Saturday, March 11, 2017

विधानसभा चुनाव परिणामों के खतरनाक संकेत

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभा के चुनावों ने स्वयं भाजपा को भी चौंका दिया होगा। वे दावा तो प्रचण्ड बहुमत का कर रहे थे, पर इस पर किसी को भी यकीन नहीं था-भाजपा समर्थक ‘एक्जिट पोल’ वालों को भी नहीं। उनमें से भी किसी ने भाजपा गठबंधन को तीन सौ से ज्यादा सीटें उत्तर प्रदेश में नहीं दी थीं। इसके पहले जमीनी स्तर की सारी रपटें भी किसी एक के बहुमत से इंकार करती थीं।
ऐसे में यदि बसपा अध्यक्ष मायावती दावा करती हैं कि वोट मशीनों में छेड़छाड़ की गई है तो इसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। खासकर बसपा के इतने बुरे प्रदर्शन की किसी को उम्मीद नहीं थी। मुसलमान बहुल इलाकों से भी भाजपा को वोट मिलने की बात यदि सच है तो इस आरोप की सत्यता बहुत बढ़ जाती है। वैसे अमित शाह और नरेन्द्र मोदी के पुराने रिकाॅर्ड को देखते हुए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता विशेषकर स्वयं भाजपा के भीतर भी इन दोनों का भविष्य दांव पर लगा हुआ था। ऐसे में ये किसी भी हद तक जा सकते थे। 
शक इसलिए और बढ़ जाता है कि पिछले सारे ही प्रादेशिक चुनावों में भाजपा को लोकसभा चुनावों से पांच-दस प्रतिशत कम मत मिले हैं। उत्तर प्रदेश में तो भाजपा की हालत और भी खराब थी। चुनावों के दौरान भी हालत बेहतर होने के कोई संकेत नहीं मिले थे। ऐसे में अचानक भाजपा का 2014 की स्थिति में लौट आना सभी को अचरज में डालने वाला है।
यदि वोट मशीनों में धांधली की बात सच हुई तो यह भारत के पूंजीवादी लोकतंत्र के एक बड़े संकट की द्योतक होगी। यह विकृत लोकतंत्र तेजी से फासीवाद की ओर बढ़ेगा क्योंकि मोदी-शाह तब तेजी से उधर जायेंगे। 
यदि ये चुनाव परिणाम धांधली के कारण नहीं हैं तो भी इनकी जमीन कम खतरनाक नहीं हो जाती। पहले चरण के मतदान के बाद दैनिक जागरण में छपे आपराधिक ‘एक्जिट पोल’ (जो कि भाजपाई लोगों द्वारा भाजपाई अखबार में जानबूझकर प्रकाशित किया गया था) से लेकर अंतिम चरण के चुनाव के दिन दिन भर ‘आतंकवादी मुठभेड’ तक सब कुछ मोदी-शाह जोड़ी द्वारा किया गया। कब्रिस्तान से लेकर रमजान तक भी इसमें शामिल थे। साथ ही शामिल थे बेहद बारीक स्तर पर जातियों के समीकरण।
ये सारे मिलकर भारत के पूंजीवादी लोकतंत्र की कोई ऐसी तस्वीर नहीं पेश करते जैसा कि इस लोकतंत्र के मुरीद चाहते हैं। बल्कि वे इसकी बेहद घृणित और खतरनाक तस्वीर पेश करते हैं। वे बढ़ते फासीवादी निजाम की तस्वीर पेश करते हैं। वे दिखाते हैं कि पहले के जातिगत विभाजन अब हिन्दू फासीवाद के कदम नहीं रोक सकते। 
यह भी कोई कम स्पष्ट नहीं है कि भारत का पूंजीपति वर्ग दृढ़तापूर्वक इस मोदी-शाह की आपराधिक जोड़ी के पीछे खड़ा है। इसलिए इस हिन्दू फासीवादी खतरे की गुरुता और बढ़ जाती है। 
पिछले तीन सालों में हिन्दू फासीवाद के बढ़ते कदमों को क्रांतिकारी वामपंथ और प्रगतिशील लोगों द्वारा दृढ़ और कड़ी चुनौती दी गयी है। अब इस खतरे के और प्रबल हो जाने पर इस चुनौती को भी और मजबूत बनाना होगा तथा विस्तारित करना होगा। इस मामले में कोई भी ढिलाई घातक होगी। खासकर मजदूर वर्ग को इसके लिए लामबंद करना होगा। 

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