमानों की इस सरकार ने दावा किया कि उसने इस साल मनरेगा पर अड़तालिस हजार रुपये का प्रावधान कर इस मद में अब तक सबसे ज्यादा खर्च करना तय किया है। हकीकत क्या है ? 2008-09 में, जिस साल यह रोजगार योजना पूरे देश में लागू की गई, इस मद में तीस हजार रुपये का प्रावधान किया गया था। इस साल बजट करीब आठ लाख करोड़ का था और रक्षा बजट करीब एक लाख करोड़ रुपये का। इस साल बजट करीब साढ़े इक्कीस लाख करोड़ रुपये का है और रक्षा बजट करीब पौने तीन लाख करोड़ रुपये का। इस साल इस अनुपात को बनाये रखने के लिए मनरेगा पर अस्सी हजार करोड़ से ज्यादे का प्रावधान होना चाहिए था। और प्रावधान किया गया महज अड़तालिस हजार करोड़ रुपये का। यह 2016-17 में जनवरी तक आवंटित पचपन हजार करोड़ रुपयों से भी कम है।
बजट में ऐसी ही बाजीगारी अन्य मदों में भी की गई है। 
जहां तक पूंजीपति वर्ग का सवाल है, उसके मामले में बाजीगरी के बदले ठोस प्रस्ताव हैं। देशी पूंजी को और छूट देने के लिए विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड को समाप्त कर दिया गया है। छोटे और मझोले पूंजीपतियों को कर में पच्चीस प्रतिशत की छूट दी गई है। जनता पर राहत खर्च के लिए बजट घाटे को तीन प्रतिशत तक सीमित रखा गया है। हां पूंजीपतियों को कर प्रोत्साहन जारी है। 2015-16 में यह 2014-15 के साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये से बढ़कर छः लाख करोड़ रुपये के ऊपर चला गया था। अब यह इससे ज्यादा ऊपर है।
मोदी सरकार का यह बजट भी उसके चरित्र के अनुरूप ही है। यह इस हद तक है कि नोटबंदी से हासिल काले धन के आंकड़े को बजट में नहीं बताया गया। क्यों ? क्योंकि बताने लायक था ही नहीं।
इसी कारण अब मोदी-शाह उत्तर प्रदेश चुनावों में फिर मंदिर, लव जेहाद पर लौट आये हैं। योगी आदित्यनाथों और बालियानों-संगीत सोमों की बहार है।
पर लगता नहीं कि मोदी-शाह की नैया पार लगने वाली।

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