Sunday, January 1, 2017

झूठा-मक्कार मदारी चौराहों पर नहीं आया

इकत्तीस दिसंबर को देश में न जाने कितने लोग देश के छोटे-बड़े चौराहों पर हाथों में जूते-चप्पल लिये खड़े थे। कुछ ने तो रात ठंडे पानी में भी भिगो रखे थे।   
इन सबको हर जहग नरेन्द्र मोदी का इंतजार था। मोदी ने कह रखा था कि उन्हें केवल पचास दिन चाहिए यानी तीस दिसंबर तक। यदि इस दिन तक देश में काला धन खत्म नहीं हुआ तो उन्हें जिस चैराहे पर बुलाया जायेगा, वे आ जायेंगे। पर मोदी किसी भी चौराहे पर नहीं पहुंचे। 
इसके बदले वे शाम को टी.वी. पर नजर आये, वह भी पूरे पैंतालिस मिनट तक। इतने लम्बे समय में उन्होंने यह नहीं बताया कि सरकार को कितना काला धन मिला और पचास दिन तक बैंकों के सामने लम्बी कतारों में खड़े रहने वालों के खातों में कितने-कितने लाख रूपये सरकार डालेगी। इस पर एक चुप-हजार चुप। बस पैंतालिस मिनट तक वे लफ्फाजियां करते रहे और बीच-बीच में वित्त मंत्री के आगामी बजट भाषण की लाइनें बोलते रहे।
इकत्तीस दिसंबर को मोदी तो चौराहों पर नहीं पहुंचे, उनके भक्त, चमचे और दरबारी भी नहीं पहुंचे। सब अपने-अपने घरों में दुबके हुए थे। सब अपनी जान बचाने के लिए शाम के टी.वी. का इंतजार कर रहे थे क्योंकि पहले ही ऐलान कर दिया गया था कि मोदी देश के चौराहों के बदले शाम को टी.वी. पर पहुंचेंगे। पर मोदी ने उन्हें उबारने के बदले उन्हें ऐसी स्थिति में धकेल दिया कि वे चौराहों पर तो क्या गलियों में भी नजर आने से बचेंगे।
पचास दिन में कितना काला धन सरकार को मिला (निरस्त नोटों के बैंको में वापस न लौटने की शक्ल में) इस पर नरेन्द्र मोदी चुप हैं। इस पर मोदी के बड़बोले वित्त मंत्री अरुण जेटली चुप हैं। इस पर रिजर्व बैंक में ताजा-ताजा बैठाये गये इनके पालतू उर्जित पटेल चुप हैं। वे चुप हैं क्योंकि बताने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। आठ नंवबर को मोदी ने जो सब्ज बाग दिखाये थे वह सिरे से झूठ था। सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में पांच लाख करोड़ रुपये का जो आकड़ा पेश किया गया था (इतने के नोटवापस नहीं लौटेंगे) वह झूठ था। बीच-बीच में वित्त मंत्री जो बोलते रहे वह झूठ था। इन सारे झूठों की कलई अब खुल चुकी है।
पर पिछले पचास दिनों में देश की मजदूर-मेहनतकश जनता को जो कष्ट उठाने पड़े वह झूठ नहीं था। कतारों में जो सौ से ज्यादा लोग मारे गये वह झूठ नहीं था। लोगों के जो काम-धंधे ठप हो गये वह झूठ नहीं था। जो नौकरियां छूट गईं वे झूठी नहीं थी और न ही फसलों की बरबादी झूठी थी।
और अब सरकार के झूठ और जनता के कष्टों की सच्चाई आमने-सामने खड़े हैं। अब किसी को शक नहीं है कि काला धन समाप्त करने के नाम पर उन्हें धोखे में डाला गया। कि बड़े पूंजीपतियों के एक सेवक ने, जो खुद देश में काले धन की सबसे बड़ी पैदाइश और उसका रखवाला है, उनके साथ मदारी जैसा व्यवहार किया। कि इसके जैसे मदारी केवल तमाशा दिखा सकते हैं जिससे बड़े पूंजीपतियों का असली खेल चलता रहे। कि इस नये तमाशे से यदि किसी को फायदा हुआ तो केवल बड़े पूंजीपतियों को ही।
आने वाले समय में इस मदारी को यह तमाशा काफी भारी पड़ेगा।

No comments:

Post a Comment