मजदूर संघर्ष

गोरखपुर के बी.आर.डी. मेडिकल कालेज मे बच्चों की मौतों  के खिलाफ प्रदर्शन 

           दिल्‍ली,16 अगस्त ,उत्तर प्रदेश की संघी सरकार की नाकामी से बी.आर.डी. मेडिकल कालेज गोरखपुर मे  आक्सीजन नहीं मिलने  के कारण 70 बच्चों की मृत्यु की घटना के विरोध मे दिल्ली, फरीदाबाद के मजदूर, छात्र नौजवानो नें दिल्ली उ० प्र० भवन पर जोरदार प्रदर्शन किया । प्रदर्शनकारियों  ने बच्चों  की इन मौतों  को पूजी कीमत वादी शासन तन्त्र  की क्रूरता  का उदाहरण बताय। और कहा कि मोदी- योगी के राज मे सबकुछ  पूजी पतियों  को बेचने लुटाने का जो चक्र चल रहा हेे उसके चलते मंजदूर वर्ग  एवम्  मेहनतकश जनता को केवल तबाही और मौत मिल रही है।वकताओ ने गोरखपुर  मै हुई  बच्चों की मौतों  को कत्ल करार दिया तथा योगी सरकार को इसके लिये जिमेदार ठहराया । प्रदर्शनकारियों  ने अन्त मे दोषियों  के खिलाफ कठोर कार्य वाही सहित पीड़ितों को इन्साफ व समुचित मुआवजा देने की माग करते हुए  मुख्यमंत्री, उत्तरप्रदेश  के नाम एक ज्ञापन प्रेषित  किया।
          प्रदर्शन मे इंकलाबी मजदूर केन्द्र, मजदूर एकता केंद्र , KYS, PDFI आदि संगठनों ने भागीदारी की ।

इन्टरार्क  के दोनों प्लाटों के मजदूरों की एकता और संघर्ष रंग लाया । 
रुद्रपुर  (उत्तराखण्ड ),  04-08-2017 की देर रात पन्तनगर प्लाटं में  कम्पनी के मालिक- मैनेजमेंट और दोनों प्लाटों (पन्तनगर और किच्छा) के मजदूरों की  यूनियनों की पूरी- पूरी कार्यकारणी के बीच हुए समझौते मे 1 साल के लिए 2700 रूपये वृद्धि पर समझौता समपन्न हुआ। पूर्व मे इन्टरार्क के मैनेजमेंट ने मजदूरों की वेतन मे 10ः की वृद्धि करने की बात की थी जिसे दोनों प्लाटों के नेतृत्व सहित सभी मजदूरों ने एक सिरे से नकार दिया था।और कहा था कि इस बार पूर्व की तरह अलग - अलग वेतन वृद्धि के स्थान पर सभी मजदूरों को एक समान वेतन वृद्धि चाहिए।और 1 साल के लिए 4000रूपये वेतन वृद्धि की मांग की थी। इसके बाद मैनेजमेंट ने 2000 रूपये बढाने की लिस्ट जारी की थी। मजदूरों ने इसे भी नकार दिया और संघर्ष करने की तैयारी की । दोनों प्लाटों की संयुक्त कार्यकारिणी और संयुक्त आम सभा मे मजदूरों ने 31 जुलाई से बांह मे काली पट्टी बांधकर काम करना शुरु कर दिया। दोनों प्लाटों की युनियनों द्वारा मांग न मानने पर संघर्ष आगे बढ़ाने का नोटिस मैनेजमेंट को दिया गया। 04-08-2017 को पन्तनगर प्लांट में पन्तनगर प्लांट के मजदूर यूनियन के अध्यक्ष दलजीत सिंह और महामंत्री सौरभ पटेल के नेतृत्व मे पूरी कार्यकारिणी व किच्छा प्लांट की मजदूर यूनियन के अध्यक्ष राकेश और महामंत्री पान मोहम्मद के नेतृत्व मे पूरी कार्यकारणी और कम्पनी के मालिक-मैनेजमेंट के बीच वेतन ग बढोत्तरी की मांग पर 02रू00 बजे से वार्ता शुरू हुई। अंदर वार्ता चल रही थी तो बाहर पन्तनगर प्लांट मे ए शिफ्ट के मजदूर शिफ्ट समाप्त होने के बाद कम्पनी मे ही रूक गये बी शिफ्ट के मजदूर भी रात 10 बजे शिफ्ट समाप्त के बाद कम्पनी में ही रुक गये , सी  शिफ्ट के मजदूर भी काम पर आये , इस तरह से पन्तनगर प्लाटं में  ए  बी  सी  तीनों शिफ्ट के मजदूर एकत्र हो गये थे , काफी जद्दोजहद के बाद रात्रि करीब 11रू00 बजे कम्पनी मालिक और युनियनों के बीच 1 साल के लिये सभी मजदूरों की 2700 रुपये वेतन वृद्धि का समझौता समपन्न हुआ।इस संघर्ष मे  इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा  सटीक  मार्गदर्शन दिया गया एवम् 
श्रमिक संयुक्त मोर्चा ,उधम सिंह नगर  दवारा हौसला  अफजाही  की गयी।
        वेतन बढोत्तरी की वह  पर हुए संघर्ष मे एकजुट रहने वाली  दोनों प्लाटों के मजदूर साथियों को क्रांतिकारी लाल सलाम।

लंबे संघर्ष के बाद रिचा कम्पनी के श्रमिकों ने जीत हासिल की
काशीपुर(उत्तराखण्ड ) 2 अगस्त , उपजिलाधिकारी काशीपुर और और सहायक श्रमायुक्त की मध्यस्थता में हुई त्रिपक्षीय वार्ता में कम्पनी प्रबन्धन और यूनियन के मध्य समझौता सम्पन्न हो गया।पिछले दो साल से यूनियन और प्रबन्धन के मध्य चल रहा संघर्ष आज एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचा। प्रबन्धन द्वारा 10 जुलाई को निलंबित किये गए 7 नेतृत्वकारी साथियों को दिनांक 3 अगस्त से काम पर लेने की सहमति बनी।
इसके अलावा कम्पनी में कार्यरत 20 अन्य श्रमिकों के के खिलाफ पिछले 6 माह से चल रही जांच कार्यवाही समाप्त करने पर भी प्रबन्धन राजी हुआ। पिछले एक साल से अधिक समय से कम्पनी से बाहर यूनियन के संगठन मंत्री को भी 3 अगस्त से नई नियुक्ति पर रखने पर सहमति हुई। एक अन्य श्रमिक जिसकी 6 माह से अवैध गेटबन्दी की गई थी, को भी एक सप्ताह के भीतर काम पर लेने पर सहमति बनी। प्रबन्धन यूनियन को मान्यता देने पर राजी हुआ और आज से ही यूनियन प्रतिनिधियों से द्विपक्षीय वार्ता कर मामले सुलझाने की शुरुआत की गई।एक माह के भीतर वेतन वृद्धि के सबन्ध में नीति बनाकर वेतन वृद्धि करने पर प्रबन्धन ने लिखित सहमति दी।
       यूनियन अध्यक्ष और महामंन्त्री को काम पर लेने पर प्रबन्धन ने अपना अड़ियल रुख बरकरार रखा। उक्त समझौते के आधार पर यूनियन द्वारा पिछले 78 दिन से उपजिलाधिकारी कार्यालय परिसर के सामने चल रहा धरना समाप्त कर दिया गया। यूनियन द्वारा अध्यक्ष और महामन्त्री की कार्यबहाली के लिए संघर्ष जारी रखने का फैसला लिया गया।

       वार्ता में यूनियन की ओर से अध्यक्ष बलदेव सिंह , महामंन्त्री योगेश पांडेय , इंकलाबी मजदूर केंद्र काशीपुर इकाई सचिव खीमानंद, नीरज कुमार, सुरेश चंद्र , आदि और कम्पनी प्रबन्धन की और से प्रबन्ध निदेशक सुभाष गुप्ता , एच आर  मैनेजर रमाशंकर पांडेय उपस्थित थे।
सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों पर हुए हमले की तथ्यान्वेषी रिपोर्ट
       क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन की अगुवाई में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र एवं नौजवान भारत सभा के कार्यकर्त्ताओ ने तथ्यों की जांच पड़ताल के लिए शब्बीरपुर गांव का दौरा 8 मई को किया इस जांच पड़ताल के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है।
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सहारनपुर से लगभग 26 किमी दूरी पर शब्बीरपुर गांव पड़ता है । मुख्य सड़क से तकरीबन आधा किमी दूरी पर यह गांव है।इस गांव के आस पास ही महेशपुर व शिमलाना गांव भी पड़ते है। गांव के भीतर प्रवेश करते वक्त सबसे पहले दलित समुदाय के घर पड़ते है। जो कि लगभग 200 मीटर के दायरे में गली के दोनों ओर बसे हुए हैं। यहां घुसते ही हमें गली के दोनों ओर जले हुए घरए तहस नहस किया सामान दिखाई देता है। दलित समुदाय के कुछ युवकए महिलाएं व अधेड़ पुरुष दिखाई देते हैं जिनके चेहरे पर खौफए गुस्सा व दुख के मिश्रित भाव को साफ साफ पढ़ा जा सकता है।
इस गांव के निवासियों के मुताबिक गांव में तकरीबन 2400 वोटर हैं जिसमें लगभग 1200 वोटर ठाकुर समुदाय के ए 600 वोटर दलित यचमारद्धजाति के है। इसके अलावा कश्यपए तेली व धोबीए जोगी यउपाध्यायद्ध आदि समुदाय से हैं। मुस्लिम समुदाय के तेली व धोबी के तकरीबन 12. 13 परिवार हैं। गांव में एक प्राइमरी स्कूल हैं जिसमें ठाकुर समुदाय के गिने चुने बच्चे ही पड़ते हैं जबकि अधिकांश दलितों के बच्चे यहां पड़ते हैं।
गांव की अधिकांश खेती वाली जमीन ठाकुरों के पास है लेकिन 25.35 दलित परिवारों के पास भी जमीन है। दलित प्रधान जो कि 5 भाई है के पास भी तकरीबन 60 बीघा जमीन है।
गांव में ठाकुर बिरादरी के बीच भाजपा के लोगों का आना जाना है। जबकि दलित समुदाय बसपा से सटा हुआ है। गांव का प्रधान दलित समुदाय से शिव कुमार है जो कि बसपा से भी जुड़े हुए हैं। इस क्षेत्र के गांव मिर्जापुर के दलित सत्यपाल सिंह ने बताया कि वह खुद आरएसएसयसंघद्ध से लंबे समय से जुड़े हुए है शिमलानाए महेशपुर व शब्बीरपुर गांव में भी संघ की शाखाएं लगती हैं हालांकि इनमें दलितों की संख्या 6.7 के लगभग है और इस गांव से कोई भी दलित शाखाओं में नहीं जाता है।
घटना व घटना की तात्कालिक पृष्ठभूमि
5 मई को दलित समुदाय को निशाना बनाने से कुछ वक्त पहले कुछ ऐसी बातें हुई थी जिसने दलितों को सबक सिखाने की सोच और मजबूत होते चले गई । 14 अप्रेल को अम्बेडकर दिवस के मौके पर गांव के दलित अपने रविदास मंदिर के बाहर परिसर में अम्बेडकर की मूर्ती लगाना चाह रहे थे । लेकिंन गांव के ठाकुर समुदाय के लोगों ने इस पर आपत्ति की।प्रशासन ने मूर्ति लगाने की अनुमति दलितों को नहीं दी । मूर्ति लगाने के दौरान पुलिस प्रशासन को गांव के ठाकुर लोगों ने बुलाया। पुलिस मौके पर पहुँची मूर्ति नही लगाने दी गई । दलितों से कहा गया कि वो प्रशासन की अनुमति का इंतजार करें। जो कि नहीं मिली।
5 मई को इस गांव के पास शिमलाना में ठाकुर समुदाय के लोग ष्महाराणा प्रताप जयंतीष् को मनाने के लिए एकजुट हुए थे। इनकी तादात हजारों में बताई गई है। इसमे शब्बीरपुर गांव के ठाकुर भी थे। ये सभी सर पे राजपूत स्टाइल का साफा पहने हुए थेए हाथों में तलवार थामे हुए थे व डंडे लिए हुवे थे।
5 मई को सुबह लगभग 10रू30 बजे गांव के ठाकुर समुदाय के कुछ युवक बाइक में दलित समुदाय की ओर से जाने वाले रास्ते पर से डी जे बजाते हुए आगे बढ़ रहे थे। इस पर दलितों ने आपत्ति जताई । क्योंकि प्रशासन से इनकी अनुमति नहीं थी । इसका दलितों ने विरोध किया लेकिन इस पर भी मामला नही रुका तो दलित प्रधान ने पुलिस प्रशासन को सूचित किया। पुलिस आई और डी जे को हटा दिया गया। दलित समुदाय के लोगों ने आगे बताया कि इसके बाद ये बाइक में रास्ते से गुजरते हुए ष् अम्बेडकर मुर्दाबादष्ए ष्राजपुताना जिंदाबादष् महाराणा प्रताप जिंदाबादष् के नारे लगाते हुए आगे बढ़ने लगे। वह रास्ते से 2.3 बार गुजरे। इन दौरान फिर पुलिस भी आई।
ठाकुर समुदाय के लोगों का कहना था कि इन दौरान दलित प्रधान ने रास्ते से गुजर रहे इन लोगों पर पथराव किया। जबकि दलित समुदाय के लोग इससे इनकार करते हैं। हो सकता है दलितों की ओर से कुछ पथराव हुआ हो। क्योंकि इसी दौरान ठाकुर समुदाय के लोग महाराण प्रताप जिन्दाबाद का नारा लगाते हुए रविदास मंदिर पर हमला करने की ओर बढ़े।
लगभग 11 बजे के आस पास रविदास मंदिर पर हमला बोला गया। दूसरे गांव से आये एक ठाकुर युवक ने रविदास की मूर्ति तोड़ दी नीचे गिरा दी । दलितों ने बताया कि इस पर पेशाब भी की गई। और यह युवक जैसे ही मंदिर के अंदर से बाहर परिसर की ओर निकला वह जमीन पर गिर गया। और उसकी मृत्यु हो गई । इसकी हत्या का आरोप दलितों पर लगाया गया। इण्डियन एक्सप्रेस के मुताबिक पोस्टमार्टम में मृत्यु की वजह दम घुटना  (Suffocation) है।
तुरंत ही दलितों द्वारा ठाकुर युवक की हत्या की खबर आग की तरह फैलाई गई । और फिर शिमलाना में महाराण प्रयाप जयंती से जुड़े सैकड़ो लोग तुरंत ही गांव में घुस आए। इसके बाद तांडव रचा गया। तलवारए डंडे से लैस इन लोगों ने दलितों पर हमला बोल दिया। थिनर की मदद से घरों को आग के हवाले कर दिया गया। लगभग 55 घर जले । 12 दलित घायल हुए इसमें से एक गंभीर हालत में है। गायए भैस व अन्य जानवरों को भी निशाना बनाया गया।इस तबाही के निशान हर जगह दिख रहे थे। यहां से थोड़ी दूर महेशपुर में सड़क के किनारे दलितों के 10 खोखे आग के हवाले कर दिए गए। यह सब चुन चुन कर किया गया।
घायलों में 5 महिलाएं है जबकि 7 पुरुष। गांव के दलित प्रधान का बेटा गंभीर हालत में देहरादून जौलीग्रांट में भर्ती है। तलवार व लाठी डंडे के घाव इनके सिर हाथ पैर पर बने हुए हैं। रीना नाम की महिला के शरीर पर बहुत घाव व चोट है। इस महिला के मुताबिक इसकी छाती को भी काटने व उसे आग में डालने की कोशिश हुई। वह किसी तरह बच पायी।

शासन , पुलिस प्रशासन व मीडिया की भूमिका

सरकार व पुलिस प्रशासन की भूमिका संदेहास्पद है व उपेक्षापूर्ण है। यह आरोप है कि घटनास्थल पर हमले के दौरान मौजूद पुलिस हमलावरों का साथ देने लगी व कुछ दलितों के साथ इस दौरान मारपीट भी पुलिस ने की । संदेह की जमीन यहीं से बन जाती है कि जब संघ व भाजपा के लोग अम्बेडकर को हड़पने पर लगे है तब दलितों को उन्हीं के रविदास मंदिर परिसर में अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने से रोक दिया गया व प्रशासन ने इसकी अनुमति ही नहीं दी।

दलितों पर कातिलाना हमले के बाद भी सरकार व मुख्यमंत्री के ओर से दलितों के पक्ष में कोई प्रयास नहीं हुए जिससे कि उन्हें महसूस होता कि उनके साथ न्याय हुआ हो। इसके बजाय मामला और ज्यादा भड़काने वाला हुआ । एक ओर पुलिस प्रशासन ने पीड़ितों व हमलवारों को बराबर की श्रेणी में रखा और हमलावर ठाकुर समुदाय के लोगों के साथ साथ दलितों पर भी मुकदमे दर्ज किए दिए गए । 8 मई तक मात्र 17 लोग ही गिरफ्तार किए गए इसमें लगभग 7 दलित समुदाय के थे जबकि 10 ठाकुर समुदाय के। जबकि दूसरी ओर ठाकुर समुदाय से मृतक परिवार के लोगों को मुआवजा देने की खबर आई व मेरठ में मुख्य मंत्री योगी द्वारा अम्बेडकर की मुर्ती पर माल्यार्पण न करने की खबर भी फैलने लगी।
घायल लोगों के कोई बयान पुलिस ने 8 मई तक अस्पताल में नहीं लिए थे। घायल लोगों के कपड़े घटना वाले दिन के ही पहने हुए हैं जो कि खून लगे हुए थे। ये पूरे शासन प्रशासन की संवेदनहीनता को दिखाता है।
इस दौरान गांव में डी एम ने एक बार दौरा किया व कुछ परिवारों को राशन दिया। लेकिन लोगो की जरूरत और ज्यादा की थी उन्हें छत के रूप में तिरपाल की भी जरूरत थी। लेकिन शासन प्रशासन ने फिर मदद को कोई कदम नहीं उठाया। बाहर से जो लोग मदद पहुंचा रहे थे उन्हें भी प्रशासन ने रोक दिया।

लखनऊ से गृह सचिव व डी जी पी स्थिति का जायजा लेंने पहुंचे तो वे केवल अधिकारियों से वार्ता करके चले गए गांव जाना व वंहा दलितों से मिलने का काम इन्होंने नहीं किया।

बात यही नही रुकी। दलितों ने भेद भाव पूर्ण व्यवहार के विरोध में तथा मुआवजे के लिए एकजुट होने की कोशिश को भी रोका गया। दलित छात्रावास में रात को ही पीएसी तैनात कर दी गई। और जब गांधी पार्क से एकजुट दलित लोगों ने जुलूस निकालने की कोशिश की तो उस पर लाठीचार्ज कर दिया गया।

मीडिया ने इस कातिलाना हमले को दो समुदाय के टकरावयबसंेीद्ध के रूप में प्रस्तुत किया। हमलावरों व हमले के शिकार लोगों को एक ही केटेगरी में रखा गया। इसका नतीजा ये रहा कि दलितों में पुलिस प्रशासन व मीडिया के प्रति अविश्वास व नफरत बढ़ते गया।

शबीरपुर घटना की दीर्घकालिक वजह

सहारनपुर में दलितों की आर्थिक व राजनीतिक स्थिति तुलनात्मक तौर ठीक है और यह तुलनात्मक तौर पर मुखर भी है । आरक्षण के चलते थोड़ा बहुत सम्पन्नता दलितों में आई है अपने अधिकारों के प्रति सजग भी हुए है। लेकिन इन बदलाव को सवर्ण समुदाय विशेषकर ठाकुर समुदाय के लोग अपनी सामंती मानसिकता के चलते सह नहीं पाते। उन्हें यह बात नफरत से भर देती है कि कल तक जिन्हें वे जब तब रौंदते रहते थे आज वही उन्हें आँख दिखाते है ।

जब से एस सी एस टी एक्ट बना हुआ है इस मुकदमे के डर से ठाकुर समुदाय के लोगों को जबरन खुद को नियंत्रित करना पड़ता है कभी कभी तो जेल भी जाना पड़ता है। ये बात इन्हें नफरत से भर देती है।ठाकुर समुदाय के लोग महसूस करते है कि बसपा की सरकार थी तो बस इन दलितों का ही राज था। अभी बसपा की सरकार होती तो सारे ठाकुर अंदर होतेए भाजापा के होने केवल 10.12 लोग ही अरेस्ट हुए। दलित व ठाकुरों के बीच के अंतर्विरोध अलग अलग वक्त पर झगड़ो के रूप में दिखते हैं।
चूंकी संघ ने निरंतर ही अपनी नफरत भरी जातिवादी विचारो का बीज इस इलाके में भी बोया है। सवर्ण समुदाय इससे ग्रसित है। वह आरक्षण व सामाजिक समानता का विरोधी है। इसलिए यह अंतर्विरोध और तीखा हुआ है। संघ मुस्लिमों के विरोध में सभी हिंदुओं को लामबंद करने की कोशिश कर रहा है अपने फास्सिट आंदोलन को मजबूत कर रहा है । शब्बीरपुर घटना उसके लिए फायदेमंद नहीं है।
चुकी शब्बीरपुर गांव में ठाकुरों के वोटर दलितों से दुगुने होने के बावजूद ठाकुर अपना प्रधान नहीं बना पाए। एक बार रिजर्ब सीट होने के चलते तो दूसरी दफा सामान्य सीट होने के के बावजूद।
जब ठाकुर समुदाय के लोगों से यह पूछा गया कि ऐसा कैसे हुआ ? तो उन्होंने जवाब दिया कि सारे चमार, तेली कश्यप एक हो गए हम ठाकुर एक नही हो पाए ज्यादा ठाकुर चुनाव में खड़े हो गए, वोट बंट गए और हार गए। इसका बहुत अफसोस इन्हें हो रहा था।
इसके अलावा दलितों के पास जमीन होना भी ठाकुर लोगों के कूड़न व चिढ़ को उनके चेहरे व बातों में दिखा रहा रहा था। ठाकुर लोगों से जब पूछा गया कि गांव में सबसे ज्यादा जमीन किसके पास है घ् तो जवाब मिला . सबके पास है दलितों के पास भी बहुत है प्रधान के पास 100 बीघा है उसका भटटा भी है पटवारी भी दलित है जितना मर्जी उतनी जमीन पैसे खाकर दिखा देता है।
ठाकुर परिवार की महिलाएं बोली . हमारी तो इज्जत है हम घर से बाहर नही जा सकतीए इनकीयदलित महिलाएंद्ध क्या इज्जतए सब ट्रैक्टर मैं बैठकर शहर जाती है पैसे लाती है। ठाकुर लोग फिर आगे बोले.इनके य दलितोंद्ध के तो 5.5 लोग एक घर से कमाते है 600 रुपये मजदूरी मिलती है हमारी तो बस किसानी है हम तो परेशान हैं आमदनी ही नहीं है।
यही वो अंतर्विरोध थे जो लगातार भीतर ही भीतर बढ़ रहे थे दलितों को सबक सिखाने की मंशा लगातार ही बढ़ रही थी। और फिर 5 मई को डी जे के जरिये व फिर नारेबाजी करके मामला दलितों पर बर्बर कातिलाना हमले तक पहुंचा दिया गया। इसमें कम से कम स्थानीय स्तर के भाजपा ए संघ व पुलिस प्रशासन की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
5 मई को शिमलाना में महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन किया गया । जिसमें हजारों लोग गांव में इकट्ठे हुवे थे। ऐसा कार्यक्रम सहारनपुर के गांव में पहली दफा हुआ। जबकि इससे पहले यह जिला मुख्यालय पर हुआ है।

दलित समाज की प्रतिकिया व शासन प्रशासन

जैसा कि स्पष्ट है विशेष तौर पर पुलिस प्रशासन के प्रति इनमें गहरा आक्रोश था। जब 9 तारीख को दोपहर में गांधी पार्क पर लाठी चार्ज किया गया तो शाम अंधेरा होते होते यह पुलिस प्रशासन से मुठभेड़ करते हुए दिखा। इनकी मांग थी . हमलावर ठाकुर समुदाय के लोगो को 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार करो।
सहारनपुर के रामनगरएनाजीरपुराएचिलकाना व मानकमऊ में सड़कें ब्लॉक कर दी गई । यह दलित समुदाय के युवाओं के एक संगठन श्भीम आर्मीश् ने किया। लाठी डंडो से लैस इन युवाओं को पुलिस प्रशासन ने जब फिर खदेड़ने की कोशिश की तो फिर पुलिस को टारगेट करते हुए हमला बोल दिया गया।पुलिस थाने में आग लगा दी गई । पुलिस की कुछ गाड़िया जला दी गई ।पुलिस का जो भी आदमी हाथ आया उसे दौड़ा दौड़ा कर पिटा गया। अधिकारियों को भी इस आक्रोश को देख डर कर भागना पड़ा। एक दो पत्रकारों को भी पीटा गया व बाइक जला दी। एक बस से यात्रियों को बाहर कर बस में आग लगा दी गई।
इस आक्रोश से योगी सरकार के माथे पर कुछ लकीरें उभर आई। तुरंत ही अपनी नाकामयाबी का ठीकरा दो एस पी पर डालकर उन्हें हटा दिया गया। और अब वह ष्कानून का राजष् कायम करने के नाम पर दलित युवाओं से बनी भीम आर्मी पर हमलावर हो गई है। अस्पताल से लेकर छात्रावास व गांव तक हर जगह इनको चिन्हित कर तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। जबकि ठाकुर समुदाय के तलवार के बल पर खौफ व दहशत का माहौल पैदा करने वाले महाराण प्रताप जयंती वाली सेना को सर आंखों पर बिठा कर रखा जाता है। उनके खिलाफ ऐसी कोई कार्यवाही सुनने या देखने पढ़ने को नही मिली।साफ महसूस हो रहा है कि पुलिस प्रशासन अब पुलिस कर्मियों पर हमला करने वाले दलित समुदाय के लोगों को सबक सिखाने की ओर अपने कदम बढ़ा चुका है।

कुल मिलाकर शासन .प्रशासन व राज्य सरकार का रुख दलितों के प्रति भेदभावपूर्णए उपेक्षापूर्ण ए दमनकारी व सबक सिखाने का बना हुआ है। इसलिये आने वाले वक्त में यह समस्या और गहराएगी। वैसे भी जब जातिवादी ए साम्प्रदायिक व फासिस्ट विचारों से लैस पार्टी सत्ता में बैठी हुई हो तो इससे अलग व बेहतर की उम्मीद करना मूर्खता है।

शराब की दुकान हटाने को लेकर मजदूर बस्ती की महिलाओं का जुझारू संघर्ष
15 अप्रैल 2017,फरीदाबाद -  फरीदाबाद के पर्ववतीय कालोनी मजदूर बस्ती में 15 अप्रैल को शराब की दुकान खोले जाने के खिलाफ महिलाओं ने जुझारू संघर्ष किया। 
महिलाओं ने संगठित होकर शराब की दुकान के आगे नारेबाजी की एवं काउंटर पर रखी शराब की बोतलों को फोड़ दिया। इस दौरान स्थानीय सारन थाने की पुलिस ने महिलाओं को डराने धमकाने की कोशिश से लेकर अभद्र व्यवहार तक किया मगर वे महिलाओं को वहां से हटा पाने में असफल रहे। 
खीझकर पुलिस कर्मियों ने एक महिला के पुत्र को पास ही उसके घर पर पहुंचने पर गिरफतार कर लिया व जीप में बैठाकर ले जाने लगे। लेकिन महिलाएं पुलिस की गाड़ी के आगे खड़ी हो गयी एवं उन्होंने पुलिस को आगे बढ़ने नहीं दिया। 
महिलाओं के जुझारू तेवरों के आगे आखिरकार पुलिस को बैरंग लौटना पड़ा। लेकिन उन्होंने कई महिलाओं व कालोनीवासियों पर फर्जी मुकदमे लगा दिये।
शराब के खिलाफ मजदूर महिलाओं का आक्रोश पूरे देश में कई जगहो पर दिखाई देता है। शराब को महिलायें अपने घर परिवार का उजाड़ने वाली चीच समझती हैं। लेकिन वे इस सबके पीछे मुनाफे के तंत्र अथवा पूंजीवादी व्यवस्था को नहीं पहचान पा रही हैं। लेकिन देर सबेर उनका आक्रोश अपने सही निशाने पूंजीवादी व्यवस्था को निशाने पर लेगा।

पूरे देश व दुनिया के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन 
मारुति मजदूरों को रिहा करो!

 मारुति मजदूरों के समर्थन में अखिल भारतीय प्रतिवाद दिवस पर देश के विभिन्न हिस्सों और दुनिया के कई देश के मजदूरों ने अपनी एकजुटता प्रदर्शित की और विरोध प्रदर्शन किया, रैलियां निकालीं।
4 अप्रैल 2017, गुड़गांव - मारुति सुजुकी मजदूर संघ के आह्वान पर गुड़गांव में राजीब चौक से मिनी सचिवालय तक सैकड़ो मजदूरों ने रैली निकाली। ए शिफ्ट के बाद मारुति मानेसर, मारुति गुड़गांव, मारुति सुजुकी पॉवरट्रेन, सुजुकी मोटरसाइकिल, बेलसोनिका, ऍफएम्आई, हौंडा मानेसर, सनबीम, बजाज मोटर्स आदि कंपनियों के मजदूर रैली में शामिल हुए। रैली के बाद मारुति सुजुकी मजदूर संघ की तरफ से गुड़गांव उपायुक्त महोदय के पास राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया गया, जिसमे 18 मार्च को गुड़गांव कोर्ट द्वारा दिए गए मजदूर विरोधी फैसला का विरोध किया गया, 13 उम्र कैदी मारुति मजदूर नेताओं की रिहाई के लिए मांग की गई और 117 बरी हुए मजदूर सहित सभी बर्खास्त मजदूरों को काम पर वापस लेने की मांग उठाई गयी।
निमराणा। नीमराना औद्योगिक क्षेत्र में मजदूर संघर्ष समिति, अलवर द्वारा मारुति मजदूरों के समर्थन में रैली निकाला गया। इसमें डाइकिन, हौंडा, तोयोडा गोसाई आदि कंपनियों के मजदूर शामिल थे। रैली के अंत में राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया गया।
कैंथल। मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान, मासा के घटक संगठन जनसंघर्ष मंच व मजदूर सहयोग केन्द्र द्वारा कैथल में सभा व जुलूस द्वारा मारुति मानेसर के मजदूरों की मांगो को जन जन तक पहुंचाया गया। मासा की ओर से गोहाना, हरियाणा में विरोध दर्शन और रैली निकाली गयी। मारुति मजदूरों के समर्थन में आज नीमराना में मजदूर संघर्ष समिति अलवर द्वारा रैली व सभा हुई। हरियाणा के पानीपत, फतेहाबाद, कुरुक्षेत्र, अम्बाला में भी कार्यक्रम हुए। फरीदाबाद में 13 मारुति मजदूरों के उम्रकैद की सजा के खिलाफ इंकलाबी मजदूर केन्द्र  और वीनस वर्कस यूनियन ने विरोध प्रदर्शन किया।
दिल्ली। मारुति मजदूरों के समर्थन में मायापूरी दिल्ली में आईएफटीयू के साथियों द्वारा प्रदर्शन किया गया। इसके साथ ही दिल्ली जंतर मंतर में मारुति मजदूरों के समर्थन में सामूहिक प्रदर्शन हुआ। दिल्ली में ओखला फेज 2 औद्योगिक क्षेत्र में और पानीपत, हरियाणा में आईएफटीयू के साथियों द्वारा मारुति मजदूरों के समर्थन में प्रदर्शन हुआ।
कोलकता। मारुति मजदूरों के समर्थन में अखिल भारतीय प्रतिवाद दिवस पर कोलकाता में 16 संघर्षशील ट्रेड यूनियन और छात्र-युवा संगठनों द्वारा विशाल रैली आयोजित हुई। इसी के साथ पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में प्रदर्शन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हुआ।
लखनऊ। लखनऊ के गांधी प्रतिमा जीपीओ पर केन्द्रिय ट्रेड यूनियनों और आॅल इण्डिया वर्कर्स काउन्सिल द्वारा अप्रैल को विरोध सभा का आयोजन होगा।
रुद्रपुर, उत्तराखंड। मारुति के मजदूर साथियों के इंसाफ के लिए रुद्रपुर के अम्बेडकर पार्क में सभा हुई और मुख्य बाजार में जुलुस निकला। इसमें महिंद्रा सीआईई, पंतनगर, महिंद्रा सीआई, लालपुर, महिंद्रा एण्ड महिंद्रा, रॉकेट रिद्धिसिद्धि, राणे मद्रास, एलजीबी, वोल्टास, नेस्ले, एडविक, थाई सुमित जेवीएम, ऑटो लाइन आदि कंपनी की यूनियनों व मजदूरों तथा इंकलाबी मजदूर केंद्र, मजदूर सहयोग केंद्र, एक्टू, सीटू, सीपीआई, भूमिहीन संगठन ने भागेदारी की। इसके साथ ही काशीपुर में भी प्रदर्शन हुआ। 
पटना। बिहार की राजधानी पटना में जन अभियान बिहार कन्वेंशन की और जन संगठनों का सामूहिक प्रदर्शन हुआ। बिहार के सासाराम में ग्रामीण मजदूर यूनियन द्वारा समर्थन में प्रदर्शन हुआ। रोहतास जिले में भी कार्यक्रम हुए।
हैदराबाद। आईएफटीयू के नेतृत्व में हैदराबाद से मारुति मजदूरों के समर्थन में विरोध दिवस मनाया गया। तमिलनाडु में चेन्नई, मदुरै में कार्यक्रम हुए। पुडुचेरी में, कर्नाटक में बंगलुरु, छत्तीसगढ़ में भिलाई, ओड़िसा में भुवनेश्वर, गुजरात में अहमदाबाद, पंजाब में बरनाला, महाराष्ट्र में मुम्बई, राजस्थान में नीमराणा और जयपुर, तेलंगाना में हैदराबाद जिले में विरोध प्रदर्शन आयोजित हुए।
विदेशों में भी सॉलीडैरिटी
फ्रांस, जापान, दक्षिण कोरिया व अन्य देशों में आज मारुति मजदूरों के समर्थन में ग्लोबल सोलिडरिटी डे मनाया जा रहा है और कार्यक्रम हो रहे है। श्रीलंका के मजदूरों ने मारुति मजदूरों के समर्थन में विरोध प्रदर्शन किया। मारुति मजदूरों के समर्थन में जर्मनी के म्यूनिख सहित 3 जगहों पर प्रदर्शन हुआ। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका में न्यूयार्क और वाशिंगटन में दक्षिण कोरिया, जापान, फ्रांस, श्रीलंका के कोलंबो, पाकिस्तान में लाहौर, ब्राजील, स्पेन में कार्यक्रम हुए। इसके अलावा इंटरनेशनल ऑटोमोटिव वर्कर्स कोआर्डिनेशन, इंटरनेशनल यूनियन नेटवर्क ऑफ सोलिडेरिटी एंड स्ट्रगल, इंटरनेशनल कोआर्डिनेशन ऑफ रेवोल्यूशनरीस पार्टीज एंड आर्गेनाईजेशन, इंडस्ट्रियल, सीजीटी फ्रांस, जेनरोरेन जापान, केसीटीयू दक्षिण कोरिया, जर्मनी से बीएमडब्ल्यू तथा जनरल मोटर्स की तरफ से मारुति मजदूरों को समर्थन पत्र भेजा गया।
4 अप्रैल को अखिल भारतीय प्रतिवाद दिवस और अंतरराष्ट्रीय समर्थन दिवस पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न स्थानों पर अलग अलग प्लांटों के मजदूरों, ट्रेड यूनियनों और मजदूर संगठनों ने मारुति मजदूरों के समर्थन में कार्यक्रम आयोजित कर अपनी वर्गीय एकजुटता जाहिर की। अंतिम सूचना मिलने तक राष्ट्रीय स्तर पर 15 राज्यों के 30 स्थानों पर प्रदर्शन हुए।
समाचार लिखे जाने तक देश व दुनिया से प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं।

इसी क्रम में कल 5 अप्रैल को देश विदेश में मारुति मजदूरों के समर्थन में प्रदर्शन होंगे।

सभी जगहों से मजदूरों ने एक ही आवाज उठाई

* 13 निर्दोष मारुति मजदूरों को रिहा करो! 
* 117 रिहा मजदूरों को मुआवजा दो, सभी बर्खास्त मजदूरों को काम पर वापस लो!
* पूंजीपति व सरकार गठजोड़ मुर्दाबाद!
* मजदूर एकता जिन्दाबाद!

इंकलाब जिंदाबाद!

मारूति मजदूरों के समर्थन में मासा द्वारा प्रतिरोध सभा
31 मार्च 2017, दिल्ली - गुडगाँव जिला न्यायालय द्वारा मारूति के 13  मजदूरों को उम्रकैद सहित 31  मजदूरों को कठोर सजा के विरोध में विभिन्न मजदूर संगठनों व ट्रेड यूनियनों के समन्वय मासा (मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान ) द्वारा दिल्ली के जंतर मंतर पर 31 मार्च को प्रतिरोध सभा की गयी।
प्रतिरोध सभा में भारी संख्या में मासा के घटक संगठनों के कार्यकर्ता मौजूद थे।
सभा में वक्ताओं ने मारूति मजदूरों के जुझारू संघर्ष को सलाम करते हुए कहा कि उदारीकरण- वैश्वीकरण के दौर में यूनियन बनाने सहित श्रम अधिकारों को बचाने अथवा व्यवहारतः हासिल करने हेतु मजदूरों बढ़ते संघर्षों को पीछे धकेलने की नीयत से मजदूरों फर्जी तरीके से आरोपित करते हुए झूठे मुकदमों में फँसाया गया बताया।
वक्ताओं ने मारूति संघर्ष के ऐतिहासिक महत्व को याद करते हुए कहा कि मारूति आंदोलन ने ठेका , ट्रेनी और स्थायी मजदूरों की एकता का शानदार उदहारण प्रस्तुत किया इससे वे पूंजीपति वर्ग और शासकों के सीधे निशाने पर थे।
जिस तरह अभियोजन पक्ष के सारे सुबूतों और गवाहों के अदालत में न टिक पाने और मुकदमे के फर्जी साबित होने के बावजूद मारूति मजदूरों सजा सुनाई गयी वह साबित करता है इस मामले में न्यायिक मानदंडों के बजाय वर्ग पूर्वाग्रह और वर्ग घृणा निर्णायक रही।
वक्ताओं ने कहा कि मारूति मामले में न्याय और न्याय पालिका आमने सामने हैं। वक्ताओं ने मारूति मजदूरों के न्याय के संघर्ष में पूरी एकजुटता दिखते हुए इसे समूचे मजदूर वर्ग पर हमला बताया और इसके खिलाफ वर्गीय प्रतिरोध खड़ा करने का संकल्प व्यक्त किया।

सभा को इंक़लाबी मजदूर केंद्र ,मजदूर सहयोग केंद्र , आई सी टी यू , इंक़लाबी केंद्र (पंजाब ), कर्नाटक श्रमिक शक्ति,सर्वहारा पत्रिका ,मजदूर पत्रिका ,प्रोविजनल कमिटी मारूति सुजुकी वर्कर्स यूनियन आदि के प्रतिनिधियों ने सम्बोधित किया।

मारूति मजदूरों को दोषी ठहाराने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

16 मार्च 2017, दिल्ली - मारूति सुजुकी मानेसर प्लांट में 18 जुलाई 2012 को हुई दुर्घटना के आरोप में गुड़गांव सेशन कोर्ट द्वारा 31 मजदूरों को सजा दिये जाने  के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न मजदूर सगठनों तथा जनवादी समूहों द्वारा तीखा विरोध दर्ज कराते हुए हरियाणा भवन पर प्रदर्शन का कार्यक्रम लिया गया।
सैकड़ो की तादाद में प्रदर्शनकारी जैसे ही मंडी  हाउस से हरियाणा भवन की तरफ कूच करने के लिए बढ़े, कई थानों की पुलिस व केन्द्रीय अर्द्ध सैनिक बल के जवानों द्वारा उनको आगे बढने से रोक दिया गया। प्रदर्शनकारियों की पुलिस अफसरों से तीखी नोकझोक हुई। काफी कसमकस के बाद पुलिस द्वारा दो बसों में भर कर प्रदर्शनकारियों को जंतर मंतर पर छोड़ दिया गया।
प्रदर्शनकारियों ने इस दौरान मारूति मजदूरों पर लगे झूठे मुकदमे वापस लेने की मांग करते हुए देशी-विदेशी पूंजी के गठजोड़ के खिलाफ जबर्दस्त नारेबाजी की।
जंतर-मंतर पर हुई सभा में सभी वक्ताओं ने एक सुर में सेशन कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को पूंजीपतियों व प्रांतीय तथा केन्द्र सरकार के दबाव में दिया गया फैसला बताया। वक्ताओं ने मारूति आंदोलन को साम्राज्यवादी वैश्वीकरण के दौर में मजदूर वर्ग के संघर्षों को दबाकर रखने के लिए की गयी कार्यवाही बताया। मारूति के प्रबंधक आर.सी. भार्गव के बयान को कि ‘यह एक वर्ग संघर्ष है’ को याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि न्यायपालिका का यह फैसला भी वर्गीय हितों के अनुरूप दिया गया है। सभी वक्ताओं ने मारूति मजदूरों के संघर्ष को सभी मजदूररों का साझा संघर्ष घोषित करते हुए इसके खिलाफ मजदूर वर्ग का साझा प्रतिरोध खड़ा करने की जरूरत पर बल दिया।
इस प्रदर्शन में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, जन संघर्ष मंच हरियाण, इफ्टू, ए.आई.एफ.टी.यू.(न्यू), आई.सी.टी.यू, मजदूर एकता केन्द्र , के.बाई.एस., के.एन.एस., टी.यू.सी.आई., ए.आइ.सी.टी.यू., लोक राज संगठन, पी.डी.एफ.आई., एन.एस.आई, डी.एस.यू., आदि संगठनों के कार्यकर्ता व प्रतिनिधि मौजूद थे।
होंडा मजदूरों द्वारा जंतर मंतर पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल 
राजस्थान भवन पर प्रदर्शन


19 सितम्बर 2016, दिल्ली - टप्पूखेड़ा (अलवर, राजस्थान) स्थित मजदूर पिछले सात माह से लगातार दमन उत्पीड़न झेलने के बाद एक बार फिर बुलंद इरादों के साथ संघर्ष के मैदान में डट गये हैं। 19 सितंबर से अपने संघर्ष को तेज करते हुए होंडा मजदूर जंतर मंतर (दिल्ली) पर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठ गये हैं। होंडा मजदूरों के इस संघर्ष के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के तमााम मजदूर संगठनों, जनवादी व न्यायप्रिय बुद्धीजीवियों एवं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ एवं विभिन्न छात्र व नौजवान संगठनों ने अपनी एकजुटता जाहिर की है। 
अनिश्चिितकालीन अनशन के साथ मजदूरों ने संघर्ष के अन्य रूपों को भी जारी  रखा है। इसी क्रम में 23 सितंबर को मजदूरों एवं विभिन्न छात्र-संगठनों के प्रतिनिधियों ने होंडा मजदूरों के साथ हो रहे दमन-उत्पीड़न के खिलाफ राजस्थान भवन पर एक जोरदार प्रदशर्नन किया। प्रदर्शन के दौरान विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने राजस्थान सरकार सहित केन्द्र सरकार की घोर मजदूर विरोधी नीति की खिलाफत करते हुए बर्खास्त 3000 मजदूरों को काम पर वापस लेने, मजदूरों पर दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लेने व मजदूरों का दमन उत्पीड़न बंद करने की मांग की। 
अपने मजदूर विरोधी रुख का प्रदर्शन करते हुए दिल्ली पुलिस ने 50 के लगभग प्रदर्शनकारियों को गिरफतार कर लिया। गिरफतार प्रदर्शनकारियों में विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं के अलावा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष व महासचिव भी शामिल थे। पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को पांच घंटे हिरासत में रखने के बाद शाम 5ः30 बजे रिहा किया गया। 
दिनांक 26 सितंबर से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मजदूर व छात्र संगठनों द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित होंडा के शोरूम पर आने वाले ग्राहकों को होंडा के उत्पादों को न खरीदने का आग्रह करते हुए एक पर्चा वितरित करने की योजना ली गयी है। 
पर्चे में ग्राहकों को होंडा प्रबंधन द्वारा मजदूरों के दमन उत्पीड़न से अवगत कराते हुए होंडा प्रबंधन वर्षों पुराने 3000 कुशल श्रमिकों को बर्खास्त कर अकुशल व तकनीकी योग्यताविहीन (गैर आई टी आई) मजदूरों को भर्ती कर उत्पादों की गुणवत्ता गिराने का भंडोफोड़ किया गया। होंडा उत्पादों के खिलाफ लगातार बढ़ती संख्या में डिफाॅल्ट व रिजेक्शन का भी पर्चे मेें खुलासा किया गया। पर्चे में बताया गया कि बांग्लादेश में होंडा की 10,000 गाड़ियां फाॅल्ट के कारण होल्ड पर हैं तथा दीपावली के पहले होंडा एक्टिवा की मांग की पूर्ति के लिए कंपनी ने भारी संख्या में फाॅल्ट गाड़िया में बाजार में उतार दी हैं जिसके प्रति ग्राहकों को सचेत होना चाहिए।
आंदोलन को आगे विकसित करते हुए होंडा मजदूर 2 अक्टूबर कोे अपने फैक्टरी ( टप्पूकड़ा, अलवर) से दिल्ली तक एक मार्च निकालेंगे। 
बहरहाल होंडा के मजदूर अपने संघर्ष को लगातार आगे बढ़ाने के लिए कमर कसे हुए हैं और व्यापक मजदूर मेहनतकश जनता का समर्थन भी उन्हें मिल रहा है। 

2 सिंतबर की हड़ताल  के लिए क्रांतिकारी अभिनंदन !
संघर्ष अभी बाकी है, आगे बढ़ते जाना है !!

2 सितम्बर 2016
मजदूरों साथियों, 
2 सितंबर की देशव्यापी हड़ताल ने पूंजीपति वर्ग, सरकार व प्रशासन के होश उड़ा दिए हैं। देश भर में 15 करोड़ मजदूरों ने इस हड़ताल में हिस्सा लिया। देश में विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में मशीन का चक्का पूरी तरह जाम रहा और देश के बहुत से हिस्सों में पूर्ण बंद की स्थिति रही। कुल मिलाकर पूंजीपति वर्ग व शासन-प्रशासन का गठजोड़ मजदूरों की इस प्रचंड हड़ताल से थर्रा गया है, उनके दिल कांप गए हैं। 
इंकलाबी मजदूर केन्द्र इस हड़ताल में भाग लेने वाले सभी मजदूर साथियों का क्रांतिकारी अभिनंदन करता है। उन्हें लाल सलाम पेश करता है।
लेकिन सांथियों, एक दिन की हड़ताल से न तो हमारी सभी फौरी मांगे पूरी होंगी और न ही हमारी समस्याओं का समाधान होगा। हमें बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है। हमें देशी-विदेशी पूंजी के गठजोड़ के खिलाफ पूरे मजदूर वर्ग की संग्रामी एकता बनानी है तथा मजदूरों के खून पसीने को निचोड़-निचोड़ कर माला माल हो रहे देशी-विदेशी पूंजी के गढजोड़ को ध्वस्त करना है। हमें मुनाफे पर टिकी इस पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म कर मजदूर वर्ग का राज लाने की हद तक अपने संघर्ष को ले जाना है। हमें महज ठेकेदारी व्यवस्था के खात्मे की लड़ाई नहीं वेतन गुलामी की व्यवस्था के खात्मे तक अपने संघर्ष को ले जाना है। हमें एक एसे समाज की लड़ाई लड़नी है जहां न मालिक होंगे न मजदूर। कोई किसी का शोषण न कर सकेगा। सब काम करेंगे व मिल बांटकर खायेंगे। न कोई गरीब हो न कोई अमीर। निश्चित तौर पर ऐसी व्यवस्था समाजवादी व्यवस्था यानी मजदूर राज ही हो सकती है। हमें इसी राज को लाने की दिशा में आगे बढ़ना है। इस मुकाम को पाने के लिए जाहिर है कि हमें अपने बीच के पतित नेताओं, मालिकों के दलालों व धंधेबजों से अपने को आजाद करना होगा।
आने वाले समय में हम और प्रचंड व व्यापक संघर्षांे को खड़ा करेंगे। इन्ही उम्मीदों के साथ एक बार फिर इंकलाबी मजदूर केन्द्र 2 सितंबर की हड़ताल में शमिल मजदूरों का अभिनन्दन करता है व क्रांतिकारी सालाम पेश करता है।

मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान द्वारा मजदूर कन्वेंशन 
28 अगस्त 2016, दिल्ली,  देश की संघर्षशील मजदूर यूनियनों के साझे अभियान के अंतर्गत 28 अगस्त को अंबेडकर भवन में एक मजदूर कन्वेंशन आयोजित किया गया। इस कन्वेंशन में देश के 20 राज्यों से 14 संघर्षशील यूनियनों के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। 
कन्वेंशन की शुरुआत देश दुनिया में मजदूर वर्ग के हितों के लिए संघर्ष में शहीद हुए साथियों को 2 मिनट का मौन रखने के साथ हुई
इसके बाद मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान ;मासाद्ध द्वारा प्रथम सत्र में तीन परिपत्र प्रस्तुत किये। पहला परिपत्र प्रस्तुत करते हुए ट्रेड यूनियन सेंटर आॅफ इंडिया ;टीयूसीआईद्ध के महासचिव कामरेड संजय सिंधवी ने न्यूनतम वेतन को वैज्ञानिक तरीके से तय करते हुए 22 हजार प्रतिमाह करने की बात की। उन्होंने बताया कि श्रम आयोग व विभिन्न सरकारें न्यूनतम वेतन तय करते हुए जीवन जीने की मूलभूत जरूरतों का इस हद तक अवमूल्यन कर रहे हैं कि न्यूनतम वेतन में कोई मानवीयएगरिमापूर्ण जीवन नहीं जिया जा सकता है। न्यूनतम वेतन खुद सरकारी मानदंडों के हिसाब से 30 हजार होना चाहिए। 22 हजार न्यूनतम वेतन खुद सरकार की एक कमेटी ने तय किया है। मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान न्यूनतम वेतन 22 हजार के लिए संघर्ष करेगा। 
मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान की तरफ से श्रम कानूनों में संशोधन पर परिपत्र प्रस्तुत करतेे हुए इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट ने श्रम कानूनों में प्रस्तावित संशोधनों का संक्षिप्त विवरण देते हुए कहा कि श्रम कानूनों को निष्प्रभावी कर मोदी सरकार दरअसल पूंजीपतियों के संगठन फिक्की ;फेडरेशन आॅफ इंडियन काॅमर्स एंड इंडस्ट्रीजद्ध व एसोचेम ;एसोसिएट चेम्बर आॅफ काॅमर्सद्ध की संस्तुतियों को लागू कर रही है। 
उन्होंने बताया कि पूंजीपतियों के संगठनों की ये संस्तुतियां दूसरे श्रम आयोग की सिफारिशों में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। उन्होंने कहा कि प्रथम श्रम आयोग उस दौर में गठित हुआ था जब देश दुनिया का मजदूर आंदोलन उठान पर था। इसलिए मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी उभार से डरकर उसे थामने की गरज से पूंजीपति वर्ग मजदूरों को कुछ अधिकार देने के लिए मजबूर हुआ जबकि दूसरे श्रम आयोग का गठन मजदूर आन्दोलन के ठहराव व पीछे हटने के दौर में हुआ और इसलिए खुलेआम श्रम की लूट को और आसान बनाने का काम किया है।
उन्होंने बताया कि श्रम संशोधनों द्वारा न केवल मजदूरों के शोषण को सघन व तीव्र बनाने का काम किया जा रहा है बल्कि यूनियनों के गठन को कठिन बनानेए हड़ताल के लिए नोटिस की अवधि 14 दिन से बढ़ाकर 42 दिन कर हड़ताल को असंभव बनाने तथा उन्हें अवैध घोषित कर 50 हजार का जुर्माना व दो माह तक की जेेल जैसे दमनात्मक प्रावधानों द्वारा मजदूरों के संघर्ष व जज्बे को दफन करने की कोशिश मोदी सरकार कर रही है।
उन्होेंने श्रम संशोधनों को आज के दौर की एक बड़ी चुनौती बताते हुए इन्हें पीछे धकेलने के लिए मजदूर वर्ग से तीखे संघर्ष की अपील की।
मासा की ओर से ठेका प्रथा के खिलाफ परिपत्र प्रस्तुत करते हुए मजदूर सहयोग केन्द्र के रुद्रपुर के साथी मुकुल ने कहा कि ठेका प्रथा आज मजदूर वर्ग के शोषण का एक मजबूत तंत्र है बल्कि यह मजदूर वर्ग की एकता को तोड़ने में भी पूंजीपति वर्ग का एक हथकंडा साबित हुई है। उन्होंने कहा कि यह विडंबना है कि ठेका मजदूरों को संगठित मजदूरों द्वारा भी अपने संघर्षों में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन उनकी मांगो को दरकिनार कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि सस्ते श्रम की लूट के लिए पूंजीपति वर्ग ने ठेका प्रथा को बढ़ावा दिया है।
ठेका मजदूरों के सवाल को प्राथमिकता से उठाने की अपील करते हुए उन्होंने अपील की कि ठेका मजदूरों सहित सभी मजदूरों को एक ही यूनियन में संगठित किया जाना चाहिएए एक फैक्टरी में एक ही यूनियन हो।
इसके बाद अगले सत्र में देशभर से आये आये विभिन्न मजदूर संगठनों व यूनियनों के प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव साझे किये। श्रमजीवी संघर्ष यूनियन के साथी पूरन सिंह ने ठेका मजदूरों की बुरी जीवन स्थितियों की चर्चा की तथा न्यूनतम वेतनए ठेका प्रथा व श्रम कानूूनों के खिलाफ संघर्ष के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर की। चाय बागान संघर्ष समिति के साथी सौमित ने बंगाल के विभिन्न चाय बागानों में शोषण की चर्चा की। उन्होंन बताया कि चाग बागान सबसे पुराना संगठित क्षेत्र है। उन्होंने कहा कि बंगाल में इस समय 277 चाय बागान हैं जिसमें से 20.25 बंद हैं। उन्होंने कहा कि चाय बागानों में कहीं भी न्यूनतम वेतन लागू नहीं हैं चाय बागान मजदूरों को 162ण्5 पैसे प्रतिदिन मिलता है जिसमें जीवन निर्वाह बेहद मुश्किल है। उन्होंने बताया कि बाॅट लीव फैक्टरी के द्वारा अब संरचनागत परिवर्तन कर ठेकेदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है। 
इफटू संबद्ध व तेलांगाना के कोयला क्षेत्र के मजदूरों में मजदूरों का संगठित करने वाले साथी गयासुद्दीन ने बताया कि पहले तेलांगाना में कोयला खदानों में पहले जहां एक लाख 30 हजार मजदूर कार्यरत थेए अब 30 हजार मजदूर ठेकेदारी के तहत काम करते हैं। 
इसी क्रम में आईसीटीयू के साथी उदय नरायण ने सफाई व निमार्ण मजदूरों की स्थिति की चर्चा करते हुए उनकी मांगों को प्राथमिता से उठाने की मांग की।
मोर्चा पत्रिका की ओर से साथी गोपाल ने कहा कि श्रम कानूनों में संशोधनों द्वारा मजदूर वर्ग के संगठित होने के नये रास्ते खोले हैं। 
आजाद हिंद मजदूर यूनियनए पंजाब के साथी जसवंत ने कहा कि सरकार निर्माण मजदूरों की ओर ध्यान नहीं देती। सवाल को प्राथमिकता में लेकर संघर्ष करना होगा। 
वर्कर्स काउंसिल के साथी ओण्पीण् सिन्हा ने कहा कि मजदूर आंदोलन को सामाजिक व राजनैतिक संघर्षों को भी लड़ना होगाए उसे केवल आर्थिक मुद्दों तक सीमित नहीं किया जा सकता है। 
भेल मजदूर ट्रेड यनियन के अध्यक्ष साथी राजकिशोर ने आज के दौर में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के मजदूर भी हमले के निशाने पर हैं। विनिवेशीकरण के द्वारा बीण्एचण्ईण्एलण् जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम में निजिकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ायी जा रही है।
मजदूर एकता कमेटी के बिरजू नायक ने कहा कि व्यापक एकता आज की जरूरत है। मजदूर वर्ग हमें लाल झंडे वाले के रूप में एकजुट देखता है। हमें मजदूर वर्ग की इस भावना को समझकार एकजुटता को आगे बढ़ाना होगा।
डेमोक्रेटिक ट्रेड यूनियन सेंटर ;डीएमटीयूसीए तमिलनाडुद्ध के साथी सीला ने कहा कि ट्रेड यूनियन आंदोलन को वैचारिक एकता की जरूरत है।
अंतिम सत्र में मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान ;मासाद्ध  के 14 संगठनों ने अगले एक वर्ष तक साझा अभियान व आगे एकजुटता के प्रयासों की चर्चा की। सभी संगठनों ने साझा अभियान के तहत ठेका प्रथाए न्यूनतम वेतन व श्रम काूननों में संशोधनों के खिलाफ संघर्ष को पुरजोर तरीके से आगे बढ़ाने का संकल्प जाहिर किया।    





गुड़गांव :बेलसोनिका के मजदूर भूख हड़ताल पर  

गुड़गांव :बेलसोनिका के मजदूर भूख हड़ताल पर


संघर्षरत खेत

भारत में कृषि संकट पर दो दिवसीय कार्यशाला
भारत में गहराते कृषि संकट पर गहरी व व्यापक समझ हासिल करने व इसके सही समाधान को खोजने के मद्देनजर पंजाब के बरनाला जिले में 16-17 जनवरी को इंकलाबी केन्द्र व कर्नाटक जनशक्ति द्वारा एक दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गयी। इस वर्कशाॅप में देश के विभिन्न राज्यों से किसान व मजदूर संगठनों, कृषिविदों, शोधार्थियों, शिक्षाविदों एवं अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। वर्कशाॅप में भागीदारी करते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक प्रो. सुखपाल सिंह ने कहा कि पंजाब जो कभी विकसित कृषि वाला राज्य समझा जाता था आज वहां कृषि की स्थिति बेहद संकटपूर्ण है। कृषि जोतें बहुत छोटी हो गयी हैं। छोटी जोतों में अधिक पूंजी लगाकर खेती करना बेहद करना मंहगा सौदा हो गया है।
परिणामस्वरूप जहां एक क्षेत्र विपरीत बटायदारी (रिवर्स टेनेंसी) दिखायी दे रही है जिसमें गरीब किसान अपनी जमीनें बटाई पर बड़े किसानों को दे रहे हैं, वहीं भारी संख्या में किसानी से लोग विमुख हो रहे हैं। युवा खेती को रोजगार के रूप में नहीं देख रहे हैं। उद्योगों के भी पंजाब से पलायन के चलते बेरोजगारी बढ़ रही है। इस सबके चलते नौजवानों में विदेश जाने की प्रवृत्ति बढ़ी रही है तो हताशा - निराशा में नशाखोरी भी बढ़ रही है। उन्होंने कृषि संकट के लिए सामुदायिक चेतना (कम्युनिटी सेन्स) में कमी को जिम्मेदार ठहराया। 
वरिष्ठ पत्रकार हमीर सिंह ने खेती के संकट के लिए सरकारों की खेती के प्रति उपेक्षा को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने सरकार द्वारा स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू न करने की आलोचना की। 
क्रांतिकारी नौजवान सभा की ओर से प्रपत्र पेश करते हुए साथी दीपांजन ने कहा कि भारत में खेती के आम संकट व पंजाब के विशिष्ट संकट का मूल भारत के विकृत पूंजीवादी विकास में चिन्हित करते हुए बताया कि भारत में उदारीकरण, वैश्वीकरण की नीतियों ने इस संकट को तीखा किया है। उन्होंने स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों की आलोचना करते हुए कहा कि इन सिफारिशों में संकट के कारण के बतौर जिन कारकों को चिन्हित किया गया है, चार दशक पहले उन्हें डा.स्वामीनाथन ने तात्कालिक संकट के समाधान के बतौर प्रस्तुत किया था। उन्होंने जैविक खेती व सामंजस्यपूर्ण (Sustainable) कृषि पर आधारित कृषि के एक वैकल्पिक माॅडल को विकसित करने पर जोर दिया और कृषि संकट का अंतिम समाधान समाजवाद में बताया।
पटना से प्रकाशित मजदूर पत्रिका की ओर से कृषि संकट पर बात रखते हुए साथी पार्थ सरकार ने कहा कि भारत में फसलोें की विविधता एवं ज्वार, बाजरा, रागी जैसी कम लागत में पैदा होने वाली फसलों का चलन बंद होने के पीछे सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य रहा। अधिक समर्थन मूल्य की वजह से मौसम व जलवायु के विपरीत अधिक समर्थन मूल्य के चलते चावल, गेहूॅं की फसलें उगाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। उन्होंने केवल किन्हीें विशेष परिस्थितियों को छोड़कर समर्थन मूल्य की मांग का समर्थन नहीं करने की बात की।
मध्य प्रदेश के आदिवासी किसान जाग्रुति संगठन की ओर से बोलते हुए साथी माधुरी ने कहा कि आदिवासी किसान और मजदूर दोनों हैं। एक तरफ वे बहुत गरीब किसान हैं तो दूसरी तरफ सबसे सस्ते मजदूर। उन्होंने कहा कि खेती में पूंजीवादी साम्राज्यवादी घुसपैठ ने गरीब किसानों को उनके परंपरागत बीजों से बेदखल कर दिया। खेती में आगतों की कीमत बढ़ने व महंगे एच.आई.वी. बीजों के चलते किसान तबाह हो रहे हैं। किसानों की तबाही उदारीकरण, वैश्वीकरण के दौर में तेज हुई है और एक अखिल भारतीय परिघटना बन गयी है। उन्होंने मौजूदा कृषि संकट के लिए ‘हरित क्रांति’ को जिम्मेदार ठहराया।
इंकलाबी मजदूर केन्द्र की ओर से प्रपत्र रखते हुए साथी अमित ने कहा कि भारतीय कृषि के संकट के दीर्घकालिक और तात्कालिक कारण हैं जो भारतीय पूंजीवाद के विकृत विकास से संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि कृषि संकट को किसी साजिश का परिणाम समझने के बजाय इसके कारण को भारतीय पूंजीवादी व्यवस्था के आम संकट में तलाशा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों को एक समांग समुदाय समझने के बजाय विभेदीकृत श्रेणी के रूप में समझना चाहिए। उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि में छोटे किसानों की तबाही मूलतः पूंजीवाद की आम गति के अनुरूप है लेकिन भारतीय पूंजीवाद के विकृत विकास के चलते कृषि से विस्थापित बेशी श्रम उद्योग में खप नहीं पा रहा है। यह संकट का बड़ा कारण है। उन्होंने कहा कि छोेटे और मझोले किसान पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष में मजदूर वर्ग के सहयोगी हैं और मजदूर वर्ग छोटे मझोले किसानों की बर्बादी तबाही पर चुपचाप देखते नहीं रह सकता। उन्होंने कहा कि हमें छोटे मझोले किसानों के लिए तात्कालिक राहत के लिए संघर्ष करना होगा। हमें धनी किसानों व छोटे मझोेले किसानों में स्पष्ट विभाजन करते हुए समर्थन मूल्य, सब्सिडी हेतु विभेदीकृत मांगे पेश करनी चाहिए व धनी किसानों अथवा फार्मरों के लिए सब्सिडी की मांग का समर्थन नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि तात्कालिक राहत के लिए संघर्ष के बावजूद छोटे मझोले किसानों को सतत रूप से यह समझना जरूरी है कि पूंजीवाद में उनकी तबाही बर्बादी तय है जिसे अधिक समय तक टाला नही जा सकता, कि उनकी मुक्ति मजदूर वर्ग के साथ मिलकर समाजवाद कायम करने में है। 
इंकलाबी केन्द्र पंजाब की ओर से बात रखते हुए साथी मुख्तियार सिंह थूला ने कहा कि पंजाब में छोटे किसानों के लिए खेती फायदे का सौदा नहीं रह गयी है। ठीक-ठाक मूल्य न मिलने के चलते किसान जमीन को बंजर छोड़ दे रहे हैं। हजारों की संख्या में किसान ट्रैक्टर बेचने को मजबूर हो रहे हैं। लागत मूल्य तक न निकल पाने के चलते किसानों ने टमाटरों को सड़कों पर ट्रैक्टर से रौंद कर अपना आक्रोश प्रकट कर रहे हैं। हरित क्रांति पंजाब की खेती के लिए अंततः विनाशकारी साबित हुई है। आज खेतों का उपजाऊपन खत्म हो गया है। जलस्तर नीचे चला गया है और रासायनिक खादों व कीटनाशकों के इस्तेमाल के चलते जैव विविधता से लेकर पर्यावरण व मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि पंजाब में जहां भारी संख्या में किसानों ने आत्महत्यायें की हैं वहीं कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। भटिंडा से बीकानेर तक एक ट्रेन चलती है जिसमे कैंसर मरीज या उनके रिश्तेदार होते हैं जो इलाज के लिए बीकानेर जाते हैं। इस ट्रेन का नाम ही कैंसर ट्रेन पड़ गया है। उन्होंने वर्तमान कृषि संकट के लिए पूंजीवादी साम्राज्यवादी नीतियों को जिम्मेदार बताया तथा कृषि संकट के निजात के लिए सामूहिक खेती (Collective farming) व साम्जस्यपूर्ण खेती एवं सेवा व उद्योग के कर्मकारों के अनुरूप समर्थन मूल्य की बात की।
पी.यू.डी.आर. से जुड़ी एक्टिविस्ट रंजना पाढ़ी की अनुपस्थिति में उनका प्रपत्र और उनकी ओर से प्रतिनिधि के बतौर साथी संतोष ने बात रखी। साथी रंजना दुघर्टना के चलते इस आयोजन में शामिल नहीं हो पायी थीं। साथी रंजना के प्रतिनिधि के बतौर साथी संतोष ने कहा कि किसानों के रूप में हमेशा पुरुष की छवि की स्थापित की जाती है। महिलाओं को किसान का दर्जा दिया ही नहीं जाता। उन्होंने कहा कि पितृसत्ता का दंश न केवल महिलाएं भुगतती हैं बल्कि पुरुष भी इसका शिकार होते हैं। मर्दानगी की झूठी शान के चलते पुरुष अपने दुख दर्द को प्रकट न करके भीतर ही भीतर घुटते रहते हैं। किसानों की आत्महत्या में एक कारण यह भी है। उन्होंने महिला मजदूरों व खासकर दलित महिला मजदूरों की बुरी स्थिति का वर्णन करते हुए कहा कि वे तीव्र शोषण का शिकार हैं। उन्होंने कहा कि हरित क्रांति द्वारा हुए मशीनीकरण के चलते सार्वजनिक जीवन से फिर घर की चहारदीवारियों के भीतर महिलाएं जाने को मजबूर हुई हैं। 
कर्नाटक जनशक्ति की ओर से बात रखते हुए साथी वासु ने कहा कि कर्नाटक में पिछले समयों में किसानों की आत्महत्यायें बढ़ी हैं। उन्होंने कर्नाटक के कृषि संकट के कारणों को दीर्घकालिक बताते हुए कहा कि लंबे दौर से जारी संकट को नवउदारवादी नीतियों ने तीखा बनाया है। पर्यावरण को होने वाले नुकसान एवं रीतिरिवाजों पर होने वाले खर्च ने किसानों का संकट बढ़ाया है। उन्होंने अपने अध्ययन द्वारा यह समझाया कि आत्महत्या करने वाले किसान अधिकांशतः गरीब व छोटे किसान रहे हैं। उन्होंने बताया कि के.आर.एस. के नेतृत्व में किसानों के संघर्ष लड़े गये हैं। इनमें से दो संघर्षों में जीत भी हासिल हुई है लेेकिन के.आर.एस. के नेताओं के मतभेदों के चलते यह संगठन बिखर गया। अब नये संगठन भी अस्तित्व में आये हैं जिनमें योगेन्द्र यादव का किसान संगठन भी है। उन्होंने कृषि संकट के कारणों प्रमुख कारण कृषि में पूंजीवाद व बाजार की घुसपैठ बताया।
तेलंगाना से आये ए.आई.के.एम.एस. (AIKMS) के नेता अच्युत रामाराव ने कहा कि तेलांगाना में लगभग 85 लाख किसान हैं और लगभग इतने ही कृषि मजदूर हैं। उन्होेंने बताया कि तेलांगाना में कुछ बड़े भूस्वामी भी हैं जिनके पास 300 एकड़ से 1000-2000 एकड़ तक जमीनें हैं। उन्होंने कृषि संकट के समाधान के लिए भूस्वामियों की जरूररत पर बल दिया। आंध्र प्रदेश के ए.आई.के.एम.एस. के साथी चित्तीपत्ती ने भी भूमिसुधारों के पैरोकारी की।
पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले साथी नागराज ने ग्लोबल वार्मिंग के खतरों की ओर ध्यान दिलाते हुए मौसमों के परिवर्तन, सुखाड़, प्राकृतिक आपदाओं आदि के लिए ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे को संज्ञान में लेने की बात की।
शिक्षा शास्त्री अनिल सदगोपाल ने कहा कि किसानों की आत्महत्या और कृषि संकट का एक कारण मंहगे विदेशी बीजों व कीटनाशकों पर निर्भरता है। उन्होंने भारत की फसलों की अनेक प्रजातियों को नष्ट करने में ‘हरित क्रांति’ के जनक नाम से प्रचारित एम.एस. स्वामीनाथन की भूमिका को अहम माना तथा डा. रिछारिया द्वारा अथक परिश्रम से रायपुर में भारतीय फसलों का एक बड़ा जीन पूल तैयार करने की सराहना की। उन्होंने एम.एस. स्वामीनाथन को भारतीय कृषि का खलनायक घोषित करते हुए डा. रिछारिया को भारतीय कृषि के वास्तविक नायक के रूप में प्रतिष्ठित करने की बात की।
कार्यशाला में भाग लेते हुए पंजाब के प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता व किसान नेता दर्शन पाल ने कृषि संकट पर विमर्श के दायरे को और व्यापक बनाने की वकालत की।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए जनसंघर्ष मंच हरियाणा के साथी डी.डी. शर्मा ने कहा कि हमें प्राथमिकता में मजदूर वर्ग को संगठित करना होगा। उन्होंने कहा कि कृषि में बड़े भूस्वामी होने का मतलब सामंतवाद या अर्द्धसामंतवाद की मौजूदगी नहीं मानना चाहिए। अमेकिरा में तो दसियों हजार एकड़ जमीनों के मालिकाने वाले फार्मर मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि खेती में कौन से उत्पादन संबंध कारगर हैं यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने राजनीतिक कार्यकर्ताओं के माक्र्सवादी साहित्य के अध्ययन पर जोर दिया।
कार्यशाला को इसके अलावा पंजाब के ही प्रो. अजायब सिंह, भारतीय किसान यूनियन (दतौंदा), भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी), आजादी बचाओ आंदोलन, अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली की प्रो. नेहा, कर्नाटक  राज्य रैयतु संघ के नंजी गोवड़ा, ए.आई.के.एम.एस. ओडिसा के बालचंद्रा सहित अनेक सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने संबोधित किया।
इससे पूर्व कार्यशाला के प्रारंभ में मजदूर मेहनतकशों के संघर्षों के लिए देश दुनिया में कुर्बानी देने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि दी गयी। पंजाब के बरनाला जिले के आत्महत्या किए किसानों की विधवाओं ने दीप प्रज्वलित कर संघर्ष को जारी रखने का सभी को संकल्प दिलाया। कार्यक्रम के दौरान कबीर कला मंच तथा अन्य साथियों द्वारा क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किए गये। गुजरात दंगो पर एक नाटक की प्रस्तुति भी की गयी। कार्यक्रम के अंत में मशाल प्रज्वलित कर क्रांतिकारी संघर्ष को जारी रखने का संकल्प व्यक्त किया गया। 


उत्तराखण्ड के 22 हजार उपनल कर्मियों का प्रदेशव्यापी आन्दोलन 


दिनांक 28.06.2016 से जारी उपनल कर्मचारियों का आन्दोलन को एक सत्ताह हो जाने के वाबजूद उनेक नियमितिकरण की मांग को नहीं माना जा रहा है। हूल्द्वानी के बुद्ध पार्क में जारी इस आन्दोलन को सम्बोघित करते हुए इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने आन्दोलन का समर्थन कर उनके साथ पूर्ण भागीदारी की, शुसीला तिवारी मेडिकल कालोज प्रशासन द्वारा आन्दोलन को खत्म करने की मांग की जा रही है पर उपनल कर्मी अपनी मांगों पर डटे हुए है। देहरादून में लाठीचार्ज की कार्यवाही शासन द्वारा की गई इसके बावजूद प्रदेश के अलग-अलग विभागोें में कार्यरत संघर्ष कर रहे हैं और निश्चित तौर पर उपनल कर्मचारियों को अपने आन्दोलन को और अधिक उग्र करने व अपने-अपने कार्यस्थल को बंद कर संघर्ष में उतरने की जरूरत है तभी वह शासन द्वारा अपनी मांगों को मनवा कर अपने अधिकार (स्थाई नियुक्ति) को पा सकते हैं।
  
जारी है रिचा के मजदूरों का संघर्ष
      काशीपुर, 6 जून 2016- यूनियन मान्यता हासिल करने तथा प्रबंधन द्वारा यूनियन खत्म करने के कुचक्रों व बदले की भावना से उत्पीड़न के खिलाफ रिचा के मजदूरों का संघर्ष जारी है।
     दिनांक 6 जून को हड़ताल से बैठे रिचा के मजदूरों ने काशीपुर शहर में प्रदर्शन किया व शहर में जुलूस निकाला । प्रदर्शन के बाद एक सभा पंत पार्क में की गयी। 
जुलूस पंत पार्क से निकलते हुए शहर के मुख्य बाजार से होता हुआ वापस पंत पार्क पहुंचा। जुलूस में मजदूरों के अलावा उनके घरों की महिलायें व बच्चे भी शामिल थे। लाल झंडे व बैनरों के साथ जोशो खरोश से नारे लगाते हुए आंदोलनकारी सड़क पर मार्च कर रहे थे।  बारिश होने के बावजूद उनके हौंसले बुलंद थे। शासन-प्रशासन व प्रबंधक/मालिक के गठजोड़ की पोल खोलते हुए उन्होंने केन्द्र की मोदी सरकार व उत्तराखण्ड सरकार के खिलाफ नारे लगाये। पंत पार्क में हुई सभा में इमके, प्रमएके के कार्यकर्ताओं ने बात रखी तथा मजदूरों की लड़ाई का एक मोर्चा सरकार के खिलाफ भी खोलने को कहा। सफाई कर्मचारी संगठन व एचएमएस के नेताओं  ने भी मजदूरों के संघर्षों को समर्थन दिया। मजदूरों ने एलान किया कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गयीं तो वे उग्र होकर प्रदर्शन करेंगे। 
प्रदर्शन की पूर्व संध्या पर स्थानीय एस.डी.एम. ने मजदूरों को धमकाने का काम किया। यही एसडीएम साहब दो दिन पहले तक मजदूरों का साथ देने की बात कह रहे थे। लेकिन दो दिनों के अंदर ही उनका रुख बदल गया तथा  वे मजदूरों से अपने 6 साथियों केा छोड़कर अंदर काम पर वापस जाने की बात कहने लगे। लेकिन मजदूरों ने उनकी धमकी में आने के बजाय साफ  शब्दों में कह दिया कि वे तब तक अपनी हड़ताल नहीं तोडेंगे जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं तथा निकाले गये मजदूरों को वापस नहीं ले लिया जाता। 
प्रदर्शन के बाद शाम को महिलाओं ने फैक्टरी गेट पर जाकर प्रबंधक को चेतावनी दी कि अगर वह हड़ताल के दौरान नई भर्ती कर काम करवाता है तो वे सभी फैक्टरी से मजदूरों को बाहर निकालेगीं। हड़ताल के दौरान नई भर्ती कर मजदूरों से काम करवाना गैरकानूनी है। लेकिन पुलिस प्रशासन मालिक को नहीं रोक रहा है। लेकिन जैसे ही महिलायें फैक्टरी में गयीं वैसे ही तुरंत पुलिस की दो गाडियां आ गयीं तथा पुलिस महिलाओं को गिरफ्तार करने की बात कहने लगी। महिलाओं ने बिना डरे हुए पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाये। और फैक्टरी में गैरकानूनी तरीके से काम कराने के खिलाफ उग्र आंदोलन की चेतावनी दी। 
मजदूर अपने बुलंद हौंसलों के साथ अभी भी हड़ताल पर हैं।

जारी है हैवल्स के मजदूरों का संघर्ष 
भारी दमन के बावजूद हैवल्स के मजदूरों का संघर्ष जारी है। 19 मई से मजदूर स्थानीय उपश्रमायुक्त कार्यालय पर धरना दे रहे हैं। 30 मई को पूर्व निर्धारित वार्ता में प्रबंधन नहीं पहुंचा। इसके बाद मजदूरों ने अपने आंदोलन को और तेज करने का निर्णय लिया। 
31 मई से चार मजदूर शशिकान्त, मृत्युंजय, ममता व नीरज क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठ गये हैं। 6 जून को वार्ता की अगली तिथि है। मजदूरों ने यह तय किया है कि यदि 6 जून की वार्ता सफल नहीं रहती है तो 6 जून से अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल शुरू की जायेगी। 
हैवल्स के मजदूरों को विभिन्न कंपनियों के मजदूरों का समर्थन लगातार जारी है। सत्यम, राॅकमैन, वी.आई.पी. हिंदुस्तान लीवर के यूनियन व मजदूर प्रतिनिधियों के साथ भेल मजदूर ट्रेड यूनियन व इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता भी हैवल्स के मजदूरों के आन्दोलन का समर्थन व सहयोग कर रहे हैं। 
हैवल्स के मजदूरों का यह संघर्ष सिडकुल, हरिद्वार में अपनी तरह का पहला संघर्ष है जिसमें इतने बड़े पैमाने पर ठेका मजदूर गोलबंद हुए हैं। 
हैवल्स के ठेका मजदूरों की मांगे श्रम कानूनों को लागू कराने से संबंधित हैं जिसमें प्रमुखता से कंपनी द्वारा मजदूरों को पहचान पत्र, पे स्लिप मुहैया करना, कैंटीन की सुविधा, बोनस एवं ओवरटाइम का दुगनी दर से भुगतान जैसी मांगे शामिल हैं। ये सभी मांगे श्रम विभाग के अधिकार क्षेत्र की हैं लेकिन श्रम विभाग तारीख पर तारीख देकर मजदूरों का थका रहा है। ऐसे में मजदूरों ने अपने आन्दोलन को और तीखा व व्यापक करने का निर्णय लिया है, जो सर्वथा उचित व जरूरी है। 


हैवल्स के श्रमिंकों पर भयंकर लाठीचार्ज 
बर्बर दमन के बाद भी संघर्षरत हैं मजदूर


हरिद्वार (उत्तराखंड) स्थानीय सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र स्थित हैवल्स इंडिया प्रा. लि. में कोरे कागज पर हस्ताक्षर कराने की कार्यवाही का मजदूरों द्वारा विरोध करने पर प्रबंधन द्धारा स्थानीय पुलिस प्रशासन से सांठ-गांठ कर 19 मई को मजदुरों पर बर्बर लाठी र्चाज कराया गया। इस लाठी र्चाज में काफी संख्या में मजदूर गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इस घटना के बाद पूरे औधोगिक क्षेत्र में मजदूरों के बीच आक्रोश व्याप्त है।
 
बर्बर दमन के बावजूद हैवल्स के लगभग 400 श्रमिक सहायक श्रमायूक्त (ए.एल.सी.) कार्यालय पर धरने पर बैठ हैं।
गौरतलब है कि सिडकुल स्थित हैवल्स इंडिया लि. की स्थापना के 11 साल बाद भी यहां स्थायी श्रमिक नहीं है। कागजों पर खानपूर्ति के लिए 20-25 श्रमिक स्थायी बताये जाते हैं लेकिन कार्यरत मजदूरों को इनके बारे में पता नहीं है। कंपनी में नाम-मात्र को भी श्रम कानूनों का पालन नहीं  होता है।
19 मई को सुबह फैक्टरी गेट पर प्रंबधन मजदूरों को काम से निकालने की नीयत से उनसे कोरे कागज पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव बना रहा था। मजदूरों ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया तथा विरोध स्वरूप फैक्टरी में काम शुरू नहीं किया। प्रबंधन द्धारा एक पूर्वनिर्धारित योजना के अनुसार पुलिस बुलाकर मजदूरों के ऊपर बर्बर लाठी र्चाज कराया गया। प्रबंधन का सोचना था कि पुलिसिया दमन से मजदूर खुद काम छोडकर भाग जायेगें और वह आसनी से ठेकदारी के तहत नयी भर्ती कर लेगा। लेकिन प्रबंधन का यह दांव उल्टा पड़ गया। मजदूर संर्घष के मैदान में डट गए। 
इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने मजदूरों के बीच जाकर उन्हें होंसला दिया और उनके बीच एक नेतृत्वकारी टीम को गठित किया तथा ए.एल.सी. कार्यालय पर धरना देने के लिए उन्हें प्रोत्सहित किया। मजदूरों ने इमके के साथियों की सलाह मानकर ए.एल.सी. कार्यालय पर धरना शुरू कर दिया। मजदूरों द्धारा संर्घष की राह अपनाने के बाद इंटक व बी.एम.एस. के नेता परिदृष्य से गायब हो गए जबकि सीटू के नेताओें ने अपने को कानूनी मशविरे, कार्यवाही तक सीमित कर लिया। इमके के कार्यकर्ता दिनरात मजदूरों के बीच रहकर उनका हौसला बढ़ा रहे हैं। 
इस बीच मजदूरों द्वारा संघर्ष की राह पकड़ने तथा सिडकुल के मजदूरों के बीच व्याप्त आक्रोश तथा हैवल्स के मजदूरों को उनके समर्थन के चलते प्रशासन थोड़ा पीछे हटने को मजबूर हुआ है। 24 मई को लाठी चार्ज के लिए जिम्मेदार पुलिस के सी.ओ. का स्थानान्तरण कर दिया गया। कंपनी के मुख्य प्रबंधक (जी.एम.) को भी हटा दिया है। कंपनी द्वारा 3 ठेकेदारों की छुट्टी कर दी गयी है। इस तरह मजदूरों को आंशिक जीत हासिल हुई है।
मजदूरों ने स्थायीकरण सहित समस्त श्रम कानूनों का लागू करवाने क मांग के साथ अपना संघर्ष जारी रखा है। इस बीच प्रबंधन के साथ 20 मई व 24 मई को दो वार्ताएं असफल रही हैं। वार्ता की अगली तिथि 30 मई तय हुई है। 
26 मई को मजदूरों द्वारा दमन के प्रतिरोध एवं अपनी मांगो के समर्थन में एक विशाल रैली निकालने की योजना है। फिलहाल मजबूत संकल्प व हौसले के साथ हैवल्स के मजदूर संघर्ष में डटे हुए हैं।

बुलंद हौसलों के साथ हड़ताल पर डटे हैं रिचा इंडस्ट्रीज के श्रमिक


काशीपुर (उत्तराखण्ड), रिचा इण्डस्ट्रीज लिमिटेड के मजदूर अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर चले गये हैं। ये मजदूर अपने निकाले गये 6 साथियों को पुनः काम पर लेने, मजदूरों को गैर कानूनी रूप राज्य के बाहर स्थानान्तरण किये जाने व गठित की गयी यूनियन ‘‘रिचा श्रमिक संगठन’’ को मान्यता देने तथा फैक्टरी में श्रम कानूनों को लागू करवाने के लिए 20 मई से हड़ताल पर हैं। 
इससे पहले प्रबंधन द्वारा निकाले गये पांच श्रमिक, जिनमें अध्यक्ष, महामंत्री व कोषाध्यक्ष भी हैं, 5 महीने से ज्यादा समय से काशीपुर में एसडीएम कोर्ट पर फैक्टरी में अपनी बहाली करवाने के लिए बैठे हुए हैं। इन्हें यूनियन गठन निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने के कारण फैक्टरी से बाहर निकाल दिया गया था। अब जबकि यूनियन गठन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है तथा यूनियन रजिस्टर्ड हो चुकी है तो फैक्टरी मालिक व प्रबंधन यूनियन को मान्यता देने को तैयार नहीं है। 
इससे पूर्व मजदूर फैक्टरी में सितम्बर व नवम्बर माह में हड़ताल कर चुके हैं जिनमें मजदूरों की मांगों को मानने का समझौता प्रबंधक ने किया था। लेकिन उसने हर बार मजदूरों से किये गये वायदों को तोड़ दिया तथा बदले की भावना से मजदूरों का जबरन दूसरे राज्यों में, जहां इस मालिक की दूसरी कम्पनियां हैं, स्थानान्तरण करना शुरू कर दिया ताकि मजदूरों की एकता तोड़ी जा सके और वे यूनियन गठन की प्रक्रिया पूरी न कर पायें। मजदूरों ने जब गैर कानूनी स्थानान्तरण को नहीं माना तो उनको फैक्टरी से बर्खास्त कर दिया। 
     इससे पूर्व श्रम विभाग के यहां चल रही वार्ताओं में प्रबंधन द्वारा जाना बंद करने के बाद इस मामले में श्रम विभाग ने हाथ खड़े कर दिये। फलस्वरूप मजदूरों को मजबूर होकर अपनी मांगें मंगवाने के लिए हड़ताल पर जाना पड़ा। फैक्टरी मालिक पहले ही 500 मी. का स्टे मजदूरों के खिलाफ ले चुका है इसलिए मजदूर फैक्टरी से 500 मी. दूर प्रतापपुर व फैक्टरी के बीच एक खाली प्लॉट में बैठै हैं। 20 मई को मजदूरों ने धरना स्थल से स्थानीय प्रतापपुर चौराहे तक जुलूस निकाला तथा 21 तारीख को फैक्टरी प्रबंधन का पुतला फूंका। 23 मई को सभी श्रमिकों ने विशाल व जुझारू प्रदर्शन स्थानीय तहसील काशीपुर में किया तथा एस.डी.एम. काशीपुर, के नाम एक ज्ञापन तहसीलदार के माध्यम से भेजा। 
        हड़ताल के 3-4 दिन गुजर जाने के बाद तक शासन प्रशासन व प्रबंधन के कानों में जूं तक नहीं रेंगी और उन्होंने मजदूरों की मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन मजदूरों द्वारा दबाव बनाने के बाद 23 मई को स्थानीय लेबर इंस्पेक्टर ने वार्ता के संबंध में सहायक श्रमायुक्त (ए.एल.सी.) को पत्र भेजकर वार्ता की तारीख तय करने का आश्वासन मजदूरों को दिया है। मजदूरों को इस संबंध में एक पत्र भी मिला है। हालांकि उसमें वार्ता की कोई तिथि निर्धारित नही की गयी है।
फिलहाल मजदूर दृढ़ इरादों के साथ हड़ताल पर डटे हैं। भयंकर गर्मी के बावजूद मजदूर  इस बार लम्बी और आर-पार की लड़ाई का मन बनाकर मैदान में डटे हैं। उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं तब तक वे हड़ताल खत्म नहीं करेंगे। बुलंद हौंसलों के साथ उनकी हड़ताल जारी है। 

ई एस आई अस्पताल के गैरजिम्मेदाराना रुख व अमानवीय व्यवहार के खिलाफ प्रदर्शन

फरीदाबाद, 5 अप्रैल 2016- ई एस आई अस्पताल के कैंसर के गंभीर मरीज को बेड से उतारकर ईलाज से पल्ला झाड़ने की घटना के विरोध में इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा एन.एच.-3 स्थित ई एस आई अस्पताल पर प्रदर्शन किया गया। ई एस आई पर प्रदर्शन करते हुए इमके कार्यकर्ताओं ने ‘‘ई एस आई प्रशासन होश में आओ’’ ‘‘मजदूरों की जिंदगी से खिलवाड़ बंद करो’’ आदि नारे लगाये।
इमके कार्यकर्ताओं के इस प्रदर्शन से अस्पताल में अफरा-तफरी मच गयी तथा ई एस आई के स्वास्थ्य अधीक्षक (मेडीकल सुपरिटेंडेंट) ने प्रदर्शनकारियों को वार्ता के लिए आमंत्रित किया। 
वार्ता में इमके कार्यकर्ताओं ने कैंसर पीडि़त मजदूर के साथ ई एस आई प्रबंधन द्वारा किये गये दुव्र्यवहार का मामला उठाया तथा पीडि़त मजदूर के ईलाज हेतु आश्वासन की मांग की। स्वास्थ्य अधीक्षक ने कैंसर पीड़ित मजदूर के साथ ई एस आई प्रबंधन द्वारा किये गये दुव्र्यहार के लिए खेद जताया तथा कैंसर पीड़ित मजदूर को स्थानीय क्यू आर जी अस्पताल के लिए रेफर करने का आश्वासन दिया। 
गौरतलब है कि कैंसर पीड़ित मजदूर शिवप्रसाद लखानी कंपनी में बेहद कम मजदूरी में काम करता है। शिवप्रसाद को मुंह का कैंसर हो गया। चूंकि शिवप्रसाद राज्य कर्मचारी बीमा (ई एस आई) के तहत पंजीकृत था अतः वह इलाज के लिए स्थानीय ई एस आई अस्पताल पहुंचा। ई एस आई द्वारा 5 मार्च को शिवप्रसाद को अपने अनुबंध के तहत आने वाले पार्क अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। 
पार्क अस्पताल में 9 मार्च को शिवप्रसाद की सर्जरी हुई। आॅपरेशन सफल नहीं रहा। शिवप्रसाद की बीमारी ठीक होने के बजाय बिगड़ती चली गयी। पार्क अस्पताल द्वारा ऐसी गंभीर हालत में शिवप्रसाद को जबरन डिस्चार्ज कर उससे अपना पल्ला झाड़ लिया गया।
मजबूर होकर शिवप्रसाद वापस ई एस आई पहुंचा। ई एस आई द्वारा उसे दुबारा पार्क अस्पताल भेजा गया। लेकिन पार्क ने उसे दुबारा दाखिला लेने से मना कर दिया। शिव प्रसाद फिर ई एस आई पहुंचा तो ई एस आई ने उसे दूसरे अस्पताल क्यू आर जी में रेफर कर दिया। क्यू आर जी ने भी उसे दाखिल करने से मना कर दिया। इस तरह से यह सिलसिला चलता रहा। गंभीर रूप से कैंसर से पीड़ित शिवप्रसाद ई एस आई अस्पताल व निजि अस्पतालों के बीच चक्कर लगाता हुआ भटकता रहा। 
इस सब के बाद 5 अप्रैल को ई एस आई प्रबंधन ने बेहद अमानवीयता दिखाते हुए गंभीर कैंसर से पीड़ित शिवप्रसाद को बेहद अपमानजनक तरीके से बेड से उतार दिया। ई एस आई के इसी अमानवीय व्यवहार के खिलाफ इमके सदस्यों ने ई एस आई पर प्रदर्शन किया। 
ई एस आई द्वारा अपने अनुबंध वाले क्यू आर जी अस्पताल शिवप्रसाद को रेफर किया लेकिन क्यू आर जी अस्पताल उसे भर्ती करने से मना कर दिया। इस प्रदर्शन से पार्क अस्पताल, जहां शिव प्रसाद का पहले आॅपरेशन हुआ था, दबाव में आया और शिवप्रसाद को पुनः भर्ती कर लिया। फिलहाल अगले दिन शिवप्रसाद का दोबारा आॅपरेशन हो चुका है ।
श्रम अधिकारों एवं यूनियन निर्माण हेतु 
जारी है रिचा इंडस्ट्रीज के मजदूरों का संघर्ष
 काशीपुर, उत्तराखंड- रिचा इंडस्ट्रीज के मजदूर अपने श्रम अधिकारों एवं यूनियन निर्माण के लिए लगभग पिछले 6-7 माह से लगातार संघर्षरत हैं। इस संघर्ष के दौरान मजदूरों ने कुछ आंशिक जीतें भी हासिल की हैं तो प्रबंधन ने बदले की कार्यवाही करते हुए मजदूरों के नेतृत्व का निलंबन, स्थानान्तरण आदि कार्यवाहियों द्वारा उत्पीड़न करना जारी रखा है। 
विगत 13 मार्च को मजदूरों ने फैक्टरी गेट पर जमा होकर शहर में जुलूस निकाला और भाजपा विधायक हरभजन सिंह चीमा के आवास पर जाकर अपनी मांगों के संबंध में जवाब तलब किया। विधायक ने 21 मार्च तक विधानसभा के कार्यों हेतु अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए उसके बाद प्रबंधन से वार्ता कराकर मजदूरों की समस्या का निस्तारण करने का आश्वासन दिया।
बहरहाल इस संबंध में अभी तक विधायक ने उसके बाद अपने आश्वासन के मुताबिक कोई पहलकदमी नहीं ली है। इस बीच 28 मार्च को संराधन अधिकारी श्रम उपायुक्त की मध्यस्थ्ता में त्रिपक्षीय वार्ता असफल होने के बाद श्रम उपायुक्त ने मामले को श्रम न्यायालय को स्थांतरित करने की बात की है। 
फिलहाल निलंबित व गैर कानूनी तरीके से स्थानांतरित मजदूरों का फैक्टरी गेट के पास धरना जारी है। गौरतलब है कि मजदूरों द्वारा पिछले समय में यूनियन गठन की कार्यवाही व अपने अधिकारों को लेकर संघर्ष तेज करने के चलते प्रबंधन ने नवगठित यूनियन के अध्यक्ष बलदेव सिंह पर नौकरी हेतु फर्जी प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने का मनगढ़ंत आरोप लगाकर बर्खास्त कर रखा है तथा महासचिव व कोषाध्यक्ष सहित नेतृत्व के चार अन्य लोगों को अवैध तरीके से बोकारो (मध्य प्रदेश) स्थानांतरित कर उनका गेट बंद कर दिया। अध्यक्ष सहित चार अन्य नेतृत्वकारी मजदूरों द्वारा इस कार्यवाही के विरोध में 25 दिसंबर से स्थानीय परगनाधिकारी कार्यालय (एस डी एम कोर्ट) पर अनिश्चितकालीन धरना शुरु कर दिया। मजदूर अपनी शिफट के मुताबिक ड्यूटी के बाद इस धरने में शामिल होते रहे हैं। इससे कुपित होकर प्रबंधन ने अधिकांश मजदूरों की ड्यूटी प्रातः 9 बजे से सायं 6 बजे की जनरल शिफट में कर दी। लेकिन इसके बावजूद मजदूर ड्यूटी के बाद धरनास्थल पर पंहुच कर अपनी एकजुटता जाहिर करते रहे हैं। प्रत्येक रविवार को मजदूर आम सभा करते हैं। इससे पूर्व प्रबंधन ने मजदूरों की यूनियन तोड़ने के लिए मजदूरों को बाउंसरों द्वारा रिवाल्वर दिखाकर जान लेने की धमकी देने, गुडों द्वारा मजदूरों के नेतृत्वकारी साथियों पर हमले कराने व बुरी तरह पीटने, पुलिस द्वारा झूठे मुकदमों में फसाने की धमकियां दिलाने जैसी कार्यवाहियां की हैं। लेकिन इसके बावजूद रिचा इंडस्ट्रीज प्रा. लि. के मजदूर दृढ़ संकल्प के साथ अपने संघर्ष को जारी रखे हैं। रिचा इंडस्ट्रीज के मजदूरों के इस संघर्ष में इंकलाबी मजदूर केन्द्र प्रारंभ से ही शामिल रहा है। आज इमके के नेतृत्व में विपरीत परिस्थितियों में कठिनाइयों का सामना करते हुए मजदूर अपना संघर्ष जारी रखे हुए हैं। 
रिचा इंडस्ट्रीज के मजूदरों के संघर्ष का संक्षिप्त परिचय-
रिचा इंडस्ट्रीज रामनगर रोड, प्रतापपुर, काशीपुर (उत्तराखंड) में स्थित है। यह कंपनी 2006 से उत्पादन कर रही है। कंपनी में बिल्डिंग इंफ्रास्ट्रक्चर (इंजीनियरिंग उद्योग) का काम होता है। कंपनी बड़े-बड़े निर्माणों से संबंधित उत्पाद जैसे मैट्रो निर्माण के उत्पाद, उद्योगों व भवनों के इंफ्रास्ट्रक्चर एव बी.एच.ई.एल. जैसी कंपनियों के लिए उत्पादन करती है। कंपनी में लगभग 250 स्थायी एवं 50 प्रशिक्षु (ट्रेनी) एवं ठेकेदारी के तहत नियुक्त मजदूर काम करते हैं। 
इस कंपनी में स्थापना के समय से ही श्रम कानूनों का पालन नहीं होता रहा है। कंपनी प्रबंधन अपनी मनमर्जी से मजदूरों को काम पर रखती एवं निकालती रही है। कंपनी में मजदूरों का शोषण उत्पीड़न शुरु से ही तीखा रहा हैै। 
20 सितम्बर 2015 को प्रबंधन द्वारा लगभग 8-9 मजदूरों को काम से निकाल देने के कारण मजदूरों के सब्र का बांध टूट गया। मजदूरों ने सामूहिक रूप से कार्य बहिष्कार कर दिया तथा कंपनी के सामने धरने पर बैठ गये। 
21 सितंबर 2015 को इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने इस आन्दोलन को सहयोग व समर्थन दिया तथा मजदूरों को इस आंदोलन को नेतृत्व देने के लिए एक कमेटी गठित करने का सुझाव दिया। मजदूरों ने इमके के इस सुझाव को स्वीकार कर अपने बीच से एक कमेटी चुन ली। 
22 सितंबर को एस.डी.एम. काशीपुर की मध्यस्थ्ता में एक दस सूत्रीय समझौता हुआ। मजदूर काम पर वापस चले गये।
कंपनी प्रबंधन मजदूरों द्वारा अचानक की गयी इस अप्रत्याशित कार्यवाही को भांप नहीं पाया था। मजदूरों की यह कार्यवाही उसके लिए नाकाबिले बर्दाश्त थी। तात्कालिक तौर पर मजबूर होकर उसे काम से निकाले गये मजदूरों का वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। प्रबंधन ने समझौते के कुछ बिंदुओं को लागू किया। 
लेकिन प्रबंधन का यह सकारात्मक रुख महज एक नाटक साबित होने वाला था। भीतर ही भीतर वह बदले की कार्यवाही की ताक में बैठा था। ज्यादा समय नहीं बीता कि उसने बदले की कार्यवाही शुरु कर दी। कंपनी ने अपराधिक पृष्ठभूमि वाले दो बाउंसर कंपनी में नियुक्त कर दिये तथा आन्दोलन को नेतृत्व देने वाले मजदूरों से जबरन इस्तीफा लेना शुरु कर दिया। कंपनी द्वारा नियुक्त बाउंसर खुले आम रिवाल्वर लेकर मजदूरों में दहशत फैलाते थे तथा जिन मजदूरों से प्रबंधन लिखाना चाहता था उन्हें कमरे में बंद कर पीटते तथा रिवाल्वर की नोक पर इस्तीफा लेते थे। 15 दिन के भीतर कंपनी प्रबंधन ने धमकी व आतंक का सहारा लेकर 21 सितंबर को मजदूरों द्वारा गठित कमेटी में अध्यक्ष चुने गये संदीप चंद्रा, महामंत्री अशोक यादव से जबरन इस्तीफा ले लिया। एक श्रमिक नेता त्रिलोक चंद्र भट्ट, जो कि स्थानीय निवासी थे से मारपीट करने के बावजूद जब इस्तीफा नहीं लिया जा सका तो उनके घर जाकर प्रबंधन के गुंडो ने उनके पिता को धमकाया कि ‘तुम्हारे बेटे के साथ कुछ भी हो सकता है’ कि उसे उठवा देंगे-झूठे मुकदमे में फंसा देंगे आदि-आदि। इसके बावजूद प्रबंधन त्रिलोक चंद्र भट्ट से इस्तीफा लेने में सफल नहीं हुआ तो उसने अंततः उनका गेट बंद कर दिया। 27 दिसंबर 2015 को एक नेतृत्वकारी मजदूर अरुण कुमार यादव को बंधक बनाकर उन पर इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाया गया। इस्तीफा लेने में असफल रहने पर शाम को 6ः30 बजे फैक्टरी गेट पर प्रबंधकों व बाउसरों द्वारा अरुण कुमार को मरणासन्न होने तक पीटा गया। अरुण कुमार कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे। 
अरुण कुमार पर प्रबंधन व बाउंसरों द्वारा किये गये हमले से एक बार फिर मजदूरों का संचित आक्रोश फूट पड़ा। 28 अक्टूबर 2015 से मजदूरों ने सामूहिक कार्य बहिष्कार कर दिया। कई कोशिशों के बाद मजदूर दोषियों के खिलाफ पुलिस चौकी में रिपोर्ट दर्ज करा सके। पुलिस द्वारा उनकी रिपोर्ट न लिखने पर 30 अक्टूबर को मजदूरों ने सैकड़ों की संख्या में इकट्ठा होकर स्थानीय कुंडेश्वरी पुलिस चौकी का घेराव किया। मजबूर होकर पुलिस को हमलावरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ी। रिचा इंडस्ट्रीज के 4 मैनेजरों व 2 बाउसरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई। 
मजदूरों की इस कार्यवाही से प्रबंधन दबाव में आ गया और उसने 31 अक्टूबर को सहायक श्रम आयुक्त (ए एल सी) की मध्यस्थ्ता में त्रिपक्षीय वार्ता के माध्यम से मजदूरों से समझौता कर लिया।
31 अक्टूबर के बाद मजदूरों ने इंकलाबी मजदूर केन्द्र के निर्देशन में दूसरी नेतृत्वकारी टीम चुनी। इसके साथ ही यूनियन पंजीकरण की कार्रवाही शुरु हो गयी। 
इस दौरान प्रबंधन पर मुकदमे दर्ज होने तथा मजदूरों के बढ़ गये मनोबल के दबाव में प्रबंधन को बाउंसरों को कंपनी से बाहर करना पड़ा। लेकिन प्रबंधन ने मजूदरों के उत्पीड़न का एक नया तरीका ईजाद कर लिया। इसके चलते सबसे पहले यूनियन के नये चुने गए अध्यक्ष बलदेव सिंह को कंपनी में नियुक्ति पाने के दौरान व्यक्तिगत जानकारी से संबधित फार्म में झूठी जानकारी (यह कि उन पर नियुक्ति पाने से पहले कोई मुकदमा दर्ज नहीं है) देकर नौकरी पाने का झूठा आरोप लगाकर नौकरी से बर्खास्त कर दिया। इसके विरोध में मजदूरों ने 25 दिसंबर 2015 से स्थानीय एस.डी.एम. कोर्ट पर अनिश्चितकालीन धरना शुरु कर दिया। मजदूर अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद शिफटों के अनुरूप धरने में शामिल होने लगे। प्रबंधन ने मजदूरों को धरने पर शामिल होने से रोकने के लिए अधिकांश मजदूरों की शिफट जनरल कर दी। इसके बावजूद मजदूर ड्यूटी के बाद धरानस्थल पर जाते रहे और उन्होंने हर रविवार छुट्टी के दिन सभा व प्रदर्शन करना शुरु कर दिया। इस बीच मजदूरों ने चार बड़े प्रदर्शन कर आका्रेश को प्रकट किया। मजदूरों द्वारा इस दौरान किए प्रदर्शनों का संक्षिप्त ब्यौरा निम्नवत है-
1. 30 अक्टूबर को स्थानीय पुलिस चौकी का घेराव किया। 
2. 10 जनवरी को मजदूरों ने काशीपुर में पहला प्रदर्शन किया। प्रारंभ में प्रदर्शन करने की हिम्मत मजदूर नहीं जुटा पा रहे थे। इमके के प्रोत्साहन के बाद जुलूस निकला। जुलूस जब सफल दिखा तो मजदूरों ने उत्साह में आकर जूलूस की दूरी दुगनी कर दी। 
3. 31 जनवरी 2016 को मजदूरों ने नगर के मध्य स्थित पंत पार्क में बड़ी सभा की। तत्पश्चात बाजारों से होते हुए एस.डी.एम कोर्ट तक जुलूस निकाला गया जो एस.डी.एम.कोर्ट पर पहुंचकर एक सभा में तबदील हो गया। वैसे पहले यह कार्यक्रम 7 फरवरी रविवार को तय था। कार्यक्रम को रोकने की मंशा से प्रबंधन ने किसी जरूरी काम का बहाना बनाकर रविवार को सभी मजदूरों को काम पर बुला लिया तथा रविवार के एवज मे मंगलवार को छुट्टी की घोषणा की। अंतः यह कार्यक्रम मंगलवार 9 फरवरी को हुआ।
5. 21 फरवरी को मजदूरों ने कंपनी के पास के गांव प्रतापपुर में थाली चम्मच बजाकर जुलूस निकाला। 
6. इसी क्रम में रविवार 13 मार्च को शहर में जुलूस निकालकर विधायक आवास पर प्रदर्शन किया तथा स्थानीय विधायक से जवाब तलब किया गया। 
कुल मिलाकर रिचा इंडस्ट्रीज के मजदूरों का संघर्ष जारी है। इस बीच यूनियन गठन की प्रक्रिया आगे बढ़ी है। काशीपुर क्षेत्र में किसी अन्य फैक्टरी में यूनियन न होने के कारण रिचा इंडस्ट्रीज के मजदूरों को किसी अन्य कंपनी के मजदूरों अथवा यूनियनों का समर्थन नहीं मिल रहा है। लेकिन इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद रिचा इंडस्ट्रीज के मजदूर बहादुरी के साथ मैदान में डटे हैं और संघर्ष जारी है।  

देशद्रोह के फर्जी मुकदमे वापस लेने हेतु मंडी हाउस से जंतर मंतर तक संयुक्त मार्च
दिल्ली, 15 मार्च 2016- केेन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों पर देशद्रोह के फर्जी मुकदमे वापस लेने एवं उमर खालिद एवं अनिर्बान की रिहाई हेतु हजारों की संख्या में छात्रों, बुद्धजीवियों ने मंडी हाउस से जंतर मंतर तक मार्च निकाला। जंतर-मंतर पर संसद मार्ग थाने पर यह मार्च एक सभा में तबदील हो गया। 
इस मार्च में शामिल संगठनों में जवाहर लाल नेहरू छात्र संघ, ए.आई.एस.एफ., एस.एफ.आई, एन.एस.यू.आई, आइसा, परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास), क्रांतिकारी नौजवान सभा (के.एन.एस.) क्रांतिकारी युवा संगठन, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय शिक्षक संघ, कैंपस फ्रंट, ए.आई.डी.एस.ओ., इंकलाबी मजदूर केन्द्र, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र सहित कई संगठनों के कार्यकर्ता शामिल थे। 
जानी मानी बुद्धीजीवी व लेखिका अरूंधति राॅय, अर्थशास्त्री व जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रो. जयति घोष, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन (डूटा) की अध्यक्ष नंदिता नरायण सहित कई बुद्धीजीवी, पत्रकार व लेख इस मार्च व प्रदर्शन में शामिल थे।
मार्च के दौरान हिन्दुत्ववादी, फासीवादी, शिक्षा के भगवाकरण के खिलाफ एवं जनवाद व आजादी के पक्ष में जबर्दस्त नारेबाजी हुई। प्रदर्शनकारी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उमर खालिद एवं अनिर्बान की रिहाई की व राजद्रोह के फर्जी मुकदमे वापस लेने के नारे लगा रहे थे। 
संसद मार्ग थाने के पास हुई सभा को मुख्यतः अरूंधति राॅय एवं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने संबोधित किया। सभा को संबोधित करते हुए अरूंधति राॅय ने कहा कि आज केवल शिक्षण संस्थानों व प्रगतिशील छात्र समुदाय पर ही हमला नहीं बोला जा रहा है बल्कि किसान, मजदूर, दलित, आदिवासी सभी पर हमला बोला जा रहा है। आज शोषण व अन्याय के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को खामोश करने की कोशिश की जा रही है। इसलए आज सभी शोषित उत्पीडि़त तबकों को संघी फासीवाद के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है।
जवाहर लाल नेहरू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने कहा कि संघी फासीवाद के निशाने पर आज विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थाएं आ गयी हैं क्योंकि ये ज्ञान व तर्क के केन्द्र हैं। जनता को भ्रम व धोखे में रखकर शोषण व लूट को बढ़ावा देने तथा पोंगापंथ, धर्माधंता व साम्प्रदायिक विद्वेष के द्वारा ‘फूट डालो व शासन करो’ की नीति पर चलने वाले लोगों को ज्ञान व तर्क से डर लगता है। 

उन्होंने संघ के इतिहास को खंगालते हुए कहा कि आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं करने वाले आज देशभक्त बने हैं। उन्होंने बताया कि द्वि राष्ट्र के सिद्धांत पर देश के बंटवारे की बात हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग से पहले की थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज लड़ाई केवल जे.एन.यू. की नहीं है बल्कि यह लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है, आजादी व जनवाद को बचाने की लड़ाई है। ऐसे में सभी जनवादी शक्तियों को एकजुट होकर लड़ना होगा चाहे उनके झंडे का रंग कुछ भी क्यों न हो।

वीएचबी के मजदूरों का संघर्ष रंग लाया
40 दिन के धरने के बाद निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली
     
       आखिरकार 40 दिन के धरने और लंबी जद्दोजहद के बाद डी.एम. उघम सिंह नगर के निर्देश पर एस.डी.एम. की अध्यक्षता में हुए समझौते में प्रबंधन को झुकना पड़ा और सभी निलंबित मजदूरों को काम पर वापस लेना पड़ा।
गौरतलब है कि वीएचबी मजदूरों की यूनियन पहले बी.एम.एस. से संबद्ध थी। यूनियन द्वारा प्रबंधन को मांगपत्र दिए जाने पर जुलाई 2015 में प्रबंधन ने 14 मजदूरों को निलंबित कर दिया। बी.एम.एस. की समझौतापरस्त व ढुलमुल कार्यशैली से मजूरों का आन्दोलन लगातार गर्त में जा रहा था। इसी दौरान इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने हस्तक्षेप कर मजदूरों के बीच बी.एम.एस. की समझौतापरस्त कार्यशैली की आलोचना करते हुए उन्हें संघर्ष तेज करने की सलाह दी। मजदूरों ने जैसे ही संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए कमर कसी तो बी.एम.एस. का समझौतापरस्त नेतृत्व मैदान से पलायन कर गया।
इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने स्थानीय औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल की अन्य यूनियनों से सहयोग की अपील की। इस बीच 5 सितंबर को प्रबंधन व मजदूरों के बीच एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार प्रबंधन को 9 मजूदरों की तुरंत बहाली करनी थी तथा 5 मजदूरों को 20 दिन बाद लेना था। लेकिन प्रबंधन बाद में समझौते से पलट गया। जिला प्रशासन का चक्कर काट रहे मजदूरों को इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने धरने पर बैठने की सलाह दी। 14 दिसंबर को मजदूर इमके की सलाह मान धरने पर बैठ गये।
इस बीच मजदूरों व प्रबंधन के बीच कई चक्र की वार्ताएं हुईं लेकिन प्रबंधन का अडि़यल रुख बरकरार रहा।
5 जनवरी को 27 यूनियन ने वीएचबी मजदूरों के समर्थन में शहर में विशाल रैली निकाली और प्रशासन को चेताया।
काफी जद्दोजहद के बाद आखिर वीएचबी के मजदूर प्रबंधन को झुकाने में सफल रहे। वीएचबी के मजदूरों की इस जीत ने सिडकुल की सभी यूनियनों व मजदूरों के बीच उत्साह का संचार किया है।

हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्याालय में दलित उत्पीड़न के खिलाफ जंतर-मंतर पर धरना
      दिल्ली,23 जनवरी 2016- हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में जातिगत उत्पीड़न एवं एक दलित छात्र रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर करने की घटना के खिलाफ दिल्ली के विभिन्न मजदूर, जनवादी-प्रगतिशील संगठनों ने जंतर-मंतर पर धरना दिया।
धरने में शामिल विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर करने के लिए जिम्मेदार हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति एवं केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी व बंडारू दत्तात्रेय को बर्खास्त करने की मांग को लेकर  जबर्दस्त नारेबाजी की।
धरना स्थल पर एक संक्षिप्त सभा की गयी। विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने सभा को संबोधित करते हुए शिक्षण संस्थाओं खासकर उच्चतर शिक्षण संस्थाओं में जातिगत उत्पीड़न के लिए भारतीय शासक वर्ग को जिम्मेदार ठहराया जिसने सामंती मूल्य मान्यताओं, जातिगत उत्पीड़न को न केवल बनाकर रखा बल्कि इनका क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थो के लिए इस्तेमाल भी किया।
वक्ताओं ने संघी फासीवादी सरकार को दलितों व अल्पसंख्यकों का घोर विरोधी बताया। वक्ताओं ने हैदराबाद विश्वविद्यालय में हुई जातिवादी उत्पीड़न की इस घटना को हिुदू फासीवादी उभार के साथ जोड़ते हुए कहा कि यह घटना दिखाती है कि हिन्दू फासीवादी न केवल मुस्लिमों व ईसाइयों के खिलाफ साजिशें बुन रहे हैं बल्कि उनके निशाने पर दलित भी हैं। वक्ताओं ने जातिवादी उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष को समाजवाद के लिए संघर्ष का अहम हिस्सा बताया और मजदूर वर्ग की वर्गीय गोलबंदी द्वारा जातिगत उत्पीड़न सहित सभी जनवादी समस्यओं के हल की तरफ बढ़ने बात की।
धरने में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, मजदूर एकता केन्द्र, क्रांतिकारी नौजवान सभा, शहीद भगत सिंह छात्र नौजवार सभा, जातिगत उन्मूलन आंदोलन, सचिवालय कर्मचारी यूनियन, श्रमिक संग्राम कमेटी, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, पी.डी.एफ. आई., परिवर्तनकामी छात्र संगठन, पिपुल्स फ्रंट एवं बस्ती बचाओं मंच सहित अनेक संगठनों के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया।
संबोधित सभा के दौरान उपरोक्त संगठनों द्वारा राष्ट्रपति को एक ज्ञापन पढ़कर पारित किया गया।
ज्ञापन में माननीय राष्ट्रपति से इस संबंध में सक्रिय हस्तक्षेप कर उचित कार्रवाई की मांग करते हुए निम्नांकित मांगे प्रेषित की गयीं -
1-रोहित वेमुला की हत्या के लिए दोषी हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति व केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी व बंडारू दत्तात्रेय का तुरंत बर्खास्त किया जाय।

2-इस घटना की प्राथमिकी (एफ.आई.आर.) में नामजद सभी दोषियों को एस.सी.एस.टी. के तहत गिरफतार किया जाय।

हिमांशु एजूकेशनल सोसाइटी को अवैध भूमि आवंटन के खिलाफ जंतर मंतर पर धरना व प्रदर्शन
   
     दिल्ली, 27 दिसंबर 2015-उत्तराखंड के अल्मोड़ा के नानीसार में ग्राम समाज की जमीन राज्य सरकार द्वारा जिंदल ग्रुप द्वारा संचालित हिमांशु एजूकेशनल सोसाइटी को बेहद महंगे अंतर्राष्ट्रीय विद्यालय खोलने के लिए अवैध रूप से आवंटित करने के  खिलाफ नानीसार बचाओ संघर्ष समिति,उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी,इंकलाबी मजदूर केन्द्र, क्रांतिकारी जनवादी मंच, परिवर्तनकामी छात्र संगठन सहित विभिन्न जनवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने जंतर मंतर पर धरना व प्रदर्शन किया।
     गौरतलब है कि उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार द्वारा अल्मोड़ा के नानीसार तोक के अंतर्गत डीडा-द्वारसू गांँवों में ग्राम समाज की सामूहिक चारागाह वाली 353 नाली (लगभग 7 एकड़) जमीन को तमाम कायदे कानूनों को ताक पर रखकर और गांँव वालों की सहमति के बिना उक्त सोसाइटी को आवंटित करने का शासनादेश 22 सितंबर को जारी कर दिया गया। इसके बाद 25 सितंबर को जिंदल ग्रुप द्वारा अपनी जे सी बी मशीनों व लाव- लश्कर के साथ नानीसार में उक्त जमीन पर कब्जा कर लिया तथा बांज,बुरांस व काफल प्रजाति के सैंकडों वृक्षों को जमींदोज कर सड़़क निर्माण शुरु कर दिया। जनता द्वारा इसके खिलाफ जोरदार विरोध के बावजूद मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 22 अक्टूबर 2015 को इस अंतर्राष्ट्रीय विद्यालय का शिलान्यास किया। मुख्यमंत्री द्वारा किया गया शिलान्यास भी अवैध था क्योंकि इस जमीन का अभी तक पट्टा नहीं मिला है। मुख्यमंत्री द्वारा इस शिलान्यास का विरोध कर रहे ग्रामीणों व विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं का पुलिस द्वारा बर्बर दमन किया गया व कई लोगों पर फर्जी मुकदमे लगा दिये। इसके बाद से अवैध भूमि आवंटन के खिलाफ जनता का संघर्ष जारी है।

     27 दिसंबर को भारी संख्या में ग्रामीण व विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता एक जुलूस की शक्ल में जंतर मंतर पहुंचे। उन्होंने अवैध भूमि आवंटन को लेकर जिंदल ग्रुप व उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार के खिलाफ जबर्दस्त नारेबाजी की व जोरदार सभा की । आंदोलनकारियों द्वारा पूर्वघोषित कांग्रेस मुख्यालय केे घेराव के कार्यक्रम के मद्देनजर भारी बैरिकेडिंग की गयी थी। आंदोलनकारियों द्वारा बैरिकेडिंग तक जुलूस के रूप में जाकर जबर्दस्त नारेबाजी की गयी। इस बीच कुछ आंदोलनकारी पुलिस  को चकमा देकर कांग्रेस मुख्यालय पहुंच गये और उन्होंने वहां जबर्दस्त नारेबाजी कर अपना आक्रोश प्रकट किया। 
    आंदोलनकारियों द्वारा प्रशासन  के माध्यम से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक खुला पत्र प्रेषित किया। इस खुले पत्र में नानीसार के अवैध भूमि आवंटन को रद्द करने, इस अवैध भूमि आवंटन की सी बी आई जांच कराने,381 लोगों पर लगाये गये फर्जी मुकदमे वापस लेने , राज्य बनने के बाद हुए तमाम भूमि सौदों पर श्वेत पत्र जारी करने व हिमालय संरक्षण मंत्रालय बनाने सहित कई मांगें शामिल थीं।

अभी तो ये अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है
     
       रुदुपुर, महेन्द्रा सी.आई.आई. पंतनगर के मजदूरों का धरना 66वें दिन प्रबंधन से समझौते के बाद समाप्त हो गया, समझौते में दोनों निष्कासित मजदूरों की बहाली व 8 प्रतिशत वेतन बढ़ोत्तरी पर प्रबंधन ने सहमति बनायी है। दोनों मजदूर 14 दिसंबर से काम पर वापस लोटेगें। 11 दिसंबर को रात आठ बजे ए.एल.सी. कार्यालया में ए.एल.सी. अमित यादव की मध्यस्थ्ता में उक्त समझौता हुआ।
इससे पूर्व में धरना ही चल रहा था, दो मजदूर मारुति सुजुकी के कनवेंशन में गुड़गांव गये थे। उसके बाद एक दिसंबर को हड़ताल को आगे बढ़ा दिया, इस पर मजदूरों के बीच कहीं से भी कोई रास्ता नहीं निकलने से हताशा की स्थिति बन गयी थी। इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा मजदूरों को अपने आन्दोलन को व्यापक बनाने की राय दी। सिडकुल स्तर की तमाम कंपनियों की यूनियनों/प्रतिनिधियों की एक मीटिंग कर मजदूर पंचायत का कार्यक्रम बनाया जाए, पंचायत में यनियनें अपनी संख्या बल के हिसाब से पहुंचें। 
इस संबंध में एक मीटिंग बुलायी गयी, इस मीटिंग में अधिकांश यूनियनें नहीं पहुंचीं। अगली मीटिंग 8 दिसंबर की हुयी जिसमें 14 दिसंबर को मजदूर पंचायत का कार्यक्रम तय हुआ। इसके प्रचार के लिए 26 यूनियनों/प्रतिनिधियों व अन्य ट्रेड यूनियन सेंटरों के नाम एक पर्चा जारी किया गया। इस पर्चे में महिन्द्रा क अलावा वी.एच.बी., मित्तर फास्टेनर्स, टी.वी.एस. डेल्फी, पारले रिद्धी-सिद्धी के मजदूरों की समस्याओं को भी रखा गया।
    लालपुर प्लांट के मजदूरों ने भी मांगपत्र व पंतनगर के मजदूरों से एकता के लिए प्रबंधन से खुलकर बात करना शुरु किया था। प्रशासन ने भी कुछ सक्रियता दिखाना शुरु कर दी, पुलिस अधिकारी से लेकर कांग्रेस के छुटभैये नेताओं व खुफिया विभाग सभी के सुर बदलने लगे। इन सभी ने मजदूरों को ‘हम समझौते के लिए कुछ कर रहे हैं जल्द समझौता हो जायेगा’ के प्रयास करने को आश्वासन देने लगे। डी.एम.के सुर तो पहले मजदूरों को अपने आॅफिस में बिना परमिशन के न आने देने, केवल एक ही मजदूर वापस लेने, मै तुम्हारा धरना उठवा दूंगा, बदल गये। उन्होंने दोनों पक्षो को बुलवा कर मामला निपटाने की सख्ती दिखायी। दोनों मजदूरों को बहाल करने व 8 प्रतिशत वेतन बढ़ोत्तरी के लिए प्रबंधन को कहा, नहीं मानने पर दोनों पक्षों पर कार्यवाही करने की धमकी दी। 
     बताते चलें कि मजदूरों ने यूनियन के लिए फाइल लगाई है, यह बात प्रबंधन को पता लग चुकी है। कंपनी के काॅरपोरेट एच.आर. हेड को मामला निपटाने के लिए भेजा गया था, कंपनी प्रबंधन ने उत्पादन बढ़ाने पर ही वेतन बढ़ोत्तरी का मजदूरों ने विरोध किया। 
    एक अक्टूबर 2014 से निलंबित व 29 जून से निष्कासित दो मजदूरों का धरना 7 अक्टूबर 2015 से शुरु हुआ। इसके उपरान्त भी किसी प्रकार की आन्दोलनात्मक कार्यवाही न करना, साथ ही लालपुर प्लांट में भी काफी समय बीत जाने के बाद एकता के प्रयास किये गये। महेन्द्रा सी.आई.ई. के दोनों प्लांटो के मजदूरों की लड़ाई के लए कमर कसनी होगी। इस संघर्ष के दौरान जो भी कमी रह गयी उस पर विचार कर उन कमियों को भविष्य में न दोहराना होगा। यह सभी मजदूरों को समझना होगा कि कानूनी कार्यवाही के साथ-साथ आन्दोलनात्मक कार्यवाहियों के दम पर ही मजदूरों को जीत हासिल होगी। 


भारत द्वारा नेपाल की अघोषित नाकेबंदी को लेकर संगोष्ठी
   
     दिल्ली, 4 दिसंबर 2015- भारत द्वारा नेपाल की अघोषित नाकेबंदी को लेकर विचार विमर्श हेतु प्रवासी नेपाली जनता के विभिन्न जनसंगठनों एवं वरिष्ठ पत्रकार व समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने मिलकर एक संगोष्ठी का आयोजन किया।
      संगोष्ठी का आरंभ करते हुए समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने भारत व नेपाल की जनता की मित्रता को ऐतिहासिक बताया तथा भारत व नेपाल के बीच परस्पर बराबरी व सम्मान पर आधारित रिश्तों की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने दक्षिण एशिया में शांति व स्थिरता के लिए भारत व नेपाल के बीच बराबरी से मित्रतापूर्ण संबंधों को बेहद जरूरी बताया। उन्होंने सीमा पर भारत द्वारा अघोषित नाकेबंदी की निंदा करते हुए इसे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया और भारतीय शासक वर्ग से नेपाल की संप्रभुता का सम्मान करने व नेपाल के साथ बराबरी पर आधारित संबंध कायम करने की अपील की। मानवाधिकार संगठन प्रोटेक्शन आफ हयूमन राइट के प्रमोद काफले ने बताया कि भारत से पेट्रोल व गैस की आपूर्ति बाधित होने के कारण नेपाल में जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया है। नेपाल में दस किलोमीटर तक टैक्सी का किराया 4000 रु. हो गया है। गैस सिलिंडर की कीमत 8 से 10 हजार रुपये तक पहुंच गयी है। दवाइयों की कीमत बहुत बढ़ गयी है। 30 लाख छात्र स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। 15 लाख देहाड़ी मजदूर बेरोजगार हैं। इसी प्रकार अन्य मजदूर भी बेरोजगार हैं। उन्होंने कहा कि भारत द्वारा की जा रही अघोषित नाकेबंदी जेनोआ कन्वेंशन के खिलाफ है।
अखिल भारतीय नेपाल जनअधिकार मंच के लक्ष्मण पंत ने कहा कि भारतीय शासकों ने नेपाल को एक स्वतंत्र व संप्रभु राष्ट्र के बतौर स्वीकार नहीं किया है। अगर भाजपा की जगह कांग्रेस की सरकार होती तो भी यही होना था। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता व नेपाल की जनता में परस्पर भाईचारा है जो सदियों पुराना है। लेकिन भारतीय शासक नेपाल  सहित सभी पड़ोसियों के साथ गैरबराबरीपूर्ण रिश्तों में जीते हैं और अपनी मर्जी थोपने के लिए आर्थिक दबाव का सहारा लेते हैं। उन्होंने बताया कि 2013 में भारत ने भूटान को गैस सप्लाई बंद कर दी थी ।
उन्होंने कहा कि नेपाल का संविधान समवेशी नहीं है। यह शिकायत भारत को नहीं करनी चाहिए। खुद भारत में शासन सत्ता में अल्पसंख्यकों, दलितों व महिलाओं को उनके अनुपात के बराबर प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है। 15 प्रतिशत आबादी होने के बावजूद अल्पसंख्यकों को संसद में 4 प्रतिशत प्रतिनिधित्व मिल रहा है। भारतीय शासक वर्ग उस जमीन पर खड़ा नहीं है। दूसरे एक संप्रभु राष्ट्र के बतौर जिस तरह भारत अपने अंदरूनी मामलों में वाहय हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं करता उसी तरह एक संप्रभु राष्ट्र होने के नाते नेपाल की जनता भारतीय हस्तक्षेप का विरोध करेगी। उन्होंने भारत द्वारा अघोषित नाकेबंदी को मानवाधिकारों के उल्लंघन के साथ भारतीय शासक वर्ग की विस्तारवादी नीति का लक्षण बताया। उन्होंने कहा कि नेपाल का संविधान एक प्रतिक्रियावादी पूंजीवादी संविधान है लेकिन यह नेपाल की जनता की समस्या है। भारत को कोई हक नहीं है कि नेपाल के संविधान के मामले में कोई हस्तक्षेप करे।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए जनता दल के नेता के.सी. त्यागी ने कहा कि वे एक आत्मनिर्भर, संप्रभु नेपाल देखना चाहते हैं जो भारत की आंख में आंख डालकर बात कर सके। भारत और नेपाल के बीच रिश्ते बराबरी के आधार पर ही बेहतर रह सकते हैं। लेकिन भारतीय राजनीति में कुछ लोगों का माइन्ड सेट ऐसा है कि वे नेपाल सहित पड़ोसियों के साथ प्रभुत्वकारी रिश्ते चाहते हैं लेकिन सभी लोग ऐसे नहीं हैं। उन्होंने कहा कि नेपाल के मामले पर चर्चा के लिए नोटिस दिया गया है। यह चर्चा सोमवार (7 दिसंबर) को होगी।
प्रवासी नेपाली संघ के लोकनाथ भंडारी ने कहा कि भारतीय शासक नेपाल पर अपनी मर्जी का संविधान थोपना चाहते हैं। वे नेपाल को एक धर्मनिपेक्ष व संप्रभु राष्ट्र के बतौर नहीं देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय खुफिया एजेंसियां व पुलिस प्रवासी नेपाली संगठनों द्वारा 6 दिसंबर को नेपाल की अघोषित नाकेबंदी के खिलाफ जंतर-मंतर पर आयोजित प्रदर्शन को रद्द करने के लिए उन पर दबाव डाल रही है।
संगोष्ठी को सी.पी.आई.एम.एल. (लिबरेशन) की कविता कृष्नन, पी.डी.एफ.आई. के अर्जुन प्रसाद, इंकलाबी मजदूर केन्द्र के नगेन्द्र व सी.पी.आई.एम.एल न्यू प्रोलिटेरियट के शिवमंडल सिद्धांतकर ने भी संबोधिति किया तथा नेपाली जनता के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए सीमा पर भारत सरकार द्वारा जारी अघोषित नाकेबंदी की निंदा करते हुए इसे तुरंत खत्म करने की मांग की।

प्रकोल के 8 मजदूरों को दी गयी दोहरे उम्रकैद की सजा के विरोध में इमके द्वारा जारी बयान

      3 दिसंबर को तमिलनाडु की एक सेशन अदालत ने कोयंबटूर (तमिलनाडु) स्थित प्रिकोल प्रा. लि. के आठ मजदूरों को दोहरे उम्रकैद की सजा सुनाई है। इन मजदूरों कोे एच.आर. मैनेजर की हत्या करने का अपराधी करार देते हुए यह सजा दी गयी है। 2009 में कंपनी प्रबंधन द्वारा मजदूरों की यूनियन को मान्यता न देने व मजदूरों को प्रताडि़त करने एवं बदले की भावना से परिचालित होकर 42 मजदूरों को बर्खास्त करने एवं लगातार मजदूरों के खिलाफ की जा रही चालबाजियों के चलते यह विवाद तीखा हो गया था। इसकी परिणति 21 सितंबर 2009 को प्रबंधन व मजदूरों के बीच झड़प में हुई जिसमें संभावित रूप से चोटिल होने के चलते अगले दिन एच.मैनेजर की मृत्यु हो गयी। इसी से मिलती-जुलती घटनाएं नोएडा के ग्रेजियानों और मानेसर में मारुति में हुई थीं। निजिकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद से श्रम कानूनों का पूंजीपति वर्ग द्वारा उल्लंघन तेज हो गया है। श्रम कानूनों को लागू करने वाली मशीनरी भी इस दौरान ज्यादा से ज्यादा लचर होती गयी है। ट्रेड यूनियनों की मांगो को लंबे समय तक लटकाये जाने, उनके साथ तरह तरह से छल फरेब किये जाने के प्रतिक्रिया स्वरूप प्रिकोल, ग्रेजियानों, और मारुति जैसी घटनाएं घटती हैं। ऐसी घटनाओं को दुघर्टना माना जाना चाहिए और इसके लिए प्रबंधन को जिम्मेदार मानना चाहिए लेकिन होता इसके उलट है। मालिक मजदूरों के आपसी संबंध के बारे में पूंजीवादी न्याय की अवधारण दिक्कततलब है। यह मानता है कि उत्पादन सुचारू रूप से चले इसके लिए जरूरी है कि पूंजीपति व मजदूरों के बीच मास्टर (मालिक) और सर्पेन्ट (नौकर) का रिश्ता कायम रहे। इसके तहत नौकर पर मालिक पर भरोसा करे इसकी जिम्मेदारी नौकर की बनती है। उसे साबित करना होता है कि उसने ऐसा कोई व्यवहार नहीं किया जिससे उसे भरोसे योग्य न माना जाय। न्याय की ऐसी अवधारणा मुनाफाखोर उत्पादन व्यवस्था के तो जरूरी है लेकिन यह कहना ठीक नहीं होगा कि ऐसी अवधारणा के बगैर उत्पादन व्यवस्था चल ही नहीं सकती। समाजवादी उत्पादन संबंध में ऐसी किसी मजदूर विरोधी अवधारणा के बगैर उत्पादन दु्रत गति से होता है। इंकलाबी मजदूर केन्द्र प्रिकोल के मजदूरों को दी गयी दोहरे उम्रकैद की सजा की भर्त्सना करता है। इंकलाबी मजदूर केन्द्र सभी मजदूरों का आहवान करता है कि वर्तवान अन्यायपूर्ण समाज व्यवस्था को समाप्त कर न्यायपूर्ण समाज व्यवस्था, जो कि मजदूर राज-समाजवाद हीे हो सकता है, के लिए संघर्ष तेज करें। इस तरह की घटनाओं के बाद पूंजीपति वर्ग के साथ सरकार व न्यायपालिका दोनों को रुख प्रतिशोधात्मक रहा है। न्यायपालिका भी सबूतों और गवाहों के आधार पर किसी निणर्य पर पहुंचने की अपनी सामान्य परिपाटी छोड़ देती है और निर्णय पर पहुंचने का आधार देशी-विदेशी पूंजी निवेश पर पड़ने वाला प्रभाव बन जाता है। इस तरह की घटनाओं के मुकदमों के संबंध में न्यायपालिका वर्ग निरपेक्ष होने का अपना झीना आवरण भी उतार फेंकती है और खुलकर पूंजीपति वर्ग के पक्ष में तर्क और फैसले देती है। उदारीकरण के वर्षों में न्यायपालिका ने पिछले फैसलों को पलटते हुए कई मजदूर विरोधी फैसले दिये हैं। प्रिकोल के मजदूरों को दोहरे उम्र कैद की सजा ने उन फैसलों को भी मामूली बना दिया है।


आटो मजदूरों की व्यापक एकता हेतु
आटो क्षेत्र की यूनियनों की तैयारी बैठक

    गुड़गांव, 28 नवम्बर 2015- आटोमोबाइल क्षेत्र में मौजूद यूनियनों एवं मजदूरों का अखिल भारतीय नेटवर्क विकसित करने के उद्देश्य से 28 नवम्बर 2015 को गुड़गांव की परशुराम वाटिका में आटोमोबाइल क्षेत्र की यूनियनों एवं सहयोगियों की प्रथम तैयारी बैठक हुई।
    बैठक में यूनियन प्रतिनिधियों ने अपनी कंपनियों एवं क्षेत्र में मजदूरों के हालात, प्रबंधन के रवैये एवं ठेका व अस्थाई मजदूरों की दुदर्शा पर व्यापक चर्चा की और साझा संघर्षों की जरूरत पर जोर दिया। वक्ताओं ने कहा कि आटोमाबाइल सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाला उद्योग है। इनमें गैरकानूनी तरीके से स्थाई प्रकृति का ज्यादातर काम ठेका व अस्थाई मजदूरों से करवाया जाता है और उनका बेइंतहा शोषण किया जाता है। पिछले समयों में मजदूरों के सबसे जुझारू आंदोलन आटोमोबाइल क्षेत्र के कारखानों में ही हुए हैं। मारुति सुजुकी, मानेसर (हरियाणा) का संघर्ष इनमें अग्रणी है।
     बैठक में इस पर काफी चर्चा हुई कि संघर्षों के दौरान मजदूरों का मुकाबला केवल प्रबंधन से नहीं अपितु पूरी पूंजीवादी मशीनरी-पुलिस, प्रशासन, गुंडे, सरकार व मीडिया और न्यायपालिका से होता है। ऐसे में फैक्टरी स्तर के संघर्ष व्यापक सहयोग,समर्थन के अभाव में दमन का शिकार होकर खत्म हो जाते हैं। वक्ताओं ने कहा कि इन सूरतों में न सिर्फ क्षेत्रीय अपितु देश के पैमाने पर एकजुट होना वक्त की जरूरत है। उत्पादन के विकेन्द्रीकरण ने व्यापक एकजुटता का भौतिक आधार पहले ही तैयार कर दिया है।
   बैठक के अंत में फैसला हुआ कि इस बैठक की कार्यवाही को एक प्रस्ताव के रूप में कलमबद्ध कर आटोमाबाइल क्षेत्र की और अधिक यूनियनों से सम्पर्क कायम किया जाय तथा 3-4 महीने बाद ज्यादा यूनियनों की भागीदारी के साथ दूसरी तैयारी बैठक की जाय।
    बैठक में सोशल मीडिया के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े रहने एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान पर आम सहमति कायम हुई एवं यूनियन प्रतिनिधियों की एक कोआर्डिनेशन कमेटी भी चुनी गई।
     बैठक में मारुति सुजुकी, मानेसर के मजदूरों के संघर्ष पर भी व्यापक चर्चा हुई। वक्ताओं ने कहा कि प्रबल संभावना है कि पूंजीपतियों की कोर्ट जेल में बंद 36 मजदूरों को कड़ी सजा दे। ऐसे में एकजुट होकर इस अन्याय का विरोध करना होगा। आंदोलन एवं कानूनी संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा।
   बैठक में फोर्ड इम्प्लाइज यूनियन- चेन्नई, डेमोक्रेटिक ट्रेड यूनियन सेन्टर-चेन्नई, एन.टी.यू.आई-मुंबई, टी.यू.सी.आई-मुंबई, बॉश लि.-जयपुर, हुुंडई मोटर इंडिया इम्प्लाइज यूनियन-चेन्नई, मारको पोलो वर्कर्स यूनियन-कर्नाटक, मारुति उद्योग कामगार यूनियन-गुड़गांव, मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन-मानेसर (प्रोवीजनल कमेटी), बेनसोनिका इम्प्लाइज यूनियन-मानेसर, महिन्द्रा सी.आई.इ. वर्कर्स यूनियन-पंतनगर, एल.जी.बी.वर्कर्स यूनियन-गुड़गांव, हिंदुस्तान मोटर्स-हुगली (प.बंगाल), ग्रीव्स कॉटन लि.-चेन्नई, वीनस इंडस्ट्रियल कार्पोरेशन वर्कर्स यूनियन, फरीदाबाद, रिको आटो वर्कर्स यूनियन-धारूहेणा, हीरो मोटोकॉर्प-धारूहेणा, इंडोरेन्स टेक-मानेसर, कंसई नेरोलक पेंट-बावल, बजाज मोटर्स-गुड़गांव, टाटा मोटर्स-पंतनगर, आटोलाइन-पंतनगर, इंकलाबी मजदूर केन्द्र एवं मजदूर सहयोग केन्द्र इत्यादि के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।

मजदूर न्याय अधिकार कन्वेंशन का आयोजन 
    गुड़गांव, 27 नवम्बर, प्रोवीजनल कमेटी मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन (मानेसर) द्वारा ढाई वर्ष से अधिक समय (जुलाई 2012 से) जेल में बंद सभी श्रमिकों की रिहायी, उन पर दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लेने तथा सभी बर्खास्त मजदूरों को काम पर वापस लेने हेतु मारुति मजदूरों के संघर्ष को आगे बढ़ाने तथा इस मुद्दे पर मजदूर वर्ग की व्यापक एकजुटता कायम करने के उद्देश्य से गुड़गांव के सेक्टर 5 के मैदान में मजदूर न्याय अधिकार कन्वेंशन का आयोजन किया।
    इस आयोजन में देश के अलग अलग हिस्सों से आये ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों, मजदूर संगठनों एवं सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।

    कन्वेंशन में विषय प्रवर्तन करते हुए प्रोवीजनल कमेटी, मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के साथी रामनिवास ने मारुति आन्दोलन की संक्षिप्त ऐतिहासिक रूपरेखा रखते हुए बताया कि एक स्वतंत्र यूनियन की उनकी मांग थी जिसे उन्होंने लंबे जुझारू संघर्ष की बदौलत हासिल किया। मजदूरों की इस जीत से कुपित होकर प्रबंधन ने मजदूरों के खिलाफ एक अपराधिक षडयंत्र रचा और कंपनी में तनाव पैदा किया जिसमें एक प्रबंधक की मृत्यु हुई। इसके बाद एक ही दिन में 90 मजदूरों को जेल में डाल दिया जिनके खिलाफ गवाह के बतौर चार ठेकेदारों का नाम दिखाया जिन्होंने गवाही के वक्त किसी भी मजदूर को नहीं पहचाना। उन्होंने कहा यह किस कदर बनावटी केस था इसकी बानगी यह है कि 4 ठेकेदार जिन मजदूरों के खिलाफ गवाह बने उनके नाम अल्फाबेटिकली (अंग्रेजी वर्णमाला के अनुरूप) लिखे थे। उन्होंने कहा कि मारुति के मुख्य प्रबंधक आर.सी. भार्गव ने मीडिया में दिये अपने बयान में मारुति मजदूरों के संघर्ष के बारे में कहा था कि यह एक यूनियन की लड़ाई मात्र न होकर वर्ग संघर्ष है। उनकी बात उचित थी और इस बात को मजदूर वर्ग को भी अच्छी तरह समझना होगा तथा मारुति आन्दोलन के साथ व्यापक मजदूर वर्ग की एकजुटता कायम करनी होगी।
     कन्वेंशन में भागीदारी करते हुए टी.यू.सी. मुंबई के ट्रेड यूनियन नेता  वासुदेवन ने कहा कि मारुति मजदूरों की यूनियन तोड़ने के लिए मारुति प्रबंधन द्वारा सरकार के साथ मिलकर षडयंत्र रचा और एक सुनियोजित साजिश के तहत मजदूरों का दमन किया गया। उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया के स्तर पर सरकार और न्यायपालिका सहित समूचा पूंजीवादी तंत्र मजदूरों के खिलाफ है। मारुति प्रबंधन की मजदूरों के प्रति जो नीति है वही समूचे पूंजीपति वर्ग की नीति है। उन्होंने कहा कि 1990 से नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद मजदूर वर्ग की जो स्थिति खराब होनी शुरु हुई है वह मोदी के शासन काल में बद से बदतर हो गयी है। उन्होंने आज के दौर में मजदूर वर्ग पर हो रहे हमले का मुकाबला करने की लिए मजदूर वर्ग की व्यापक व वर्गीय एकजुटता की जरूरत पर बल दिया। मारुति मजदूरों के संघर्ष के प्रति उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। गुड़गांव के सनबीम कंपनी के श्रमिक प्रतिनिधि सत्यपाल जी ने कहा कि इतिहास गवाह है और वर्तमान साक्षी है कि अधिकार मांगने से नहीं मिलते बल्कि छीने जाते हैं। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि जब मजदूर जनसंख्या में ज्यादा हैं तो वे सत्ता में क्यों नहीं हैं ? उन्होंने कहा कि आज एम.पी., एम.एल.ए. सहित जो भी सत्ता में हैं, सभी मजदूर विरोधी हैं, उनका मजदूरों से कोई लेना देना नहीं है। साथी सत्यपाल जी ने अपनी यूनियन की तरफ से मारुति मजदूरों के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए 5000 रु. का सहयोग भी दिया।
     आई.एम.टी. मानेसर (गुड़गांव) औद्योगिक क्षेत्र के इंड्योरेन्स कंपनी के श्रमिक प्रतिनिधि जयभगवान ने कहा कि तमाम यूनियनों को अपने आपसी मतभेद भुलाकर श्रमिक हितों हेतु एक होना होगा तथा अपने बीच से ठेका, केजुअल व परमानेन्ट का भेद मिटाना होगा तभी हम मजदूर वर्ग पर हो रहे हमलों का माकूल जवाब दे सकते हैं।
      इंकलाबी केन्द्र पंजाब के साथी सुरिन्दर सिंह ने कहा कि आज सरकारें जनता के आक्रोश को दबाने के लिए जहां दमन का सहारा ले रही हैं वहीं जनादोलनों को भटकाने के लिए धार्मिक व सांप्रदायिक तनावों को पैदा कर रही हैं। उन्होंने पंजाब का उदाहरण देते हुए कहा कि पंजाब में सरकार व जर्मन कंपनी की मिलीभगत से दवा खराब होने से 5.4 लाख एकड़ फसल बर्बाद हुई। इसके खिलाफ आठ किसान संगठनों व चार मजदूर संगठनों ने जबर्दस्त आंदोलन किया। जनता के इस आंदोलन की दिशा भटकाने के लिए गुरुग्रंथ साहब के पन्ने फाड़कर इसे धार्मिक विद्वेष का रंग देने की कोशिश की गयी। परन्तु जनता ने इस साजिश को नाकाम कर दिया।
     उन्होंने कहा कि मारुति संघर्ष ने मजदूर आंदोलन में जो मिशाल पेश की है वह मजदूर वर्ग की एक जीत है तथा हाकिमों के मुंह पर तमाचा है।
     एफ.सी.सी. रिको के साथी प्रीतपाल ने कहा कि मजदूर आंदोलनों को कुचलने व मजदूर संगठनों को खत्म करने के लिए प्रबंधन, सरकार व प्रशासन मिलकर काम करते हैं और मजदूरों को झूठे मुकदमों में फंसाते हैं। ऐसा हमेशा से होता आया है। उन्होेंने बताया कि 2009 में रिको के ऐतिहासिक आंदोलन में उनके मजदूर साथी अजीत यादव शहीद हुए थे। उन्हें मालिकों के गुंडों ने मारा लेकिन इल्जाम मजदूरों पर लगाया गया। ऐसा ही मारुति मजदूरों के साथ हुआ है। उन्होंने मजदूरों के खिलाफ इस तरह के षडयंत्रों का मुकाबला करने के लिए मजदूर वर्ग की व्यापक एकता की बात की।
    छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की साथी सुधा भारद्वाज न कहा कि लाखों मजदूरों की निगाह आज मारुति मजदूरों पर लगी है। मारुति मजदूरों ने ठेका-परमानेन्ट व कैजुअल मजदूरों के भाईचारे, जेल के भीतर व बाहर के मजदूरों के भाईचारे, मजदूरों, किसानों व स्थानीय जनता के भाईचारे का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। मारुति मजदूर आज बहुत बड़ी मशीनरी के खिलाफ लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया के स्तर पर पूंजीवाद संकट के दौर से गुजर रहा है। इस संकट से निपटने के लिए जहां पूंजीपति वर्ग ने जल, जगल जमीन सहित प्राकृतिक संसाधनों की लूट तेज की है वहीं मजदूर वर्ग का शोषण उत्पीड़न तेज कर दिया है। उन्होंने कहा कि पूंजी के इस हमले के खिलाफ दुनिया भर में प्रतिरोध तेज हुआ है। उन्होंने हाल ही में इराक में अमेरिकी कब्जे के विरोध व मजदूरों के जीवन जीने लायक वेतन देने व शिया-सुन्नी के झगड़ों को खत्म करने आदि मांगो को लेकर 5 लाख मजदूरों की रैली का जिक्र करते हुए कहा कि पूरी दुनिया के स्तर पर मजदूर जाग रहा है और एक बार फिर समाजवाद दस्तक दे रहा है।
      मुंबई से आये टी.यू.सी.आई. के महासचिव संजय सिंघवी ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से स्पष्ट है कि 18 जुलाई की घटना में मजदूरों का कोई हाथ नहीं था। मजदूरों व प्रबंधन के बीच धक्कामुक्की की बात सही है लेकिन कोई भी तथ्य ऐसा नहीं है जो आग लगने की घटना से मजदूरों का संबंध स्थापित करती है। यह एक साजिश का परिणाम थी। उन्होंने कहा कि आज मजदूूर वर्ग की व्यापक एकजुटता की जरूरत है और मजदूरों ने जिस तरह तिलक की गिरफ्तारी पर 6 दिन की राजनीतिक हड़ताल द्वारा विरोध किया था, उसी तरह की राजनीतिक हड़तालों की आज दरकार है।
     हिंद मजदूर सभा के नेता ने कहा कि मारुति संघर्ष में सभी ट्रेड यूनियन सेंटरों के साथ मिलकर कार्यवाही की जरूरत बनती है। उन्होंने मारुति मजदूरों को न्याय दिलाने के लिए गुड़गांव मानेसर क्षेत्र में अनिश्चित कालीन हड़ताल का प्रस्ताव रखा।
    ए.आई.सी.टी.यू. के असलम ने कहा कि आने वाले दिनों में केन्द्र सरकार को मजदूरों की एकजुटता से झुकाना होगा।
     जनसंघर्ष मंच हरियाणा के साथी पाल सिंह ने कहा कि बिना सबूत के 147 मजदूरों को ढाई साल तक जेल में रखकर अब सजा की तैयारी चल रही है जो इस व्यवस्था के पूंजीपरस्त चरित्र को दिखाता है। उन्होंने कहा कि अनुभव यह दिखाता है कि मारुति आन्दोलन को जो प्राथमिकता दी जानी थी वह नहीं दी गयी।
     ए.आई.यू.टी.यू.सी. के रामकुमार ने कहा कि प्रोवीजनल कमेटी ने आंदोलन को अब तब जुझारू रूप से चलाया है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। आज हमारे सामने चुनौती है कि ज्यादा से ज्यादा मजदूरों को इस आंदोलन से जोड़ा जाय।
     चेन्नई स्थित फोर्ड कंपनी की मजदूर यूनियन ‘फोर्ड एम्प्लाइज यूनियन’ केे साथी सतीश ने मारुति मजदूरों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए कहा कि देश में हर जगह चाहे वह गुड़गांव हो या चेन्नई मजूदरों के शोषण-दमन-उत्पीड़न की एक जैसी दास्तान है। उन्होंने इस दमन उत्पीड़न के खिलाफ मजदूर वर्ग की व्यापक एकजुटता की बात कही। अपनी यूनियन की तरफ से मारुति मजदूरों के संघर्ष को जारी रखने के लिए प्रोवीजनल कमेटी को 2500 रु. का चेक सहयोग स्वरूप प्रदान किया।
   तारा मार्कोपोलो ने कहा कि मारुति मजदूरों ने लड़ाई में एक बार हाथ डाल दिया है तो उसे अंजाम तक पहुंचाना होगा। उन्होंने प्राचीन व पौराणिक कथाओं में वर्णित देवताओं व राक्षसों के बीच मुंह युद्ध का रूपक प्रस्तुत करते हुए कहा कि पूंजीपति वर्ग जो कि राक्षस बन गया है उसका संहार करना होगा।
   सी.आई.टी.यू. के राज्य सचिव सतबीर ने कहा कि यह एक साझी लड़ाई है जिसे साझे तौर पर लड़ा जाना चाहिए।
   केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों को विश्वास में लेकर रणनीति बनाने की जरूरत है। उन्होंने मारुति के संघर्ष के समर्थन में अनिश्चितालीन हड़ाताल के विकल्प का समर्थन किया।
 
मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन (मानेसर) के प्रधान पवन ने कहा कि मारुति के समस्त मजदूर जेल में बंद साथियों की रिहाई व उनके मुकदमों को खारिज करवाने तथा सभी बर्खास्त साथियों की कार्य पर पुनर्बहाली के लिए संघर्ष जारी रखेंगे। भीतर काम करने वाले साथी इस संघर्ष हेतु आर्थिक सहयोग निरंतर जारी रखेंगे।
    पिपुल्स अलायंस फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी के साथी वातिनी राव ने कहा कि मारुति का संघर्ष आज के निराशाजनक दौर में एक प्रकाश स्तंभ की तरह है। उन्होंने कहा कि इनान (पुद्दुचेरी) में 2009 में मजदूरों ने जब संगठित होकर संघर्ष का बिगुल फूंका तो उनके एक नेता की हत्या प्रबंधन द्वारा करा दी गयी। इसके प्रयुत्तर में मजदूरों ने एक प्रबंधक को मार दिया। 60 मजदूरों को जेल हुई जो तक बंद हैं। उन्होंने कहा कि मजदूरों के खिलाफ हर जगह एक ही तरह का दमनात्मक रुख सरकारें अपना रही हैं।
    पी.यू.डी.आर. के साथी गौतम नवलखा ने मारुति मजदूरों के संघर्ष के प्रति एकजुटता जाहिर करते हुए इसे भारत के मजदूर आंदोलन का एक गौरवशाली अध्याय बताया। उन्होंने कहा कि आज सरकार मारुति के पूर्णता विदेशीकरण करने की योजना पर काम कर रही है। इसके साथ आटो क्षेत्र को एस्मा के दायरे में लाने की कोशिश की जा रही है।
      इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथी मुन्ना प्रसाद ने मारुति मजदूरों के संघर्ष के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए कहा कि इमके शुरु से मारुति मजदूरों के संघर्ष में साथ रहा और इसे इसके सही मुकाम तक पहुंचाने के लिए हमेशा पुरजोर तरीके से इस संघर्ष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करेगा। उन्होंने मारुति मजदूरों के संघर्ष में ऑटो क्षेत्र की तमाम यूनियनों व मजदूरों को एकजुट करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आज के दौर में पूंजीपति वर्ग के हमले का मुकाबला करने के लिए व्यापक मजदूर वर्ग की एकता की जरूरत है। यूनियनों को अपने बीच से ठेका, परमानेन्ट व कैजुअल आदि का भेद खत्म करने की जरूरत है।
     एटक के अनिल गौर ने मारुति मजदूरों के संघर्ष को अपना समर्थन जाहिर करते हुए इसको आगे ले जाने हेतु साझी रणनीति की बात की।
     श्रमिक संग्राम कर्मचारी यूनियन के कुशल देवनाथ ने कहा कि मारुति मजदूरों के आंदोलन की अनुगूंज पूरे देश में है और मजदूरों को संघर्ष की प्रेरण दे रही है।
    हुंडई के श्रमिक नेता श्रीधर ने कहा कि चेन्नई में हुंडई, फोर्ड, निशान जैसी कंपनियां हैं लेकिन प्रबंधन यूनियन नहीं बनने देता है। केवल दलाल यूनियनें ही बन रही हैं। राजनीतिक या वर्ग सचेत मजदूरों के यूनियन बनाने पर उन्हें निष्कासन और जेल की सजा भुगतनी पड़ रही है। उन्होंने मारुति मजदूरों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए इसको अपने मुकाम तक पहुंचाने के लिए व्यापक मजदूर वर्ग की एकजुटता की जरूरत को रेखांकित किया।
     मजदूर सहयोग केन्द्र के साथी मुकुल ने कहा कि हर जगह मजदूरों को एक ही तरह से दमन उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि आज मजदूर वर्ग की व्यापक एकजुटता के सवाल को पहले से ज्यादा गंभीरता व शिद्दत से महसूस किया जा रहा है। अलग-अलग कारखानों, ब्लॉक, सेक्टर व उत्पाद के आधार पर मजदूरों की एकता बनाने की जरूरत है।
     कन्वेंशन को संबोधित करते हुए श्रमिक संग्राम समिति के सुभाशीष शर्मा ने कहा कि मारुति आंदोलन में लगे तमाम संगठनों व यूनियनों को संकीर्ण सांगठनिक हितों से ऊपर उठकर वर्ग संघर्ष मानकर इसे आगे बढ़ाना चाहिए। वर्ग संघर्ष से अलग मारुति संघर्ष को नहीं देखा जाना चाहिए।
     कन्वेंशन का समापन करते हुए मारुति गुड़गांव प्लांट के मारुति उद्योग कामगार यूनियन के अध्यक्ष साथी राजेश ने कहा कि वे तमाम यूनियनों के साथ मिलकर एक साझी रणनीति हेतु विचार विमर्श करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने शासन-प्रशासन को चेताया कि मजदूरों के धैर्य की परीक्षा न लें। भविष्य में मजदूर वर्ग प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ भी कदम उठाता है तो उसकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।
    उपरोक्त वक्ताओं के अलावा बजाज मोटर्स, बेलसोनिका, दिल्ली मजदूर यूनियन, मजदूर एकता कमेटी, मजदूर पत्रिका, मेहनतकश महिला संगठन के प्रतिनिधियों ने मारुति संघर्ष के प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त की।
पंतनगर-सिडकुल के विभिन्न कारखानों में जारी है मजदूर है मजदूरों के संघर्ष

    औद्योगिक क्षेत्र पंतनगर के विभिन्न कारखानों में अपनी विभिन्न मांगो को लेकर मजदूर संघर्षरत हैं। विभिन्न कारखानों में मजदूरों के संघर्ष के मुद्दे व संघर्ष की स्थिति का संक्षिप्त विवरण निम्नवत है।
1-पारले में समझौते को लेकर प्रबंधन व यूनियन के बीच रस्साकस्सी जारी है। 
2- वोल्टास में यूनियन व प्रबंधन के बीच हुए समझौते को प्रबंधन द्वारा धता बताने के विरोध में 20 नवंबर को मजदूरों ने डी.एम. कार्यालय पर एक  दिन धरना दिया। 
3- टी.वी.एस. चक्रा में यूनियन गठन के बाद प्रबंधन द्वारा एक मजूदर को निलंबित करने के विरोध में एवं अपने मांगपत्र पर प्रबंधन से वार्ता की मांग को लेकर मजदूरों ने ए.एल.सी. कार्यालय, रुद्रुपर पर 26 नवंबर को प्रदर्शन किया। 
4-टी.वी.एस. डेल्फी में यूनियन गठन के बाद बदले की भावना के तहत प्रबंधन ने एक मजदूर को निलंबित कर दिया। इसके खिलाफ एवं मांगपत्र पर वार्ता की मांग को लेकर मजदूरों ने 26 नवंबर को ए.एल.सी. कार्यालय (रुद्रपुर) पर प्रदर्शन किया।
5-वी.एच.बी. में शेष निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली के लिए मजदूरों का संघर्ष जार है। हालांकि एक कांग्रेसी छुटभैया नेता को मामले सुलझाने के लिए मजदूरों द्वारा आमंत्रित किए जाने से मामला और उलझ गया है। इस बीच प्रबंधन ने उल्टा मजदूरों पर मारपीट का आरोप लगाते हुए उन पर मुकदमे दर्ज करवा दिये हैं। यूनियन 5 सितंबर को हुए समझौते को लागू करवाने के बदले कानूनी जाल में उलझ कर रह गयी है।
बहर हाल विभिन्न रूपों में सिडकुल की कंपनियों में मजदूरों का शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष जारी है। 

महेन्द्रा सी.आई.ई. के मजदूरों का धरना जारी

       27.11.15 को महेन्द्रा सी.आई.ई. पंतनगर उधमसिंह के मजदूरों का धरना 52वें दिन भी जारी रहा। परन्तु अभी तक इनके मामले में जिला प्रशासन व कंपनी प्रबंधन किसी प्रकार की कोई बातचीत नहीं कर रहा है। मजदूर रुद्रपुर कालेज के निर्वाचित छात्रसंघ नेताओं को अपने आंदोलन के समर्थन में साथ लाये। 4.11.15 को छात्र नेताओं ने जिलाधिकारी पंकज पांडेय द्वारा अभद्र व्यवहार पर शहर के भगतसिंह चौक पर पुतला दहन किया। 5.11.15 को डी.एम. के ट्रांसफर के बाद आये नये डी.एम. से मजदूरों ने न्याय की अपील की। डी.एम. द्वारा मामले के समाधान हेतु एस.डी.एम. को नियुक्त किया। लेकिन एस.डी.एम ने भी मजदूरों को प्रबंधन की बात मानने की सलाह देकर तथा लेबर कोर्ट द्वारा ही मामले को हल करने की बात कहकर अपनी वर्गीय पक्षधरता दिखा दी।
    इस बीच पंतनगर प्लांट के मजदूरों ने किच्छा स्थित लालपुर मेन प्लांट के मजदूरों से एकता कायम की। वहां भी प्रबंधन ने एक मजदूर का अवैध तरीके से गेट बंद कर दिया था। इस एकता को देखते हुए मैनेजमेंट ने उस मजदूर को वापस ले लिया परन्तु मजदूरों ने प्रबंधन पर भरोसा करते हुए अपनी गतिविधियां कम कीं तो उक्त मजदूर का प्रोबेशन आगे बढ़ा दिया जबकि उस मजदूर को परमानेन्ट होने का लैटर देना था। 19.11.15 को लालपुर प्लांट के मजदूरों ने 9 प्रतिनिधि चुनकर 9 सूत्रीय मांगपत्र, पंतनगर प्लांट के दो निष्कासित मजदूरों की कार्यबहाली को शामिल कर, प्रबंधन को दे दिया। 20.11.15 को प्रबंधन ने 9 प्रतिनिधियों को सामुहिक व व्यक्तिगत रूप से बुलाकर मांगपत्र वापस लेने के लिए धमकाया कि तुम्हारा हाल भी पंतनगर प्लांट के मजदूरों की तरह ही कर देंगे।

     20 नवंबर से हड़ताल के नोटिस को 1 दिसंबर तक आगे बढ़ा दिया है। फिलहाल आंदोलन धरने के रूप में चल रहा है। मजदूर शिफ्ट  के हिसाब से धरने पर बैठते हैं। किसी प्रकार की गतिविधि नहीं कर हड़ताल की तारीख लगातार आगे बढ़ाने से मजदूरों में हताशा का असर दिखायी दे रहा है। आंदोलन को पंतनगर व लालपुर दोनों प्लांटो में विस्तारित करने से एक उम्मीद है, संघर्ष धरने के रूप में जारी है। पंतनगर प्लांट के मजदूरों ने दीपावली में भी धरना जारी रखा व कंपनी गेट पर दीयों में काला रंग लगाकर प्रबंधन को यह दिखाया कि आपने हमारी दीपावली काली कर दी है। विरोध स्वरूप मजदूरों ने दीपावली उपहार व मिठाई का भी बहिष्कार किया।
     पंतनगर प्लांट के 2 मजदूर 27.11.15 को मारुति के मजदूरों के कन्वेंशन के लिए गुड़गांव गये। मारुति के मजदूरों के साथ अपने दुख को साझा किया व आपसी भाईचारा कायम किया। 
     20 नवंबर से हड़ताल के नोटिस को 1 दिसंबर तक आगे बढ़ा दिया है। फिलहाल आंदोलन धरने के रूप में चल रहा है। मजदूर शिफ्ट के हिसाब से धरने पर बैठते हैं। किसी प्रकार की गतिविधि नहीं कर हड़ताल की तारीख लगातार आगे बढ़ाने से मजदूरों में हताशा का असर दिखायी दे रहा है। आंदोलन को पंतनगर व लालपुर दोनों प्लांटो में विस्तारित करने से एक उम्मीद है, संघर्ष धरने के रूप में जारी है।


जुझारू तेवरों के साथ हड़ताल से किया श्रम सुधारों का विरोध
 
    2 सितम्बर, मोदी सरकार द्वारा मजदूरों के श्रम अधिकारों पर व्यापक हमले के खिलाफ केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के द्वारा आहूत आम हड़ताल को समर्थन देते हुए और मजदूर वर्ग को इस हड़ताल को जुझारू बनाने की अपील के साथ इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने इसमें सक्रिय व पुरजोर भागीदारी की।  
हड़ताल से पूर्व इमके ने केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की घोर मजदूर विरोधी नीतियों एवं श्रम कानूनों में व्यापक मजूदर विरोधी संशोधनों का भंडा फोड़ करते हुए एक पर्चा प्रकाशित किया जिसे औद्योगिक इलाकों व मजदूर बस्तियों में हजारों की संख्या में वितरित किया गया।
नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से प्रस्तावित ‘श्रम सुधारों’ का भंडाफोड़ करतें हुए 2 सितम्बर की हड़ताल को जुझारू बनाने की अपील की गयी। 
इसी दौरान 31 अगस्त को हरिद्वार में सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र के पास एक मजदूर बस्ती में नुक्कड़ सभा के दौरान इंकलाबी मजदूर केन्द्र के महासचिव अमित कुमार सहित 2 अन्य कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर  लिया। रात भर हवालात में रखने के बाद अगले दिन उन पर फर्जी मुकदमे लगा दिये गये। इंकलाबी मजदूर केन्द्र की विभिन्न इकाइयों ने शासन-प्रशासन की इस दमनात्मक कार्यवाही के खिलाफ विभिन्न ट्रेड यूनियनों व मजदूर संगठनों के साथ मिलकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत को ज्ञापन प्रेषित किये। इसके साथ ही इमके ने मजदूरों से शासन-प्रशासन की दमनात्मक कार्यवाहियों का जवाब 2 सितम्बर की हड़ताल को और अधिक जुझारू बनाकर देने की अपील की।
2 सितम्बर को अपने कार्यक्षेत्र में इमके कार्यकर्ताओं ने आम हड़ताल को जुझारू व प्रभावी बनाने का पुरजोर प्रयास किया।
राजधानी दिल्ली में इमके कार्यकर्ताओं ने बवाना, बादली, ओखला व बदरपुर के औद्योगिक क्षेत्रों में पर्चा वितरित किया। इसके साथ ही नोएडा व ग्रेटर नोएडा के ओद्योगिक क्षेत्र में पर्चा वितरित किया गया।
2 सितम्बर को हड़ताल के दिन इमके की दिल्ली इकाई के कार्यकर्ताओं ने सुबह 7 बजे ही बादली औद्योगिक क्षेत्र के गेट न. 4 को मजदूरों के सहयोग से बंद करवाया व हड़ताल को प्रभावी बनाने का प्रयास किया। इमके कार्यकर्ताओं ने प्रातः 10 बजे तक गेट न. 4 पर सभा की व मोदी सरकार की घोर मजदूर विरोधी ‘श्रम सुधारों’ का भंडाफोड़ किया। 10 बजे के बाद बादली औद्योगिक क्षेत्र में जुलूस निकाला जिसमें सैकड़ों की संख्या में मजदूरों ने भागीदारी की। इस दौरान चालू फैक्ट्रियों को बंद करवाने का प्रयास किया। दोपहर 2 बजे जुलूस बवाना रोड पहुंचा जहां कुछ समय तक चक्का जाम किया गया।
फरीदाबाद में इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने ज्वाइंट ट्रेड यूनियन कांउसिल के साथ मिलकर 2 सितम्बर की हड़ताल को सफल बनाने के लिए औद्योगिक क्षेत्रों व मजदूर बस्तियों में सघन प्रचार अभियान चलाया।
2 सितम्बर को इमके कार्यकर्ता क्रमशः सेक्टर 24 स्थित लखानी चौक एवं ओल्ड फरीदाबाद स्थित डी.एल.एफ. चौक में एकजुट हुए और उन्होंने मजदूरों से इलाके में चालू फैक्ट्रियों को बंद करने की अपील करते हुए औद्योगिक क्षेत्र में जुलूस निकाला व चालू फैक्ट्रियों को बंद करने की कराने का प्रयास किया।
इमके के कार्यकर्ताओं ने जुलूस निकालकर न्यू इंडस्ट्रियल टाउन के सेक्टर 24, 22, 23 होते हुए बी.के. चौक पर सभी ट्रेड यूनियनों द्वारा पूर्व निर्धारित सभा में भागीदारी की। तत्पश्चात सभी ट्रेड यूनियन सेन्टरों के साथ मिलकर बी.के. चौक से अजरौंदा व वापस बी.के. चौक तक जुलूस निकाला गया। जुलूस के चलते रोड जाम हो गया।
इमके की एक अन्य टीम ने सेक्टर 4 व 6 औद्योगिक क्षेत्रों से होते हुए हार्डवेयर चौक तक जुलूस निकाल जो मैट्रो मोड़ से मुख्य जुलूस में शामिल हो गया। 
उत्तराखंड में हरिद्वार में इमके ने सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बी.एच.ई.एल. में हड़ताल को सफल बनाने मे सक्रिय भागीदारी की। सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में एक जुलूस निकाला गया जिसमें विप्रो, सत्यम, हिंदुस्तान यूनीलीवर, आई.टी.सी. एवं मुंजाल शोवा की यूनियनों सहित भारी संख्या मजदूर शामिल थे। जुलूस डी.एम. कोर्ट में जाकर एक सभा में तब्दील हो गया। 
बी.एच.ई.एल. में इमके व बी.एम.टी.यू. ने अन्य ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर हड़ताल में सक्रिय भागीदारी की। बी.एच.ई.एल. में काम पूरी तरह प्रभावित हुआ। सुबह ही मजदूरों ने सभी गेट जाम कर दिये। प्रबंधन व सुपरवाइजरों सहित 200 लोग ही मुख्य कारखाने के अन्दर जा पाये। एक प्रबंधक के साथ मजदूरों की झड़प भी हुई। शाम को अन्दर के लोगों को बाहर निकालने के लिए 3 बार लाठी चार्ज किया जिसमें कई मजदूरों को चोटे आयीं। लाठी चार्ज के विरोध में अगले दिन 3 सितम्बर को मजदूरों ने काफी देर तक टूल डाउन किया। प्रबंधन द्वारा 2 सितम्बर की हड़ताल के संबंध में 8 मजदूरों को निलंबित कर दिया। प्रबंधन की इस कार्यवाही को लेकर मजदूरों में अक्रोश व्याप्त है। 
उत्तराखंड के रुद्रपुर में सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में हड़ताल काफी प्रभावशाली रही। बी.एम.एस. द्वारा हड़ताल से अलग हट जाने का विरोध करते हुए बी.एम.एस. संबद्ध ब्रिटानिया की यूनियन ने हड़ताल में भागीदारी की। सिडकुल के लगभग 10 कारखानों में हड़ताल पूरी तरह सफल रही जिसमें टाटा मोटर्स, नेस्ले जैसी बड़ी कंपनियों की यूनियनें भी शामिल रहीं। हड़ताली श्रमिक व यूनियनों ने स्थानीय अंबेडकर पार्क में इकट्ठा होकर शहर में जुलूस निकाला। हड़ताल में बैंक, बीमा, रोडवेज, बिजली व एफ.सी.आई. की यूनियनें भी शामिल रहीं। जुलूस नगर के मुख्य मार्गों से होते हुए रोडवेज स्टेशन पहुंचा जहां हड़ताल में शामिल रोडवेज कर्मचारियों से एकजुटता दिखाते हुए सभा की गयी। सभा में हरिद्वार में इमके कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का सभी यूनियनों ने पुरजोर विरोध किया। हड़ताल से पूर्व हड़ताल के प्रचार के लिए इमके की पहलकदमी पर तीन दिन जुलूस निकाला गया व हजारों की संख्या में पर्चे वितरित किये गये। 
उत्तराखंड के रामनगर में 2 सितम्बर को विभिन्न जनसंगठनों व कर्मचारी संगठनों द्वारा शहर में एक जुलूस निकाला। 2 सितम्बर को सुबह सभी संगठनों के लोग स्थानीय सिविल हास्पीटल पर जमा हुए। इनमें आशा कार्यकर्ता एवं वन निगम के स्केलर संघ के कर्मचारी, पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र व परिवर्तनकामी छात्र संगठन के नेतृत्वकारी व सदस्य शामिल थे। जुलूस स्थानीय एस.डी.एम. कोर्ट पहुंचकर एक सभा में तबदील हो गया। सभा के अंत में एस.डी.एम. को एक ज्ञापन सौंपा गया जिसमें हरिद्वार में इमके कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का विरोध किया गया। 
इसी क्रम में उत्तराखंड के हल्द्वानी, काशीपुर, लालकुआं, पंतनगर व खटीमा में इस अवसर पर पर्चा वितरित कर मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित श्रम सुधारों व मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीति का भंडाफोड़ किया गया। 
उत्तर प्रदेश के बरेली में इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा बरेली ट्रेड यूनियन फेडरेशन (बी.टी.यू.एफ.) के साथ मिलकर संयुक्त पर्चा व पोस्टर निकाला गया। 
2 सितम्बर को इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा स्थानीय गांधी मैदान में मजदूरों की एक सभा आयोजित की गयी। सभा में श्रम कानूनों में संशोधनों की पुरजोर खिलाफत की गयीं। सभा के उपरान्त एक रैली निकाली गयी जो आयकर भवन पहुंचकर बरेली ट्रेड यूनियन फेडरेशन द्वारा आयोजित संयुक्त कार्यक्रम में सम्मिलित हो गयी। इस कार्यक्रम में बैंक, बीमा, पी.डब्लू.डी., बी.एस.एन.एल, बिजली विभाग, जल निगम एवं स्वास्थ्य विभाग आदि के कर्मचारी, दुकान मजदूर एवं निर्माण मजदूर एवं अस्पताल मजदूर सहित सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल थे। आयकर भवन पर आयोजित सभा में विभिन्न वक्ताओं ने मोदी सरकार की घोर मजदूर विरोधी नीतियों एवं  सांप्रदायिक फासीवादी नीतियों की कड़ी भर्त्स्ना की। सभा के पश्चात स्थानीय कलेक्ट्रेट तक जुलूस निकाला गया। 
उत्तर प्रदेश के मऊ में 2 सितम्बर को पर्चा वितरण के साथ शहर से स्थानीय कलेक्ट्रेट तक एक जुलूस निकाला गया जिसमें इंकलाबी मजदूर केन्द्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, विभिन्न ट्रेड यूनियन केन्द्रों के कार्यकर्ताओं के अलावा आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, बैंक व बीमा यूनियनों के कर्मचारी सहित सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल थे। 

रंग लाया आटोलाइन के मजदूरों का संघर्ष
14 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली
       11अगस्त, रुद्रपुर (उत्तराखंड), 29 जून से धरने पर बैठे आटोलाइन इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मजदूरों ने 10 अगस्त को देर रात अपने 14 निलंबित साथियों की कार्यबहाली के लिए प्रबंधन को मजबूर कर शानदार जीत हासिल की। आटोलाइन के मजदूरों की इस जीत ने औद्योगिक आस्थान सिडकुल, पंतनगर के मजदूरों में एक नये जोश एवं संघर्ष के लिए प्रेरणा का संचार किया है। 
ज्ञात हो कि आटोलाइन के मजदूरों ने इसी वर्ष अप्रैल माह में अपनी यूनियन का पंजीकरण कराया था और अप्रैल के अंत में अपनी मांगों के संबंध में एक मांगपत्र प्रबंधन को सौंपा था। पहले से यूनियन पंजीकरण से चिढ़ा प्रबंधन मांगपत्र देने के बाद और अधिक बौखला गया तथा यूनियन तोड़ने और मजदूरों को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा। 
जून के प्रथम सप्ताह में प्रबंधन ने यूनियन के अध्यक्ष, महामंत्री, कोषाध्यक्ष सहित 13 मजदूरों को गैरकानूनी तरीके से मिथ्या आरोप लगाकर निलंबित कर दिया।
मजदूरों ने इस बात की शिकायत श्रम विभाग, जिला प्रशासन एवं शासन से की। इसके बाद सहायक श्रमायुक्त की मध्यस्थता में त्रिपक्षीय वार्ताओं का दौर चला। बातचीत के प्रारंभ से ही प्रबंधन 13 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली से इंकार करता रहा। प्रबंधन जहां 13 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली के संबंध में ‘घरेलु जांच’ की बात करता रहा वहीं वेतनवृद्धि सहित मांगपत्र की मांगो के संबंध में अपनी खराब स्थिति का रोना रोता रहा। 
    प्रंबंधन के अड़ियल रुख एवं श्रम विभाग सहित शासन-प्रशासन के द्वारा प्रबंधन को मिल रही शह से आजिज आकर निलंबित मजदूरों ने 29 जून को जिलाधिकारी कार्यालय पर अनिश्चित काल का धरना शुरु कर दिया। धरने पर बैठे निलंबित मजदूरों के समर्थन में बाकी मजदूर अपनी शिफ्ट कें हिसाब से धरनास्थल पर आते थे। फैक्ट्री के भीतर मजदूरों ने अपने निलंबित साथियों की कार्यबहाली एवं मांगपत्र पर समझौते के लिए शान्तिपूर्वक तरीके से मौनव्रत व काली पट्टी बांधकर विरोध करना शुरु कर दिया। इस बीच प्रबंधंन ने मजदूरों की एकता को तोड़ने के लिए काफी प्रयास किये।
निलंबित मजदूरों को आतंकित करने के लिए उनको कार्यस्थल से हटाकर गेट पर बैठाया। कई मजदूरों व सुपरवाइजरों को प्रबंधन द्वारा नोटिस जारी किये गये। इसके प्रयुत्तर में मजदूरों ने हड़ताल का नोटिस दे दिया तथा उसे लगातार आगे बढ़ाते रहे।
     इंकालाबी मजदूर केन्द्र ने इस दौरान मजदूरों के इस आंदेालन में भागीदारी करते हुए नेतृत्व को दिशा निर्देश देने का काम किया व प्रबंधन की उकसावे पूर्ण कार्यवाहियों के प्रति मजदूरों को सचेत करते हुए उन्हें धैर्यपूर्वक अपना आंदोलन चलाने के लिए प्रोत्साहित किया। ए.एल.सी. कार्यालय कई दौर की वार्ताओं के बेनतीजा रहने के बाद ए.एल.सी. ने 28 जुलाई को वार्ता की अंतिम तिथि तय की तथा इसके बाद मामले को उपश्रमायुक्त (डी.एल.सी.), कुमाऊं परिक्षेत्र, हल्द्वानी भेजने की बात की।
     28 जुलाई को वार्ता से पहले प्रबंधन ने एक और श्रमिक को निलंबित कर दिया जो कि यू.पी./उत्तराखंड आई. डी. 1947 की धारा (6-E) का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन था। वार्ता में प्रबंधन ने अपना अड़ियल रुख अपनाते हुए निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली से स्पष्ट मना कर दिया। ए.एल.सी. ने वार्ता की अगली तिथि देने से मना कर दिया और मामला उपश्रमायुक्त कार्यालय हल्द्वानी रेफर करने की बात की। इस बीच मजदूरों ने कांग्रेस के एक स्थानीय नेता के माध्यम से जिलाधिकारी (डी.एम.) से बात कर ए.एल.सी. के यहां ही वार्ता की अगली तारीख 10 अगस्त तय कर दी। इसके साथ ही मजदूरों ने डी.एम. से अनुरोध किया कि वार्ता उनकी मध्यस्थता में हो। डी.एम. ने एस.डी.एम. (रुद्रपुर) को यह मामला देखने का निर्देश दिया। एस.डी.एम. की मध्यस्थता में 10 अगस्त की वार्ता ए.एल.सी. कार्यालय की बजाय एस.डी.एम. कार्यालय में हुयी। 
    इस बीच प्रबंधन द्वारा यूनियन के महामंत्री को एक नोटिस जारी किया गया जिसमें महामंत्री के द्वारा नौकरी हेतु आई.टी.आई. का जाली प्रमाण पत्र देने और प्रबंधन द्वारा उसकी जांच कर लेने की बात करते हुए इस पर महामंत्री से स्पष्टीकरण की बात की गयी थी और जालसाजी  आरोप में मुकदमा कर जेल भेजने की बात कर डर-भय और आतंक  माहौल कायम किया। मजदूरों के बीच इससे काफी हलचल मच गयी। इमके कार्यकर्ताओं ने मजदूरों को समझाते हुए नोटिस का जवाब तैयार कर दिया। इस बीच यूनियन के अध्यक्ष ने प्रबंधन के दबाव में आकर यूनियन के अध्यक्ष पद व यूनियन सदस्यता से इस्तीफा दे दिया जिससे मजदूरों में अफरा-तफरी मच गयी। अध्यक्ष द्वारा घरेलु समस्या का हवाला देते हुए बिना यूनियन कैबिनेट और आम सभा में चर्चा किये अपना इस्तीफा डाक द्वारा कंपनी को भेज दिया था। अध्यक्ष के इस तरह के पलायन से मजदूरों की बीच अफरा-तफरी को इमके द्वारा रोका गया तथा उन्हें संगठन पर भरोसा करने की अपील करते हुए जीत का भरोसा दिलाया। इमके ने आम सभा से कुछ नये सदस्यों को कार्यकारिणी में चुन लेने का सुझाव दिया जिसे यूनियन ने मान लिया। 
10 अगस्त की वार्ता हेतु मजदूरों ने बागेश्वर के विधायक ललित फर्सवाण जो कि मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के बतौर आये थे, को बुला लिया। साथ ही बागेश्वर के जिला पंचायत अध्यक्ष व इंटक के नेताओं को भी मजदूरों ने बुला लिया। इमके अध्यक्ष कैलाश भट्ट को भी मजदूर वार्ता में ले गये। एस.डी..एम. की मध्यस्थता में वार्ता के दौरान प्रबंधन अपना वही पुराना राग अलापता रहा और किसी तरह का गैरकानूनी काम करने से इंकार करता रहा।
इस पर इमके अध्यक्ष द्वारा ठेका मजदूरों की दुर्घटनाओं में  कटी उंगलियों के कागजात एवं ठेकेदारों के लाइसेंसो की प्रतियां एस.डी..एम. के सामने प्रस्तुत की और कहा बताया कि लाइसेंस लोडिंग-अनलोडिंग को लेने के बाद गैरकानूनी तरीके से मशीन पर काम करवाया जाता है और दबाव बनाया कि एस.डी.एम. व विधायक को फैक्ट्री में छापा मारकर स्थिति का जायजा लेना चाहिए। इस पर एस.डी.एम., विधायक समेत सभी लोग फैक्ट्री पहुंचे । प्रबंधन ने चालाकी दिखाते हुए विधायक,एस.डी.एम. व ए.एल.सी. के पहुंचने से पूर्व ही अपनी तीनों इकाइयों में उत्पादन बंद करवा दिया। लेकिन ठेका मजदूर अंदर ही थे। 
शाम करीब 5 बजे फैक्ट्री गेट पर पहंचते ही एस.डी.एम. व विधायक ने रजिस्टर दिखाने को कहा तो प्रबंधन ने रजिस्टर छिपा दिये। प्रबंधन की इस धूर्तता का विरोध करते हुए जनरल शिफ्ट के मजदूर गेट के अंदर ही धरने पर बैठ गये जबकि बाकी मजदूर गेट के बाहर धरने पर बैठ गये। बिना रजिस्टर में ‘आउट’दर्ज किये अंदर के मजदूर बाहर नहीं आ सकते थे। इस दौरान एस.डी.एम. व विधायक ने ए.एल.सी. के साथ में फैक्ट्री की जांच कर अनियमित्ताओं को पाया तथा इसकी रिपार्ट ए.एल.सी. को बनाने का निर्देश दिया। इसके साथ ही टैक्स विभाग को भी मौके पर बुला लिया गया। शाम करीब 8 बजे रजिस्टर मिले तब अंदर के मजदूर बाहर आये और बाहर गेट पर धरना दे रहे मजदूरों के साथ शामिल हो गये। इस दौरान गेट पर पुलिस बल तैनात रहा। 
प्रबंधन विधायक पर दबाव बनाने के लिए एक स्थानीय कांग्रेसी नेता को बुला लाया लेकिन मजदूरों की व्यापक एकता व आक्रोश के चलते उसकी मंशा पूरी नहीं हुयी।
पुनः वार्ता के दौरान प्रबंधन एस.डी.एम. की बातों पर चुप्पी लगाये रहा और 14 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली से इंकार करता रहा। एस.एस.पी. रुद्रपुर भी प्रबंधन की भाषा बोल रहे थे। एस.डी.एम. ने अंततः फैक्ट्री सीज करने की बात की। इस पर इमके कार्यकर्ताओं ने मजदूर नेतृत्व को समझाया कि फैक्ट्री सीज करने से मजदूरों को कोई फायदा नहीं होगा। मजदूरों को 14 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली पर जोर लगाना चाहिए।
प्रबंधन के अड़ियल रुख को देखकर पहले एस.डी.एम. राजस्व व एस.एस.पी. उधमसिंह नगर फैक्ट्री पहुंचे। मजदूरों की संगठित ताकत एवं प्रबंधन के गैरकानूनी कृत्यों के खुले सबूतों के दबाव में कांग्रेस के स्थानीय दलाल नेता को भी प्रबंधन से 14 मजदूरों की कार्यबहाली करने के लिए कहना पड़ा। प्रबंधन को आखिरकार झुकते हुए 14 निलंबित मजदूरों को वापस काम पर रखने के लिए मंजूर होना पड़ा। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा प्रबंधन द्वारा भविष्य मंे मजदूरों के खिलाफ कोई कार्यवाही न करने की बात पर मजदूरों ने भरोसा करते हुए घरेलु जांच वापसी की लिखित आष्वासन लेने में चूक कर दी।

11 अगस्त को सभी मजदूर फैक्ट्री के अंदर लिए गये। इस्तीफा दे चुके अध्यक्ष भी इसमें शामिल थे। स्थानीय कांग्रेसी नेता द्वारा प्रबंधन को कुछ टिप्स दिये गये व मजदूरों को धमकाया गया लेकिन मजदूरों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अपनी एकता व संघर्ष पर उनका भरोसा मजबूत हुआ हैं। इस तरह आटोलाइन के मजदूरों की इस जीत ने सिडकुल में मजदूर एक नयी ऊर्जा देने का काम किया है। 

पाइप लाइन बिछाने व पेयजल लिए प्रदर्शन 
         21 जुलाई, दिल्ली, झुग्गी बस्ती शाहबाद डेरी के निवासियों ने बस्ती में पानी की पाइप लाइन बिछाने एवं पेयजल की व्यवस्था सुुनिश्चित करने की मांग को लेकर मजदूर एकता समिति, इमके एवं प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र के नेतृत्व में स्थानीय विधायक के आवास पर प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में महिलाओं की काफी भागीदारी रही। प्रदर्शनकारियों ने विधायक पर वादा खिलाफी करने एवं झुग्गी बस्ती के लोगों की समस्याओं की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। महिलाओं एवं मजदूरों की विधायक से लगभग एक घंटा नोंक झोंक हुई।
गौरतलब है कि इससे पूर्व 20 जून को भी शाहबाद डेरी झुग्गी बस्ती के निवासियों ने भारी संख्या में विधायक निवास पहुंचकर पाइप लाइन बिछाने के संबंध में एक ज्ञापन दिया था। विधायक की अनुपस्थिति में विधायक प्रतिनिधि ने एक माह का समय मांगा था जिसमें उन्होंने पाइप लाइन की समस्या का समाधान करने का वादा किया था। 21 जुलाई को प्रदर्शन एक माह बीत जाने के बाद भी पाइप लाइन की समस्या पर कोई ठोस काम न होने के चलते किया गया।
       काफी नोंकझोंक व बहस के बाद विधायक ने अपनी सीमाओं का हवाला देते हुए अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले कामों को पूरा करने का वचन दिया और डेड़ माह में बजट आने पर पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा करने का आश्वासन दिया। विधायक ने संबधिंत जूनियन इंजीनियर व अन्य अधिकारियों को भी इसके संबंध में निर्देश दिये।

निश्चित समय में काम पूरा न होने पर एक बार फिर प्रदर्शन करने की चेतावनी के साथ प्रदर्शन खत्म हुआ।

दलितों आदिवासियों के जबरन विस्थापन व बर्बर दमन के खिलाफ उड़ीसा भवन पर प्रदर्शन

       दिल्ली, 7 जुलाई, विगत 6 जून 2015 को उड़ीसा के पुरी जिले की ब्रहम गिरी तहसील के अंतर्गत सिपासा रुबाली मौजा के नुवा पट्टना गांव में गांव व जंगल को तहस नहस कर हजारों एकड़ जमीन को काॅरपोरेट घरानों व देशी-विदेशी पूंजी को भेंट देने व हजारों दलितों व आदिवासियों को उजाड़ने के कार्यक्रम का विरोध करने पर स्थानीय पुलिस द्वारा स्थानीय निवासियों का बर्बर दमन करने तथा 19 महिलाओं सहित 28 लोगों की गिरफ्तारी के खिलाफ विभिन्न मजदूर एवं जनवादी संगठनों द्वारा उड़ीसा भवन पर एक प्रदर्शन किया गया।
इस प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा दबाव व गिरफ्तारी की धमकी देने के बाद भी प्रदर्शनकारियों ने यह कार्यक्रम किया। विभिन्न वक्ताओं ने उच्च न्यायालय द्वारा पहले से सीलिंग एक्ट के दायरे से बाहर घोषित इस फाजिल जमीन को भूमिहीनों में बांट देने के निर्देश के बदले उड़ीसा सरकार इस जमीन पर रह रहे हजारों दलित आदिवासी जनता को बेदखल कर यह जमीन उद्योगपतियों व बिल्डरों को देने की नीति की सख्त आलोचना की तथा उद्योग व पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर दलितों-आदिवासियों को उजाड़ने के खिलाफ चल रहे संघर्ष के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर की।
वक्ताओं ने गिरफ्तार 28 लोगों की तुरंत रिहाई करने, जनता का बर्बर दमन करने वाले पुलिस अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई करने एवं भूमिहीनों व दलितों के नाम पर भूमि का पट्टा करने की मांग की।
इस प्रदर्शन मे ए.आई.एफ.टी.(न्यू), इंकलाबी मजदूर केन्द्र, मजदूर एकता केन्द्र, के.वाई.एस., पिपुल्स फ्रंट, पी.डी.एफ.आई., लोक राज संगठन, मोर्चा पत्रिका,शहीद भगतसिंह छात्र नौजवान सभा आदि संगठन मौजूद थे।

बुजुर्ग की मौत के बाद जलभराव के खिलाफ फूटा जनता का आक्रोश
राष्ट्रीय राजमार्ग किया जाम
इमके व प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र के नेतृत्व में धरना शुरु

2 जुलाई, बरेली (उ.प्र.), शहर के बंशी नंगला इलाके में सड़क पर भरे पानी में एक साइकिल सवार बुजुर्ग की गिरकर मौत होने के बाद स्थानीय जनता का लंबे समय से संचित आक्रोश फूट पड़ा। आक्रोशित जनता ने सिटी शमशान के पास राष्ट्रीय राजमार्ग जाम कर दिया। भारी संख्या में पुलिस बल ने काफी मशक्कत के बाद जबरन जाम खुलवाया। इसके बाद इंकलाबी मजदूर केन्द्र व प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र के नेतृत्व में घटना स्थल पर धरना शुरु कर दिया।
गौरतलब है कि बंशी नंगला के निवासी काफी लंबे समय से सड़क निर्माण व नाली की मांग को लेकर संघर्षरत हैं। बंशी नंगला से सिटी शमशान जाने की मुख्य सड़क व नई बस्ती में गालियों व नालियों की हालत बहुत खराब है। इस समस्या को लेकर स्थानीय निवासियों ने नगर निगम से लेकर स्थानीय विधायक (बरेली कैंट क्षेत्र) को भी अवगत कराया लेकिन किसी ने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। इमके के नेतृत्व में इस समस्या को लेकर नगर निगम पर स्थानीय निवासियों ने पिछले माह नगर निगम पर प्रदर्शन भी किया था। नगर निगम व शासन प्रशासन की बेरुखी के चलते एक बुजुर्ग को अपनी जान गंवानी पड़ी।
क्षेत्र की जनता अब इस समस्या को लेकर आर-पार के संघर्ष के मूड में है। 2 जुलाई को धरने की शुरुआत करते हुए स्थानीय होली पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्या सीता मौर्या ने कहा कि मांग पूरी होने तक यह धरना जारी रहेगा। धरने में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र व परितर्वनकामी छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं के अलावा स्थानीय जनता भी भागीदारी कर रही है।


आटोलाइन एवं मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों का साझा संघर्ष
    29 जून, रुद्रपुर, उधमसिंह नगर (उत्तराखंड), औद्योगिक अस्थान सिडकुल में मित्तर फास्टनर्स एवं आटोलाइन के मजदूरों का साझा प्रदर्शन व धरना कलेक्ट्रेट पर शुरु हो गया है। सिडकुल की इन दो कंपनियों के एकजुट संघर्ष से श्रम विभाग व शासन-प्रशासन की बेचैनी बढ़ गयी है।
      गौरतलब है कि मित्तर फास्टनर्स के मजदूर विगत 16 जून से अपने निलंबित एवं निष्कासित मजदूरों की कार्यबहाली को लेकर हड़ताल पर  हैं और रुद्रपुर कलेक्ट्रेट में धरने पर बैठे हैं।
     29 जून को ए.डी.एम. की मध्यस्थता में हुई त्रिपक्षीय वार्ता में यह स्पष्ट हो गया कि ए.डी.एम., ए.एल.सी. एवं कंपनी प्रबंधन के सुर आपस में मिले हुये हैं। वार्ता में शामिल कांग्रेसी नेता भी प्रकारान्तर से भरपूर साथ दे रहे थे। वार्ता में सभी इस बात पर सहमत थे कि 2 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली कर दी जाय परन्तु निष्कासित मजदूर, जिनका मामला श्रम न्यायालय में चला गया है उनकी कार्यबहाली न कर उनका भविष्य ‘श्रम न्यायालय' पर छोड़ दिया जाय। कंपनी प्रबंधन 2 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली भी इस शर्त के साथ करने की बात कर रहा था कि उनके खिलाफ घरेलु जांच जारी रहेगी।
        इंकलाबी मजदूर केन्द्र, जो मित्तर फास्टेनर्स के मजदूरों के संघर्ष में शुरु से सहयोग दे रहा है, ने मजदूरों को कंपनी प्रबंधन व श्रम विभाग के गठजोड़ के खिलाफ आगाह किया। इमके कार्यकर्ताओं ने मजदूरों को समझाया कि कंपनी प्रबंधन द्वारा संराधन वार्ताओं के दौरान मजदूरों को निष्कासित करने की कार्यवाही की वैधानिकता पर निर्णय देने के लिए ए.एल.सी. ने श्रम विभाग से जानकारी मांगी है। जानकारी की बातों में शामिल है कि संराधन वार्ता के दौरान मजदूरों के निष्कासन की प्रक्रिया उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 6E का उल्लंघन है या नहीं ? ऐसे में कोर्ट को केवल इस पर निर्णय देना है कि प्रबंधन द्वारा 6E का उल्लंघन किया गया है या नहीं, न कि मजदूरों के निष्कासन एवं मजदूरों पर लगे आरोपों पर। इसलिए वार्ता के दौरान मजदूर प्रतिनिधि अवैध निष्कासन का मुद्दा उठा सकते हैं। इसके साथ ही इमके कार्यकर्ताओं ने मजदूरों को यह समझाया कि हड़ताल के दौरान अवैध रूप से ठेका मजदूरों द्वारा कंपनी चलाये जाने के खिलाफ ए.एल.सी. द्वारा कंपनी को नोटिस देने के बावजूद कंपनी द्वारा ठेका मजदूरों से उत्पादन कराये जाने की शिकायत कर कंपनी में उत्पादन बंद करने की मांग को मुख्य मुद्दा बनाया जाय तथा कृष्णपाल नामक मजदूर की पिटाई करने वाले प्रबंधकों की गिरक्तारी की मांग की जाय। इसके साथ इमके द्वारा मजदूरों को यूनियन पंजीकरण की फाइल तुरंत लगाने की सलाह दी।
      29 जून से मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों के साथ कलेक्ट्रेट पर संयुक्त तौर पर धरने पर बैठने वाले आटोलाइन कंपनी के मजदूरों ने प्रबंधन के छल एवं वादाखिलाफी के चलते अंततः निर्णायक संघर्ष के लिए कमर कस ली है। इससे पूर्व आटोलाइन के समस्त मजदूरों ने 28 जून से कार्य के दौरान काला फीता बांधकर मौन धारण कर एवं मांगो के समर्थन में चेस्ट कार्ड लगाकर अपने संघर्ष को आगे बढ़ाया है। 29 जून को अपने 13 निलंबित पदाधिकारियों एवं सदस्यों की कार्यबहाली एवं मांगपत्र पर सुनवायी करने की मांग को लेकर यूनियन द्वारा प्रबंधन को हड़ताल का पूर्व नोटिस प्रेषित कर दिया गया है। अभी मजदूर फैक्टरी के अंदर व बाहर दोनों जगह सांकेतिक संघर्ष जारी रखे हैं। 13 यूनियन पदाधिकारियों एवं सदस्यों के अलावा शिफ्ट के अनुरुप एवं डयूटी छूटने के बाद बाद मजदूर इस धरने में शामिल होते हैं। फिलहाल आटोलाइन के मजदूरों का संघर्ष आगे बढ़ता प्रतीत हो रहा है। धरने पर बैठे दोनों कंपनियों के मजदूर एक दूसरे से प्रेरणा व ऊर्जा ग्रहण कर रहे हैं। सिडकुल पंतनगर में मजदूर आंदोलनों के लिए यह काफी सकारात्मक है।

जारी है मित्तर फास्टेनर्स के मजदूरों का संघर्ष
      27 जून सिडकुल, पंतनगर (उधमसिंह नगर), मित्तर फास्टेनर्स के मजदूरों की हड़ताल एवं डी.एम. कोर्ट पर धरना जारी है। 26 जून को सहायक श्रम आयुक्त (ए.एल.सी.) कार्यालय पर त्रिपक्षीय वार्ता तय थी लेकिन प्रबंधन वार्ता में नहीं पहुंचा।
     प्रबंधन के इस रुख से अक्रोशित मजदूरों ने ए.डी.एम. से मुलाकात कर प्रबंधन की तानाशाही पर रोष प्रकट किया एवं ए.डी.एम. पर प्रबंधन को वार्ता की मेज पर लाने का आग्रह किया। ए.डी.एम. ने आक्रोशित मजदूरों से वादा किया कि वे अगले दिन (27 जून) को प्रबंधन को अपने कार्यालय पर बुलाकर त्रिपीक्ष वार्ता करायेंगीं।
      27 जून को मजदूर ए.डी.एम. कार्यालय पर इकट्ठा हुए लेकिन ए.डी.एम. महोदया वहां से नदारद थीं। मजदूरों ने फोन से उन्हें संपर्क किया तो उन्होंने 29 जून को वार्ता की तिथि तय की।
      फिलहाल मित्तर फास्टेनर्स के मजदूरों की हड़ताल एवं डी.एम. कोर्ट पर उनका धरना जारी है।
प्रबंधन की वादाखिलाफी के चलते आटोलाइन के मजदूरों ने वापस लिया आंदोलन स्थगन का फैसला, संघर्ष तेज करने का लिया निर्णय

     27 जून, सिडकुल पंतनगर, उधमसिंह नगर, उत्तराखंड - अपने 13 साथियों के निलंबन के खिलाफ आटोलाइन के मजदूरों का संघर्ष जारी है।
    इस बीच 27 जून को सहायक श्रम आयुक्त (ए.एल.सी.) रुद्रपुर की मध्यस्थता में हुई त्रिपक्षीय वार्ता में कंपनी प्रबंधन 15 जून की वार्ता के अपने पिछले आश्वासन से मुकर गया और मजदूरों से आंदोलन स्थगित रखने एवं अधिक समय देने की मांग करने लगा।
     प्रबंधन के इस छलपूर्ण व्यवहार को देखते हुए यूनियन प्रबंधन पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए 28 जून से पुनः कंपनी के सभी मजदूरों ने कार्य के दौरान कालाफीता बांधकर एवं मौन व्रत धारण कर आंदोलन पुनः शुरु कर दिया है। यूनियन ने निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली एवं मांगपत्र पर सुनवायी होने तक कलेक्ट्रेट परिसर (डी.एम.कोर्ट) में अनिश्चित कालीन धरना देने का निर्णय लिया है और इस संबंध में 27 जून को ही जिला प्रशासन को पत्र द्वारा अवगत करा दिया गया है।
       मजूदरों की आम सभा में सर्वसम्मति से 29 जून से कलेक्ट्रेट परिसर में धरना देने, 29 जून को हड़ताल का नोटिस देने एवं निलंबित मजदूरों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए सभी मजदूरों द्वारा एक माह में एक दिन का वेतन निलंबित मजदूरों को देने का प्रस्ताव पारित किया।
      मजदूर आंदोलन को व्यापक बनाने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। ए.एल.सी. के यहां अगली त्रिपक्षीय वार्ता 6 जुलाई को नियत है।

पाइप लाइन बिछाने व नाले की सफाई को लेकर विधायक से किया जवाब तलब, सैकड़ों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन सौंपा
      दिल्ली 20 जून, एक मजदूर बस्ती शाहबाद डेरी में पीने के पानी की आपूर्ति हेतु, पाइप लाइन बिछाने व बस्ती में बड़े नाले व नालियों की सफाई हेतु दर्जनों लोगों ने मजदूर एकता समिति व प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र के नेतृत्व में स्थानीय विधायक (बवाना क्षेत्र) वेद प्रकाश के घर पर जाकर उनसे सवाल जवाब किये एवं अपनी मांगों के संबंध में सैकड़ों लोगों के हस्ताक्षरयुक्त एक ज्ञापन सौंपा।
      गौरतलब है कि शाहबाद डेरी में पानी व सफाई की समस्या से यहां के निवासी त्रस्त हैं। बस्ती के लोग पेयजल के लिए टैंकर पर ही निर्भर हैं जिस पर पानी भरने के लिए रोज भंयकर मारामारी रहती है। टैंकर आने का कोई निश्चित समय नहीं है। चूंकि बस्ती में अधिकांश मजदूर व स्वव्यवसाय करने वाले कारीगर व छोटा-मोटा व्यवसाय करने वाले लोग रहते हैं और महिलायें भारी संख्या में फैक्ट्रियों से लेेकर घरों में काम करने जाती हैं। अतः वे अधिकांशतः टैंकर से पानी नहीं भर पाते हैं। उनको कभी-कभी पानी भरने के लिए छुट्टी लेनी पड़ती है। इसी तरह बस्ती में बड़े नाले के गाद व गंदगी से पट जाने के कारण नालियां जाम हो गयी हैं व गलियों का गंदा पानी यहां वहां जमा हो रहा है। इस संबंध में विधायक से पहले भी मजदूर एकता समिति के सदस्यों ने मुलाकात की थी और उन्होंने समस्या को हल करने का वायदा किया था। लेकिन कुछ दिखावटी व सतही तौर पर नालियों से गाद निकालवाने के अलावा कुछ नहीं किया। बड़े नाले की सफाई न होने के चलते नालियों का निकास बंद ही रहा। बहरहाल विधायक ने 15 जुलाई तक समय मांगा है। मजदूर एकता समिति ने एलान किया है कि 15 जुलाई तक मांग पूरी न होने पर विधायक आवास पर एक बड़ा प्रदर्शन किया जायेगा।  

निष्कासित, निलंबित साथियों की बहाली को लेकर मित्तर फास्टनर्स के मजदूर हड़ताल पर 
प्रशासन द्वारा पुलिसिया खौफ कायम करने के प्रयासों के बीच वार्ता
        उत्तराखंड के सिडकुल औद्योगिक आस्थान पंतनगर ( ऊधमसिंह नगर ) स्थित मित्तर फास्टनर्स कंपनी के मजदूर अपने 4 निष्कासित एवं 2 निलंबित मजदूर नेताओं की कार्यबहाली को लेकर 16 जून से हड़ताल पर चले गये हैं। सभी मजदूर अपने परिजनों (महिलाओं एवं बच्चों) समेत कलेक्ट्रेट पर धरने पर बैठे हैं।
मजदूरों की हड़ताल शुरु होते ही प्रबंधन ने ठेके के तहत मजदूरों की नई भर्ती कर फैक्टरी चलाने की कोशिश की। 17 जून को मजदूरों और उनके संघर्ष में शामिल इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने इसका कड़ा विरोध करते हुए कारखाना निरीक्षक, सहायक श्रम आयुक्त (ए.एल.सी.) एवं श्रम उपायुक्त (डी.एल.सी.) को शिकायत पत्र सौंपा। शिकायत पत्र में कंपनी प्रबंधकों पर खतरनाक मशीनों को अप्रशिक्षित मजदूरों से चलवाकर मजदूरों की जान से खिलवाड़ करने का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी गयी कि यदि कंपनी में किसी मजदूर को किसी भी तरह से जान-माॅल का कोई नुकसान पहुंचा तो उसका जिम्मेदार प्रबंधन होगा।
      इस दबाव के असर से अगले दिन 18 जून को सहायक श्रम आयुक्त ने कंपनी में छापा मारा और तीन मामलों क्रमशः (1) अप्रशिक्षित ठेका चलाने (2) कारखाने में महिला यौन उत्पीड़न शिकायत कमेटी गठित न करने एवं (3) मजदूरों की नियमित उपस्थिति दर्ज न करने - में प्रबंधन को कारण बताओ नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब देने का समय दिया। इस तरह ए.एल.सी. ने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। ए.एल.सी. के फैक्टरी गेट से बाहर निकलते ही प्रबंधन द्वारा मजदूरों से फिर से मशीनें चलवाई जाने लगीं जो खबर लिखे जाने तक जारी है। ए.एल.सी. के छापे व कारण बताओ नोटिस का प्रबंधन पर कोई असर न हुआ बल्कि उसके हौसले और बुलंद हो गये। जाहिर है कि अंदरखाने ए.एल.सी. द्वारा प्रबंधन को अभयदान दे दिया गया।
      प्रबंधन व श्रम विभाग की मिली-भगत को जानकर मजदूरों का आक्रोश बढ़ गया। 19 जून को मजदूरों के परिवारों की महिलाएं ए.एल.सी. आॅफिस पर अपना आक्रोश व्यक्त करने पहुंची। संयोगवश या सचेतन ए.एल.सी. महोदय वहां नहीं थे।
       ए.एल.सी. की अनुपस्थिति में महिलाओं ने ए.एल.सी. के पेशकार को बंधक बनाकर खूब खरी-खोटी सुनाई। काफी इंतजार के बाद जब ए.एल.सी. नहीं पहुंचे तो महिलाएं फिर कलेक्ट्रेट वापस आ गयीं। अगले दिन महिलाओं ने फिर ए.एल.सी. कार्यालय पर धावा बोलते हुए ए.एल.सी. के केबिन में घुसकर ए.एल.सी. को बंधक बना लिया। महिलाओं ने ए.एल.सी. पर मालिकों की दलाली करने व मजदूरों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाते हुए खूब खरी-खोटी सुनायी। महिलाओं के तेवर देखकर ए.एल.सी. के होश फाख्ता हो गये।
      इस बीच 22 व 24 जून को मजदूरों व प्रबंधन के बीच ए.एल.सी. की मध्यस्थता में दो चक्र की वार्ताएं हो गयी हैं। इन वार्ताओं में प्रबंधन द्वारा 2 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली की बात की गयी परन्तु मजदूर अपने सभी साथियों की कार्यबहाली की मांग पर दृढ़ता पूर्वक डटे हुए हैं। 26 जून को वार्ता की अगली तारीख तय है।
       इस आंदोलन के दौरान मजदूरों के परिवारों की महिलाओं ने जिस तरह के जुझारू तेवरों का प्रदर्शन किया वह प्रशासन व श्रम विभाग के लिए पूरी तरह अनपेक्षित था। ए.एल.सी. महोदय इस कदर खौफजदा थे कि 22 जून की वार्ता में उन्होंने 2 गाड़ी पुलिस व महिला पुलिस बुला ली। एक तरह से श्रम विभाग व प्रशासन पुलिसिया खौफ कायम कर महिलाओं के जुझारू तेवरों को खत्म करना चाहता था। लेकिन महिलाओं व मजदूरों ने न तो अपना हौसला कम किया न तेवर ढीले किये। पूरी वार्ता के दौरान मजदूर एवं महिलायें ए.एल.सी. आफिस में डटे रहे।
इस तरह मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों का जुझारू संघर्ष जारी है।

शिरडी मजदूरों का समझौता संपन्न
      पंतनगर (उत्तराखंड), 12 जून, सिडकुल औद्योगिक अस्थान स्थित शिरडी इंडस्ट्रीज लि. में यूनियन व कंपनी प्रबंधन के बीच काफी जद्दोजहद के बाद वार्षिक समझौता संपन्न हो गया है। समझौते के अनुसार मजूदरों के वेतन में 2000, 2100, 2200 व 2300 रु. की वृद्धि, मजदूरों की मुत्यु अथवा विक्लांग होने पर कंपनी द्वारा 5 लाख का बीमा, कैजुअल व ट्रेनी मजदूरों को 2016 तक स्थायी करने जैसे प्रमुख बिंदु शामिल हैं। यूनियन महामंत्री के अुनसार उनकी सभी मांगे मान ली गयी हैं।
         शिरडी के मजदूरों ने अप्रैल माह में अपना मांग पत्र दिया था। प्रबंधन इस मांग पत्र पर वार्ता को टालता जा रहा था। मांग पत्र पर वार्ता करने की मांग को लेकर 21 अप्रैल को मजदूरों ने प्रबंधकों का घेराव किया। एच.आर. मैनेजर ने 23 अप्रैल को वार्ता की तारीख तय की लेकिन 23 अप्रैल को वार्ता टालने के इरादे से एच.आर. मैनेजर छुट्टी पर चले गये। इस बात पर मजदूरों ने प्लांट हेड को घेराव किया व एच.आर. मैनेजर को बुलाने की मांग की। प्लांट हेड द्वारा मालिक द्वारा मालिक को इस संबंध में इत्तला किया गया। मालिक ने एच.आर. मैनेजर को फोन कर कंपनी पहुंचने को कहा। एच.आर. मैनेजर को कंपनी आना पड़ा लेकिन भारी संख्या  में  पुलिस बल के साथ ही वह कंपनी में दाखिल हुआ। काफी हंगामे के बाद एच.आर. मैनेजर वार्ता के लिए तैयार हुआ।
       शिरडी मजदूरों के समझौते की मुख्य उपलब्धि संघर्ष व समझौते दोनों में स्थायी के साथ कैजुअल व ट्रेनी मजदूरों के स्थायीकरण की मांग माना जाना एक सकारात्मक उपलब्धि है।


संघर्ष की राह पर आटो लाइन के मजदूर 
प्रबंधन ने यूनियन पदाधिकारियों सहित 16 को किया निलंबित 
   पंतनगर (उत्तराखंड) औद्योगिक अस्थान सिडकुल स्थित आटोलाइन के मजदूर प्रबंधन द्वारा उनकी नवगठित यूनियन को खत्म करने तथा यूनियन पदाधिकारियों को प्रबंधन व स्थानीय पुलिस व गुंडा तत्वों द्वारा प्रताडि़त-उत्पीडि़त करने के खिलाफ संघर्षरत हैं।
     प्रबंधन द्वारा 9, 10, 11 जून को यूनियन के अध्यक्ष व महामंत्री सहित 16 मजदूरों को निलंबित कर दिया गया और सिलसिला अभी जारी है। निलंबित मजदूरों को ‘कारण बताओ’ भी नहीें दिया गया। 11 जून की रात्रि को डयूटी खत्म कर घर जाते हुए रास्ते में यूनियन अध्यक्ष बालम सिंह को नकाबपोश गुंडो द्वारा कनपटी पर रिवाल्वर रखकर उन्हें बाल-बच्चों की खैरियत का हवाला देते हुए शहर छोड़कर चले जाने की धमकी दी गयी। यूनियन द्वारा जब स्थानीय पुलिस चौकी में इसकी शिकायत की गयी तो पुलिस उल्टे मजदूरों को धमकाने पर उतर आयी। काफी जद्दोजहद के बाद पुलिस ने तहरीर ली।
         इससे पूर्व प्रबंधन द्वारा यूनियन को बाईपास कर मनमाने तरीके से वेतनवृ़िद्ध के खिलाफ जब मजदूर 10 जून को फैक्ट्री गेट पर धरना दे रहे थे तो पुलिस द्वारा बलपूर्वक मजूदरों को गेट से हटा दिया गया। यूनियन नेताओं ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि उन्होंने कोर्ट में कैविएट डाल रखी है जिसके हिसाब से कंपनी द्वारा अगर कोई स्टे के लिए आवेदन किया जाता है तो मजूदरों का पक्ष भी जाना जाएगा। लेकिन पुलिस ने मजदूरों की बात को कोई तवज्जो न देते हुए बेशर्मी के साथ लाठियां फटकारते और गाली गलौच करते हुए मजदरों को गेट से हटा दिया।
     इंकलाबी मजदूर केन्द्र के सहयोग व दिशा निर्देशन में मजदूरों ने इस उक्त पुलिसिया कार्यवाही की शिकायत उप श्रमायुक्त (डी.एल.सी.), सहायक श्रमायुक्त (ए.एल.सी.) एवं शासन-प्रशासन में की एवं सामूहिक हड़ताल का नोटिस तैयार किया।
       आटोलाइन इंडस्ट्रीज सिडकुल पंतनगर के सेक्टर 11 टाटा वैंडर पार्क के प्लाॅट संख्या 5,6 व 8 में स्थित है। इस कंपनी में 150 स्थायी, 70 केजुअल/ट्रेनी एवं 300 से अधिक ठेका मजदूर हैं। यह कंपनी टाटा मोटर्स के लिए कलपुर्जे (मोटर पार्टस) बनाती है। कंपनी में मजदूरों का न्यूनतम वेतन 6500 रुपये व अधिकतम 15,000 रुपये है।
     कंपनी के मजदूरों ने 11 अप्रैल को अपनी यूनियन पंजीकृत कराई। यूनियन का नाम ‘आटोलाइन इम्प्लाइज यूनियन’ रखा गया। यूनियन पंजीकृत होेते ही प्रबंधन की आंखो में बुरी तरह खटकने लगी। प्रबंधन यूनियन को तोड़ने व खत्म करने की साजिश में जुट गया। यूनियन पदाधिकारियों द्वारा 30 अप्रैल को कंपनी प्रबंधन को मांग पत्र सौंपा गया। मांग पत्र में 18 मांगे थीं जिनमें वेतनवृद्धि, कैजुअल व ठेका मजदूरों के स्थायीकरण, कैंटीन सुविधा आदि मुख्य थी। यूनियन पदाधिकारियों के साथ प्रबंधन यूनियन को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं थे। इस बीच कंपनी प्रबंधन द्वारा यूनियन को विश्वास में लिए बगैर अचानक मजदूरों के वेतन में 800 रु., 1500 रु. व 2000 रु. तक की वृद्धि कर दी और यूनियन को बाईपास कर उसे मानने ही मना कर दिया।
      यूनियन ने प्रबंधन की इस कार्यवाही का विरोध किया गया। यूनियन के आहवान पर मजदूरों ने सामूहिक रूप से कार्य के दौरान बांह पर काला फीता व चेस्ट कार्ड लगाकर अपना विरोध जताया।
     कंपनी की इच्छा के विपरीत कंपनी के समस्त स्थाई, कैजुअल, ट्रेनी एवं ठेका मजदूरों ने एकजुट होकर अपना प्रतिराध दर्ज कराया। इसके पश्चात कंपनी प्रबंधन ने स्थानीय पुलिस व गुंडा तत्वों व छल फरेब को सहारा लेकर यूनियन के खिलाफ खुला हमला बोल दिया है।
      बहरहाल आटोलाइन के मजदूर एक फैसलाकुल लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं।
  पाँच कम्पनी के मजदूरों का डीएम कार्यालय पर धरना
ये मनमानी नहीं चलेगी

       रुद्रपुर (उत्तराखण्ड)। लम्बे समय से जारी दमन-उत्पीड़न के खिलाफ सिडकुल की विभिन्न कम्पनियों के श्रमिकों ने सामूहिक रूप से स्थानीय डीएम कार्यालय पर एक दिवसीय धरना देकर अपना आक्रोश प्रकट किया और जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर अवैध रूप से निकाले गये मजदूरों की कार्यबहाली, माँगपत्रों के निस्तारण, शोषण व दमन खत्म करने आदि की माँग की।
      इस अवसर पर आयोजित सभा को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि मजदूरों की भारी आबादी आज बेहद मामूली दिहाड़ी पर 12-12 घण्टे खटने को मजबूर है। जहाँ भी मजदूरों ने हक की आवाज उठाई वहीं दमन शुरू हो जाता है। यूनियन बनाना अपराध बन गया है। प्रबन्धन जब चाहे मजदूरों को निकाल देता है और श्रम विभाग से लेकर पुलिस व प्रशासन तक मालिकों की ही भाषा बोलते हैं।    
       इस धरने में पारले मजदूर संघ , रिद्धि सिद्धि कर्मचारी संघ ,मित्तर फास्टनर्स , महेन्द्र यूजिन/सी .आई .आई .,वोल्टास इम्पलायज यूनियन ,टाटा मोठर्स श्रमिक संघ,ब्रिटानिया कर्मकार यूनियन के श्रमिकों एवं यूनियन प्रतिनिधियों के अलावा सी.पी. आई. ,मजदूर सहयोग केन्द्र एवं इंकलाबी मजदूर केन्द के कार्यकर्ता शामिल थे।   

दमन विरोधी संघर्ष समिति द्वारा एस.डी.एम. परिसर में धरना  
     रामनगर (उत्तराखंड), दिनांक 9 जून को वीरपुर लच्छी प्रकरण में सोहन सिंह व अन्य नामजदों की गिरफ्तारी को लेकर दमन विरोधी संघर्ष समिति ग्राम वीरपुर लच्छी रामनगर द्वारा एस.डी.एम. परिसर में धरना दिया गया और सीओ कार्यालय तक जुलूस निकालकर प्रदर्शन किया गया। गौरतलब है कि 31 मार्च 2015 को सोहन सिंह व उसके गुण्ड़ों के इशारे पर राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता मुनीष कुमार व प्रभात ध्यानी पर हमला किया गया था लेकिन नामजद रिपोर्ट होने के बावजूद उनको अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।
धरना स्थल पर सभा में वक्ताओं ने बात रखते हुए कहा कि आज पूरे उत्तराखण्ड में अवैध खनन द्वारा प्राकृतिक सम्पदा का दोहन किया जा रहा है। और पर्यावरणीय मानकों को बिना ध्यान में रखे हुए स्टोर क्रशर संचालित किये जा रहे हैं। जिनके कारण उसके आस-पास रहने वाली आबादी का जीवन दूभर होता जा रहा है। स्टोर क्रैशर से निकलने वाले बारीक कण दमा व सिलकोसिस जैसी बीमारियों को पैदा कर रहे हैं। फसलों को चैपट कर रहे हैं।
दमन विरोधी संघर्ष समिति के कैसर राणा ने बात रखते हुए कहा कि सोहन सिंह व अन्य लोगों की गिरफ्तारी न होना बताता है कि सिस्टम कितना नाकारा है और किस तरह सोहन सिंह के पक्ष में खड़ा हुआ है।
सभा में मलैथा में अवैध स्टोन क्रैशर को हटाये जाने की मांग कर रहे ग्रामीणों पर 7 जून को पुलिस द्वारा किये गये लाठीचार्ज की निंदा की गयी और ग्रामीणों के आंदोलन के साथ एकजुटता प्रदर्शित की गयी।
सीओ कार्यालय पर प्रदर्शन के दौरान सीओ से नोंक-झोंक भी हुयी। सीओ ने इस मामले में चल रही कार्यवाही के बारे में बताने से इंकार कर दिया। इस पर आक्रोशित लोगों ने उनके खिलाफ नारे भी लगाये।
सभा के अंत में क्रांतिकारी गीतों के साथ समापन किया गया और सोहन सिंह व अन्य लोगों की गिरफ्तारी न होने तक आंदोलन चलाने का निर्णय लिया।



नागौर में दलितों की हत्या के विरोध में जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन
       दिल्ली, 25 मई, राजस्थान में नागौर में जाट समुदाय के दबंगो द्वारा 4 दलितों की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या के विरोध में जंतर -मंतर पर  विभिन्न जनसंगठनों द्वारा एक धरना प्रदर्शन आयोजित किया गया।
इस प्रदर्शन में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, पी.डी.एफ.आई., क्रांतिकारी युवा संगठन, सी.पी.आई.एम.एल (रेड स्टार), विकल्प, ए.आई.एफ.टी.यू (न्यू), पिपुल्स फ्रंट, जाति उन्मूलन मंच व परिवर्तनकामी छात्र संगठन आदि उपस्थित थे।
धरना प्रदर्शन एक सभा में तबदील हो गया। सभा में विभिन्न संगठनों के वक्तओं ने राजस्थान व केन्द्र में भाजपा सराकर द्वारा जातिवादी प्रभुत्व की राजनीति व खाप पंचायतों, जाति उत्पीड़न व दलितों पर नृशंस अत्याचार करने वाले तत्वों को प्रश्रय देने का आरोप लगाया।
वक्ताओं ने जाति उत्पीड़न की घटनाओं में वृद्धि को हिंदु सांप्रदायिकता के उभार के साथ जोड़ते हुए बताया कि जो लोग एक तरफ तथाकथित ‘घर वापसी’ व ‘गौ रक्षा’ का अभियाान चलाये हुए हैं वही दलितों पर नृशंस अत्याचार कर रहे हैं अथवा अत्याचारियों को संरक्षण दे रहे हैं।
वक्ताओं ने जाति उत्पीड़न के खिलाफ एक व्यापक व लंबे संघर्ष की जरूरत पर बल दिया व जाति व्यवस्था के खात्मे के समूल उन्मूलन के लिए व्यवस्था में आमूल परिवर्तन पर बल दिया। 

उत्तराखण्ड सरकार-खनन माफिया के गठजोड़ के खिलाफ जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन 
      दिनांक 5 मई 2015 को पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार दमन विरोधी संघर्ष समिति ग्राम वीरपुर लच्छी ने उत्तराखण्ड के अंदर चल रहे सरकार-खनन माफिया के गठजोड़ के खिलाफ दिल्ली में जंतर मंतर पर धरना-प्रदर्शन आयोजित किया।
      इस प्रदर्शन से पूर्व दमन विरोधी संघर्ष समिति में शामिल विभिन्न संगठनों ने पूरे क्षेत्र में प्रचार-प्रसार किया व उत्तराखण्ड के अंदर चल रही खनन की लूट का पर्दाफाश किया तथा मांग की कि खनन का राजकीय करण होना चाहिए और सरकार को स्टोन क्रेशरों का निजी मालिकाना हटाकर उसे अपने अधीन करना चाहिए ताकि व्यापक व सम्मानजनक रोजगार लोगों को मिल सके।  समिति ने 31 मार्च 2015 को सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ता मुनीष कुमार व प्रभात ध्यानी पर हमले के मुख्य साजिशकर्ता सोहन सिंह ढिल्लन व उसके बेटे डीपी सिंह ढिल्लन को गिरफ्तार करने की मांग की।
दिल्ली में आयोजित प्रदर्शन में 500-600 लोगों ने भागीदारी की। सभा में इस बात को पुरजोर तरीके से उठाया गया कि उत्तराखण्ड सरकार एक तरफ पर्यावरण को बचाने के लिए ईको सेंसिटव जोन लागू कर रही है तो दूसरी तरफ पर्यावरण के विनाश के लिए नदियों में खनन को निजी हाथों में सौंप रही है। दोनों तरफ से ही आम व गरीब-मेहनतश लोगों का जीवन दूभर हो गया है।
सभा के मध्य भाजपा के सतपाल महाराज ने भी आकर अपना समर्थन दिया। और हमेशा की तरह बुजुआ नेताओं की तरह मंच हथियाने की कोशिश की। बाद में वक्ताओं ने इस बात की तीखी आलोचना की कि ऐसे नेताओं की चाल-फरेबी में हमें नहीं आना चाहिए। ये नेता केवल अपनी रोटी सेंकते हैं। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद प्रदेश में दोनों ही पार्टियों की सरकार रही है। और इस दौरान प्रदेश की प्राकृतिक सम्पदा को लुटाने का काम दोनों ही सरकारों ने किया है। उत्तराखण्ड राज्य की दुर्दशा के लिए दोनों ही पार्टियां जिम्मेदार हैं। आज चूंकि भाजपा विपक्ष में है इसलिए वह इस आंदोलन को समर्थन करने के साथ आंदोलन को अपने पक्ष में भुनाना चाहती है।
सभा के बाद सोनिया गांधी के आवास की तरफ मार्च किया गया जिसे पुलिस ने बैरीकेड लगाकर रोक दिया। प्रदर्शनकारी सोनिया गांधी से मिलने की मांग करते हुए बेरीकेड के पास बैठ गये। बाद में एक प्रतिनिधिमंडल को सोनिया आवास तक मिलने के लिए गया। ज्ञापन की एक एक प्रति प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को भी प्रेशित की गयी।
इस धरना-प्रदर्शन में देव भूमि व्यापार मण्डल रामनगर, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी, राज्य आंदोलन कारी परिशद, मजदूर जनसहयोग केन्द्र, व दिल्ली के तमाम संगठन शामिल थे।
       दमन विरोधी संघर्ष समिति ने मामले का हल न होने तक इस आंदोलन को आगे बढ़ाने का निश्चय कियाा है।

नागरिक संपादक मुनीष कुमार व प्रभात ध्यानी पर  हमले के मुख्य साजिशकर्ताओं की गिरफ्तारी की मांग  को  लेकर  धरना-प्रदर्शन
       रामनगर (उत्तराखण्ड), 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग कांड की वरसी के अवसर पर स्थानीय एस डी एम कोर्ट में नागरिक संपादक मुनीष कुमार व प्रभात ध्यानी पर  हमले के मुख्य साजिशकर्ताओं की गिरफ्तारी की मांग  को  लेकर  दमन विरोधी संघर्ष समिति के बैनर तले धरना प्रदर्शन किया गया।
       धरने में शामिल विभिन्न वक्ताओं ने इस बात पर गहरा रोष व्यक्त किया कि ‘नागरिक’ पत्र के सम्पादक मुनीष कुमार व उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के महासचिव प्रभात ध्यानी पर जानलेवा हमले के मुख्य साजिशकर्ता सोहन सिंह ढिल्लन व उसके बेटे डी.पी.सिंह को अभी तक पुलिस द्वारा गिरफ्तार नहीं किया गया है जबकि साजिशकर्ता पत्रकार वार्ता कर रहे हैं और कानून व शासन प्रशासन को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं कि अगर उन्हें गिरफ्तार किया गया तो वे आत्मदाह कर लेंगे।
धरने में नागरिक’ पत्र के सम्पादक मुनीष कुमार ने बोलते हुए कहा कि खनन में काम करने वाले मजदूरों को नाममात्र की मजदूरी दी जाती है और उपखनिज निकालने के बाद उसे बाजार में महंगे दामों में बेचकर अकूत मुनाफा कमाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों पर देश की जनता का मालिकाना होना चाहिए लेकिन पूंजीपति उससे मुनाफा कमा रहे हैं और जब उनकी राह में जनता बाधा बनती है तो वे उसे किसी भी कीमत पर हटा देना चाहते हंैं। उन्होंने आगे कहा कि देश की मेहनतकश आबादी को समाजवाद के लिए लड़ना होगा जिसमें सभी के लिए रोजगार होगा और प्राकृतिक संसाधनों की इस तरह लूट नहीं होगी।
 सभी वक्ताओं ने हमले के आरोपी सोहन सिंह व उसके बेटे डी.पी.सिंह को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग की और बाकी अन्य मांगों के  पूरा न होेने की स्थिति में 5 मई को दिल्ली में सोनिया गांधी के आवास दस जनपथ पर प्रदर्शन करने की बात रखी। धरने में उत्तराखण्ड के जनकवि बल्ली चीमा ने भी शिकरत की और ‘ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के’ भी गाया। सभा के अंत में उन्हीं के गीत ‘तय करो किस ओर हो तुम’ गाया गया। धरने में उपपा, ईको सेंसिटिव जोन विरोधी संघर्ष समिति, इमके, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, यूकेडी, आप, उत्तराखण्ड मंच, स्केलर संघ, नौजवान भारत सभा, श्रमजीवी पत्रकार यूनियन, उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी, आदि तमाम संगठन मौजूद थे।
        धरना प्रदर्शन में एस डी एम को निम्न मांगों के साथ एक ज्ञापन प्रेषित किया गया।
1.प्रभात ध्यानी व मुनीष कुमार पर हमले के मुख्य साजिशकर्ता सोहन सिंह, डी.पी.सिंह व अन्य अभियुक्तों को      तत्काल गिरफ्तार किया जाए व मुकदमे में दफा 307 व 326 भी लगायी जाए।
2.सरकार द्वारा 1 मई 2013 को सोहन सिंह व अन्य द्वारा वीरपुर लच्छी गांव में की गयी आगजनी, फायरिंग व मारपीट के मुकदमें की वापसी की जो कार्यवाही की जा रही है उसे तत्काल बंद किया जाए। तथा ढिल्लन स्टोन क्रेशर की जांच करवायी जाए।
3.ग्राम वीरपुर लच्छी में किसानों के खेतों के ऊपर से डम्परों का परिचालन बंद किया जाए।
4.नदियों में रेत, बजरी, पत्थर इत्यादि के खनन, स्टाॅक, विपणन तथा उपखनिज का स्टोन क्रेशरों में तुड़ान इत्यादि का कार्य निजी क्षेत्र से हटाकर सरकार अपने विभाग/निगम से कराये। ताकि जनता/ट्रांसपोर्टकर्मियों को साफ-सुथरा रोजगार मिल सके। और जनता को सस्ता उपखनिज मिल सके।
  5.राज्य में चल रहे सभी स्टोन क्रेशरों को सरकार अधिग्रहित करे। सभी स्टोन क्रेशर व उपखनिज स्टाॅक आबादी से दूर        नदियों के पास खनन जोन बनाकर वहां पर स्थापित किये जाएं।
खनन चोरी को गैर जमानती अपराध घोषित किया जाए।

6.वन विकास निगम अध्यक्ष हरीश धामी द्वारा डम्पर चालक के खिलाफ जान लेवा हमले करने (दफा 307) का मुकदमा दर्ज कराने, बाद में मुकदमा वापस लेेने तथा मौके पर जाकर फायरिंग करने के मामले की उच्च स्तरीय जांच करायी जाए।

माफियाराज के खिलाफ एकजुटहुए ग्रामवासी - वीरपुरलच्छी, रामनगर (नैनीताल) में महापंचायत   
6 अप्रैल-वीरपुरलच्छी, रामनगर (नैनीताल) में महापंचायत
    नागरिक पत्र के संपादक मुनीष कुमार और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के महासचिव प्रभात ध्यानी पर सोहन सिंह ढिल्लन और उसके पुत्र डी.पी. सिंह द्वारा 31 मार्च को कराये गये हमले का विरोध करते हुए माफियाराज के खिलाफ 6 अप्रैल को एक महापंचायत वीरपुरलच्छी गांव में आयोजित की गयी।
   महापंचायत में दूर-दूर से आये ग्रामीणों, जनसंगठनों, सामाजिक कार्यकताओं, व बुद्धिजीवियों द्वारा हिस्सेदारी की गयी। महापंचायत में लगभग 700 लोगों द्वारा भागीदारी कर संघर्ष के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित की गयी। अस्वस्थ होने के बावजूद मुनीष कुमार और प्रभात ध्यानी द्वारा महापंचायत में हिस्सेदारी की गयी। ग्रामवासियों द्वारा उनका जोरदार स्वागत किया गया।
       महापंचायत में वक्ताओं ने सरकार-माफिया-प्रशासन के गठजोड़ की तीखे शब्दों में आलोचना की तथा मुख्यमंत्री द्वारा सोहन सिंह के ऊपर लगे मुकदमों की वापसी की प्रक्रिया को माफियाओं को सरंक्षण देना बताया। महापंचायत ने उत्तराखंड को माफियाराज से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करने की संकल्प बद्धता दिखाते हुए इस आंदोलन को पूरे प्रदेश में फैलाने की आवश्यकता पर जोर दिया व इसके लिए ग्रामीणों तथा सभी न्यायप्रिय व जनवादी ताकतों से जी-जान से जुटने का आह्वान किया।
         महापंचायत में निम्न प्रस्ताव पारित किए गये।
1. खनन माफिया सोहन सिंह,डी.पी.सिंह व हमले में शामिल अपराधियों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए।मुकद्मों में दफा 307 व 326 लगायी जाए।
2. ग्राम वीरपुरलच्छी में बुक्सा जनजाति के किसानों के खेतों पर डम्परों/भारी वाहनों का संचालन बंद किया जाए। इसमें भारी वाहन चलाने वाले पर एस./एस.टी. एक्ट में मुकद्मा कायम किया जाए।
3. नदियों में खनन, रेता, बजरी इत्यादि उपखनिजों के विपणन, उपखनिजों का स्टोनक्रेशर में तुड़ान इत्यादि का कार्य निजी क्षेत्र से हटाकर सरकार अपने विभाग/निगम से कराये ताकि ट्रांसपोर्ट कर्मियों को साफ-सुथरा रोजगार मिल सके और जनता को सस्ता उपखनिज मिल सके।
4. स्टोनक्रेशरों को सरकार अधिग्रहित करे। स्टोनक्रेशर आबादी से दूर नदियों के पास खनन जोन बनाकर वहां पर स्थापित किये जायें।
5. उपखनिज चोरी को गैरजमानती अपराध बनाया जाए।
6. ढिल्लन स्टोनक्रेशर की जांच करवायी जाए। 1 मई 2013 को सोहन सिंह इत्यादि पर लगे मुकद्मे वापस लेने की कार्यवाही बंद कीजाए।

       महापंचायत में निम्न कार्यक्रम घोषित किए गए ।
1. 13 अप्रैल को जलियांवालाबाग दिवस पर उक्त मांगों/प्रस्ताव को लेकर उत्तराखण्ड प्रदेश में तहसील व जिला मुख्यालयों पर धरना/प्रदर्शन किये जायेंगे।
2. चूंकि उत्तराखण्ड की सरकार 10, जनपथ दिल्ली से चलतीहै अतः सोनिया आवास पर प्रदर्शन किया जायेगा। इसकी तिथि 13 अप्रैल को घोषित की जायेगी।

     महापंचायत में क्रा.लो.स.,उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी (उ.प.पा.), प.छा.स., प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, राज्य आंदोलनकारी परिषद, ठेका मजदूर कल्याण समिति, ईकोसें टिव जोन विरोधी संघर्षसमिति, देवभूमि व्यापार मण्डल, आर.डी.एफ., भा.क.पा.( मा.ले.), अखिल भारतीय किसान महासभा, बुक्सा जनजाति परिषद, श्रमजीवी पत्रकार यूनियन, उ.क्रां.द.,आ.आ.पा.,उत्तराखंड बेरोजगार संगठनआदि ने भागीदारी की।
      महापंचायत में विभिन्न गांवों से ग्रामीणों द्वारा भागीदारी की गयी जिनमें छोनपुरी, मल्लपुरी, वीरपुरतारा, राजपुर, लम्बरदारपुरी, पीपलसाना, ललितपुर, बेरिया, थारी, कन्दला, जुड़का, ढकिया, बन्नाखेड़ा, किलाबनवारी, भीकमपुरी, बेरियादौलत, खेमपुर, गांधीनगर, कल्याणपुरी वमालधन आदि गांवों के निवासी शामिल शामिल थे।
  महापंचायत में विभिन्न वक्ताओं द्वारा विचार व्यक्त किये गये जिनमें पी.पी.आर्य (अध्यक्ष,क्रा.लो.स.),पी.सी.तिवारी(अध्यक्ष,उ.प.पा.),कैलाश भट्ट(अध्यक्ष,इ.म.के.),बिन्दुगुप्ता (उपाध्यक्ष,प्रगतिशीलमहिला एकता केन्द्र), गणेशरावत(अध्यक्ष,श्रमजीवी पत्रकार यूनियन), ललितउप्रेती( ईकोसेंसिटिव जोन विरोधी संघर्ष समिति ),मनीष सुन्दरियाल(उत्तराखंड बेरोजगार संगठन, धूमाकोट), पुरूषोत्तम शर्मा( अखिल भारतीय किसान महासभा), नवीन नैथानी (राज्य आंदोलनकारी परिषद), प्रेम अरोरा (पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता, काशीपुर), पूरनचन्द्र कफलटिया (सामाजिक कार्यकर्ता, चोरगलिया,नैनीताल), कैलाशपाण्डे(सी.पी.आई.एम.एल.), सुरेश डालाकोटी(यू.के.डी.), इन्द्र सिंह मनराल (यू.के.डी.),मोहनपाठक(राज्य आंदोलनकारी) नवीन सुनेजा (छात्र नेता), अमरंसिंह, अजय शर्मा, बाबू सिंह तोमर, चन्द्र शेखरकरगेती,एडवोकेट, सोमल सिंह, मनमोहनअग्रवाल, मास्टरप्रताप सिंह, कैलाश खुल्बे, पप्पू सिंह, ,चन्दोदेवी, रामचन्द्र कल्याणपुरी, नारायण सिंह आदि शामिल थे। महापंचायत का संचालन प.छा.स. के महासचिव कमलेश द्वारा कियागया।
बरेली, 3 अप्रैल बंसी नगला की सड़को को लेकर बरेली नगर निगम पर प्रदर्शन

मारुति के मजदूरों का संघर्ष रंग लाया - 76 मजदूरों को मिली जमानत
      गुड़गांव, 17 मार्च, मारुति सुजुकी-मानेसर के जेल में बंद 145 मजदूरों में से 76 मजदूरों को लगभग ढाई साल बाद आज जमानत मिल गयी। इससे पूर्व दो मजदूरों को 31 माह बाद 23 फरवरी को जमानत पर रिहा कर दिया। हरियाणा सरकार इनके खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं कर सकी हालांकि इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को दो सप्ताह का समय दिया था।
      17 मार्च को जमानत पर रिहा मजदूरों को उन्हीें मुकदमों में फंसाया था जिनमें सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले माह दो मजदूरों को जमानत दी थी। इन मजदूरों को प्रबंधन के ‘गवाहों’ ने पहचानने से इंकार कर दिया था।
विगत 11 मार्च को मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन की प्रोविजनल कमेटी ने इन 76 मजदूरों की जमानत याचिका गुड़गांव के सत्र न्यायालय में लगायी। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की रोशनी में सत्र न्यायालय, गुड़गांव द्वारा इन मजदूरों को जमानत मिल गयी।
      मारुति सुजुकी के मजदूरों की यह एक बड़ी जीत है। अभी भी मारुति सुजुकी के 69 मजदूर 18 जुलाई 2012 की घटना के बाद से जेल में बंद हैं। इन मजदूरों की रिहाई अब मारुति के संघर्षरत मजदूरों का अगला कार्यभार है। मजदूर वर्ग की सभी सहयोगी शक्तियों व न्यायप्रिय लोगों को मारुति मजदूरों के न्याय के लिए संघर्ष में और पुरजोर तरीके से शामिल होने की जरूरत है।

ढाई वर्ष से जेल में बंद मारुति मजदूरों की रिहायी व 
बर्खास्त मजदूरों की बहाली को लेकर मजदूर कन्वेंशन 
      गुड़गांव, 27 फरवरी मारुति सुजुकि वर्कर्स यूनियन की प्रोवीजनल कमेटी द्वारा ढाई वर्ष से अधिक समय से जेल में बंद मारुति के 147 मजदूरों की रिहायी व बर्खास्त मजदूरों की बहाली की मांग को लेकर स्थानीय पटौदी चौक स्थित परशुराम वाटिका में मारुति सुजुकी मानेसर, मारुति सुजुकी गुड़गांव सहित विभिन्न कारखानों के मजदूर प्रतिनिधियों, यूनियन पदाधिकारियों, मजदूरों व विभिन्न मजदूर संगठनों, ट्रेड यूनियनों व सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। 
     देश के विभिन्न इलाकों - हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, बंगाल, तमिलनाडू व महाराष्ट्र आदि स्थानों से आये ट्रेड यूनियनों व मजदूर संगठनों के प्रतिनिधियों ने मारुति मजदूरों के संघर्ष के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए इसे देशी-विदेशी पूंजी के हमले के खिलाफ मजदूर वर्ग के प्रतिरोध का प्रतीक बताया। 
कन्वेंशन ने ढाई साल से अधिक समय बाद सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर रिहा हुये मारुति के मजदूर सुनील का फूल मालाओं से स्वागत किया। गौरतलब है कि मारुति के दो मजदूरों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गयी है लेकिन रिहायी केवल एक मजदूर की ही संभव हो पायी है।
     विभिन्न वक्ताओं ने मजदूर आंदोलनों का पूंजीपति वर्ग व सत्तासंत्र द्वारा दमन के इस दौर में व्यापक स्तर पर एकता की जरूरत पर बल दिया। वक्ताओं ने एक फैक्टरी के मजदूरों के संघर्ष के सफल होने की संभावनायें लगातार कम होने के चलते इलाकायी स्तर पर मजदूर आंदोलन की जरूरत को भी चिन्हित किया। इसी के साथ श्रम कानूनों के लगातार सीमित होते जाने के चलते कानूनी व ट्रेड यूनियन के दायरे से बाहर जाकर संघर्ष के नये रूपों को तलाशने की जरूरत को भी चिन्हित किया गया। 
      मोदी सरकार श्रम कानूनों पर भंयकर हमला करने व किसान विरोधी भूमि अध्यादेश लाने पर भी विचार करते हुए वक्ताओं ने मजदूर मेहनतकशों की व्यापक एकता की जरूरत को रेखांकित किया।
     सभा को विभिन्न कारखानों के यूनियन प्रतिनिधियों ने संबोधित किया जिनमें मारुति सुजुकी मानेसर यूनियन के अध्यक्ष पवन, मारुति पावर ट्रेड के अध्यक्ष अनिल, सुजुकी मोटर साइकिल यूनियन के अध्यक्ष अनिल कुमार, रिको धारुहेड़ा के अध्यक्ष राजकुमार, हीरो मोटोकाॅर्प गुड़गांव के अध्यक्ष रवि कुमार, ल्यूमेक्स आटोमोटिव के यूनियन प्रतिनिधि बलवान, बजाज मोटर के विजेेंदर, बैक्सटर के मंजीत, एन.एस.के हरकेश, पी.एन. रायटर से भरत लाल आदि ने संबोधित किया। इसके अलावा मजदूर सहयोग केन्द्र, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, श्रमिक संग्राम समिति, जन संघर्ष मंच हरियाणा, वर्कर्स सोलिडेरिटी कमेटी, पी.यू.डी.आर., सी.आई.टी.यू., ए.आई.टी.यू.सी., एच.एम.एस., ए.आई.यू.टी.यू.सी. के प्रतिनिधियों ने की कन्वेंशन को संबोधित किया। 
आई एम पी सी एल, मोहान में ठेका मजदूर कल्याण समिति ने किया जोरदार प्रदर्शन 
    16 फरवरी,  उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले की रामनगर तहसील  से 22 किलोमीटर दूर मोहान (अल्मोड़ा) स्थित फैक्टरी आई एम पी सी एल में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के नेतृत्व में ठेका मजदूूर कल्याण समिति मोहान ने जोरदार प्रदर्शन किया। ज्ञात हो कि वर्ष 2011 से इस फैक्ट
री में ठेका मजदूर कल्याण समिति मजदूरों का पी.एफ.,बोनस, बीमा, वेतन इत्यादि में मैनेजमेण्ट व ठेकेदार की मिलीभगत से लाखों रुपये हड़पने के खिलाफ आंदोलन चला रही है। 2011 में तीन चरणों के आंदोलन के बाद समिति को फैक्टरी से ठेका प्रथा हटाने में कामयाबी मिली थी। परन्तु मार्च 2012 में ब्रेक देने के पश्चात फैक्टरी मैेनेजमेण्ट ने पुनः ठेका प्रथा लागू करने के प्रयास किये तथा उसे समिति के कुछ नेतृत्वकारी लोगों को अपनी तरफ मिलाने में सफलता मिल गयी। समिति के बाकी नेतृत्वकारी साथियों ने पुनः संघर्ष किया परन्तु मैनेजमेण्ट ठेका प्रथा (दूसरे ठेकेदार को) लागू करने में कामयाब हो गया और उसने समिति के नेतृत्वकारी मजदूरों को काम से बाहर निकाल दिया।
       इस घटना के बाद भी समिति ने अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखी। जून  2014 में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत को पत्र लिखे जाने पर  उन्होंने फैक्टरी में हुये घोटाले की जांच के लिए जिला सहकारी समिति के अधिकारी को नियुक्त किया जिसने समिति, ठेकेदार व मैनेजमेण्ट को बुलाकर जांच की। जांच की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि न तो मैनेजमेण्ट और न ठेकेदार वर्ष 2008 से वर्ष 2011 तक के मजदूरों के रिकार्ड पेश कर पाया। यहां तक कि पी.एफ., बीमा आदि की राशि का भुगतान ठेकेदार को कर दिया गया लेकिन ठेकेदार ने किसी की रसीद मैनेजमेण्ट को नहीं दी फिर भी मैनेजमेण्ट उसे लगातार पेमेन्ट करता रहा। यह बिना मैनेजमेण्ट व ठेकेदार की मिलीभगत के संभव नहीं था। जांच अधिकारी ने अपनी जांच में यह भी पाया कि मैनेजमेण्ट द्वारा सर्विस टैक्स का लगभग 19 लाख रुपया ठेकेदार को दिया गया लेकिन मैनेजमेण्ट ने उस टैक्स को सरकार को नहीं दिया। इस तरह मजदूरों के साथ-साथ सरकार को भी चूना लगायाा गया। इस तरह मैनेजमेण्ट और ठेकेदार ने मिलकर 65 लाख रुपये का गबन फैक्टरी में किया। जांच अधिकारी ने अल्मोडा के जिलाधिकारी व एसएसपी को भी चिट्ठी लिखकर इस संबंध में कार्यवाही करने को कहा। समिति ने भी आई एम पी सी एल मोहान के आयुष विभाग को जांच रिपोर्ट की प्रति भेजकर दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही करने की मांग की।
      लेकिन ढाई माह बीत जाने के बावजूद भी कोई कार्यवाही न होते देख  दिनांक 16 फरवरी को समिति ने फैक्टरी गेट पर धरना प्रदर्शन किया। और जिला प्रशासन और आयुष विभाग दिल्ली को चेतावनी दी कि अगर दोषी अधिकारियों के खिलाफ शीघ्र कोई कोई कार्यवाही न की गयी तो समिति इस आंदोलन को उग्र करेगी। 
ज्ञापन 
सेवा में
संयुक्त सचिव 
आयुष विभाग दिल्ली
विषयः आई एम पी सी एल मोहान(अल्मोड़ा), उत्तराखण्ड में उजागर भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में कार्यवाही करने हेतु।
महोदय
ठेका मजदूर कल्याण समिति मोहान आपको पूर्व में दिये गये पत्र के माध्यम से बार-बार अवगत करा चुकी है कि वर्ष 2008 से वर्ष 2011 के बीच आईएमपीसीएल मोहान फैक्टरी में मजदूरों के पी.एफ., बीमा, बोनस, वेतन, सर्विस टैक्स इत्यादि में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। इस भ्रष्टाचार की जांच उत्तराखण्ड के वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा 2014 में करवाई गयी। इस जांच में यह तथ्य निकलकर सामने आये कि फैक्टरी के आला अधिकारियों की मिलीभगत से मैनेजमेण्ट व ठेकेदार ने मजदूरों की पी.एफ, बोनस इत्यादि की लाखों रुपये की राशि हड़प कर ली। साथ ही सर्विस टैक्स का 19 लाख रुपया भी मैनेजमेण्ट व ठेकेदार ने मिलकर हड़प कर लिया। 
समिति ने 11/12/2014 को आपको भेजे गये पत्र में उत्तराखण्ड शासन द्वारा आई.एम.पी.सी.एल. मोहान में हुये घोटाले से संबंधित रिपोर्ट की प्रति व दैनिक अखबारों में इस सम्बन्ध में छपे खबरों की कटिंग्स भेजी गयी थीं लेकिन उसके बावजूद अभी तक दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है। अतः ठेका मजदूर कल्याण समिति आज दिनांक 16 फरवरी को फैक्टरी गेट पर धरने के लिए बाध्य हुई है। इस ज्ञापन के माध्यम से हम आपसे अपील करते हैं कि आप हमारी निम्न मांगों पर शीघ्र ही कार्रवाई करने की कृपा करें। 
हमारी मांगें हैं-
1. आई.एम.पी.सी.एल. मोहान में भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13(1) व (2) के अंतर्गत मुकदमा कायम कर कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाए तथा फैक्टरी के एम.डी., जी.एम., मुख्य लेखाधिकारी व प्रशासनिक अधिकारी को बर्खास्त किया जाए।
2. जांच अधिकारी द्वारा की गयी संस्तुति का पालन करते हुए गैरकानूनी तरीके से काम से निकाले गये 32 ठेका श्रमिकों को तत्काल काम पर वापस रखा जाए।
3. श्रमिकों को पी.एफ. व अन्य बकाया राशि का भुगतान तत्काल किया जाए। 
4. भ्रष्टाचार में लिप्त ठेका फर्म शिवालिक सर्विसेज के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाए तथा भ्रष्टाचार की राशि की रिकवरी ठेकेदार व भ्रष्ट अधिकारियों से की जाए। 
हम उम्मीद करते हैं कि आप हमारी मांगों पर शीघ्र कार्यवाही करेंगे। आपके द्वारा कार्यवाही न किये जाने की स्थिति में ठेका मजदूर कल्याण समिति उग्र कार्यवाही करने को विवश होगी जिसकी पूर्ण जिम्मेदारी आपकी आयुष विभाग दिल्ली की होगी। 
आपसे पूर्ण सहयोग की उम्मीद में 
ठेका मजदूर कल्याण समिति
  सचिव           अध्यक्ष 
शेखर आर्य किशन शर्मा


एवरेडी के मजदूरों का शानदार संघर्ष जारी
इ. म. के.  कार्यकर्ता सहित 8 लोगों को संगीन धाराओं के तहत निरुद्ध कर भेजा जेल 

विरोध प्रदर्शन पर भी किया बर्बर लाठीचार्ज
      हरिद्वार,7 फरवरी एवरेडी मजदूरों  के जुझारू आन्दोलन से बौखलाकर उत्तराखंड सरकार बर्बर पुलिसिया कार्यवाही के द्वारा इस आंदोलन को कुचलने पर उतर आयी है। 7 फरवरी को प्रातः 4 बजे भारी संख्या में पुलिस बल आंदोलन स्थल पर पंहुचा और उसने 46 मजदूरों को आंदोलन स्थल से बलपूर्वक उठा लिया। बाद में पुलिस ने 38 मजदूरों को छोड़ दिया बाकी 8 लोगों, जिनमें इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता राजू भी थे, को 7 सी.एल.ए. सहित कई अन्य अपराधिक मुकदमों के तहत निरूद्ध कर जेल भेज दिया। 
      उत्तराखंड सरकार किस हद तक पूंजीपतियों के इशारों पर चल रही है उसकी यह जीती जागती बानगी है। इतना ही नहीं मजदूरों की इस गिरक्तारी का इंकलाबी मजदूर केन्द्र सहित कई अन्य यूनियनों व जनवादी संगठनों के द्वारा विरोध करने पर उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर भी उत्तराखंड पुलिस द्वारा बर्बर लाठीचार्ज किया गया। यह घटना उत्तराखंड पुलिस के पूंजीपरस्त व मजदूर विरोधी चरित्र को दर्शाती है। गौरतलब है कि एवरेडी के मजदूर, कंपनी द्वारा अवैध तालाबंदी व अपने 14 नेतृत्वकारी साथियों के निलंबन के खिलाफ लगभग दो माह से शांतिपूर्ण तरीके से धरना दे रहे थे। लंबे समय तक प्रबंधन व शासन-प्रशासन द्वारा कोई समाधान न निकालने पर विगत 30 जनवरी को अपने परिजनों के साथ फैक्टरी गेट पर जम गये थे। मजदूरों के तेवर देखकर प्रशासन ने शुरुआत में समझौता वार्ता कराने के प्रयास भी किये लेकिन प्रबंधन के अड़ियल रुख अपनाने के बाद प्रशासन मजदूरों के आंदोलन को बल प्रयोग से कुचलने के मंसूबे पालने लगा था। इसी के चलते 7 फरवरी को सुबह पुलिस द्वारा बल प्रयोग, गिरक्तारी व जेल भेजने के प्रयास शुरु हो गये। 
इंकलाबी मजदूर केन्द्र सभी क्रांतिकारी व प्रगतिशील संगठनों, जनवादी व न्यायप्रिय लोगों से अपील करता है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा पूंजीपतियों के इशारों पर मजदूरों के आंदोलन को बर्बर दमन द्वारा कुचलने का विरोध करें। 
एवरेडी के मजदूरों का शानदार संघर्ष जारी
        हरिद्वार, एवरेडी के मजदूर अपने परिजनों के साथ फैक्टरी गेट पर जमे हुए हैं। फैक्टरी गेट पर भारी मात्रा में पुलिस बल जमा है। पुलिस ने मजदूरों व उनके परिजनों को धमकाने की पूरी कोशिश की लेकिन मजदूर व उनके परिजन टस से मस नहीं हुए। अंततः प्रशासन को दबाव में आकर प्रबंधन व मजदूरों की वार्ता करानी पड़ी। वार्ताओं का दौर जारी है। इस बीच आई.टी.सी. कंपनी के मजदूरों की एक शिफ्ट व हिंदुस्तान यूनीलीवर की यूनियन प्रतिनिधियों ने फैक्टरी गेट पर आंदोलनरत मजदूरों को समर्थन दिया व आर्थिक सहयोग भी दिया। 
गौरतलब है कि एवरेडी के मजदूर विगत 1 दिसंबर 2014 से प्रबंधन द्वारा अवैध तालाबंदी व 14 मजदूरों के निलंबन के खिलाफ सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय पर धरने पर बैठे थे। दो चक्र की वार्ता असफल रहने के बाद प्रबंधन ने इकतरफा तौर पर वार्ता बंद कर दी। इस बीच मजदूरों ने पुतला दहन, जुलूस प्रदर्शन आदि के माध्यम से अपना अक्रोश व्यक्त कर व प्रशासन पर दबाव डालकर प्रबंधन को दुबारा वार्ता के लिए बुलाने की कोशिश की लेकिन प्रबंधन, शासन-प्रशासन व श्रम विभाग के गठजोड़ ने मजदूरों को थका-छकाकर उनके आंदोलन को खत्म करने की नीति अपना ली थी। 
      इंकलाबी मजदूर केन्द्र के नेतृत्व में मजदूरों ने अपने आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए 29 जनवरी को अपने परिजनों को बुलाकर उनके माध्यम से ए.एल.सी. व प्रशासन पर दबाव बनाकर प्रबंधन से वार्ता करवाने की कोशिश की। 29 जनवरी को दोपहर एक बजे ए.एल.सी. से वार्ता की तो ए.एल.सी. ने एस.डी.एम. को फोन करके स्थिति से अवगत कराकर अपने ऊपर दबाव कम करने की गुहार लगाई
      ए.एल.सी. ने दोपहर ढाई बजे वार्ता का समय दिया। यह वार्ता भी कुछ हल निकालने में असफल रही। शाम 4 बजे त्रिपक्षीय वार्ता जिसमें मजदूर प्रबंधन व प्रशासन शामिल थे। इस वार्ता में भी प्रबंधन 14 नेतृत्वकारी मजदूरों को छोड़कर 108 मजदूरों को लेने को तैयार हो गया। मजदूरों द्वारा यह पूछने पर कि 14 नेतृत्वकारी मजदूरों को कब लिया जायेग तो प्रबंधन ने घरेलु जांच की बात की परंतु वापस लेने की कोई बात नहीं की। 30 जनवरी को पूरे दिन जब प्रबंधन का यही रुख कायम रहा तो मजदूरों ने अपनी पत्नियों, बच्चों व अन्य परिजनों के साथ एक जुलूस की की शक्ल में फैक्टरी गेट पहुंचे। भारी पुलिस बल व बल प्रयोग की धमकियों के बावजूद मजदूर व उनके परिजन फैक्टरी गेट पर जम गये और उनका संघर्ष एक नये मुकाम पर पहुंच गया। फैक्टरी गेट पर मजदूर व उनके परिजन पूरे जोशो खरोश के साथ डटे हैं।
ऐरा मजदूरों की शानदार जीत : 18 निलंबित मजदूर नेताओं की पंतनगर प्लांट में वापसी
   
     रुद्रपुर, 3 फरवरी औद्योगिक आस्थान सिडकुल स्थित ऐरा बिल्डिसिस प्रा. लि. के मजदूरों का संगठित, धैर्यपूर्ण व दीर्घकालिक संघर्ष आखिर रंग लाया। 3 फरवरी को कंपनी द्वारा निलंबित सभी 18 मजदूर नेताओं की सिडकुल पंतनगर प्लांट में वापस बहाली हो गयी है। ज्ञात हो कि विगत 21 जुलाई 2014 को कंपनी प्रबंधन, शासन-प्रशासन के गठजोड़ ने मजदूरों की नवगठित यूनियन को तोड़ने का घृणित षडयंत्र रचा। इस षडयंत्र के तहत दिनांक 21/07/2014 को यूनियन के ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान पुलिस द्वारा मजदूरों पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया और यूनियन के अध्यक्ष, उपाध्क्ष, महामंत्री समेत 18 मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अगले दिन यूनियन का मार्गदर्शन कर रहे इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट को स्थानीय पुलिस ने कलेक्ट्रेट परिसर से उस समय गिरफ्तार कर लिया जब वे यूनियन नेताओं के साथ एक ज्ञापन प्रेषित करने गये थे। इन सभी 19 लोगों को जेल भेज दिया गया। 
     लगभग एक माह तक जेल मे रहने के पश्चात ही सभी 19 लोग रिहा हुए। यह भी गौरतलब है कि इससे पूर्व मुख्य न्यायधिकारी (सी.जे.एम.) मजदूरों व इमके अध्यक्ष की जमानत की अर्जी खारिज कर दी थी। जिला जज द्वारा भी ऐरा प्रबंधन की भरपूर मदद की गयी और उन्होंने भी काफी विलंब के बाद मजदूरों को जमानत दी वह भी कुछ निश्चित शर्तों के साथ। इन शर्तों में पहली शर्त यह थी कि मजदूर घटनास्थल (फैक्टरी गेट के पास झंडारोहण स्थल) से 20 से 25 मीटर की दूरी पर होंगे। दूसरी शर्त यह थी कि इमके अध्यक्ष व यूनियन नेताओं को प्रत्येक माह की 25 तारीख को स्थानीय पंतनगर थाने मे हाजिरी देनी होगी। 
     पहली शर्त मालिकों की इच्छा के अनुरूप थी। इस फैसले को मजदूरों के जीने के अधिकार पर हमला मानते हुए और इसको चुनौती देते हुए यूनियन उच्च न्यायालय गयी। उच्च न्यायालय ने यूनियन की दलील को स्वीकार किया और मजदूरों को कंपनी में कार्य पर जाने की छूट दे दी। 
     इसके बाद यूनियन ने अपनी ताकत को समेटा और दूरदर्शिता एवं साहस का परिचय दिया। मजदूरों ने 18 नेतृत्वकारी साथियों का निलंबन खत्म करने की मांग के साथ डी.एम. कोर्ट पर धरना दिया। इसके साथ मजदूरों ने अपने परिजनों खासकर की महिलाओं को अपने आंदोलन से जोड़ा। आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए मजदूरों ने अंततः कंपनी गेट जाम कर जिला जज को भी तेवर दिखा दिये। अंततः दिसंबर माह में उप श्रम आयुक्त की मध्यस्थता में यूनियन व कंपनी प्रबंधन के बीच समझौता संपन्न हुआ। समझौते के अनुसार सभी 18 मजदूर नेताओं को 45 दिनों की ट्रेनिंग हेतु हरिद्वार जाना था। लेकिन कंपनी प्रबंधन अब तक यह समझ चुका था कि अब यूनियन नेतृत्व को ताकत के दम पर नहीं दबाया जा सकता। इसी कारण से 3 फरवरी 2015 को कंपनी प्रबंधन द्वारा सभी 18 यूनियन नेताओं की पंतनगर प्लांट में कार्यबहाली कर दी गयी। कंपनी प्रबंधन ने प्रस्ताव रखा कि फरवरी माह से मजदूरों के वेतन में 1500 रु की वृद्धि की जायेगी। 
      कुल मिलाकर सिडकुल पंतनगर में औद्योगिक अस्थान स्थापित होने के बाद से अब तक यह पहला मामला है जब पुलिस दमन, जेल आदि का सामना करने के बाद भी मजदूरों ने हिम्मत नहीं हारी और धैर्य के साथ अपने संघर्ष को जारी रखा और आगे बढ़ाया और अंततः जीत हासिल की। यह आंदोलन आज के चुनौती पूर्ण समय व विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य एवं साहस का परिचय देने की प्रेरणा सिडकुल पंतनगर के मजदूर आंदोलन सहित व्यापक मजदूर वर्ग को देता रहेगा। 


एवरेडी के श्रमिकों ने परिजनों के साथ मिलकर किया फैक्टरी गेट जाम  

         हरिद्वार, 29 जनवरी , श्रम विभाग व प्रशासन द्वारा लगातार एवरेडी श्रमिकों के शान्तिपूर्ण धरने को कोई तवज्जो  न देने व लगातार समझौता वार्ताओं में मजदूरों को थकाने छकाने के बाद मामले को श्रम न्यायालय के पास भेजने की कार्रवाई से क्षुब्ध होकर एवरेडी के मजदूरों ने कंपनी प्रबंधन के खिलाफ आर पार की लड़ाई का ऐलान करते हुए अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर फैक्टरी गेट जाम कर दिया है। इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने एवरेडी मजदूरों की इस शानदार कार्रवाई का स्वागत करते हुए उनके कंधे से कंधा मिलाकर इस संघर्ष को अपने मुकाम तक पहुंचाने का ऐलान किया है। इसके साथ ही इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने मजदूर वर्ग के  मित्रों,जनवादी व न्यायप्रिय लोगों से अपील की है कि वे एवरेडी मजदूरों के संघर्ष को तन मन धन से सहयोग करें ।         

अंततः प्रबंधन द्वारा फिर छले गये अस्ती मजदूर
         
         24 दिसंबर 2014 - गुड़गांव- अस्ती के मजदूर एक बार फिर प्रबंधन के छल फरेब का शिकार हुए हैं। अस्ती प्रबंधन  24 दिसंबर की वार्ता में पिछली वार्ता के दौरान 2011 के अलावा पी सी बी के मजदूरों को वापस काम पर रखने को लेकर दिखाये गये सकारात्मक रुख से पलट गया। मध्यस्थता कर रहे श्रम विभाग के अधिकारी भी पूरी तरह प्रबंधन के साथ खड़े होकर मजदूरों से 25 हजार रुपये लेकर हिसाब करने के लिए जोर देते रहेे।
        गौरतलब है कि प्रबंधन द्वारा पिछली वार्ता कुछ मुद्दों पर निर्णय के लिए पूरी तरह अधिकृत न होने की बात कहकर  उच्चतर प्रबंधन से सलाह करने व उसकी मंजूरी हासिल करने हेतू 24 दिसंबर की वार्ता तिथि निर्धारित की थी। प्रबंधन व श्रम विभाग की बाातों पर यकीन करते हुए मजदूरों ने उस समय सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय पर चल रहा अपना धरना समाप्त कर दिया था। इस बीच प्रबंधन पूरी तरह सक्रिय रहा। उसने ठेकेदारों के माध्यम सेे घेरघारकर कुछ मजदूरों को यह करते हुए कि बाद में कुछ नहीं मिलेगा 25 हजार रुपये में हिसाब लेने को मजबूर किया। ले देकर इस वार्ता में श्रम विभाग के साथ मिलकर वे मजदूरों को अधिकाधिक संख्या में हिसाब दिलाने की मंशा से आये थे। खैर मजदूरों द्वार का दृढ़तापूर्वक इसका प्रतिरोध करने के चलते इनके मंसूबे पूरे नहीं हो पाये। कुल मिलाकर अगली वार्ता में शीर्ष प्रबंधन की उपस्थिति की सहमति के साथ बिना किसी ठोस नतीजे के वार्ता समाप्त हो गयी। अगली वार्ता तिथि 6 जनवरी है।  

          
एवरेडी के मजदूरों ने किया जूलूस निकालकर प्रदर्शन 
 
       19 दिसंबर 2014-हरिद्वार (उत्तराखंड) - औद्योगिक आस्थान सिडकुल में स्थित एवरेडी कंपनी के मजदूरों ने एवरेडी प्रबंधन, श्रम विभाग एवं पुलिस प्रशासन के गठजोड़ के खिलाफ जुलूस निकालकर स्थानीय डी.एम. कोर्ट पर प्रदर्शन किया और ज्ञापन प्रेषित किया। जुलूस सिडकुल औद्योगिक अस्थान सिडकुल से होता हुआ डी.एम. कोर्ट पहुंचा जहां एक सभा के माध्यम से पूंजीपति-श्रम विभाग और एवरेडी प्रबंधन का भंडाफोड़ करते हुए चेतावनी दी गयी कि यदि मजदूरों की मांगे नहीं मानी गयीं तो आन्दोलन को तेज किया जायेगा। सभा के बाद मजदूरों ने डी.एम. को जो ज्ञापन सौंपा उसमें सभी निलंबित 14 मजदूरों को बिना शर्त वापस लेने की मांग की गयी। 
इससे पूर्व 19 दिसंबर को एवरेडी के मजदूरों ने पूरे सिडकुल क्षेत्र में श्रम विभाग, पुलिस प्रशासन व एवरेडी प्रबंधन के गठजोड़ का भंडाफोड़ करते हुए एक पर्चा निकाला। जुलूस के मार्ग को लेकर पुलिस प्रशासन के साथ मजदूरों की झड़प हुई। एवरेडी के मजदूरों के प्रतिनिधि अपने जुलूस के निर्धारित मार्ग के बारे में पुलिस प्रशासन को पहले ही सूचित कर आये थे। जुलूस निकालने से पहले पुलिस मजदूरों के धरना स्थल पर पहुंच गयी और उसने मजदूरों को धमकाना व हड़काना शुरु कर दिया। पुलिस नहीं चाहती थी कि एवरेडी के मजदूरों का जुलूस हीरो मोटोकाॅर्प कंपनी से गुजरे। वह उन्हें हीरो मोटोकाॅर्प कंपनी के सामने वाले मार्ग से हटकर थोड़ी ही दूर स्थित दूसरे मार्ग से जुलूस निकालने के लिए दबाव बना रही थी। लेकिन मजदूर पुलिस की धमकी से नहीं डिगे और उन्होंने पुलिस प्रशान से कह दिया कि जुलूस अपने निर्धारित मार्ग हीरो मोटोकाॅर्प के सामने से ही निकलेगा। गौरतलब है कि सिडकुल में अब तक कोई भी जुलूस हीरो मोटोकाॅर्प के सामने से नहीं गुजरा है। डी.एम. कोर्ट जाने के लिए पुलिस प्रशासन इस रास्ते से जुलूस ले जाने की इजाजत कभी नहीं दिया है। अब तक डी.एम. कोर्ट जाने के लिए सभी कंपनियों के आंदोलनरत मजदूर हीरो मोटोकाॅर्प के सामने से गुजरने वाले मार्ग की बजाय इसके बगल वाले मार्ग को ही चुनते आये हैं। यह अपने आप में एक नयी बात थी और पुलिस प्रशासन के लिए चुनौती थी कि एवरेडी मजदूरों का जुलूस हीरो मोटोर्कार्प के सामने से गुजरे। लिहाजा भारी मात्रा में पुलिस बल हीरो मोटोकाॅर्प से गुजरने वाले मार्ग पर तैनात कर दिया गया। जब मजदूरों का जुलूस हीरो मोटोकाॅर्प के पास पहंचा तो पुलिस से उनकी तीखी झड़प हुई। लगभग एक घंटे तक मजदूर जुलूस को हीरो मोटोकाॅर्प के सामने से गुजरने देने के लिए पुलिस से जद्दो जहद करते रहे। उन्होंने पुलिस प्रशासन व एवरेडी प्रबंधन के गठजोड़ के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की। अंततः पुलिस बल की भारी संख्या में तैनाती के चलते पुलिस का घेरा तोड़कर अपने निर्धारित मार्ग से जुलूस निकालने की योजना को मजदूरों को बदलना पड़ा लेकिन यह सकारात्मक अनुभव रहा कि मजदूरों ने पुलिस प्रशासन के मौखिक दबाव व धमकियों के आगे यूं ही समर्पण नहीं किया और प्रशासन को मजदूरों के जुलस का मार्ग बदलने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात करना पड़ा। 
मजदूरों ने जुलूस के दौरान श्रम विभाग, पुलिस प्रशासन व एवरेडी प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। मजदूरों ने अपने हाथ में पुलिस प्रशासन, श्रम विभाग व एवरेडी प्रबंधन के गठजोड़ के खिलाफ तख्तियां व पोस्टर ले रखे थे। जुलूस और उसके बाद डी.एम. कोर्ट में हुयी सभा के दौरान मजदूरों ने पूरे जोश व अक्रोश क साथ अपने तेवरों को प्रदर्शित किया। जूलूस व प्रदर्शन में 150 तक मजदूरों की भागीदारी रही। आंदोलन को तेज करने के संकल्प व प्रशासन को ज्ञापन के माध्यम से चेतावनी देने के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। 
एवरेडी के मजदूरों के संघर्ष में इंकलाबी मजदूर केन्द्र की नेतृत्वकारी भूमिका रही। इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने मजदूरों की मांग तुरंत नहीं माने जाने पर संघर्ष को उग्र करने की चेतावनी प्रशासन को दी। 
  
मजदूरों व प्रबंधन के बीच गतिरोध जारी
   
      17 दिसंबर 2014-गुड़गांव,अस्ती कंपनी के प्रबंधन व मजदूरों के बीच पूर्व निर्धारित  वार्ता बिना किसी निष्कर्ष के समाप्त हो गयी। वार्ता में प्रबंधन के पक्ष से आई मुख्य वार्ताकार ने मौखिक तौर पर 2011 से पहले से कार्यरत मजदूरों को काम पर वापस लेने पर सहमति जताई पर पी. सी. बी. व अन्य के मजदूरों के संबंध में बात करने पर सारे मामलों में  निर्णय लेने के लिए अधिकृत न होने की बात कहकर अन्य मामलों पर विचारार्थ समय की मांग की। वार्ता को जारी रखने की सहमति और 24 दिसंबर को वार्ता की अगली तारीख तय करने के साथ वार्ता समाप्त हो गयी।
      वार्ता समाप्त होने बाद के अस्ती के मजदूरों ने पाकिस्तान में आतंकी हमले में मारे गये बच्चों व नागरिकों को श्रद्धांजलि दी। 

प्रशासन के दमनात्मक रूख के बावजूद अस्ती के मजदूरों का संघर्ष जारी
अस्ती और मुंजाल कीरू के मजदूरों का उपायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन
गुड़गांव, प्रशासन के लगातार दमनात्मक व्यवहार, ठेकेदार व स्थानीय दबंगो व गुंडा तत्वो की धमकियों व प्रबंधन के छल फरेब व हर तरह की पतित व घिनौनी कार्यवाहियों के बावजूद अस्ती इलेक्ट्रानिक्स इंडिया के मजदूर लगातार संघर्ष के मैदान में डटे हैं।

अस्ती प्रबंधन के इशारों पर नाचते हुए गुड़गांव प्रशासन इस हद तक उतर आया कि वह मजदूरों को ए.एल.सी. कार्यालय के सामने शांतिपूर्ण धरना तक देने को तैयार नहीं है।
15 दिसंबर को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मजदूर स्थानीय कमला नेहरू पार्क पहुंचे और वहां से एक जुलूस की शक्ल में ए.एल.सी. कार्यालय पहुंचे। मजदूरों के पहुंचने की भनक लगने पर ए.एल.सी. महोदय वहां से गायब हो गये। मजदूर वहीं ए.एल.सी. के कार्यालय के दरवाजे के पास बरामदे में बैठ गये। मजदूरों के पहुंचते  ही भारी संख्या में पुलिस बल, आधा दर्जन राइफलधारी ब्लैक कैट कमांडो व बड़ी तादात में महिला पुलिस वहीं पहुंच गयी। उन्होंने मजदूरों से ए.एल.सी. कार्यालय से बाहर जाने या फिर किसी दमनात्मक कार्यवाही को झेलने की धमकी दी। काफी जद्दोजहद के बाद मजदूर ए.एल.सी. कार्यालय के बाहर परिसर के अंदर धरने पर बैठ गये। यहां पर भी प्रशासन मजदूरों को बैठने देने के लिए तैयार नहीं हुआ और अंततः ए.एल.सी. कार्यालय परिसर के बाहर शाम 5 बजे तक ही धरने पर बैठने देने के लिए तैयार हुआ। मजदूर शाम 5 बजे के बाद भी धरने पर डटे रहे। इस बीच पुलिस व महिला मजदूरों पर धरना खत्म करने का दबाव बनाने लगे लेकिन मजदूरों ने स्पष्ट बोल दिया कि आपके कहने पर अब हम यहां से नहीं हटेंगे जो भी होगा वह हमारे अपने फैसले से होगा। मजदूरों ने शाम 7:30 बजे तक धरना चलाया व अगले दिन 9 बजे पुनः धरना शुरु करने का निर्णय लिया। इस दौरान मजदूरों ने प्रशासन के साथ जद्दोजहद कर 18 दिसंबर की प्रस्तावित वार्ता की तारीख को एक दिन पहले 17 दिसंबर करवाने में सफलता प्राप्त की।
16 दिसंबर को पूर्व योजना क अनुसार जैसे ही 9 बजे अस्ती के मजदूर ए.एल.सी. कार्यालय पंहुचे भारी संख्या में पुलिस बल, कमांडो व महिला पुलिस ए.एल.सी. के कार्यालय परिसर में तैनात थी। इसी दिन एक अन्य कंपनी मुंजाल कीरू के मजदूरों की भी की तारीख थी। मुंजाल कीरू के मजदूर स्थानीय कमला नेहरू पार्क से जुलूस की शक्ल में ए.एल.सी. पहंचे थे। मुंजाल कीरू के नेतृत्वकारी साथी जैसे ही वार्ता के लिए ए.एल.सी. कार्यालय के अंदर गये, पुलिस व कमांडो फोर्स ने जबरन अन्य मजदूरों को ए.एल.सी. कार्यालय परिसर से बाहर कर दिया। अस्ती कंपनी के मजदूर प्रतिनिधि भी ए.एल.सी. से मिलने गये जिन्हें अगले दिन 17 दिसंबर को तय समय पर आने को कहा। इसके पश्चात जैसे ही अस्ती अपना धरना जारी रखने के लिए तैयार हो रहे थे तो भारी संख्या में पुलिस व कमांडो व महिला पुलिस वहां पहुंच गयी व उन्हें बाहर निकालने के लिए धमकाने लगी। मजूदरों ने प्रतिरोध किया तो पुलिस बल धक्का मुक्की पर उतर आया। पुलिस ने प्रतिरोध कर रहे इंकलाबी मजदूर केन्द्र के एक कार्यकर्ता व अस्ती मजदूरों के संघर्ष को नेतृत्व दे रहे मजदूर राघवेन्द्र को अपनी गाड़ी में बैठा लिया व उन्हें गिरफ्तार कर थाने ले जाने लगी। पुलिस की इस कार्यवाही का मजदूरों, खासकर महिला मजदूरों ने जबर्दस्त विरोध किया। भारी संख्या में महिला मजदूर पुलिस की गाड़ी के सामने आ गयीं और उन्होंने मांग की कि अगर आपको गिरक्तारी करनी है तो हमस ब को गिरफ्तार करो। मजदूरों के प्रतिरोध व तेवर से घबराकर पुलिस को अंततः दोनों साथियों को छोड़ना पड़ा। इसके बाद अस्ती के मजदूरों ने उपायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन कर आयुक्त से शांतिपूर्ण धरना न देने का कारण पूछने की बात की। मुंजाल कीरू के मजदूर भी उनके साथ हो लिये। अस्ती व मुंजाल कीरू के मजदूर जुलूस की शक्ल में पुलिस प्रशासन के दमनात्मक रुख के खिलाफ नारेबाजी करते हुए उपायुक्त कार्यालय पंहुचे। मजदूरों के उपायुक्त कार्यालय पर पहंचने पर एस.डी.एम. मजदूरों से बात करने पहंचे। मजदूरों ने एस.डी.एम. को घेरकर शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन नहीं करने देने का कारण पूछा व प्रशासन पर पूंजीपतियों के इशारों पर नाचने का आरोप लगाया। आखिरकार एस.डी.एम. को उपायुक्त के माध्यम से शाम 4 बजे तक शांतिपूर्ण धरने की इजाजत देने के लिए बाध्या होना पड़ा। विजयी जुलूस की शक्ल में मजदूर वापस ए.एल.सी. कार्यालय पहुंचे जहां कार्यालय के बाहर उन्होंने अपना धरना जारी रखा। 
इससे पूर्व 12 दिसंबर को जब मजदूर आई.एम.टी. मानेसर में अस्ती कंपनी के गेट के सामने धरने पर बैठ गये तो ठेकेदारों द्वारा लगातार मजदूरों को धमकाया जाता रहा कि हिसाद ले लो वरना उठवा देंगे। जे.सी.बी. से कुचल देंगे। 13 दिसंबर को रात में धरने पर बहुत कम मजदूर थे तो गांव के कुछ दबंग लोगों व अपने लगुवे भगुवों के साथ ठेकेदार मजदूरों के टैंट में पहुंचकर उन्हें हिसाब लेने के लिए धमकाने लगे। एक मजदूर को गाड़ी में बैठाकर बंधक बनाते हुए उन्होंने इस्तीफे के कागज पर दस्तखत करवा लिये। कम संख्या होने के चलते उस समय बाकी मजदूर अपना सामान समेटकर किसी तरह वहां से निकल लिये।
इसके बाद ठेकेदार के लोगों व दबंगो द्वारा मजदूरों का टैंट भी उखाड़ दिया गया। अगले दिन 14 दिसंबर को मजदूरों ने धारूहेड़ा में टाउनपार्क में बैठक की जिसमें इमके के व एन.एस. व कुछ मजदूर यूनियनों के प्रतिनिधि शामलि थे। बैठक में 15 दिसंबर को ए.एल.सी. कार्यालय पर धरने की योजना बनी। इस बीच ठेकेदार व प्रबंधन क दलाल मजदूरों को घेरकर हिसाब करवाने की कोशिश में लगे रहे। लेकिन मजदूरों ने अपने संघर्ष का जज्बा कायम रखा और अभी तक उनका यह जज्बा बुलंद है। 

शासन प्रशासन की बेरुखी के बावजूद अस्ती के मजदूरों का संघर्ष जारी 
तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों व शासन प्रशासन के छल फरेब व उपेक्षा के बावजूद अस्ती के मजदूरों का संघर्ष जारी है।
      10 दिसंबर को ठेकेदार द्वारा अस्ती यूनियन के अध्यक्ष के साथ अभ्रदता के खिलाफ कंपनी के स्थायी मजदूरों की हड़ताल शाम 6-7 बजे ठेकेदार द्वारा माफी मांगने के साथ खत्म हो गयी। अस्ती के संघर्षरत ठेका मजदूरों द्वारा मजदूरों को उम्मीद थी कि यूनियन ठेकेदार की अभ्रदता के साथ ठेका मजदूरों के काम पर वापस लेने के भी पुरजोर संघर्ष करेगी और इसके बगैर समझौता नहीं करेगी लेकिन उनकी यह उम्मीद पूरी नहीं हुयी। जैसा कि पहले विदित है कि 10 दिसंबर को ही शाम को एस.एच.ओ. मानेसर सहित श्रम विभाग के दो अधिकारी मजदूरों के पास आये और एक फर्जी कागज दिखाकर आंदोलन व भूख हड़ताल खत्म करने के लिए कहने लगे। जब मजदूरों ने 12/3 के तहत समझौता करने की बात करने कहकर फर्जी कागज वापस कर दिया तो एस.एच.ओ. व श्रम अधिकारी मजदूरों को कानून का पाठ पढ़ाते हुए धमकाने लगे और आंदोलन खत्म करने का दबाव बनाने लगे। श्रम अधिकारी तो मजदूरों को यहां तक बोल गये कि अब सहायक श्रम अधिकारी के साथ अपनी वार्ता इस मोड़ पर खत्म समझो।
10 दिसंबर को अन्य यूनियनों के आग्रह तथा भूख हड़तालियों की लगातार बिगड़ती हालत के मद्देनजर मजदूरों ने अपनी भूख हड़ताल खत्म कर संघर्ष को अन्य रूपों में जारी रखने का फैसला किया। मजदूरों के लिए यह स्थिति बेहद पीड़ादायी थी लेकिन स्थायी मजदूरों व यूनियन ने ऐन मौके पर अपेक्षित सहयोग न मिल पाने के चलते मजबूरी में मजदूरों ने यह फैसला किया।
संघर्ष के अन्य रूपों की ओर बढ़ते हुए मजदूरों ने श्रम अधिकारियों द्वारा 10 दिसंबर को ए.एल.सी. के साथ वार्ता खत्म होने की धमकी का जवाब देने के उपक्रम में 11 दिसबंर को स्थानीय कमला नेहरू पार्क पहुंचे। ए.एल.सी. दफतर पर जोरदार नारेबाजी करते हुए सभी मजदूर ए.एल.सी. दफतर में घुस गये और उन्होंने अंदर ही सभा की। ए.एल.सी. महोदय चंडीगढ़ जा रहे थे और उनसे फोन पर ही बात हुयी। फोन पर बात करते हुए ए.एल.सी. ने 18 दिसंबर को त्रिपक्षीय वार्ता का आश्वासन दिया। इस तरह मजदूरों ने श्रम विभाग के अधिकारियों की धमकी का उत्तर देते हुए प्रतिरोध कर इस मुद्दे पर प्रतीकात्मक जीत हासिल की। अंत में सोमवार को जोरदार प्रदर्शन की चेतावनी के साथ मजदूरों धरना समाप्त कर दिया।

ऐेरा प्रबंधन के यूनियन तोड़ने के घृणित इरादे विफल
सभी 18 बर्खास्त मजदूरों की कार्यबहाली के साथ समझौता सम्पन्न
       रुद्रपुऱ(उत्तराखंड), सभी 18 बर्खास्त ऐरा मजदूरों की कार्यबहाली केे  साथ दिनांक 09/12/2014 को उपश्रमायुक्त कुमाऊं क्षेत्र की मध्यस्थता में त्रिपक्षीय वार्ता में समझौता संपन्न हुआ। 
     समझौते के बिंदु (1) में समस्त 18 बर्खास्त मजदूरों की कार्यबहाली करने, बिंदु (2) में सभी 18 मजदूरों को 20/12/2014 से कंपनी के उत्तराखण्ड स्थित सम्भागों में 45 दिन की तकनीकी प्रशिक्षण हेतु भेजने, बिंदु (3)उपरोक्त 45 दिन की अवधि में मजदूरों के नियमानुसार एवं आवश्यकतानुसार अवकाश देने, बिंदु (4) में 45 दिन की उपरोक्त अवधि के बाद मजदूरों को पुनः रुद्रपुर इकाई में वापस भेजने, बिन्दु (7) में मजदूरों को इस दौरान 700रु. का रीलोकेशन भत्ता देने, बिंदु (8) में मजदूरों को स्थल सापेक्ष भत्तों का भुगतान करने व बिंदु (11) में उपरोक्त अवधि में मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा ई.एस.आई. आदि प्रबंधन द्वारा नियमानुसार देय होने, बिंदु (12) में दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे के खिलाफ दिये गये शिकायती पत्रों को वापस लेने समेत 12 बिंदु दर्ज हैं।
       12 दिसम्बर 2014 को कम्पनी प्रबंधकों द्वारा समस्त 18 मजदूरों की कार्यबहाली करते हुये पत्र हस्तगत कर मजदूरों से यथाशीघ्र कार्य पर उपस्थित होने की अपील की है। 
       विदित है कि 21 जुलाई 2014 को यूनियन के ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान ऐरा प्रबंधन द्वारा पुलिस एवं सिडकुल प्रबंधन के सांठगांठ कर मजदूरों पर बर्बर लाठी चार्ज कर यूनियन के अध्यक्ष महामंत्री एवं उपाध्यक्ष समेत 18 मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 22 जुलाई 2014 को अगले दिन आंदोलन का नेतृत्व कर रहे इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट को कलेक्ट्रेट से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। सभी 19 लोग लगभग 25 दिनों के बाद जमानत पर रिहा हुए थे। 
ऐरा प्रबंधन द्वारा पहले सभी उपरोक्त 18 मजदूरों को 11 अगस्त 2014 को निलम्बित (सस्पैण्ड) कर दिया गया। उसके पश्चात फर्जी घरेलू जांच बिठाकर 15/11/2014 को 16 मजदूरों एवं 17/11/2014 को 2 मजदूरों को बर्खास्त कर दिया गया। 
ऐरा प्रबंधकों, पुलिस, प्रशासन, जिला जज सभी ने एकजुट होकर यूनियन तोड़ने के भरपूर प्रयास किये। जिला जज ने मजदूरों की जमानत देते हुए षर्त लगा दी कि मजदूर घटना स्थल से 20-25 मीटर की परिधि से बाहर रहेंगे, जबकि घटनास्थल कंपनी के मुख्य प्रवेश द्वार के बिल्कुल निकट स्थित है। इसके अलावा जमानत के समय जिला जज द्वारा बयान दिया गया कि ‘‘ये काम करने थोड़े आये हैं, अराजकता फैलाने आये हैं।’’ 
पुलिस प्रशासन द्वारा मजदूरों की गंभीर तहरीरों के बाद भी ऐरा प्रबंधकों को गिरफ्तार नहीं किया गया। सिडकुल के जे.ई.की झूठी तहरीर रातों-रात तैयार कर पुलिस द्वारा मुस्तैदी से 19 मजदूर नेताओं को जेल भेजा गया। श्रम विभाग एवं जिला प्रशासन धृतराष्ट्र की भांति आंखों पर पट्टी बांधकर अपनी लाचारी- बेबसी दिखाते रहे। 
इस सबके बावजूद भी मजदूरों ने हार न मानी जेल से रिहा होते ही यूनियन द्वारा बहुत ज्यादा समय गंवाये बिना अपनी ताकत एवं हौसले को पुनः समेटा व डी.एम. कोर्ट पर अनिष्चितकालीन धरने पर बैठे। इतने से भी बात न बनने पर मजदूरों द्वारा अपने परिवार की महिलाओं को भी अपने आंदोलन में जोड़ा। मजदूर एवं महिलायें कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष में उतर पड़े।  एडी.एम से लेकर डी.एम.एवं श्रम अधिकारियों के घेराव किये गये। इस पर भी बात न बनते देख ऐरा मजदूर यूनियन द्वारा विभिन्न यूनियनों एवं सामाजिक संगठनों के साथ मोर्चा बनाकर संघर्ष तेज करने के प्रयास शुरू हुए। 
27/11/2014 को यूनियन द्वारा सामूहिक हड़ताल शुरू कर दी गई। 27/11/2014 को ही कंपनी गेट के मुख्य प्रवेष द्वार को जाम कर कंपनी प्रबंधकों को दिनभर बंधक बनाये रखा। इस दौरान सैकड़ों महिलायें, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र एवं विभिन्न यूनियनों के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं समेत लगभग 500 लोग उपस्थित थे। उपस्थित जनसमूह ने जिला कोर्ट के जज को  दिखा दिया कि यदि अदालतें जन भावनाओं एवं हितों के खिलाफ हिटलरी आदेश देंगी तो मजदूर मेहनतकश अवाम अपने संघर्षों के दम पर शासन प्रशासन को श्रम कानूनों को लागू करने के लिए मजबूर कर देगी और लागू करवायेगी। 
दिनांक 09/12/2014 को जहां एक तरफ उपश्रमायुक्त की मध्यस्थता में त्रिपक्षीय वार्ता चल रही थी वहीं दूसरी ओर इंकलाबी मजदूर केन्द्र की महिला कार्यकर्ता के नेतृत्व में महिलायें डी.एम.का घेराव कर मोर्चा संभाले हुए थीं। डी.एम. द्वारा महिलाओं को डराने के उद्देश्य से बौखलाहट में चीख-चीख कर हड़काया जा रहा था परन्तु महिलाओं पर इसका तनिक भी असर न हुआ और महिलायें मोर्चें पर डटी रहीं। महिलाओं ने डी.एम. को चेतावनी दी किय यदि आज समझौता न हुआ तो मजदूर और महिलायें मिलकर कल 10/12/2014 से कंपनी का गेट जाम कर देंगी। 
अंततः 09/12/2014 को सभी मजदूरों की कार्यबहाली के साथ उपरोक्त 12 सूत्री समझौता हुआ। कंपनी प्रबंधकों ने चाल चली थी कि इस वार्ता को विफल कर मामले को कोर्ट में डाल दिया जाये। मामला सालों-साल लेबर कोर्ट में घिसटता रहे और यूनियन तोड़ दी जाये। यूनियन नेतृत्व ने समझबूझ का परिचय देते हुए समझौता कर लिया।
इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा यूनियन नेतृत्व को पहले ही आगाह कर दिया गया था कि मामले को लेबर कोर्ट में भेजने की साजिश रची जा रही है। सम्मानजनक समझौते की स्थिति आते ही दूरगामी एकता को ध्यान में रखते हुए तात्कालिक तौर पर कुछ पीछे हटकर समझौता करना व्यवहारिक तौर पर सही रणनीति थी क्योंकि समय काफी बीत चुका था। धरने का 56 वां दिन एवं 18 मजदूरों की कामबंदी का लगभग 5वां महीना था संघर्ष को बहुत अधिक लंबा खींचना खतरनाक हो सकता था। यूनियन नेतृत्व द्वारा इस स्थिति को भांपकर समझौता कर लिया गया। 
सिडकुल पंतनगर में यह पहला मामला है जब मजदूरों ने दमन एवं जेल के बाद भी अपने साहस को बटोरते व संगठित होकर संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए निरंतर अपने संगठित एकता को मजबूत बनाते चले गये और अंत में सफल भी हुए। एरा मजदूरों का यह संघर्ष एक मिसाल बनता है जो सिडकुल की अन्य यूनियनों को भी कठिन हालातों मंे भी हिम्मत न करने एवं संघर्ष को रास्ते पर चलने को प्रेरित करेगा। 
शिरडी यूनियन के सफल आंदोलन के बाद इस आंदोलन ने भी इस बात को साबित किया है कि मजदूरों के परिवार की महिलाओं का संघर्ष में शामिल होना आंदोलन में निर्णायक साबित होता है।  सिडकुल पंतनगर में मजदूर संघर्षों में महिलाओं पर भरोसा कर संघर्ष में शामिल करने की प्रवृत्ति लगभग गायब है। इसलिए इसे रेखंाकित करना अत्यंत आवश्यक है। 

अंत में ऐरा यूनियन नेतृत्व को किसी मुगालते एवं खुशफहमी में पड़ने के स्थान पर समझना  होगा कि कंपनी प्रबंधन यूनियन पर पुनः हमले कर सकता है। यह हमला सामने से भी हो सकता है और घात लगाकर भी। ज्यादा और घात लगाकर हमले की संभावना ज्यादा है। ऐसे हमले ज्यादा घातक एवं खतरनाक होते हैं। इस सब से निपटने का यही उपाय यह है कि यूनियन  की मजबूती के साथ-साथ अन्य एवं यूनियनों एवं सामाजिक संगठनों के साथ संग्रामी एकजुटता कायम करते हुए  मजदूरों की वर्गीय एकता को निरंतर मजबूत किया जाय और यूनियन सदस्यों का निरंतर राजनीतिकरण किया जाय। 
अस्ती के मजदूरों का संघर्ष जारी
      अवैध तरीके से छटनी किए जाने के खिलाफ अस्ती के ठेका मजदूरों का संघर्ष जारी है। अस्ती मजदूरों के इस संघर्ष को अब प्रशासन व श्रम विभाग द्वारा अनदेखा करना मुश्किल होता जा रहा है वहीं अस्ती के मजदूरों के पक्ष में विभिन्न मजदूर यूनियनों का समर्थन बढ़ता जा रहा है।
       8 दिसंबर को अस्ती के मजदूरों की भूख हड़ताल के 14वें दिन अस्ती कंपनी के अंदर स्थायी मजदूरों ने काला फीता बांधकर काम किया व ठेका मजदूरों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर की। 9 दिसंबर को एक ठेकेदार द्वारा यूनियन अध्यक्ष के साथ इस मामले को लेकर अभद्रता की व एक ठेका मजदूर को काला फीता बांधने पर एतराज जताया गया। विवाद को आगे बढ़ाते हुए ठेकेदार ने यूनियन अध्यक्ष को थप्पड़ मार दिया। इस घटना के बाद 9 दिसंबर को ही दिन में 12 बजे से अस्ती के स्थायी मजदूरों ने कंपनी के भीतर बैठकी हड़ताल शुरु कर दी। इस हड़ताल से श्रम विभाग व प्रशासन में हड़कंप मच गया। कारखाने में भारी मात्रा में पुलिस तैनात कर दी गयी।
       उप श्रम आयुक्त व पुलिस अधिकारी भागे-भागे आये। अब तक अस्ती के ठेकेदारी के 310 मजदूरों के संघर्ष पर आंख मूंदने वाले व उनकी भूख हड़ताल व शांतिपूर्ण विरोध की उपेक्षा करने वाले पुलिस अधिकारी मजदूरों के संघर्ष के थोड़ा आक्रामक होने की बू पाते ही हरकत में आ गये। पुलिस, श्रम विभाग व प्रशासन की मौजूदगी में यूनियन के साथ वार्ता का दौर चलता रहा। अन्य कारखानों की यूनियनों के भी प्रतिनिधि अस्ती में मजदूरों के संघर्ष में एकजुटता दिखाते हुए वहीं पहुंचे।। सभी यूनियन प्रतिनिधियों ने एक तीन सूत्रीय समझौते का प्रारूप सुझाया जिनकी तीन मांगे इस तरह थीं -
1-ठेकेदार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाय।
2-ठेकेदार का ठेका निरस्त किया जाय ।
3- नौकरी से निकाले गये अस्ती के सभी मजदूरों को वापस काम पर लिया जाय।
        अस्ती के स्थायी मजदूरों की यूनियन एच.एम.एस. से जुड़ी है। एच.एम.एस. के नेताओं ने समझौता परस्ती दिखाते हुए महज ठेकेदार के माफी मांगने पर शाम 8 बजे बैठकी हड़ताल खत्म कर दी।
       इसी दौरान प्रबंधन, श्रम विभाग व प्रशासन के प्रतिनिधि अस्ती के संघर्षरत ठेका मजदूरों के पास भी आये और उन्होंने मजदूरों को यह कहकर भूख हड़ताल व आन्दोलन खत्म करने की बात की कि प्रबंधन लिखित तौर पर यह आश्वासन दे रहा है कि काम आने पर उन्हें ही प्राथमिकता में रखा जायेगा।
     लेकिन मजदूरों ने जैसे ही इस आश्वासन पत्र को देखा तो उन्हें प्रशासन, श्रम विभाग व प्रबंधान गठजोड़ की चालाकी समझ में आ गयी। आश्वासन पत्र पर न कोई मोहर थी, न ही अस्ती के लैटर हैड पर ही यह छपा था। मजदूरों को मूर्ख बनाने के लिए एक सादे कागज पर यह आश्वासन लिखा गया था। मजदूरों ने धूर्ततापूर्ण साजिश को खत्म कर दिया।
       9 दिसंबर को ही भूख हड़ताल के पन्द्रहवें दिन एक भूख हड़ताली महिला मजदूर भावना को तबियत बिगड़ने पर मजदूरों द्वारा स्थानीय ई.एस.आई. अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
      इससे पूर्व 8 दिसंबर को अस्ती मजदूरों के समर्थन में विभिन्न मजदूर यूनियनों ने सहायक श्रम आयुक्त गुड़गांव  से मिलकर उन्हें एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में अस्ती के छटनी किये गये मजदूरों को वापस काम पर रखने व वैबसटर, मुंजाल कीरू व अन्य कारखानों के श्रमिक विवादों का हल करने की मांग की गयीं उम श्रम आयुक्त ने अस्ती के मामले में कोई आश्वासन नहीं दिया बल्कि दबे स्वर में भूख हड़तालियों को उठवाने की धमकी दी। मजदूरों के प्रतिनिधि मंडल में मारुति उद्योग कर्मचारी यूनियन (गुड़गांव प्लांट), मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन (मानेसर प्लांट), मारुति सुजुकी बाइक प्लांट यूनियन, मारुति सुजुकी पावर ट्रेन यूनियन, हीरो मोटोकाॅर्प वर्कर्स यूनियन, बैक्सटर यूनियन, सत्यम आटो वर्कर्स यूनियन व एन्डोरेन्स मजदूर यूनियन के प्रतिनिधि शामिल थे। अस्ती के ठेका मजदूरों के संघर्ष को हतोत्साहित करने के लिए श्रम विभाग व प्रशासन ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है।
       2 दिसंबर को भूख हड़ताल के आठवें दिन महिला मजदूरों का एक शिष्टमंडल उपायुक्त (डी.सी.) से मिलने गया तो उपायुक्त ने मिलने से मना कर दिया। पुनः 3 दिसंबर को आन्दोलन के एक माह पूरा होने तथा भूख हड़ताल के नौवें दिन महिला मजदूरों का एक शिष्ट मंडल पुनः उपायुक्त से मिला। उपायुक्त ने भूख हड़ताल के नौ दिन पूरे होने की बात क सुनकर मजदूरों को धमाकने वाले अंदाज में कहा ‘‘ खाना खिलाओ भूख हड़ताल के नाम पर मुझे ब्लैक मेल मत करो।’’ जाहिर है कि कंपनी प्रबंधन की अवैध छटनी उपायुक्त के लिए कोई परेशानी की बात नहीं थी। मजदूरों का आन्दोलन व भूख हड़ताल उनके लिए ब्लैक मेल करने की कार्रवायी थे। खैर उपायुक्त ने मजदूरोें को सहायक श्रम आयुक्त (ए.एल.सी.) से बात करने की सलाह दी। मजदूरों का प्रतिनिधि मंडल 5 दिसंबर को जब सहायक श्रमायुक्त से मिला तो उन्होंने साफ कह दिया कि जापानी कंपनी अस्ती पर उनका कोई हस्तक्षेप काम नहीं करेगा लिहाजा मजदूरों का आन्दोलन व भूख हड़ताल खत्म कर देनी चािहए। कुल मिलकार श्रम विभाग व प्रशासन अस्ती प्रबंधन के साथ मिलकर मजदूरों को थकाने व छकाने का काम ही कर रहा है।
एवरेडी के मजदूर संघर्ष की राह पर 
प्रबंधन को गैर कानूनी लाॅक आउट वापस लेने को किया मजबूर 
        हरिद्वार (उत्तराखंड), औद्योगिक अस्थान सिडकुल में एवरेडी के मजदूरों ने अपने संघर्ष की बदौलत प्रबंधन को गैरकानूनी तालाबंदी वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया।
       मजदूरों के त्रिपक्षीय समझौते को टालने की नीयत से व मजदूरों पर दबाव बनाने की नीयत से यह गैरकानूनी तालाबंदी की गयी थी। एक दिसंबर को जब ए शिफ्ट के मजदूर ड्यूटी करने गये तो वहां फैक्टरी गेट पर ताला लगा हुआ था। गेट पर पुराना स्टे आर्डर व तालाबंदी का नोटिस चिपका हुआ था। प्रबंधन फैक्टरी से नदारद था तथा फैक्टरी के अंदर पुलिस तैनात थी। यह नजारा देखकार मजदूर वहीं फैक्टरी गेट पर बैठ गये। ए शिफ्ट के मजदूरों ने अन्य शिफ्ट  के मजदूरों को भी वहीं बुला लिया।
      इसी दौरान मजदूरों के प्रतिनिधियों ने उप श्रम आयुक्त व जिलाधिकारी को प्रबंधन द्वारा गैरकानूनी तालाबंदी की बात से अवगत कराकर उनसे गैरकानूनी तालाबंदी को खत्म कराने की अपील की। परन्तु उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उन्होंने इस गैरकानूनी तालाबंदी खत्म करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।
      श्रम आयुक्त द्वारा मामले की गंभीरता से न लेने के चलते क्षुब्ध होकर मजदूरों ने 2 दिसंबर को उप श्रम आयुक्त कार्यालय के बाहर ही धरना शुरु कर दिया। इस बीच अखबार में मजदूरों के नेतृत्व सहित 14 मजदूरों को निलंबित होने की सूचना आयी। प्रबंधन की इन कार्यवाहियों से मजदूरों के हौसले पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
     गौरतलब है कि एवरेडी में तीन वर्षीय समझौता सितंबर 2014 में पूरा हो गया। तभी से प्रबंधान के साथ समझौता वार्ता चल रही है। उप श्रम आयुक्त की मध्यस्थता में त्रिपक्षीय वार्ताएं भी चल रही हैं। 28 नवंबर के दिन की त्रिपक्षीय वार्ता बनतीजा रही। अगली वार्ता की तिथि 5 दिसंबर तय की गयी थी। लेकिन त्रिपक्षीय वार्ता को टालने की नीयत से प्रबंधन ने 1 दिसंबर को ही अवैध तालाबंदी कर दी। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं को जैसे ही यह सूचना मिली तो मजदूरों के समर्थन में वे तुरंत फैक्टरी गेट व बाद में ए.एल.सी. कार्यालय पहंुचे। उन्होने मजदूरों के इस संघर्ष में लगातार सहयोग व मार्गदर्शन दिया व मजदूरों का हौसला बढ़ाया। इस बीच 5 दिसंबर की त्रिपक्षीय वार्ता विफल हो गयी लेकिन प्रबंधन को गैरकानूनी तालाबंदी वापस होने के लिए मजबूर होना पड़ा। फिलहाल मजदूरों का संघर्ष जारी है।
7 वर्षीय बालिका के साथ दुराचार के बाद नृशंस हत्या से जनता आक्रोशित
       हल्द्वानी (उत्तराखण्ड), 20 नवम्बर को अपने परिजनों के साथ एक विवाह समारोह में पिथौरागढ़ से हल्द्वानी आयी 7 वर्षीय बच्ची कशिश की बलात्कार के बाद नृशंस हत्या की घटना से हल्द्वानी व पिथौरागढ़ में जनता में भयंकर आक्रोश है। जनता का आक्रोश मूलतः महिलाओं व बच्चियों की असुरक्षा व पुलिस प्रशासन की इस संबंध में संवेदनहीनता के खिलाफ है।
25 नवम्बर को घटना स्थल से कुछ दूर लगभग 1-1) किलोमीटर दूर जंगल में बच्ची की लाश बरामद होने के बाद जनता का गुस्सा स्वतः स्फूर्त तरीके से फूट पड़ा। जनता ने जगह-जगह सभायें, रैलियां, कैंडिल मार्च, राष्ट्रीय राजमार्ग जाम करन,े बंद व चक्का जाम जैसी कार्रवाइयों द्वारा अपना आक्रोश व्यक्त किया। हल्द्वानी व पिथौरागढ़ शहरों में 26 नवम्बर को पूर्ण बंद व चक्का जाम रहा। पूरे कुमाऊं कमिश्नरी में इस घटना के विरोध में प्रदर्शन हुए। 27 नवम्बर को भी हल्द्वानी में शिक्षण संस्थान बंद रहे तथा जनता के प्रदर्शन चलते रहे। जो 29 नवम्बर को भी जारी रहे।
गौरतलब है कि 20 नवम्बर को हल्द्वानी के शीशमहल इलाके में रामलीला मैदान में आयोजित विवाह समारोह में 7 वर्षीय बच्ची कशिश गायब हो गई। परिजनों व अन्य लोगों द्वारा भी काफी खोजबीन के बादभी उसका पता नहीं चला। पता सिर्फ इतना चला कि बच्ची को किसी अपरिचित व्यक्ति द्वारा प्रलोभन देकर जूस में नशीला पदार्थ मिलाकर अगवा किया गया। बच्ची की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस को उसी दिन दे दी गई लेकिन असंवेदनशीलता दिखाते हुए इस मामले में पुलिस ने कोई तत्परता नहीं दिखाई। जनता ने खुद जांच-पड़ताल करते हुए एक डम्परचालक को शक के आधार पर पकड़कर पुलिस को उसी रात सुपुर्द कर दिया। डम्परचालक के समर्थन में कुछ अन्य डम्परचालकों के आ जाने के बाद पुलिस ने संदिग्ध डम्पर चालक को छोड़ दिया। अपने स्तर पर पुलिस ने कशिश की तलाश हेतु कोई विशेष प्रयास नहीं किये गये।
25 नवम्बर को एक बुग्गी वाले (घोड़े वाले) ने जंगल में किसी बच्ची की लाश देखे जाने की बात कही। जब परिजनों समेत जनता जंगल में पहुंची तो वहां रोंगटे खड़े कर देने वाला दृश्य था। 7 वर्षी बच्ची के साथ दुराचार किया गया था। उसका एक हाथ व पैर तोड़ डाला गया था। एक आंख भी फोड़ दी गई थी। बच्ची के शरीर पर कई जगह दागने के निशान भी थे। पुलिस ने शव कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया। पोस्टमार्टम में बलात्कार की पुष्टि हुई।
        7 वर्षीय कशिश के साथ दुराचार के बाद उसकी नृशंस हत्या से जनता में आक्रोश फैल गया। कशिश के परिजनों ने अपराधियों की गिरफ्तारी होने तक शव का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। पुलिस हालांकि उन पर अंतिम संस्कार के लिए दबाव बनाती रही।
      जनता के प्रदर्शनों व उग्र कार्रवाइयों के चलते उत्तराखण्ड सरकार दबाव में आयी और पुलिस प्रशासन हरकत में आया। 28 नवम्बर को पुलिस ने 3 अरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। मुख्य आरोपियों में एक वही डम्पर चालक था, जिसे 20 नवम्बर को जनता ने खुद पुलिस ने हवाले किया था और पुलिस ने उसे अन्य डम्पर चालकों के दबाव में छोड़ दिया था। छोड़े जाने के बाद यह डम्पर चालक लुधियाना भाग गया था जिसे बाद में पुलिस ने मोबाइल सर्विलांस के जरिये पकड़ा।
       जनता के स्वतः स्फूर्त प्रदर्शनों में कांगे्रस व भाजपा जैसी राजनीतिक पार्टियों के लोग शामिल होकर इसे दिग्भ्रमित करने अथवा अपने हित में इस्तेमाल करने की साजिशें करते रहे। कांगे्रसी नेता जहां इस मामले में सरकार के प्रति जनता के आक्रोश को भटकाकर उसे पुलिस प्रशासन के खिलाफ मोड़ने तथा पुलिस प्रशासन को ही मुख्य गुनाहगार के रूप में स्थापित करने की कोशिशें करते रहे वहीं भाजपा इसे कांग्रेस सरकार के खिलाफ असंतोष भड़काने के एक सही मौके के साथ-साथ इसे साम्प्रदायिक रंग देने में लगी रही। मुख्य आरोपी डम्पर चालक के मुसलमान होने को मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के रूप् में भाजपा ने कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी। लेकिन इसके बावजूद जनता इस साम्प्रदायिक बहकावे में नहीं आयी और साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की भाजपाइयों की चाल कामयाब नहीं हुई।
        28 नवम्बर को ‘आरोपियों’ की गिरफ्तारी के बाद पुलिस प्रशासन ने मृत कशिश के परिजनों को बच्ची का अंतिम संस्कार करने के लिये मना लिया। अंतिम संस्कार में हजारों की संख्या में जनता शामिल हुई।
29 अक्टूबर को प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत अपने कुछ कैबिनेट मंित्रयों व सहयोगियों के साथ मृतक के परिजनों से मिलने हल्द्वानी के शीशमहल इलाके में एक धरनास्थल पर जा रहे थ्ज्ञे तो भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने उनकी कार पर पथराव किया जिसमें मुख्यमंत्री की कार का शीश टूट गया व एक मंत्री को भी हल्की चोट लगी। पुलिस ने घटना के बाद बर्बर लाठी चार्ज किया। जिसमें आम जनता सहित पत्रकारों को भी नहीं बख्शा गया। इस बर्बर लाठी चार्ज में दर्जनों लोग व पत्रकार घायल हो गये। एक पत्रकार को आई. सी. यू. में भर्ती होना पड़ा।
 बहरहाल महिलाओं व सरकार मासूम बालिकाओं की सुरक्षा का सवाल एक बार फिर उत्तराखण्ड की जनता द्वारा पुरजोर तरीके से उठाया गया। कांग्रेस-भाजपा के नेताओं ने इस आक्रोश को जहां अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की वहीं अपराध्यिों को कठोर दण्ड व फांसी को ही एक उपाय के रूप् में स्थापित किया। पूंजीवादी संस्कृति, अश्लील फूहड़ गीतों, विज्ञापनों व समाज में महिला विरोधी मूल्यों व विचारों के खिलाफ जनता के आक्रोश को लक्षित होने से वे बचते रहे।

ऐरा के मजदूरों ने किया कंपनी गेट जाम
      रुद्रपुर (उत्तराखंड) 18 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली को लेकर ऐरा मजदूरों का आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है। मजदूर विगत 46 दिन से जिलाधिकारी कार्यालय, रुद्रपुर में धरने पर डटे हैं। दिनांक 27/11/2014 को ऐरा यूनियन ने कंपनी गेट पर विशाल प्रदर्शन कर दिन भर कंपनी गेट जाम किया और कंपनी के अधिकारियों को कंपनी के भीतर ही बंधक बनाया रखा। कंपनी गेट पर ऐरा मजदूरों के अलावा
      अन्य कंपनी के मजदूर एवं महिलाओं समेत लगभग 500 लोग उपस्थित थे। जिनमें लगभग 200 महिलायें थी। ऐरा यूनियन द्वारा दिनांक 27/11/2014 को ही प्रातः कालीन शिफ्ट से ही सामूहिक हड़ताल प्रारम्भ कर दी गयी। ऐरा के मजदूर प्रातः छः बजे से ही कंपनी गेट पर जम गये। प्रातः लगभग 10 बजे भारी संख्या में मजदूर व महिलायें भी ऐरा गेट पर पहुंचे। सभी कंपनी गेट पर टैन्ट गाड़कर, माइक लगाकर बैठ गये। दिन भर कंपनी गेट पर भाषणों, नारों एवं क्रांतिकारी गीतों का दौर चलता रहा।
इस दौरान इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन व प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र के कार्यकत्र्ता भी उपस्थित थे और उन्होंने “हर जोर जुल्म की टक्कर में...”, “जागो फिर एक बार जागो रे...”आदि क्रांतिकारी गीत गाकर व जोरदार नारेबाजी कर मजदूरों का हौसला बढ़ाया।
इसी दिन उपश्रमायुक्त कुमाऊं क्षेत्र हल्द्वानी द्वारा अपने कार्यालय में त्रिपक्षीय वार्ता बुलायी गयी और कंपनी प्रबंधकों को निर्देश दिये कि संराधन वार्ता के दौरान निलंबित मजदूरों की सेवा समाप्त करना गैर कानूनी कृत्य है और इसे दिनांक 4/12/2014 से पूर्व वापिस लिया जाय, ऐसा न करने पर श्रम विभाग द्वारा कंपनी प्रबंधकों के विरुद्ध यू़‐ पी. आई. डी. ऐक्ट 1947 की धारा 6 ई के तहत कोर्ट में मुकद्मा किया जायेगा। निलंबित मजदूरों को निलंबन भत्ता एवं शेष मजदूरों के अक्टूबर माह का वेतन भुगतान भी दिनांक 4/12/2014 की वार्ता के पूर्व कर दिया जाय ऐसा न करने पर श्रम विभाग द्वारा कंपनी प्रबन्धकों के विरुद्ध संबन्धित धाराओं में मुकद्मे किये जायेंगे। ऐरा यूनियन द्वारा संराधन वार्ताओं के दौरान हड़ताल कर नियम 4 का उल्लंघन किया है यूनियन हड़ताल वापिस ले और अगली वार्ता (4/12/2014) से पूर्व दोनों पक्ष आपसी समझौता कर ए. एल. सी .को अवगत करायें।
ऐरा यूनियन द्वारा दिनांक 28/11/2014 की प्रातः कालीन शिफ्ट से हड़ताल स्थगित कर 4/12/2014 तक के लिए टाल दी और कंपनी प्रबंधकों से भी उपश्रमायुक्त के निर्देशों का पालन करने की अपील की। फिलहाल यूनियन प्रतिनिधियों एवं कंपनी प्रबंधकों की आपसी वार्तायें  चल रही हैं। कंपनी प्रबन्धन कुछ झुकता हुआ प्रतीत होता है। अब आगे क्या होगा यह समय के गर्भ में छिपा हुआ है। ऐरा के मजदूर संयुक्त मोर्चा गठित कर संघर्ष को आगे बढ़ाने की जद्दोजहद में लगे हैं ।
ऐरा मजदूर यूनियन द्वारा विगत लगभग 20 दिनों से अपने समर्थन में अपने परिवार की महिलाओं को भी उतारा गया है। महिलायें डी. एम. कोर्ट में मजदूरों के साथ डटी हैं। सिडकुल पंतनगर में ट्रेड  यूनियन आंदोलन में इससे पहले शिरडी यूनियन द्वारा महिलाओं पर भरोसा करते हुए महिलाओं को आंदोलन में उतारा था जो कि निर्णायक साबित हुआ था और शिरडी यूनियन को जीत हासिल हुई थी। ऐरा यूनियन के साथ भी महिलाओं का संघर्ष के मैदान में उतरना निर्णायक साबित हो सकता है। पंतनगर सिडकुल में इस बात को स्थापित करने की खासी जरूरत है कि पुरूष मजदूरों को महिलाओं पर भरोसा कर संघर्ष के दौरान उन्हें हमराही बनाना अत्यंत आवश्यक है।

अस्ती मजदूरों की अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शरु
      गुडगांव, आई.एम.टी. मानेसर स्थित अस्ती कम्पनी के मजदूरों का संघर्ष एक नये चरण में पहुंच गया है। अन्यायपूर्ण बर्खास्तगी व प्रबंधन और श्रम विभाग द्वारा लगातार वार्ताओं को बेनतीजा बनाकर मजदूरों हैरान परेशान करने के रुख से क्षुब्ध होकर मजदूरों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरु कर आंदोलन को एक नये चरण में ले जाने का फैसला किया है।
25 नवम्बर को मजदूरों को अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल को प्रारम्भ करते हुए मजदूरों ने अपने 7 साथियों को कम्पनी गेट के सामने सुबह 1 बजे अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल बैठ दिया। भूख हड़ताल पर बैठने वालों में हनी सक्सेना, स्वागतिका, रसिका, रिंकू भावना, संजू और कृष्णा शामिल है।
इन मजदूरों ने कहा कि 21 दिन के बाद भी प्रशासन की हठधर्मिता कायम रहने के चलते वे यह कदम उठाने को मजबूर हुए हैं तथा जब तक न्याय नहीं मिलता जब तक उनकी भूख हड़ताल जारी रहेगी।
इन 7 मजदूरों के अलावा 10 अन्य मजदूर भी क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे।
भूख हड़ताल पर बैठे मजदूरों की हौंसला अफजाई के लिए इन्डोरेन्स इम्पलाइज यूनियन व मुंजाल कीरु इम्पलाइज यूनियन के सभी पदाधिकारी मौजूद थे। इन्डोरेन्स इम्पलाइज यूनियन के प्रधान हितेश व जयभगवान और मुंजाल कीरु इम्पलाइज यूनियन के राकेश यादव, सतीश तंवर और लक्ष्मीकांत ने मजदूरों का हौंसला बढ़ाते हुए अस्ती के मजदूरों के साथ अपनीएकजुटता प्रदर्शित की।
      अस्ती मजदूरों का संघर्ष पूरे आई.एम.टी. मानेसर क्षेत्र में एक मिसाल बनता जा रहा है क्योंकि इससे पूर्व यहां जो भी आंदोलन हुए हैं उनमें लम्बे-लम्बे धरने तो हुए हैं लेकिन अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल नहीं हुई है।
      मजदूरों का कहना है कि जब तक सभी 310 ठेका मजदूरों को वापस काम पर नहीं लिया जाता तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।

अस्ती के मजदूरों की भूख हड़तालसे घबराया प्रशासन, पुनः वार्ता की पेशकश की
      26 नवंबर, मानेसर की अस्ती (ए.एस.टी.आई.) कम्पनी के मजदूरों से शासन प्रशासन की बेचैनी बढ़ गयी है। इसी के चलते 26 नवम्बर को डी. एल. सी. द्वारा एक बार फिर प्रबंधन व मजदूरों की त्रिपक्षीय वार्ता की पेशकश की गयी है।
      संघर्षरत मजदूरों ने डी. एल. सी द्वारा वार्ता कराने का ठोस आश्वासन दिये जाने के बाद इस पेशकश को स्वीकार कर लिया साथ ही उन्होंने श्रम उपायुक्त (डी.एल.सी.) को स्पष्ट बता दिया कि समझौता न होने तक उनकी भूख हड़ताल जारी रहेगी।
     26 नवम्बर को सात अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे साथियों के साथ 5 नये मजदूर साथी क्रमिक अनशन पर बैठे।

     बहरहाल मजदूरों का जोश कायम है और अनशन स्थल पर नारेबाजी व क्रांतिकारी गीतों का क्रम चलता रहता है।  

अस्ती के मजदूरों का जोरदार प्रदर्शन 
       गुड़गांव, 19 नवंबर, आई.एम.टी. मानेसर स्थित ए.एस.टी.आई. (अस्ती) के मजदूरों ने प्रबंधन व श्रम विभाग के साथ लगातार तीन त्रिपक्षीय वार्ताओं के बेनतीजा रहने से अक्रोशित होकर कंपनी गेट पर गेट मीटिंग व जोरदार प्रदर्शन किया।
        इससे पूर्व अस्ती के मजदूरों ने ‘‘अस्ती से निकाले गये 310 मजदूरों के संघर्ष में साथ दो’’ शीर्षक से एक पर्चा निकाला तथा उसे पूरे मानेसर औद्योगिक  क्षेत्र में कंपनी गेटों पर वितरित किया तथा व्यापक मजदूरों से 19 नवंबर की गेट मीटिंग व प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की।
       अस्ती कंपनी के गेट पर तय समय से अन्य कंपनी के मजदूरों का आना शुरु हो गया। मुंजाल कीरू के संघर्षरत मजदूर जुलूस की शक्ल में अस्ती कंपनी के गेट पर पहंचे। मारुति सुजुकी मानेसर के यूनियन प्रतिनिधि, हाई लेक्स कंपनी के मजदूर साथियों व इण्डोरेन्स कंपनी के यूनियन पदाधिकारियों, इंकलाबी मजदूर केन्द्र व मजदूर सहयोग केन्द्र सहित अन्य सामाजिक संगठनों के लोग इस प्रदर्शन में शामिल थे।

       मीटिंग में वक्ताओं ने कहा कि एक सोची समझी साजिश के तहत कंपनी ने मजदूरों को निकाला है जो कि पूरी तरह अवैध है। कंपनी ने एक पूर्वयोजना के तहत 21 अक्टूबर को ही स्टे आॅर्डर ले लिया। कम तनख्वाह पर प्रशिक्षुओं को रखकर अधिक मुनाफा निचोड़ने की नियत से ही कंपनी ने मजदूरों कोे काम से निकाला है। वक्ताओं ने कंपनी के स्थायी मजदूरों से ठेका मजदूरों के साथ संघर्ष में साथ देने की अपील की। संघर्षरत अस्ती के मजदूरों ने घोषणा की कि अगर 20 नवंबर को होने वाली त्रिपक्षीय वार्ता में कोई समझौता नहीं होता है तो संघर्ष को और तेज किया जायेगा।

आई.एम.टी. कंपनी प्रबंधन द्वारा अघोषित छटनी के विरोध में ए.एस.टी.आई. (अस्ती) का संघर्ष जारी है। 
       4 नवंबर को काफी संघर्ष के बाद मजदूरों ने कंपनी के बाहर अपना टैंट लगाकर धरना शुरु कर दिया। धरना स्थल पर सभा का माहौल बना रहता है तथा जमकर नारेबाजी होती है।
      9 नवंबर को श्रम विभाग की मध्यस्थ्ता में प्रबंधन व मजदूरों के नेतृत्व के बीच वार्ता हुयी। वार्ता में मजदूरों का पक्ष हावी रहा। परन्तु श्रम विभाग ने अपनी पक्षधरता दिखाते हुए प्रबंधन को आड़े हाथों लेने के बजाय मामले की सुनवाई की अगली तारीख 14 नवंबर तक बढ़ा दी। 
      मजदूर समझने लगे हैं कि महज कानूनी संघर्ष से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा इसलिए वे संघर्ष को तेज करने व आंदोलन के अन्य रूपों को अपनाने की तरफ बढ़ रहे हैं। 
     इसी क्रम में 12 नवंबर को मजदूरों ने पूरी तैयारी के साथ आई.एम.टी. मानेसर में एक जुलूस निकाला। यह जुलूस दोपहर 1:30 बजे से शुरु हुआ, जब यह जुलूस मुंजाल कीरू कंपनी के गेट के पास पहुंचा तो वहां लंबे समय से संघर्षरत व धरने पर बैठे मुंजाल कीरू कंपनी के मजदूर भी अपने बैनर सहित जोशो खरोश के साथ इसमें शामिल हो गये। जुलूस के दौरान पूरे आई.एम.टी. क्षेत्र में मजदूरों ने जबर्दस्त नारेबाजी की। मजदूरों नेे इंकलाब जिंदाबाद, पूंजीवाद मुर्दाबाद, हरियाणा सरकार पूंजीपतियों के तलवे चाटना बंद करो, सरकार-पूंजीपतियों का नापाक गठजोड़ मुर्दाबाद आदि नारे लगाये।
      जुलूस के अंत में धरनास्थल पर एक सभा हुयी जिसमें आंदोलन के समर्थन में आये मजदूरों ने अस्ती के मजदूरों के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए उनके संघर्ष में साथ देने का वायदा किया। 
इंकलाबी मजदूर केन्द्र जो कि इस आंदोलन में शुरु से ही मजदूरों का साथ दे रहा है, ने आंदोलन को तेज करने के आहवान के साथ अस्ती के मजदूरों को अपना पूर्व सहयोग व समर्थन देने का वादा किया। सभा में अस्ती के मजदूरों ने यह एलान किया कि अगर 14 नवंबर की वार्ता में प्रबंधन अघोषित छटनी वापस नहीं लेता तो आंदोलन को और तेज किया जायेगा। 


जबरन छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ ए.एस.टी. आई. के ठेका मजदूरों ने किया प्रदर्शन


        गुड़गांव इंडस्ट्रियल मिनि टाउन (आई.एम.टी) मानेसर के सेक्टर 8 में प्लाॅट न. 399 में स्थित ए.एस.टी.आई. के ठेका मजदूरों ने कंपनी प्रबंधन द्वारा छटनी की मंशा से छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ कंपनी गेट पर धरना-प्रदर्शन किया।
        एक नवंबर को ए शिफ्ट की छुट्टी के समय कंपनी प्रबंधन द्वारा ठेकेदारी के 310 मजदूरों से कहा गया कि काम में कमी के कारण उन्हें 3 नवंबर से 8 नवंबर तक छुट्टी दी जा रही है। प्रबंधन द्वारा मजदूरों को ठेकेदार के आॅफिस से अपना हिसाब लेने की हिदायत भी दी गयी। गौरतलब है कि ठेकेदारी के इन श्रमिकों को कोई पूर्व नोटिस भी नहीं दिया गया।
       दरअसल छुट्टी के बहाने कंपनी प्रबंधन ठेका मजदूरों की छटनी करने की मंशा रखता था। प्रबंधन ने मजदूरों को आगे पुनः काम पर रखने की बात तो की लेकिन लिखित में ठोस आश्वासन देने से वह मुकर गया।
     प्रबंधन द्वारा एक सोची समझाी राजनीति के हित यह कार्यवाही की गयी थी। जब से कंपनी में यूनियन बनी है तब से मालिकान व प्रबंधन मजदूरों के खिलाफ षडयं. रचने में मशगूल है। प्रबंधन ने पहले ठेकेदारी के मजदूरों से छुटकारा पाकर फिर स्थायी मजदूरों से निपटने की राजनीति के तहत यह कदम उठाया। परन्तु प्रबंधन ने जैसा सोचा था, वैसा नहीं हुआ। ठेका मजदूरों ने चुपचाप हिसाब लेने के बजाय संघर्ष का रास्ता चुना। 310 ठेका मजदूरों ने जिनमें लगभग सवा दो सौ लड़कियां हैं, ने बैठकर सोच विचार किया तथ 4 नवंबर से कंपनी गेट पर धरना-प्रदर्शन शुरु कर दिया। संघर्षरत मजदूरों का कहना है कि जब तक उनको वापस काम पर नहीं लिया जाता उनका संघर्ष जारी रहेगा। मजदूरों ने अपने बीच से एक कमेटी चुनी जो संघर्ष को संचालित कर रही है। इंकलाबी मजदूर केन्द्र शुरु से ही इस संघर्ष में मजदूरों के साथ है। इस संघर्ष के दौरान हिंद मजदूर सभा (एच.एम.एस.) जिससे कंपनी की यूनियन संबद्व है, उदासीन रुख दिखाया है। संघर्ष शरु होने के काफी बाद तक एच.एम.एस. का कोई नेता संघर्षरत मजदूरों के बीच नहीं आया।  


संघर्षरत ठेका मजदूरों  पर पुलिस का बर्बर दमन, सैकड़ों मजदूरों पर मुकदमे, 24 मजदूरों को भेजा जेल

      पंतनगर विवि मे ठेका प्रथा समाप्त कर संविदा पर रखे जाने को लेकर चल रहे ठेका मजदूरो का कार्य बहिष्कार स्वतः स्फूर्त आन्दोलन में  10/09/2014 को विवि प्रशासन की सह पर पुलिस प्रशासन  द्वारा मजदूरों पर बर्बर लाठी चार्ज किया गया और विभिन्न
संघर्षरत ठेका मजदूरो पर
 लाठीचार्ज व जेल भेजने के
विरोध में प्रशासनिक भवन पर धरना
अपराधिक धाराओं  147, 332,333,504,506,323, और 7 क्रिमिनल जैसी धाराएं लगा कर तीन महिला मजदूर सहित 15 मजदूरो की जेल भेज दिया। कुल 24 मजदूरों  पर नामजद एवं दौ सौ अज्ञात मजदूरों पर उक्त अपराधिक धाराएं दर्ज है, इसके खिलाफ कार्यवाही कर विरोध प्रदर्शन जारी है। 
       पंतनगर विवि में  पिछले 10-11 वर्षों से (1 मई 2003 से ठेका प्रथा लागू होन के समय से) अतिअल्प न्यूनतम वेतन, श्रम नियमो द्वारा देय आवास, अवकास, चिकित्सा से वंचित, बिना किसी सुविधा के  कार्यरत ठेका मजदूरा का प्रशासन  द्वारा अनवरत शोषण जारी है।
     विवि अपने सीधे नियोजित मजदूरो को आवास सुविधा तो देता है पर ठेका मजदूरो को आवास सुविधा की कौन कहे झोपड़ी मे रहने की मौन सहमति भी नहीं है। तमाम गंदगी असुविधा जनक झोपड़ी में  मजदूर अपने परिवार के साथ आशंका जनित भय के साये मे रहने को मजबूर है। बिना किसी सुरक्षा उपकरण के फसलो मे कीट नाशक दवाओ के छिड़काव के दौरान मजदूरों के बेहोश  होने की ख़बरें अक्सर आती रहती है। इन्हे आज तक बोनस नहीं दिया गया, चिकित्सा सुविधा की कौन कहे विवि चिकित्सालय पंजीकरण शुल्क अधिक वसूलने के बावजूद अस्पताल से मात्र परामर्श दिया जाता है, अस्पताल से पट्टी दवा आदि नही दिया जाता है इसी तरह विवि आदेशानुसार मासिक मजदूरी इन्हें  हर माह 10 तारीख तक मिल जानी चहिए, कभी समय से मजदूरी नही मिलती  है। प्रशासन  ठेकेदार द्वारा इपीएफ का आज तक न तो कोई पर्ची, पासबुक और न ही कोई स्थानीय सेल खुला है। जबकि नियमानुसार सुविधाएं देय है। भेद भाव जारी है।
      ठेका मजदूर कल्यण समिति द्वारा पिछले पांच वर्षों से श्रम नियमो द्वारा देय उक्त सुविधाए देने, ईएसआई लागू करने की शासन प्रशासन से तमाम अनुरोध विरोध, धर्ना प्रदर्शन किया गया तब जा कर ईएसआई कार्यालय देहरादून द्वारा मात्र सर्वेक्षण के आदेष जारी हुए है। एक वर्ष बाद भी शासन-प्रशासन द्वारा ठोस रूप मे कुछ भी नही हुआ। हील हवाला जारी  है। ईएसआई चिकित्सा सुविधा न मिलने की वजह से इलाज के आभाव मे कई मजदूरो की बीमारी से मौते हो चुकी है। अब इनके परिवार बिना किसी सुरक्षा व अत्यधिक पीड़ादायी व नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं ठेका मजदूरी उन्मूलन अधिनियम 1970 के द्वारा पंतनगर विवि जैसी निरंतर चलने वाली (कोर सेक्टर) संस्था मे ठेका प्रथा गैर कानूनी है अर्थात ठेका प्रथा में कार्य नही कराया जा सकता है। ऐसी संस्था मे निरंतर एक वर्ष मे 240 दिन की सेवा पूर्ण करने पर कर्मी को नियमित-नियोजित करने का प्राविधान है और शासन-प्रशासन ने इस बात को माना भी है एवं हजारो मजदूरो को नियमित किया है परन्तु यहां पर दस बारह वर्षों से निरंतर कार्यरत मजदूरो को ठेका प्रथा समाप्त कर नियमित नियोजित करना ता दूर श्रम नियमो द्वारा देय सुविधाये भी नही दी जा रही हैं । सरकार ने शासन आदेश जारी करके संस्थाओं में निरंतर दस वर्ष की सेवा एवं पांच वर्ष की पूर्ण सेवा कर चुके कर्मियो को नियमित करने की बात की है पर ठेका मजदूारों की कोई बात नहीं की है। अमानवियता, असंवेदनशीलता, अनदेखी श्रम नियमो का उल्लंघन जारी हैं।
       इधर उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उत्तराखण्ड परिवहन निगम में ठेका प्रथा समाप्त कर ठेका मजदूरों को संविदा मे किये जाने की घोषणा और पंतनगर विवि मे हर वर्ष की भांति पुराने ठेकेदार की समय सीमा समाप्ती और मजदूरों की आपूर्ती हेतु नये ठेकेदारों की तैनाती इसको लेकर टेंडर खुलना पास होना था। 
     ठेकेदार शासन-प्रशासन के बेइन्तहा शोषण उत्पीड़न से तंग ठेका मजदूरों मे आक्रोश फूटना था सो फूटा इन मजदूरो ने सभी यूनियनो को किनारे करते हुए ठेका प्रथा समाप्त कर संविदा मे रखे जाने को लेकर स्वतः स्फूर्त आन्दोलन छेड़ दिया। आन्दोलन के अगुआ तत्वों में (कांग्रेस / भाजपा) पार्टीयों के नेताओ के पीछे दौड़ने वाल अधैर्यवान तुरत-फुरत मांगों को  हासिल करने व हीरो बनने की प्रवृति थी, वहीं प्रशासन  द्वारा नौकरी जाने की भय भी था, इस लिए शातिर तत्वों ने पूर्व कांग्रेस से निकाली गई महिला को आगे किया जिसमें दिनांक 06/09/2014 को सर्वप्रथम मजदूरो की सभा में कुलपति को संबोधित ज्ञापन समस्त ठेका मजदूरो की ओर से पूर्व तय बिना किसी के हस्ताक्षर के देने की स्वंयभू घोषणा और दिनांक 09/09/2014 को कार्यबहिष्कार धरना बन्द करने की स्वंयभू घोषणा थी। मजदूरों ने सभी विभागों से मजदूरो को निकाला। काम बन्द कराया। कार्यबहिष्कार कर प्रशासनिक  भवन पर धरने पर बैठे जिनकी मांग खुल रहे ठेकेदारी प्रथा के टेन्डरों को रद्द कराना, ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर संविदा पर रखना था। मौके पर आये पार्टी नेता विधायक द्वारा प्रशासनिक वार्ता के बाद पता चला कि प्रशासन  द्वारा ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर ठेका मजदूरो का उपनल (उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड) के तहत रखने को सहमत हुआ है। जिस शासन आदेश को प्रशासन  पिछले दो वर्षों से लागू नही कर रहा था। उपनल के तहत रखे जाने पर नौकरी की असुरक्षा, छटनी, भर्ती समायोजन में कागजी जटिलता जैसी असुरक्षा की वजह से मजदूरों  ने उपनल आउटसोर्सिग संस्था को अस्वीकार कर दिया और संविदा को लेकर आन्दोलन तेज कर दिया। इधर शासन / प्रशासन  उपनल के अलावा संविदा पर रखने, भविष्य में नियमित करने की झंझट में पड़ने को किसी भी तरह से तैयार नही था। बल्कि निपटने दमन करने को तैयार बैठा था। सो उसने किया। बेलगाम, गैर संगठन, गैर अनुशासित स्वंयभू नेताओं में करीब सात-आठ सौ मजदूरों की भीड़ को नियंत्रित करने की क्षमता तो थी नहीं बल्कि खुद गैर अनुशासित, अनियंत्रित नेतृत्व आन्दोलन उग्र होने,दुग्ध डेरी फार्म, अतिआवश्यक  यूनिट डेरी बन्द होने पर प्रशासन, पुलिस प्रशासन  द्वारा लाठी चार्ज किया गया  जिसमे तमाम मजदूरो को चोटें आई। आन्दोलन मे सिरकत कर रह मजदूरों की गैर हजिरी तो हो ही रही है, साठ-सत्तर मजदूरो को काम से निकलने का फरमान सुना दिया गया है। बाकी का अभी गर्भ में है। इधर आन्दोलन की शुरूआत से ही चिन्हित नेतृत्वकारी लोगों को प्रषासन द्वारा धामकाया समझाया। ठेका मजदूर कल्न्याण समिती के नेता को भी प्रशासन ने बुलाया और आन्दोलन से दूर रहने को समझाया/धमकाया। जबकि इन मजदूरों के संघर्ष के दौरान मूक दर्षक सभी यूनियने दूर बैठी रहीं। बहाना था कि हमें बुलाया नही गया। परन्तु इन्कलाबी मजदूर केन्द्र व ठेका मजदूर कल्याण समिती द्वारा इसके बावजूद इनकी मांगों का समर्थन किया व संघर्ष मे इनके साथ रह कर इनके आन्दोलन के तरीके की आलोचना की और सिस्टमैटिक आन्दोलन चलाने को बेहतर परिणाम हेतु नेतृत्व को निजी और सभा के माध्यम से मजदूरों की कमेटी बनाने का सुझाव दिया था। पर अघोषित आन्दोलनरत नेतृत्व ने कोई सुझाव लागू नहीं किया। 
      शासन प्रशासन द्वारा ठेका मजदूरों के आन्दोलन के दमन के खिलाफ संघर्ष से किनारे बैठी यूनियनों ने मौजूदा आन्दोलन का दमन देख कर समूहिक विरोध प्रदर्शन में भाग लेना शुरू किया है पर मजदूरों की जायज मांग को उठा कर सीधे प्रतिरोध की बजाय जिम्मेदरियों से किनाराकसी कर रही हैं। इनकी स्वतंत्र कमेटी बनाकर आन्दोलन करने को कहा जा रहा है। फिलहाल मजदूरो की चालिस सदस्यी कमेटी बनाई जा रही है कमेटी संरक्षक मण्डल में परिसर की कई यूनियनों के अध्यक्ष, महामंत्री सहित ठेका मजदूर कल्यण समिती के प्रतिनिधि भी सामिल है। फौरी तौर पर कमेटी का काम गिरफ्तार साथियों को जेल से बाहर निकालना है । इस संघर्ष मे किसी संगठन के न होने से जमानत की योजना की कार्यवही में भी खासी दिक्कत है। कुछ लोगों के परिवार के लोग इसमे स्वयं प्रयासरत है। दूसरा बड़ा काम ठेका प्रथा समाप्त कर संविदा अथवा नियमित कराना, पूरे देश में ठेका प्रथा समर्थक चुनावबाज पूंजीवादी पार्टीयों, इनके मजदूर फैडरेशनों, यूनियनों जिन्हाने पूरे देश में ठेका प्रथा और मई 2003 में विवि में ठेका प्रथा लागू होने के समय शासन प्रशासन की मजदूर विरोधी कार्यवाही का विरोध के वजाय सहयोग किया। ऐसे मे इन सभी पार्टीयों, फैडरेशनों, यूनियनों के चरित्र और ठेका प्रथा लागू होने की वास्तविक जमीन को जानना होगा। निजीकरण, उदारीकरण व वैश्विक पैमाने पर लागू जन विरोधी नीतियां एवं पूरे देश के पैमाने पर लागू की जा रही मजदूर विरोधी दूसरे श्रमआयोग की रीपोर्ट, श्रम सुधारो के नाम पर पूर्व में मजदूर संघर्षों के दम पर हसिल किये अधिकारो में  वर्तमान सरकार द्वारा तेजी से कटौती जिसमे ठेका प्रथा को पूरी तरह मान्यता देना। यूनियन बनाने मे कानूनी कठिनता, मालिको द्वारा मजदूरो की छटनी को आसान बनाना आदि के दौर मे पूंजीपरस्त पार्टियों, फैडरेशनों, यूनियनों के चरित्र को समझकर और मोह त्याग कर अपने संगठन मजबूत करने होंगे। ठेका और नियमित मजदूरों  की व्यापक एकता बना कर संघर्ष द्वारा ही ऐसे संघर्षों को जीता जा सकता  है और मांगे हासिल की जा सकती है। फिलहाल शासन प्रशासन  हमलावर है। वहीं आन्दोलन भी उत्साह के  साथ अपनी संविदा की मांग के साथ प्रशासन  द्वारा लगाये गये झूठे मुकदमे वापस लेने के लिए संघर्ष जारी है। 
   
हीरो मोटो कार्प के मजदूरों के सब्र का बांध टूटा 
       17 अगस्त 2014 को हीरो माटो कार्प हरिद्वार सिडकुल के मजदूरों ने मैनेजमेंट के तुगलकी फरमान (रविवार साप्ताहिक अवकाश को जबरन कार्यदिवस घोषित करने) के विरोध में छुटटी रखने की घोाषणा की। मैनेजमेंट ने कांवड़ मेले के दौरान यातायात बाधित होने के कारण कंपनी की पांच दिन की छुटटी की थी। इन छुटिटयों को पूरा करने के लिए साप्ताहिक अवकाश के दिन काम चलाकर पूरा करने का प्रावधान बनाया हुआ है। इस बार मजदूरों ने इसका विरोध करने की योजना बनयाी थी। इसको शत-प्रतिशत पूरा करने के लिए नेतृत्व के मजदूरों द्वारा योजना बना कर वर्किंग न देने की सूचना मैनेजर व श्रम विभाग आदि जगह पर दे दी। जिन मजदूरों को इसकी सूचना न मिल पाने के कारण डयूटी जा रहे थे, उनको रास्ते में उक्त गतिविधि की जानकारी दी। कंपनी के परमानेन्ट मजदूर (50-60 मजदूरों को छोड़कर) तो डयूटी नहीं गये। इसकी भनक मैनेजमेंट को लगते ही पुलिस बुलाकर अपना एक आदमी उनके साथ देकर सभी रास्तों की प्रमुख जगह पर नजर रखन के लिए लगा दिये। पुलिस ने दो मजदूरों को पकड़ कर रानीपुर कोतवाली ले गये। पुलिस की इस कार्यवाही का मजदूरों तुरंत ही पता लग गया। कुछ ही देर बाद 200-250 मजदूर कोतवाली पहुच गये व अपने साथी मजदूरों को छोड़ने का दबाव बनाने लगे। पुलिस अधिकारी इस अप्रत्याशित स्थिति का अनुमान नहीं लगा पाये थे, इस कारण पुलिस को मजबूरन दोनों मजदूरों को छोड़ना पड़ा।
         17 अगस्त को कंपनी में केवल अप्रेंटिस व ट्रेनिंग के ही मजदूर (200-250) नौकरी चले जाने के डर से गये, उस दिन कुल संख्या के आधे से मजदूर अन्दर काम कर रहे थे, फिर भी उत्पादन आधे से भी कम हुआ। डयूटी न आने वाले मजदूरों के लिए कंपनी ने एक दिन की डयूटी न आने के बदले 8 दिन की का वेतन काटने का नोटिस लगा दिया। बताते चलें कि हीरो माटो कार्प में पिछले साल अगस्त माह के अंत में मजदूरों ने यूनियन गठन में मैनेजमेंट द्वारा बाधा डालने के विरोध में हड़ताल हुयी थी, हड़ताल नेतृत्वकारी 38 मजदूरों के निलंबन के साथ समाप्त हुयी थी। इस बीच 3 मजदूरों ने अपनी कमजोरी के कारण हिसाब ले लिया है। 35 निलंबित मजदूरों में से कुछ की घरेलु जांच पूरी हो चुकी है। इन मजदूरों ने श्रम विभाग (सहायक श्रम आयुक्त) व श्रम न्यायालय (लेबर कोर्ट) में केश लगाये हैं। अभी तक नेतृत्व द्वारा केवल कानून के सहारे मालिक-मैनेजमेंट की ‘जान’ (उत्पादन को बाधित किये बगैर) को परेशान किये बगैर ही अपने संघर्ष को सीमित किया था। एक साल बिताते-2 कानूनी प्रक्रियाओं के अलावा अन्य रास्तों से संघर्ष के मजबूत करने का जज्बा अब नेतृत्व के अन्दर जागने लगा है। इसी की बानगी उक्त कार्यवाही है। यूनियन का मामला भी लेबर कोर्ट में चल रहा है। मैनेजमेंट अपने भरोसे के कुछ मजदूरों को लेकर दूसरी यूनियन बना कर मजदूरों की एकता तोड़ने के प्रयास में लगा है।
       हीरो माटो कार्प कंपनी के मजदूरों का संघर्ष केवल अपनी कंपनी तक ही सीमित रहता है तो यह उनकी व साथ ही अन्य सहायक कंपनियों के मजदूरों की ताकत को भी कमजोर करेगा। हीरो के मजदूरों व नेतृत्व को अपने फलक को व्यापक बनाना होगा। अपनी तमाम वेंडर कंपनियों के मजदूरों को एकजुट करने के साथ ही संघर्ष दायरे को व्यापक बनाना होगा।

रेल विभाग के लिए मेंटीनेंस गाड़ी बनाने वाली स्पीड क्राफ्ट के मजदूूरों का वेतन वृद्धि के लिए संघर्ष 
      21 अगस्त 2014 को स्पीड क्राफट के 120 मजदूरों ने काम रोककर अपना वेतन बढ़ाने को लेकर हड़ताल कर दी। मजदूर 6 सालों से वेतन वृद्धि न होने के एवज में 6 हजार रुपये की बढ़ोत्तरी की मुख्य मांग के साथ ही कंपनी में मेडिकल सुविधा मिलना, सभी मजदूरों का पी.एफ., ई.एस.आई. व बोनस (मुनाफे के हिसाब से) देने, कंपनी के अन्दर पेन्ट शाॅप विभाग बनाना, कैन्टीन में रियायती दरों पर गुणवत्ता वाला खाना दिये जाने व मजदूरों का गेट बंद करने की कार्यवाही पर रोक लगाने आदि मांगो को लकर फैक्टरी गेट के बाहर धरने पर बैठे हैं। ए.एल.सी. अशोक वाजपेयी द्वारा मामले को हल करने के लिए 28 अगस्त की तारीख दी है। इससे पहले भी मजदूर उपरोक्त मांगो को लेकर चार बार हड़ताल कर चुके हैं। परंतु हर बार मैनेजमेंट कुछ महीनों का टाइम लेकर मजदूरों को काम पर लगा देता है, उनही मांग जस की तस बनी रहती है।
      स्पीड क्राफट कंपनी हरिद्वार सिडकुल के सेक्टर-7, प्लाॅट न.-1 में स्थित है। यहां सन 2006 से ही प्रोडक्शन किया जा रहा है। यहां पर 6 प्रकार के प्रोडक्ट बनते हैं। रेलवे लाइन वैल्डिंग मशीन एसेम्बलिंग, हीट मिक्सिंग प्लांट की मशीनरी, रेलवे मेंटीनेंस गाड़ी के तीन प्रकार, ओवरहेड एक्यूपमेंट इंसपेक्शन कार व दिल्ली मैट्रो रेल कार्पोरेशन-मेंटीनेंस व्हीकल। ये मशीनरी रेलवे विभाग के लिए बनाती है। इसके अलावा प्राइवेट कंपनी के लिए भी सेल्फ लोडर बनाती है। इस कंपनी के मालिक आर.के. अग्रवाल व एस.के. अग्रवाल मूल रूप से राजस्थान के व फिलावक्त गुड़गांव में रहते हैं। कंपनी का मदर प्लांट व हेड आॅफिस पटना में है। कंपनी का टर्नओवर सालाना लगभग 56.3 करोड़ रुपये हैं।
        कंपनी में 120 मजदूर कंपनी रोल पर हैं। इनका वेतन 6 साल काम करने के बाद भी 6-7 हजार रुपये से ज्यादा नहीं है। कंपनी में 7 ठेकेदार हैं। मात्र एक ठेकदार के पास लाइसेंस है। इन सभी ठेकेदारों के कुल मिलाकर 50-60 मजदूर हैं जिन्हें प्रतिमाह 5-6 हजार रुपये मिलते हैं। पहले कंपनी में दो शिफटों में काम होता था, अब एक ही शिफ्ट में काम होता है, कंपनी रोल के ज्यादातर मजदूर आई.टी.आई. किये हुये हैं।
        कंपनी में प्रतिमाह में 6-8 गाडि़यां बनती हैं। प्रतिगाड़ी लागत लगभग 55 लाख रुपये आती हैं गाड़ी की बिक्री लगभग 1.25 करोड़ रुपये में होती है। इससे ही मजदूरों के शोषण का अंदाजा लगाया जा सकता है।
        इसी शोषण से तंग आकर मजदूरों ने अपने वेतन बढ़ाने के लिए पूर्व में भी चार बार हड़ताल की थी। हर बार मैनेजमेंट मजदूरों को उपर बातचीत का करने फैसला लेने के लिए समय का बहाना बना कर केवल मंहगाई भत्ता बढ़ाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्रि कर लेता। कंपनी मालिकों ने मजदूरों की मेहनत के दम पर खूब मुनाफा कमाया परंतु मजदूरों की वेतन वृद्धि नहीं की, उल्टा मजदूरों को निकालने की धमकी देता है। मैनेजमेंट ने हड़ताल के बदले मेें देा स्थायी मजदूरों अशोक कुमार व वर्मन कुमार को काम से निकाल दिया। इन्होंने नौकरी की बहाली के लिए कोर्ट में केश लगाया हुआ है।
       रेलगाड़ी बनाने के लिए सरकारी फैक्टिरयों को सरकारें क्रमशः बंद करके निजि पूंजीपतियों के इस क्षेत्र में लूटने (मुनाफा कमाने) के खुली छूट देने की योजना सन 1991 की ‘नयी आर्थिक नीति’ का हिस्सा है।

     ऐरा बिल्डिसिस के मजदूरों पर मालिक व पुलिस प्रशासन के गठजोड़ का क्रूर हमला     
मजदूरों पर पुलिस व पी. ए. सी. द्वारा लाठी चार्ज, एक दर्जन मजदूर गंभीर रूप से घायल, इ.म.के. के अध्यक्ष सहित 18 मजदूरों की 7 सी. एल. ए व अन्य धाराओं के तहत फर्जी मुकदमों में गिरफ्तारी 
   21 जुलाई, पंतनगर, उत्तराखण्ड, स्थानीय सिडकुल (स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलेपमेन्ट कार्पोरेशन आॅफ उत्तरांचल लि0) के अंतर्गत ऐरा बिल्डिसिस के श्रमिकों के द्वारा अपनी यूनियन पंजीकरण के बाद फैक्टरी गेट पर झंडा लगाने की कार्रवाई मालिक व प्रशासन के गठजोड़ को इस कदर नागवार गुजरी कि शाम 5 बजे पुलिस और पी. ए. सी का दल बल फैक्टरी गेट पर पहुंचा और उसने मजदूरों के द्वारा लगाये झंडे को उखाड़ फेंका। मजदूरों ने जब इसका प्रतिरोध करते हुए दुबारा झंडा लगाने का प्रयास किया तो पुलिस व पी. ए. सी ने बर्बर लाठी चार्ज किया जिसमें एक दर्जन मजदूरों को गंभीर चोटें पहुंची तथा कई हताहत हुए। पुलिस ने 18 मजदूरों का गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार मजदूरों में से एक का सिर फट गया है तथा एक का हाथ टूट गया है। बाकी अन्य घायल मजदूर विभिन्न अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। 
अगले दिन 22 जुलाई को इस पुलिसिया दमन का विरोध करते हुए इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट के नेतृत्व में एक ट्रेड यूनियन व मजदूरों का प्रतिनिधि मंडल जब जिलाधिकारी से मिलकर उन्हें ज्ञापन देने के लिए स्थानीय कलेक्ट्रेट पहुंचा तो जिलाधिकारी (DM) ने मिलने से मना कर दिया। सहायक जिलाधिकारी (ADM) व परगना अधिकारी (SDM) भी मिलने को तैयार नहीं हुए और सादी वर्दी में पुलिस कर्मियों ने पहले तो इ.म.के. के अध्यक्ष कैलाश भट्ट को पुलिस चौकी में एस. एच. ओ से वार्ता के लिये चलने को कहा। इस पर इ.म.के. के अध्यक्ष कैलाश भट्ट ने कहा कि “अगर बात करनी है तो यहीं कर लें और अगर गिरफ्तार करना है तो गिरफ्तार कीजिए।” इस बात पर पुलिस कर्मियों ने गिरफ्तारी की बात करते हुए धक्का मुक्की कर कैलाश भट्ट को जीप में बैठाया और स्थानीय चौकी ले गये। इसके बाद कैलाश भट्ट व 18 अन्य मजदूरों जिन्हें 21 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था, का मेडिकल कराकर उन्हें शाम 4 बजे कोर्ट में पेश किया गया। जज के कोर्ट में मौजूद न होने पर जज के घर जाकर इन लोगों पर फर्जी मुकदमें के कागजों पर दस्तखत करा लिये गये। इ.म.के. के अध्यक्ष कैलाश भट्ट व अन्य 18 मजदूरों पर 7 सी. एल. ए (क्रिमिनल लाॅ एमेन्डमेन्ड) सहित धारा 147, 341, 353, 332 व 447 के अंतर्गत फर्जी मुकदमे लगाये गये हैं। गैर जमानती धारा 7 सी. एल. ए के तहत निचली अदालत से जमानत नहीं हो सकती है। जिला अदालत ही जमानत दे सकती है। 

गौरतलब है कि उत्तराखण्ड शासन-प्रशासन द्वारा मजदूर आंदोलन का दमन कोई नई बात नहीं है। इससे पूर्व इ.म.के. के अध्यक्ष कैलाश भट्ट पर दो साल पूर्व पुलिस प्रशासन द्वारा गैंगस्टर एक्ट लगाया जा चुका है। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के नेतृत्व में चले हरिद्वार सिडकुल के राॅकमैन सत्याम आंदोलन में 350 मजदूरों की गिरफ्तारी हो या फिर इंकलाबी मजदूर केन्द्र के सम्मेलन के बाद हरिद्वार में 183 मजदूर कार्यकर्ताओं व ट्रेड यूनियन नेताओं पर 7 सी. एल. ए तथा भड़काऊ भाषण सहित कई धाराओं के अंतर्गत फर्जी मुकदमे लगाने का मामला हो, इंकलाबी मजदूर केन्द्र आंदोलन को आगे बढ़ाने के चलते शासन-प्रशासन के निशाने पर रहा है। 
   ऐरा बिल्डिसिस यूनियन गत एक वर्ष से अपनी यूनियन पंजीकरण के लिये संघर्षरत रही है। नवंबर 2013 से कम्पनी के 114 में 105 स्थायी मजदूरों ने इ. म. के. की सहायता से अपनी यूनियन पंजीकरण के प्रयास शुरु किये थे। इसकी भनक लगते ही कम्पनी प्रबंधन ने अध्यक्ष राजेन्द्र व महामंत्री हीरा लाल का स्थानान्तरण उत्तराखण्ड से बाहर करने की साजिश रची। श्रमिकों ने इसके खिलाफ मजबूती से संघर्ष किया। ढाई माह के संघर्ष के बाद कम्पनी को घुटने टेकने पड़े व उनको वापस काम पर बहाल करना पड़ा। यह सिडकुल के भीतर निकाले गये नेताओं की काम पर वापसी की पहली घटना थी, जिसका मजदूरों के बीच सकारात्मक असर पड़ा। कंपनी प्रबंधन ने यूनियन पंजीकरण रुकवाने के लिये छल-प्रपंच के सभी तरीके अपनाये। 105 में से 81 मजदूरों के फर्जी दस्तखत कर कंपनी प्रबंधकों द्वारा उप श्रमायुक्त के पास प्रार्थना पत्र भेजा गया कि मजदूर यूनियन पंजीकरण नहीं चाहते हैं कि मजदूर नेताओं द्वारा उनसे जबरन हस्ताक्षर कराये गये हैं। इसके खिलाफ यूनियन के 105 मजदूरों के हस्ताक्षर कराकर ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार (श्रम आयुक्त) के पास पत्र भेजा और तत्काल यूनियन पंजीकरण के लिये आग्रह किया। कंपनी प्रबंधन ने मजदूरों को पदोन्नति, वेतनवृद्धि तथा लालच देकर भी तोड़ने की कोशिशें की लेकिन वे नाकाम हो गयीं। अंततः मजदूर यूनियन पंजीकरण करवाने में सफल रहे। 15 जुलाई को गेट पर यूनियन का झंडा लगाने के लिये ऐरा श्रमिक संगठन ने जिलाधिकारी, उप श्रमायुक्त, एस. एस. पी आदि को पूर्व सूचना दे रखी थी। अंततः पुलिस प्रशासन ने षड़यंत्रपूर्वक मजदूरों के मनोबल को तोड़ने के लिये इस क्रूर दमनात्मक कार्रवाई को अंजाम दिया। 
गौरतलब है कि इससे पूर्व लोकसभा चुनाव के अवसर पर इ.म.के. के अध्यक्ष कैलाश भट्ट जो कि लोकसभा चुनाव में एक मजदूर प्रत्याशी के बतौर खड़े थे, को सिडकुल में मजदूरों की सभा करने की प्रशासन ने अनुमति नहीं दी थी, कड़ा प्रतिरोध व आंदोलन की धमकी के बाद ही प्रशासन यह अनुमति देने के लिये मजबूर हुआ। 
उत्तराखण्ड सरकार, प्रशासन व पूंजीपतियों का गठजोड़ मजदूरों के श्रम अधिकारों के प्रति चेतना को क्रूर दमन के द्वारा कुचलना चाहता है लेकिन लगातार उसकी दमनात्मक कार्रवाइयों के बावजूद मजदूरों का प्रतिरोध बढ़ता जा रहा है। 
    23 जुलाई को ऐरा श्रमिक संगठन के क्रूर दमन व उन पर लगाये गये फर्जी मुकदमों के खिलाफ सिडकुल के तमाम ट्रेड यूनियनों व श्रमिक संगठनों ने विरोध स्वरूप स्थानीय कलेक्ट्रेट पर एक दिवसीय धरने का कार्यक्रम आयोजित किया है। 
    सभी प्रगतिशील व जनवादी शक्तियों के द्वारा ऐरा बिल्डिसिस के मजदूरों के दमन के विरोध किये जाने की जरूरत है।

इन्टर्राच बिल्डिंग के मजदूरों के जज्बे को सलाम
सिडकुल पंतनगर के सेक्टर-2, प्लाॅट न.-14 में इन्टर्राच बिल्डिंग प्रोडक्टस प्रा. लि. में 692 स्थायी मजदूर कार्यरत हैं। इसके अलावा इन्टर्राच कंपनी का एक प्लांट किच्छा में भी है जिसमें 303 स्थायी मजदूर कार्यरत हैं। दोनों प्लांटो भवनों व पुलों आदि के लिए बीम आदि बिल्डिंग मैटेरियल उत्पाद तैयार होते हैं।
02.07.14 से बी शिफ्ट में दोनों प्लांटो के सभी 995 स्थायी मजदूर वेतर वृद्धि, कंपनी की ओर से सभी मजदूरों को नियुक्ति पत्र एवं पूर्व की भांति बिना किसी कटौती के कैंटीन व परिवहन सुविधा प्रदान करने आदि मांगो को लेकर कार्यबहिष्कार पर चले गये। सिडकुल पंतनगर एवं किच्छा प्लांटो के मजदूरों ने आपसी तालमेल कायम रखा और एक ही समय पर दोनों प्लांटो के स्थायी मजदूरों ने कार्य बहिष्कार प्रारम्भ किया और समझौता होने तक दोनों प्लांटो में तालमेल कायम रखा। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने मजदूरों का उत्साहवर्धन किया और मजदूरों का शिकायत तैयार करने में मदद की।
यहां यह बताते चलें कि कंपनी में मजदूर 2005 से कार्यरत हैं। कंपनी द्वारा मजदूरों का नियमित रूप से पी.एफ. एवं ई.एस.आई. काटा जाता है। मजदूरों के पास में इ.एस.आई.कार्ड एवं कंपनी की ओर से दिया गया आई. कार्ड है। कंपनी में मजदूर 7-8 सालों से कार्यरत हैं। इसके बावजूद भी प्रबंधन द्वारा मजदूरों को नियुक्ति पत्रं नहीं दिये गये हैं। कंपनी में कार्यरत लगभग 70 प्रतिशत मजदूरों का मासिक वेतन 6500-8000 रुपये है। कुछ मजदूरों का वेतन 15000 रु. तक है। मजदूरों के लिए बस एवं कैंटीन सुविधा थी जिसका कोई पैसा नहीं कटता था। 2008 के बाद से बस एवं कैंटीन का पैसा मजदूरों के वेतन से काटा जाने लगा। 2005 से 2012 के मजदूरों के वेतन महज 2 बार वेतन वृद्धि हुयी, इसलिए मजदरों में अक्रोश व्याप्त था।
सिडकुल पंतनगर और किच्छा प्लांटो के मजदूर 3 जुलाई से 6 जुलाई तक दिन रात कंपनी के भीतर बैठे रहे। पहले दिन कंपनी प्रबंधक ने समझा कि शाम होते-होते मजदूर अपने घर चले जायेंगे और कुछ ही समय में थक जायेंगे व हताश-निराश होकर काम पर वापस चले जायेंगे। परंतु मजदूराूें ने हिम्मत नहीं हारी और दिन रात कंपनी में ही डटे रहे। यदि कोई मजदूरों से यह जानना चाहता कि मजदूरों का नेता कौन है तो यह पूछते ही मजदूर बोलते कि हम सब नेता हैं। पूरे आन्दोलन के दौरान मजदूरों में गजब का अनुशासन एवं जोश कायम रहा। मजदूरों के अनुशासन एवं जज्बे के आगे आखिरकार कंपनी प्रबंधकों को हार माननी पड़ी। मजदूर रविवार को भी कंपनी के भीतर डटे रहे। 6 जुलाई को काॅरपोरेट से अधिकारी सिडकुल पंतनगर प्लांट में आये और समझौता संपन्न हुआ। समझौते कि मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं -
1-मजदूरों के वेतन में 2500 रूपये के वृद्धि 2-समझौता 2014 से 2015 की अवधि तक लागू होगा। 3- सभी मजदूरों को कंपनी की ओर स्थायी नियुक्ति पत्र दिये जायेंगे। इसके अलावा समझौते में अनुशासन आदि से संबधिंत बातें दर्ज हैं।
 इस प्रकार से इन्टर्राच कंपनी के दोनों प्लांटो के मजदूरों का साझा आन्दोलन एवं एकता रंग लायी व मजदूरों को शानदार जीत मिली।


इन्टर्राच कंपनी के दोनों प्लांटो के मजदूरों को तत्काल कंपनी में मजदूरों की कमेटी और संगठन बनाने की आवश्यक्ता है। दोनों कंपनियों के मजदूरों के बीच में तालमेल कायम करने के लिए एक तालमेल कमेटी बनाने की आवश्यक्ता है।


दिल्ली के गरम रोला मजदूरों का संघर्ष जारी

       दिल्ली के वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में 6 जून से चल रहा गरम रोला (Hot Rolling) मजदूरों का संधर्ष नाजुक मोड़ पर है।
27 जून को हुए एक समझौते, जोकि काफी भ्रामक था और जिसकी मनमाफिक व्याख्या करना मालिकों के लिये संभव था, को इस आंदोलन के नेताओं द्वारा एतिहासिक बताया गया। लेकिन जैसा कि पहले से तय था, मालिकों ने मजदूरों से उच्च ताप वाली विषम परिस्थितियों में लगातार आठ घंटे लगातार काम करने को कहा जिसका विरोध करते हुए मजदूर अपने-अपने फैक्टरी गेटों पर डटे हैं।
गौरतलब है कि गरम रोला मजदूरों का संघर्ष पिछले वर्ष भी लड़ गया था जिसमें इ.म.के. की पहल पर गरम रोला मजदूर एकता समिति का गठन किया गया था। इसके नेतृत्व में इ.म.के. का अलावा एक स्थानीय नेता व एन.जी.ओ. कार्यकर्ता रघुराज भी था। जिसे स्थानीय मजदूर बस्ती में रहने वाले कुछ मजदूर बुला लाए थे। इस आंदोलन में 1500रू. वेतन बढ़ोतरी हुयी थी। इसके बाद मजदूरों की विभिन्न कानूनी सुविधाओं मसलन ई.एस.आई., पी.एफ., नियुक्ति पत्र व कानूनी छुटिटयों आदि के लिए कानूनी संघर्ष चलाया गया था। इसमें श्रम विभाग द्वारा लेबर इंस्पेक्टरों को भेजकर छापे मारी भी की गयी। जिसमें मालिकों का रिकार्ड चेक करने पर भारी मात्रा में फर्जीबाड़ा सामने आया था। लेकिन श्रम विभाग द्वारा इस पर आगे कोई कार्यवाही नहीं की गयी। अतः मजदूरों का असंतोष इस साल फिर फूट पड़ा।
इस बीच इमके का एन.जी.आ.े कार्यकर्ता रघुराज के साथ वित्तीय पारदर्शिता, सामूहिक नेतृत्व, एन जी ओ व भाजपा से जनदीकियों के सवालों पर संघर्ष चला। कोई हल न निकलता देखकर इमके ने पिछले साल रघुराज से अपने संबंध खत्म कर लिये थे। उसी रघुराज के साथ इस बार बिगुल ने अपने गहरे संबंध कायम कर आंदोलन व मजदूरों से इ.म.के. को दूर रखने की साजिश रची व इसके लिए कुत्सा-प्रचार के साथ हर तरह के पतित हथकण्डे अपनाये। गौरतलब है कि यही बिगुल मजदूर दस्ता पिछले साल इ.म.के. पर एक एन.जी.ओ. कार्यकर्ता के साथ संबंध रखने पर अवसरवाद के आरोप लगा रहा था।
आंदोलन के दौरान इनका कुत्सा प्रचार इस हद तक था कि इन्होंने मंच पर कभी किसी इ.म.के. कार्यकर्ता को पूरे आंदोलन के दौरान बात तक रखने नहीं दी जबकि बिगुल के अमूमन 3-4 कार्यकर्ता अलग-अलग कागजी संगठनों के नाम पर बात रखते थे और इ.म.के. के खिलाफ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से- गद्दार, नेतागिरी करने आये, मीन-मेख निकालने आये, दल्ले, कुत्ते आदि संबोधनों का प्रयोग कर यह कोशिश कर रहे थे कि वे खुद अपमानित महसूस कर चले जायें अथवा इनके लगातार एकतरफा कुत्सा प्रचार से मजदूर वास्तव में इमके के खिलाफ भड़क जायें और इमके को आंदोलन से बाहर कर दें।
एक बार 18 जून को इनके द्वारा 3-4 मजदूरों को उकसाकर इ.म.के. के कार्यकर्ताओं को बाहर करने का प्रयास किया। इ.म.के. के कार्यकर्ताओं ने कारण जानना चाहा तो उन मजदूरों ने बताया कि यह कमेटी का फैसला है हमें कुछ पता नहीं है। मामले को जानकर स्वतः स्फूर्त रूप से मजदूरों के एक बड़े समूह द्वारा इनका विरोध हुआ और वे इनकी कपटपूर्ण बातों से गुस्से में आ गए। उन्होनें इ.म.के. कार्यकर्ताओं को बाहर करने की स्थिति में सभा छोड़कर जाने की चेतावनी दी। उस समय तो कूटनीतिक तौरपर बिगुल व रघुराज के गुट को पीछे हटना पड़ा लेकिन अब इन्होंने मजदूरों के फूट डालने के लिए एक नये आरोप का आविष्कार कर लिया कि इ.म.के. के लोग मजदूरों में फूट डाल रहे हैं। गौरतलब है कि मजदूरों का यह समूह जब गुस्से में आकर सभा स्थल से दूर जाकर अपना अलग आंदोलन चलाने की बात कर रहे थे तो इ.म.के. कार्यकर्ताओं ने ही इनको समझा-बुझा कर एकजुट संघर्ष के लिए तैयार किया व मजदूरों से एकजुट रहने की अपील करते हुए उन्हें वापस सभा तक लाये।
आगे पूरे आंदोलन के दौरान इन्होनें इ.म.के. पर मजदूरों के बीच इ.म.के. द्वारा फूट डालने का भयंकर कुत्सा प्रचार किया व रोज नई अफवाहें फैलायी। इ.म.के. द्वारा जब इनसे मंच से अफवाह फैलाने से बाज आने तथा किसी गलतफहमी की स्थिति में मंच से सीधे झूठे आरोप लगाने के बजाएके बजाए पहले सीधे इ.म.के. कार्यकर्ताओं से बात कर किसी भी बात के संबंध में स्पष्टीकरण या जानकारी लेने की बात की गयी तो भी इन्होंने कभी इस पद्धति का पालन नहीं किया क्योंकि इनका मकसद साफ था कि किसी भी हद तक जाकर इ.म.के. को मजदूरों व आंदोलन से दूर करना।
20 जून को जुलूस कार्यक्रम के बाद मंच से बिगुल की शिवानी ने इंकलाबी मजदूर के कार्यकर्ता का नाम लेकर इमके पर सेटिंग करने का आरोप लगाया। इस पर इमके कार्यकर्ताओं ने जब इसका विरोध किया तो बिगुल कार्यकर्ताओं ने अपने प्रभाव के कुछ मजदूरों के साथ हंगामा मचाकर व पुलिस की मददसे इमके कार्यकर्ताओं को सभा से बाहर कर दिया।
इसके बाद भी इनका कुत्सा प्रचार नहीं रूका। 29 जून को समझौते के बाद जब इमके कार्यकर्ता कुछ मजदूरों से गेट पर मिलकर वापस आ रहे थे तो  बिगुल कार्यकर्ताओं ने किसी शख्स से फोन पर बात करने के बहाने इमके कार्यकर्ताओं की स्थिति पता कर एक उन्मादी भीड़ का नेतृत्व कर उन पर हमला बोल दिया। अततः पुलिस हस्तक्षेप के चलते इनके इरादे सफल नहीं हो पाये। इस तरह बिगुल मजदूर दस्ता के लोग अपने संर्कीण स्वार्थों के चलते सड़क छाप गुंडों के स्तर तक उतर चुके हैं।
बहरहाल यह आंदोलन एक नाजुक मोड़ पर है। इस इस आंदोलन की न्यूनतम वेतम, पी. एफ, ई. एस. आई. सहित सभी श्रम कानूनों को लागू करवाने के लिए मजदूरों की मजदूरों की एक व्यापक एकता की जरूरत थी, जिसमें सभी मजदूर संगठनों व ट्रेड यूनियनों को साथ लेकर चलने की जरूरत थी लेकिन संकीर्ण स्वार्थाें से संचालित तत्वों के हाथों में पड़कर आज गरम रोला आंदोलन अधर में लटक गया है।

27 जून का समझौता

27 जून को इस आंदोलन के नेताओं ने प्रबंधन के साथ एक ऐसा समझौता कर लिया जो कि  बेहद गुमराह करने वाला था। इस समझौते में जहां मालिकों ने समझौता पत्र में कहा है  िकवे तो पहले से ही 8 घंटे कार्यदिवस, न्यूनतम वेतन, पी. एफ., ई. एस. आई. सहित सभी सुविधायें पहले से दे रहे हैं और अगर कहीं इस संबंध में कोई शिकायत पाई जायेगी तो नियमानुसार उसका नियमतिकरण किया जायेगा। बाकी आंदोलन के दौरान के जून माह के वेतन के साथ 2000 रुपये की कृपा राशि (Ex-Gratia) दी जायेगी जो कि मजदूरों के संतोषजनक कार्य व्यवहार पर निर्भर करेगी। कि इस समझौते में सेवा शर्तों को कोई उल्लेख नहीं था, जबकि मालिक पहले से यह कहते रहे हैं कि कार्यदिवस 12 घंटे को होने के बावजूद वे मजदूरों से 6 घंटे ही काम ले रहे हैं क्योंकि कार्यपरिस्थितियां विकट होने के कारण हर आधे-आधे घंटे के अंतराल पर मजदूरों को विश्राम दिया जाता है। ऐसे में कार्यदिवस की स्पष्ट व्याख्या व सेवा शर्तों के बगैर इस समझौते का मालिकों के लिये मनमाना अर्थ निकालना संभव थ। और अंततः ऐसा हुआ भी। 28 जून को जब मजदूर काम पर गये तो मालिकों ने हर आधे-आधे घंटे के अंतराल पर चलने दो शिफ्टों के बजाय 8 घंटे की लगातार बिना विश्राम के चलने वाली एक शिफ्ट में काम करने के लिए मजदूरों को मजबूर किया। बिगुल द्वारा इस समझौते को ऐतिहासिक बताया गया। ‘ऐतिहासिक’ समझौते की ऐतिहासिकता एक दिन भी नहीं टिक पायी।


खिसयानी बिल्ली खम्भा नोंचे
रूद्रपुर/ऊधमसिंह नगर पंतनगर सिडकुल में मित्तर फास्टनर्स फैक्टरी सिडकुल पंतनगर के प्लांट नं. 69 से.नं.6 में है। प्रबंधकों और मजदूरों के बीच इस समय जबरदस्त तरीके से संघर्ष चल रहा है। प्रबंधक इतने लम्बे समय से मजदूरों का षोषण-उत्पीड़न कर रहा था मगर इस समय मजदूरों ने अपनी एकता के दम पर मालिक की नींद हराम कर दी है मालिक उसी तरह है जैसे बिल्ली चूहे को न पकड़ पाने में खम्भे को नोचती रहती है।
मजदूरों ने अपना शिकायत पत्र उपश्रमायुक्त को लगाया था उसी दिन से प्रबंधकों में हड़कम्प मचा था। इस समय प्रबन्धक मजदूरों को आपस में बांटने के लिए ढेरों तरीकों से मजदूरों को बांटने का प्रयास कर रहा था मगर हर मौके पर असफल रहा मजदूरों का वेतन सात-आठ तारीख को दे दिया और जिन मजदूरों का पैसा पिछले लम्बे समय से मार रहा था इस बार उसने मजदूरों  का पूरे पैसे का भुगतान कर दिया जिससे मजदूरों को 2000 से 2500 रूपये का फायदा हुआ कुछ मजदूर जो दुघर्टनाग्रस्त हो गये थे उनको पी.एफ. व ई.एस.आई. सुविधा से वंचित कर दिया था मगर इस समय उसने कुछ मजदूरों को ई.एस.आई. व पी.एफ. की सुविधा जारी की इसी क्रम में गोपाल बिहार के दरभंगा के रहने वाले है, अपने कार्ड को लेकर जी.एम. के पास गये और उससे कहा कि मेरे को भी पी.एफ.की सुविधा दी जाय। जबकि गोपाल पिछले तीन माह से पी.एफ. निकालना चाह रहा था क्योंकि गोपाल के पिताजी की तबियत खराब चल रही थी तीन माह से अनुनय विनय के बाद गोपाल का फार्म जमा किया था मगर उसका अभी फार्म को वेरीफाई करके पी. एफ. कार्यालय नहीं भेजा था। पिछले दो साल से पुराना पी.एफ. था उसकी धनराशि  थी। इस पर जी. एम. ने कहा कि मैं तुम्हे पी.एफ. की सुविधा नहीं दे सकता क्योंकि तुम अपना पुराना पी.एफ. निकाल रहे हो। जब तुम्हारा पी. एफ. निकल जायेगा तब दुबारा पी.एफ. जमा कर दूंगा इसको लेकर गोपाल ने कहा इससे उसका क्या मतलब है। इससे जी.एम. बौखला गया और बोला कि तुम्हारा गेट बंद कर दूंगा तुम्हार कल से कंपनी में नो इंट्री लगा दूंगा। इससे गोपाल परेशान  हो गया। जी. एम. ने गोपाल से कहा कि तूने भी तो शिकायत पत्र पर हस्ताक्षर किये थे अब मैं उसका मजा चखाऊंगा। इसके बाद जी.एम. से दो मजदूर प्रतिनिधि जाकर मिले।जी.एम. उनसे भी बौखला गया और बोला कि तुम यहां पर बदमाशी दिखा रहे हो। मजदूर प्रतिनिधियों ने उसकी बात जबाव नम्रता पूर्वक ही दिया मगर जी.एम. साहब कहां मानने वाले थे।
       11जून 2014 को सुबह जब गोपाल फैक्टरी गेट पर पहुंचा तो उसका गेट बंद हो चुका था। उसको गेट पर रोक दिया गया मगर उसके बाद दो मजदूर प्रतिनिधि जी.एम. से मिलने गये और उसकी नो इंट्री पर बात की और उससे कहा कि एक तरफ तो बात करते हो कि घर का मामला घर में सुलझा लो मगर यहां पर तुम मजदूर साथियों को गैर कानूनी तरीके से बाहर कर रहे हो। तुम्हारा यह व्यवहार ठीक नहीं है। तुम मजदूरों को भड़काने का काम कर रहे हो तुम फैक्टरी में शांति नहीं चाहते हो। इससे जी.एम. थोड़ा नरम पड़ा और बोला कि ठीक है मैं उसे अंदर ले लूंगा मगर उसे हल्द्वानी से पी.एफ. फार्म वापिस लाना पड़ेगा उसके बाद उसे काम पर वापिस लूंगा।
       जब मजदूरों ने शिकायत पत्र पर हस्ताक्षर किये थे तब जो बिहार के मजदूर थे उन्होंने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये थे और जब मजदूर योजना बनाते थे तो उसमें भी साझीदारी नहीं करते थे। इससे अन्य मजदूरों का इनके प्रति गुस्सा था मगर इस बार आठ जून को बैठक हुई थी तब बाकी बिहार के मजदूरों को छोड़कर गोपाल बैठक में आया था यह सूचना जी. एम. तक पहुंच गयी थी इससे जी.एम. और ज्यादा बौखला गया था और अपना सारा गुस्सा गोपाल के ऊपर उतार दिया।
       वैसे अभी भी जी.एम.पर 16 जून को उपश्रमायुक्त हल्द्वानी में जो वार्ता होनी है उसका प्रभाव है मगर  पहले ही मजदूरों की वेतन स्लिप और वेतन विसंगतियां समाप्त कर दी। और मजदूर प्रतिनिधियों पर फिर से एक बार खेल खेला कि समझौता घर में करो मजदूरों ने अपना समझौता पत्र बनाकर दिया था उससे फिर वह उसी मूड में था कि आप ज्वाइनिंग पत्र और स्थाई नियुक्ति पत्र की मांग छोड़ दीजिए और मजदूर असहमत हो गये और कहा कि हम यहां पर समझौता नहीं करेंगे।
      उपश्रमायुक्त ने 22 मई 2014 को अपनी जांच के लिए श्रम निरीक्षक रूद्रपुर को लिखा था कि मैं इनके जरिये दो सप्ताह में रिपोर्ट मंगाऊंगा। मगर आज लगभग पूरा समय खत्म हो चुका है मगर अभी तक श्रम निरीक्षक फैक्टरी में झांकने भी नहीं गया कि फैक्टरी में क्या हाल है। आज श्रमआयुक्त, उपश्रमायुक्त, सहायक श्रमायुक्त या फिर कोर्ट से इसीलिए फैक्टरी मालिकों ने डरना छोड़ दिया है कि वह जानते है  कि वह कुछ करने वाले नहीं है। मगर मजदूर अभी भी अपनी एकता और संघर्ष के दम से श्रम अधिकारियों को मजबूर कर देते है कि वह इनके खिलाफ कुछ कार्यवाही करें। इसी तरह षासन भी इन्हीं के लिए काम करता है  इसी फैक्टरी में भाजपा विधायक ठुकराल और उसके भाई लोग मालिक का पक्ष लेकर मजदूरों पर जबरदस्ती समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने को कह रहे थे मगर मजदूरों के सामने उनकी एक ना चली और अंत में दुम दबाकर भागने में ही कामयाबी समझी। यही मजदूरों के लिए अच्छे दिन लाने वाले है। मजदूरों को अगले पांच सालों में इस तरह से मजदूरों का यह खुलकर दमन करेंगे और फैक्ट्री  मालिकों की खुलकर सेवा करेंगे। यही है अच्छे दिन। धन्य है । मजदूरों को इनसे सावधान रहने की जरूरत है।

पंतनगर सिडकुल में मजदूरों का ट्रेड यूनियन संघर्ष
ऐरा बिल्डसिस लि.के मजदूरों ने अपनी यूनियन पंजीकृत करवायी सिडकुल पंतनगर के से-9 में अवस्थित ऐरा बिल्डसिस लि. में कार्यरत स्थाई मजदूर अपनी ट्रेड  यूनियन ‘‘ऐरा श्रमिक संगठन’’ का पंजीकरण करवाने में सफल हुए। ऐरा कंपनी में कार्यरत 114 स्थाई मजदूरों में से 105 स्थाई मजदूरों में विगत नवम्बर 2013 से कंपनी अपनी यूनियन पंजीकृत करवाने के लिए प्रयास सुरू किये। इसकी भनक लगते ही कंपनी प्रबधकों ने यूनियन अध्यक्ष राजेन्द्र एवं महामंत्री हीरालाल का ट्रांसफर उत्तराखण्ड से बाहर करने की साजिश  रची। यूनियन अध्यक्ष एवं महामंत्री द्वारा अवैधानिक रूप से किये गये ट्रांसफर को मानने से इंकार करने पर कंपनी प्रबंधकों ने इनका गेट बंद कर दिया।
      यूनियन द्वारा अपने अध्यक्ष एवं महामंत्री के अवैधानिक ट्रांसफर के खिलाफ मजबूती से संघर्ष किया गया। लगभग ढाई माह के संघर्ष के बाद प्रबंधकों को घुटने टेकने पड़े और यूनियन अध्यक्ष एवं महामंत्री को कार्य पर बहाल करना पड़ा। अपवाद को छोड़कर शिरडी कंपनी के मजदूरों की तरह ही ऐरा कंपनी के मजदूरों द्वारा अपने निकाले गये यूनियन नेताओं को अपने संघर्ष के दम पर कार्य पर बहाल कराने की घटनायें पहली घटनायें हैं जिसका सिडकुल पंतनगर के भीतर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
      कंपनी प्रबंधक द्वारा यूनियन रजिस्ट्रेशन  को रूकवाने के लिए छल-कपट-प्रपंच के सभी तरीके अजमाये गये। जनवरी 2014 को यूनियन के 105 सदस्यों में से 81 सदस्यों के फर्जी साइन करते हुए कंपनी प्रबंधकों द्वारा उपश्रमायुक्त के पास प्रार्थना पत्र दिया गया कि मजदूर यूनियन का रजिस्ट्रेशन नहीं करवाना चाहते है, उनसे यूनियन नेताओं द्वारा दबाव डालकर एवं लालच देकर यूनियन की फाइल में हस्ताक्षर करवाये हैं, इसलिए यूनियन का पंजीकरण न किया जाय। यूनियन द्वारा 30 जनवरी को अपने सभी 105 सदस्यों के हस्ताक्षर के साथ ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रा (श्रमायुक्त)को पत्र प्रेषित किया और कहा कि प्रबंधक यूनियन का पंजीकरण रूकवाने के लिए फर्जी पत्रजात मजदूरों के नाम से लगवा सकता है अतः तत्काल यूनियन को पंजीकृत किया जाय।
     कंपनी प्रबंधकों ने यूनियन का पंजीकरण रूकवाने के लिए मजदूरों को अलग-अलग तनख्वाह बढ़ाने एवं प्रमोशन  का लालच दिया, मजदूरों को नौकरी से निकालने झूठे केस में फंसाने आदि का भय दिया था परन्तु मजदूर न तो किसी लालच में आये और न डरे बल्कि किसी चीज की प्रवाह किये बगैर यूनियन के साथ में चट्टान की भांति खड़े रहे। कंपनी प्रबंधक के सभी चालें फेल हो गयी।
     इस बीच स्थाई मजदूरों ने अपनी समस्याओं के साथ-साथ कंपनी के ठेका मजदूरों की समस्याओं पर भी ठेका मजदूरों का समय-समय पर साथ दिया इससे ठेका मजदूर भी स्थाई मजदूरों के साथ खड़े हो गये। यह खासा पहलू रहा है।
      26 मई 2014 को रात्रि 9 बजे मजदूरों ने प्रबंधकों को सूचित किया कि अमन क्रेन सर्विस का ड्राइवर स्क्रैप, नट बोल्ट आदि को गाड़ी में भरकर चोरी करने की फिराक में है। कंपनी स्टाफ ने सुबह 9 बजे तक प्रबंधकों के आने तक ड्राइवर को कमरे में बंद रखा। मजदूरों ने आगे बताया कि कंपनी प्रबंधक ने क्रेन ड्राइवर के खिलाफ पुलिस को न तो एफ.आई.आर.की दी और न ही कोई सूचना, कंपनी प्रबंधक का पूरा प्रयास इस बात पर था कि ड्राइवर इस मामले में यूनियन सदस्य का नाम बताये कि वह भी उसके साथ मिला है परंतु कंपनी प्रबंधक इसमें सफल नहीं हो पाये। मजदूरों का कहना था कि कंपनी में समय-समय पर स्क्रैप आदि की चोरी होना आम बात है कंपनी के टाॅप प्रबंधक से लेकर हेड आॅफिस तक इसके तार जुड़े हुए है। मजदूरांे ने बताया कि 26 मई 2014 को क्रेन के ड्राइवर के कंपनी से जाने के लिए बने गेट पास पर प्रोडक्षन हेड, एच.आर. हेड एवं स्टोर हेड के साइन थे और उस पर सांय 5 बजे का समय चढ़ा हुआ था तो फिर क्रेन का ड्राइवर रात्रि 9 बजे तक कंपनी के भीतर किसी सह पर रूका। इस घटना ने यही स्थापित किया कि मजदूर अपनी कंपनी के हितो में कितने चिंतित एवं संवेदनषील रहते है और प्रबंधक चोरी लूट-खसोट एवं अन्य भ्रष्ट तरीके अपनाकर कंपनी को नुकसान पहुंचाने में तनिक भी संकोच नहीं करते है।
       आखिरकार ऐरा कंपनी के स्थाई मजदूर 29 मई 2014 को काफी संघर्ष एवं जद्दोजहद् के बाद अपनी यूनियन को पंजीकृत करवाने में सफल रहे। 29 मई को मिले प्रमाण पत्र पर 21 मई की तारीख पड़ी है। ऐरा मजदूरों को किसी खुशफहमी या मदहोशी में पड़ने के बजाय यह समझना होगा कि यूनियन पंजीकृत करवाने से अधिक महत्वपूर्ण एवं चुनौती पूर्ण कार्य जनवादी तरीके से सभी सदस्यों की यूनियन को बनाते हुए यूनियन का संचालन करना है।
         कंपनी प्रबंधक ने 29 मई 2014 को ही बौखलाहट में षाम 6 बजे कंपनी में नोटिसबोर्ड पर नोटिस चस्पा कर तीन दिनों के भीतर कंपनी के सभी स्थाई मजदूरों से अपनी पढ़ाई के ओरजनल दस्तावेज लाने को कहा, जबकि कंपनी में बिहार, यूपी एवं उत्तराखण्ड के गढ़वाल/कुमायुं के दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र के मजदूर अच्छी खासी संख्या में कार्य करते है।
        कंपनी प्रबंधन द्वार 5 जून को कंपनी में कार्यरत 40 ठेका मजदूरों का अचानक गेट बंद कर दिया क्योंकि यह ठेका मजदूर स्थाई मजदूरों के साथ में खड़े थे। 5 जून को दोपहर लगभग 1 बजे तक कंपनी में उत्पादन बुरी तरह प्रभावित रहा। स्थाई मजदूरों ने कहा  िकवह  आॅपरेटर एवं फाइनल क्वालिटी चेकर आदि के पद पर भर्ती हुए है इसलिए वह हैलपर का कार्य नहीं करेंगे। अंततः कंपनी प्रबंधन को हार माननी पड़ी और ठेका मजदूरों को कार्य पर बहाल करना पड़ा।
      5 जून को ही कंपनी प्रंबधन द्वारा ठेके पर कार्यरत 5 सफाई मजदूरों को कार्य से निकाल दिया। कंपनी प्रबधंन के इस कारनामें के पीछे असली मंषा कंपनी यूनियन सदस्यों को परेषान करने की थी। कंपनी की कैंटीन में गंदगी चरम पर थी, टायलेट का पानी कैंटीन में टपक रहा था जिससे मजदूरों को कैंटीन का इस्तेमाल करने में खासी समस्या आ रही थी मजदूरों ने कैंटीन सफाई को संघर्ष जारी रखा और सफाई होने तक खाना खाने से मना कर दिया। खबर लिखे जाने तक सफाई कर्मियों को कार्य पर बहाल कर दिया गया था।
       कुुल मिलाकर कंपनी प्रबंधन अभी भी यूनियन तोड़ने की फिराक में है और मजदूर संघर्ष जारी रखे हुए।
वोल्टास कंपनी के स्थाई मजदूरों की यूनियन पंजीकृत सिडकुल पंतनगर के सेक्टर 8 में अवस्थित वोल्टास लि. के स्थाई मजदूरों की अथक मेहनत एवं लम्बा संघर्ष आखिरकार रंग लाया। 7 जून 2014 को यूनियन नेताओं को पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ जिसमें 28 मई 2014 की तिथि दर्ज है।
      वोल्टास कंपनी में 38 स्थाई एवं लगभग हजार ठेका मजदूर कार्यरत है कंपनी के 38 स्थाई मजदूरों ने फरवरी 2013 को अपनी यूनियन को पंजीकृत करवाने के लिए फाइल ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रा के कार्यालय में लगायी। यूनियन नेताओं का कहना था कि कंपनी प्रबंधक एवं श्रम विभाग द्वार यूनियन का पंजीकरण रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया। श्रम विभाग द्वारा दो बार यूनियन की फाइल को रद्द कर दिया गया, परन्तु इससे मजदूरों का मनोबल गिरा नहीं, मजदूरों ने यूनियन पंजीकरण के लिए अपने प्रयास एवं संघर्ष को जारी रखा। 16 मई को कंपनी प्रबंधक द्वारा यूनियन पर आपात्ति लगाते हुए यह लिखकर दिया कि यूनियन सदस्य कंपनी में कार्यरत नहीं है इनसे कंपनी का कोई लेना-देना नहीं है। आखिरकार वोल्टास कंपनी के स्थाई मजदूर अपनी यूनियन पंजीकृत करवाने में सफल रहे।
वोल्टास कंपनी की यूनियन के समक्ष असली चुनौती ठेका मजदूरों के साथ में एकजुटता कायम करना एवं उनका स्थाईकरण करना है क्योंकि हजार ठेका मजदूरों के मुकाबले महज 38 मजदूर ही स्थाई है, भविष्य में ठेका मजदूरों के बगैर हड़ताल जैसी स्थितियों को यूनियन पार पा पायेंगी। हालांकि यह सच है कि ठेका प्रथा सभी कंपनियों के स्थाई मजदूरों के लिए एक चुनौती बन गयी जो यूनियन की मालिकान से होने वाली वारिगनें (मोल-तोल को कमजोर कर दे रही है परन्तु फिर भी वोल्टास के लिए इसके बावजूद भी एक विषिष्टि स्थिति बन जाती है
मोदी षासन में मित्तर फास्टनर्स मजदूरों के लिए अच्छे दिनों की षुरूआत
सिडकुल पंतनगर के से.6 में अवस्थित मित्तर फास्टनर्स कंपनी में लगभग 100 से अधिक मजदूर कार्यरत है। यह सभी मजदूर कंपनी की ओर से भर्ती किये गये, परन्तु कंपनी द्वारा किसी भी मजदूर को नियुक्ति पत्र एवं स्थाई नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है जबकि यह मजदूर विगत लगभग चार या पांच सालों से कंपनी में कार्यरत है। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के दिषा-निर्देशन में मजदूरों ने स्थाई नियुक्ति पत्र देने समय अन्य दर्जन भर मांगों के साथ में विगत अप्रैल 2014 को उपश्रमायुक्त कार्यालय में अपना शिकायत पत्र लगा रखा है, जिस पर उपश्रमायुक्त की मध्यस्थतता में वार्तायें चल रही है। अगली वार्ता 16 जून को होनी है।
इससे पूर्व 22 मई को वार्ता होनी थी। कंपनी प्रबंधन ने पहले मजदूर नेताओं एवं इसके बाद आम मजदूर को वेतन बढ़ाने आदि का लालच देकर शिकायत पत्र को वापिस लेने को दबाव बनाया। मजदूर नेताओं ने कहा कि पहले आप लिखित में दो आप कब तक मजदूर को स्थाई नियुक्ति पत्र आदि देंगे इसके बाद ही शिकायत पत्र को वापिस ले लेंगे। कंपनी प्रबंधन मजदूरों को स्थाई नियुक्ति पत्र देने को तैयार नहीं है तो मजदूर भी अपना शिकायत पत्र वापिस लेने को तैयार न हुए।
वार्ता की तारीख 22 मई निकट आ रही थी, ऐसी स्थिति में कंपनी प्रबंधन ने भाजपा के स्थानीय विधायक एवं उनके भाई को 20 मई को कंपनी में बुलाया। विधायक एवं उसके भाई ने पहले तो माहौल बनाने के लिए एवं मजदूरों को भ्रम में डालने के लिए दोनों पक्षों की बात की और समझौता करने के लिए कहा, मजदूर नेताओं ने विधायक से कहा कि आप समझौता करा दीजिए हम तैयार है। विधायक ने कहा कि कंपनी में नियम के तहत 70 प्रतिशत पहाड़ी मजदूर स्थाई होंगे और शेष बाहरी नेतृत्वकारी मजदूरों एवं मुखर मजदूरों में से जायदातर यूपी के मजदूर है। अब मजदूर नेताओं की समझ में आ गया था कि विधायक प्रबंधक का काम कर रहे है और मजदूरों पर प्रकारान्तर से शिकायत पत्र वापिस लेने का दबाव डाल रहे थे। मजदूर नेताओं ने उस दिन भी शिकायत पत्र वापिस लेने से इंकार कर दिया।
अगले दिन विधायक और उसका भाई पुनः कंपनी में आये और प्रंबधकों के लठैतों की तरह व्यवहार करते थे और मजदूर नेताओं से हस्ताक्षर करने को कहने लगे जिसमें लिखा था कि मजदूरों की सभी समस्यायें हल  हो चुकी है इसलिए मजदूर उक्त श्रमायुक्त कार्यालय में लगाये गये शिकायत पत्र को वापिस ले लेंगे। मजदूर नेताओं के हस्ताक्षर करने से इंकार करने पर विधायक के भाई ने मजदूर नेताओं को हस्ताक्षर न करने पर देख लेने की धमकी दी। मजदूर नेताओं ने भी पलटवार करते हुए कहा कि आप हमें देखते ही रहते है आगे भी देख लेना, हम शिकायत पत्र वापिस नहीं लेंगे।
यहां के मेयर, विधायक एवं सासंद सभी भाजपा के है। गनीमत है कि अभी उत्तराखण्ड में राज्यसरकार भाजपा की नहीं है हालांकि निकट भविष्य में इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
मित्तर फास्टनर्स कंपनी के मजदूरों ने मोदी नीत भाजपा में अपने लिए आने वाले ‘‘अच्छे दिनों’’ का एक टेलर देख लिया है, हालांकि फिल्म अभी बाकी है। उत्तराखण्ड समेत  देष भर के मजदूरों-मेहनतकषों के लिए भी मोदी राज में अपने लिए आने वाले ‘‘अच्छे दिनों’’ का दीदार भी निकट भविष्य में होगा यह तय है।
षिरडी कंपनी के मजदूर प्लांट बंदी को रूकवाने के लिए संघर्षरत
सिडकुल पंतनगर  से- 9 में स्थित षिरडी इंडस्ट्रीज के मजदूर कंपनी के पार्टीकल बोर्ड विभाग की बंदी के खिलाफ जनवरी 2014 से संघर्षरत है इस विभाग में स्थाई एवं ठेका मजदूरों सहित सौ से अधिक मजदूर कार्यरत है। कंपनी प्रबंधन द्वारा 10 जनवरी 2014 को कंपनी के पार्टिकल बोर्ड विभाग की बंदी (क्लोजर) की अनुमति प्रदान करने के लिए उत्तराखण्ड षासन के समक्ष आवेदन किया था। जिसे प्रमुख सचिव श्रम एवं सेवायोजन विभाग, उत्तराखण्ड षासन में 23 मार्च 2014 को खारिज कर दिया था।
कंपनी प्रबंधन द्वारा 25 मार्च 2014 को पुनः प्रमुख सचिव के समक्ष 23 मार्च 2014 को दिये गये प्रमुख सचिव के आदेष पर पुर्नविचार करने एवं कंपनी के पार्टिकल बोर्ड विभाग को बंद करने की अनुमति प्रदान करने के लिए आवेदन किया जिस पर प्रमुख सचिव की मध्यस्थतता में यूनियन नेताओं एवं कंपनी प्रबंधक मौजूदगी में सुनवाई चल रही है । वार्ता की अगली तिथि 14 जून 2014 है।
यूनियन नेतृत्व को वार्ता में पूरी तैयारी के साथ में भागीदारी करते हुए सभी कानूनी पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है, परन्तु सबसे अधिक जरूरत यूनियन को मजबूत करते हुए मजदूरों को संघर्स के लिए तैयार करने की है।यूनियन नेतृत्व को चारों ओर निगाह रखना चाहिए और यह महसूस करना चाहिए कि पूरे देषभर में श्रम विभाग एवं शासन-प्रसाशन  ने व्यवहार में श्रम कानूनों को मानना लगभग बंद कर दिया है। शासन-प्रसाशन एवं श्रम विभाग के अत्याधिक खुश फहमी पालना घातक होगा।

आॅटोलिव के मजदूर संघर्ष की राह पर
      गुड़गांव आॅटोलिव इंडिया प्रा. लि. के मजदूर प्रबंधन के उत्पीड़न व अपनी  जायज मांगो को लेकर संघर्षरत हैं।
आॅटोलिव इंडिया प्रा. लि. गुड़गांव के सेक्टर 4 स्थित एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है जो मारुति व महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा जैसी कंपनियों के लिए उत्पाद बनाती है। कंपनी में 170 मजदूर हैं जिसमें से 50 मजदूर स्थायी व प्रशिक्षु हैं। 100 महिला मजदूर भी लाइन पर काम करती हैं। कंपनी के रूद्रपुर व बंगलौर आदि में भी प्लांट हैं।
इस कंपनी ने 1996 में गुड़गांव के उद्योग विहार के फेस तीन से 9-10 मजदूरों को लेकर काम शुरु किया तथा 2009 में आई.एम.टी. मानेसर में एक प्लांट लगाया।
2009 में कंपनी में कोई मजदूर स्थायी नहीं था। मजदूरों ने 2010 में स्थायीकरण व अन्य मांगो को लेकर आंदोलन किया जिसमें से 22-23 मजदूर स्थायी किये गये। इस दौरान 20 मदजूरों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
अभी कुछ समय पूर्व  6 मई को मजदूरों ने एटक की मदद से एक यूनियन पंजीकरण के लिए आवेदन किया और 12 मई को एक मांग पत्र भी लगाया । 12 जून को जब मजदूर अपनी शिफटों में काम पर आये तो उन्हें काम से निकालने की कोशिश की गयी परन्तु जब मजदूर वहीं हड़ताल पर बैठे तो प्रबंधक ने 2 दिन की छुट्टी का नोटिस लगा दिया और कहा कि हम पहले लगाना भूल गये थे। 2 व 3 जून की छुट्टी क्रमशः 14 जनवरी और 1 मई को काम करने के एवज में दी गयी। जब मजदूर 4 जून को डयूटी पर आये तो 17 मजदूरों को सस्पेंड कर दिया गया और शेष मजदूरों को अंडरटेकिंग का फाॅर्म भरकर अन्दर आने को कहा परन्तु मजदूरों ने संघर्ष का रास्ता चुना।

आॅटोलिव के मजदूर संघर्ष की राह पर
      गुड़गांव आॅटोलिव इंडिया प्राण् लिण् के मजदूर प्रबंधन के उत्पीड़न व अपनी  जायज मांगो को लेकर संघर्षरत हैं।
      आॅटोलिव इंडिया प्राण् लिण् गुड़गांव के सेक्टर 4 स्थित एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है जो मारुति व महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा जैसी कंपनियों के लिए उत्पाद बनाती है। कंपनी में 170 मजदूर हैं जिसमें से 50 मजदूर स्थायी व प्रशिक्षु हैं। 100 महिला मजदूर भी लाइन पर काम करती हैं। कंपनी के रूद्रपुर व बंगलौर आदि में भी प्लांट हैं।
     इस कंपनी ने 1996 में गुड़गांव के उद्योग विहार के फेस तीन से 9.10 मजदूरों को लेकर काम शुरु किया तथा 2009 में आईण्एमण्टीण् मानेसर में एक प्लांट लगाया।
     2009 में कंपनी में कोई मजदूर स्थायी नहीं था। मजदूरों ने 2010 में स्थायीकरण व अन्य मांगो को लेकर आंदोलन किया जिसमें से 22.23 मजदूर स्थायी किये गये। इस दौरान 20 मदजूरों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
     अभी कुछ समय पूर्व  6 मई को मजदूरों ने एटक की मदद से एक यूनियन पंजीकरण के लिए आवेदन किया और 12 मई को एक मांग पत्र भी लगाया । 12 जून को जब मजदूर अपनी शिफटों में काम पर आये तो उन्हें काम से निकालने की कोशिश की गयी परन्तु जब मजदूर वहीं हड़ताल पर बैठे तो प्रबंधक ने 2 दिन की छुट्टी का नोटिस लगा दिया और कहा कि हम पहले लगाना भूल गये थे। 2 व 3 जून की छुट्टी क्रमशः 14 जनवरी और 1 मई को काम करने के एवज में दी गयी। जब मजदूर 4 जून को डयूटी पर आये तो 17 मजदूरों को सस्पेंड कर दिया गया और शेष मजदूरों को अंडरटेकिंग का फाॅर्म भरकर अन्दर आने को कहा परन्तु मजदूरों ने संघर्ष का रास्ता चुना।

प्रबंधक की मनमानी के खिलाफ बेक्सटर और बेराॅक कंपनी के मजदूरों का ए.एल.सी. के दफतर पर धरना
      बक्सटर कंपनी में 21 मई को प्रबंधक ने एक मजदूर प्रतिनिधि को अपने आॅफिस में बुलाया व धमकाया। कहा-सुनी होने पर गार्डो से पिटाई करवायी। इस घटना को लेकर ए शिफ्ट के मजदूरों ने काम बन्द कर दिया।
देर शाम सहायक श्रम आयुक्त, सर्कल-6 गुड़गांव के समक्ष समझौता हुआ। समझौते की शर्त में तीन बिन्दु लिखे गये।
1. मजदूर प्रतिनिधि अशोक का निलम्बन व घरेलु जांच होगी।
2. प्रबंधन द्वारा प्लांट की वैलीडेशन की जाएगी और उसके बाद मजदूरों को डयूटी पर ले लिया जायेगा। इस दौरान किसी भी मजदूर का वेतन नहीं काटा जायेगा।
3. ड्यूटी पर आने के बाद मजदूर अनुशासन में रहकर पूर्ण उत्पादन देंगे। वैलीडेशन के बाद मजदूरों को ड्यूटी पर आने के बारे मेें प्रबंधन द्वारा सूचित कर दिया जायेगा।
प्रबंधक द्वारा मजदूरों को 26 मई को एस एम एस के द्वारा 27 मई से ड्यूटी पर बुलाया, परन्तु जब ए शिफ्ट के मजदूर काम पर पहुंचे तो 17 मजदूरों केा लिस्ट गेट पर पर लगी थी जिनको निलम्बित कर दिया गया था जिसमें 4 यूनियन प्रतिनिधि थे। शेष स्थायी मजदूरों को अच्छे आचरण का फार्म भरकर ड्यूटी पर आने के लिए कहा गया।
जो समझौता श्रम अधिकारी के समक्ष हुआ था उसको भी कंपनी ने मानने से इंकार कर दिया। मजदूर पूरा दिन कंपनी गेट पर बैठे रहे। एच.एम.एस. के नेताओं ने शाम को आकर कहा हम सभी कल ए.एल.सी. के दफतर में 24 घंटे के अल्टीमेटम के साथ धरना देंगे, उसके बाद भी अगर मामला हल नहीं हुआ तो पूरा आइ.एम.टी. बंद कर दिया जायेगा।
28 मई को एक और कंपनी बेराॅक जिसमें 13 को गोलियां चली थीं और मजदरों को जबरदस्ती कंपनी से बाहर निकाल दिया गया था। मजदूर अपनी एकता के दम पर आई.जी. से मिले और आई.जी. द्वारा कहा गया था कि गोली चलाने वाले व्यक्ति को फौरान रिमांड पर लिया जाय, परन्तु अभी तक कोई भी कार्यवाही कंपनी या किसी के खिलाफ नहीं हुयी। उल्टा कंपनी ने कई मजदूरों को निलंबित कर दिया।
दोनों कंपनी के मजदूरों ने 28 मई को ए.एल.सी. दफतर में धरना चालू कर दिया और समझौता होने तक धरना चालू रहेगा। दफतर में श्रम विभाग, प्रबंधन, पुलिस प्रशासन व मजदूरों की एकता नारे लगने लगे।
आज बक्सटर कंपनी का मांग पत्र पर ए.एल.सी की तारीख भी थी, जिसमें मैनेजमेंट आया और ए.एल.सी. ने मजदूर प्रतिनिधियों से वार्ता की। परन्तु वार्ता में प्रबंधक ने कहा हम आपको पहले से ही अच्छा वेतन और अच्छी सुविधा दे रहे हैं, इससे ज्यादा हम कुछ नहीं दे सकते।
कल की घटना पर अपनी मांगो के लिए बाहर बैठे मजदूरों के बारे में कोई बात नहीं की और ए.एल.सी.द्वारा प्रधबंध की इस की इस रवैये पर कोई कार्यवाही नहीं की गयीं
बल्कि ए.एल.सी. को दोनों कंपनी प्रबंधकों को बुलाना चाहिए था और वार्ता करनी चाहिए थी परन्तु श्रम विभाग अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काटता रहा।

मजदूरों को इस लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था को समझते हुए अपने नारों में, जो अभी तक उसके नारों में नहीं है, पूंजीवाद मुर्दाबाद, समाजवाद जिंदाबाद भी लगाने होंगे। मजदूरों को और कंपनियों के मजदूरों को भी अपने संघर्ष में लाना होगा क्योंकि आज एक कंपनी की लड़ाई अकेले दम पर नहीं जीती जा सकती है।


राजकीय दमन के विरोध में जुलूस प्रदर्शन

      रामगढ़ (उत्तराखंड) में राज्य सरकार द्वारा माओवाद के नाम पर विभिन्न प्रगतिशील व जनवादी संगठनों पर फर्जी मुकदमे लगाने के विरोध में कई प्रगतिशील जनवादी संगठनों द्वारा 23 मई 2014 को ‘दमन विरोधी संघर्ष समिति’ के तले शहर में एक जुलूस निकाला गया और स्थानीय परगनाधिकारी कार्यालय पर एक सभा की गयी। जुलूस में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं।
ज्ञात हो कि चुनावों केे दौरान उत्तराखण्ड के अल्मोडा व पिथौरागढ़ में माओवादियों के नाम से चुनाव बहिष्कार के पोस्टर लगे जिसके आरोप में पुलिस ने क्रांतिकारी जनवादी मंच (आर.डी.एफ.) के जी सी आर्य तथा उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के कार्यकारिणी सदस्य दीवान सिंह बिष्ट तथा दो अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया था। जबकि आरडीएफ के जी सी आर्य अपनी बहिन का रानीखेत में इलाज करा रहे थे और दीवान सिंह विष्ट लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे थे। पुलिस ने उन पर मुकदमा लगाकर उन्हें जेल में डाल दिया। पुलिस द्वारा इन सभी का शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त भी किया गया।
इसी तरह शिवनाथपुर, मालधन में हाल ही में वन विभाग द्वारा पुलिस के साथ मिलकर बिना कोई पूर्व सूचना के अतिक्रमण हटाने के नाम पर गांव वालों के साथ मारपीट की गयी और फायरिंग भी की गयी। गांव वालों को डराया-धमकाया गया।
पिछली वर्ष 2013 में 1 मई के दिन वीरपुर लच्छी गांव के ग्रामीणों ने जब स्टोन क्रशर मालिक से गांव के रास्ते पर पानी डालने के लिए बोला तो उसने अपने दो बेटों व दर्जनों गुण्ड़ों के साथ ग्रामीणों की निर्ममता पूर्वक पिटायी की तथा उन पर सीधे गोली भी चलायी और महिलाओं को बंदूकों के बटों से पीटा जिससे उनके कई हिस्सों पर बुरी तरह चोट के निशान थे। उसकी वीडियो भी शासन-प्रशासन को दिखायी गयी परन्तु शासन-प्रशासन व पुलिस विभाग ने उस स्टोन क्रशर मालिक पर कोई कार्यवाही न करके उल्टे 13 ग्रामीणों पर संगीन धाराओं में मुकदमे लगा दिये।
इसी तरह सुन्दरखाल वन ग्राम में आज से तीन साल पहले बाघ द्वारा 7 ग्रामीणों को मार देने पर भी वन विभाग द्वारा कोई कार्यवाही न करने पर सड़क रोककर प्रशासन को बाघ को मारने के लिए बाध्य किया था ताकि उनकी जिंदगी खतरे से निकल सके तो गांव वालों पर व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर मुकदमे लगा दिये तथा रेलवे की सुविधाओं में विस्तार की मांग कर रहे देवभूमि विकास मंच के कार्यकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर रेलवे द्वारा मुकदमे लगा दिये। पीरूमदारा(रामनगर)में गैस की समस्याओं से निजात पाने के लिए आन्दोलन कर रहीं महिलाओं पर मुकदमे लगा दिये गये। वन ग्राम लेटी में हाथी को मारने के आरोप में एक 65 वर्षीय ग्रामीण पर वन विभाग द्वारा मुकदमे लगा दिये गये।
अपने हक के लिए आवाज उठाने के बदले में लोगों पर मुकदमे लगाना और माओवाद के नाम पर उन्हें शेष जनता से काटने की कार्यवाही से परेशान लोगों ने यह जुलूस व सभा करने का फैसला लिया जिसमें सभी जगह के लोग एक मंच पर मौजूद थे। सभा में बोलते हुए वक्ताओं ने शासन-प्रशासन व पुलिस विभाग की तानाशाही पूर्ण रवैये की आलोचना की। और कहा कि आज सरकारें पूरी तरह से अमीरों के साथ खड़े होकर गरीब जनता का उत्पीड़न कर रहीं हैं। उन्हें माओवादी होने का आरोप लगाकर जेलों में डालने का काम कर रही हैं। मजदूर आंदोलन हों या अन्य आंदोलन सभी में माओवादियों के सक्रिय होने के नाम पर उनको बदनाम किया जा रहा है। वक्ताओं ने एक सुर में कहा कि माओवाद के नाम परजनसंघर्षों से जुड़े लोगों पर फर्जी मुकदमे लगाने की कार्यवाही की तीव्र निंदा की तथा राजकीय दमन के खिलाफ सभी प्रगतिशील व जनवादी शक्तियों से एकजुट होने की अपील की। इंकलाबी मजदूर केन्द्र नसे प्रदर्शन में सक्रिय भागीदारी की एवं राजीकीय दमन के खिलाफ प्रगतिशील व जनवादी शक्तियों की एकता को आगे बढ़ाने के प्रयासों को तेज करने का आश्वासन दिया। अगर यही हाल रहा तो जनता ऐसे कानूनों को एक दिन मानना बंद कर देगी और फिर वह पूरे व्यवस्था केे खिलाफ खड़ी हो जायेगी। सभा में बोलते हुए लोगों ने कहा कि जनता को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी और एक व्यापक एकता बनानी होगी।



ग्रेट व्हाइट फैक्टरी की महिला मदूरों का संघर्ष

हरिद्वार, ग्रेट व्हाइट कंपनी लक्सर रोड पर धनपुरा गांव में है। यह कंपनी बिजली के स्विच और सेविंग ब्लेड बनाती है। फैक्टरी में महिला मजदूरों की संख्या लगभग 600 है। प्रबंधन द्वारा यहां मजदूरों का अमानवीयता की हद तक शोषण किया जाता है जिसमें मजदूरों से लगातार ज्यादा काम लेना, महिला मदजूरों से भारी वजन उठवाना, हेल्पर ग्रेड का वेतन देकर आॅपरेटर का काम लेना, महिला मजदूरों से बदतमीजी आदि शामिल है। इस सबसे तंग आकर मजदूरों ने एकजुटता कायम कर प्रबंधन के सामने अपनी मांगे रखीं जिसमें अन्य मांगो के साथ मई दिवस की छुटटी की मांग भी शामिल थी। मजदूरों का नेतृत्व एक महिला मजदूर कर रही थी जिसको वार्ता के दौरान मुख्य प्रबंधक (जनरल मैनेजर) ने थप्पड़ मारने की कोशिश की। यह खबर जैसे ही अन्य मजदूरों को पता चली तो सभी मजदूर फैैक्टरी के अन्दर ही धरने पर बैठ गये। अगले दिन भी मजदूर धरने पर बैठे रहे।
महिला मजदूर द्वारा थप्पड़ मारने वाले मैनेजर के खिलाफ पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करवायी गयी पर पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की। 3 मई को प्रबंधन ने गेट बंद कराकर यह घोषणा की कि जो काम पर आना चाहता है वह अंदर आ जाय। कुछ मजदूरों को छोड़कर बाकी बाहर ही बैठे रहे।
इंकलाबी मजदूरा केन्द्र के कार्यकर्ताओं को जब यह खबर पता चली तो मजदूरों का साथ देने के लिए फैक्टरी गेट पर पहुंच गये। उन्होंने नारों व क्रांतिकारी गीतेां से मजदूरों का हौसला बढ़ाया तथा संघर्ष में अंत तक बने रहे।
मजदूरों ने 10 सूत्रीय मांगपत्र प्रबंधन को दिया।
5 मई को महिला मजदूरों द्वारा फैक्टरी गेट जाम कर दिया गया तथा फैक्टरी गेट से स्थानीय पेरूपुरा चौकी तक जुलूस निकाल कर प्रबंधन को वार्ता के लिए मजबूर किया। इस दौरान कुछ मजदूरों का पूंजीवादी राजनीतिक पार्टियों पर विश्वास कमजोर हुआ। इ.म.के. द्वारा मजदूरों को संघर्ष के लिए प्रोत्साहित करने के साथ संघर्ष के दौरान होने वाले उतार-चढ़ाव से परिचित कराया गया साथ ही उन्हें मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी विरासत व पूंजीवादी व्यवस्था के खात्मे की जरूरत के बारे में भी शिक्षित करने का प्रयास किया।
अंततः 8 मई को भारी मात्रा मं पुलिस बल की मौजूदगी व आधे से ज्यादा मजदूरों का काम पर वापस जाने के दबाव में समझौता परस्त नेताओं (इण्टक व कांग्रेस) द्वारा 10 नेतृत्कारी महिला मजदूरों का बाहर रखकर समझौता हो गया। इससे पूर्व में मजदूरों ने अपने दम पर वार्ता में 700 रु. वेतन बढ़ोत्तरी व बिना किसी मजदूरा को निकाले जाने की शर्त को मैनेजमेंट को माने पर मजदूर कर दिया था।

ग्रेट व्हाइट के निष्कासित महिला मजदूरों का संघर्ष अभी जारी है। इसके लिए 8 मई को एक मीटिंग की। आगे भी मीटिंग कर संघर्ष को आगे बढ़ाने की योजना बनायी गयी।

बैराॅक पाॅलीमर्स में मजदूरों पर जानलेवा हमला
बैराॅक कम्पनी दिल्ली जयपुर हाइवे के बिनौला गाँव में स्थित है। कम्पनी के मजदूरों ने आर्थिक और मानसिक शोषण के खिलाफ यूनियन बनाने की प्रक्रिया शुरू की। अभी दो बैठक ही हुयी थीं कि यूनियन के पदाधिकारियों का महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया गया । मजदूर पदाधिकारियों ने ट्रांसफर को न मानते हुए अपनी यूनियन की फाइल एच.एम.एस. की मदद से लगाई। 14-15 अप्रैल को ट्रांसफर की प्रक्रिया चली, 18 अप्रैल को फाइल लगायी गयी। इसके बाद तारीखों का दौर चला। अन्तिम तारीख 30 अप्रैल की थी। मजदूरों द्वारा धैर्य का परिचय देते हुए 10 दिन तक देखा गया कि हमारे निकाले गये यूनियन पदाधिकारी काम पर लिये जाते हैं या नहीं। सब्र का बांध टूटा और 13 मई को मजदूरों द्वारा सी. और ए. शिफ्टके समय काम बन्द कर दिया गया व अपने साथियों को काम पर लेने की मांग करते रहे। प्रबंधक के साथ बात हो रही थी कि बाउंसरों, ठेकेदारों व स्थानीय सरपंच का भाई, जो कम्पनी का ट्रांसपोर्टर भी है, के साथ 70-80 लोगों ने मजदूरों पर हमला बोल दिया। कम्पनी के अन्दर ही लगभग 17-18 राउंड हवाई फायरिंग की गयी और मजदूरों का बाहर निकाल दिया गया व धमकी दी गयी कि कम्पनी के आस-पास दिखायी तक मत देना। इसकी मजदूरों के पास वीडियो भी है।
      घायल मजदूर गुड़गांव सामान्य अस्पताल में आये जहां डाक्टर द्वारा एम.एल.सी. करने से भी मना कर दिया गया कि बगैर पुलिस के एम.एल.सी. नहीं करूंगा। स्थानीय एस.एच.ओ. को फोन पर दो बार जानकारी दी गयी परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुयी। अतः कम्पनी के मजदूर, एच.एम.एस. के कुछ नेता, वकील और इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथियों सहित पुलिस महानिदेशक से मिलने के लिए दफतर पहुचे ।

दफतर में स्थानीय एस.एच.ओ., डी.सी.पी. मामले को रफा-दफा करने की कोशिश में लगे रहे परन्तु सभी लोग पुलिस महानिदेशक से मिलने की बात पर डटे रहे। पुलिस महानिदेशक से मिलकर घटना को बताया गया और वीडियों भी दिखायी गयी। फिर कहीं जाकर महानिदेशक द्वारा एस.एच.ओ. को कहा गया कि मामले को गम्भीरता से देखो, एम.एल.सी. करवाओ, और कम्पनी में हथियार कैसे गया और कौन लेकर गया और गोली चलाने वाले व्यक्ति को रिमांड पर लो।


बजाज मोटर्स के मजदूरों का संघर्ष 

बजाज मोटर्स  गुड़गांव के नरसिंहपुर में सिथत एक कंपनी है। यह कंपनी हीरो, होंडा, सुजुकी, तथा कुछ अन्य कंपनियों के कम्पोनेन्ट तैयार करती है। इसमें ज्यादातर मशीनों पर काम होता है। कंपनी में लगभग 2000 मजदूर काम करते हैं। कंपनी में ज्यादातर अस्थार्इ वर्कर हैं। अस्थार्इ वर्कर से मिनीमम वेज (5342रु.) पर काम कराया जाता है जबकि सभी मजदूर आपरेटर का काम करते हैं। अस्थार्इ वर्कर्स को मोबाइल तक अन्दर नहीं ले जाने दिया जाता। ज्यादातर वर्कर्स केा छ: माह में ब्रेक दे दिया जाता है और 15-20 दिन के बाद पुन: काम पर ले लिया जाता है। यूनियन का प्रधान 14 महीने से बाहर है। कंपनी में यूनियन का गठन 2009 में हुआ था।  कंपनी ने स्थायी वर्करों को बाहर निकालने की ठानी और लगातार तैयारी करती रही। मैनेजमेंट ने 23 फरवरी 2014 को B और C शिफ्ट में अस्थायी वर्करों को काम पर पुन: बुलाया। स्थायी वर्कर कंपनी की चाल को समझ गये। कंपनी में यह बात फैल गयी कि सोमवार को कंपनी स्थायी वर्करों का गेट बन्द करने जा रही है। अस्थायी वर्करों का जबरजस्ती ओवरटाइम लगाया गया। परंतु यूनियन के लोग कुछ ठोस प्लानिंग नहीं कर पाये। परंतु मैनेजमेंट ने अपनी ठोस तैयारी कर ली थी। सोमवार को (24 फरवरी) को कंपनी नेे स्थायी वर्करों का गेट बन्द कर दिया। इसी के साथ स्थायी वर्करों ने संघर्ष का रुख अखितयार किया और मजदूर मिलकर संघर्ष कर रहे हैं।
कंपनी मेें अस्थायी तथा स्थायी वर्कर्स के शोषण की इनितहा है- कंपनी में अस्थायी वर्कर की भर्ती ऐसे की जाती है जैसे जानवरों को बाड़े के अन्दर धकेला जाता है। एच. आर. मैनेजर लोकल होने के कारण अपनी तानाशाही मजदूरों पर थोपता है। स्थायी मजदूर भी कम सेलरी के कारण परेशान हैं। दिन-प्रतिदिन मैनेजमेंट की तानाशाही मजदूरों को संघर्ष की तरफ धकेल रही है।


ऐरा प्रबंधन द्वारा यूनियन तोड़ने की कोशिश
     ऐरा बिल्सिस प्रबंधन द्वारा यूनियन को तोड़ने की कोशिशें जारी हैं। प्रबंधन द्वारा यह आकलन करने के बाद की जोर-जबरदस्ती से मजदूरों की यूनियन को तोड़ना उसके बस की बात नहीं है क्योंकि जोर-जबरदस्ती के उसके सारे प्रयास फिलावक्त विफल हो रहे हैं और मजदूरों की एकता और अधिक मजबूत हो रही है। प्रबंधकों द्वारा मजदूरों को लालच देने, भ्रष्ट बनाने की घृणित चाल चली जा रही है।
21.02.14 को कारखाना प्रबंधक, एच.आर. हेड और प्रोडक्सन मैनेजर द्वारा 20-25 मजदूरों को एक-एक कर एच.आर .हेड के केबिन में बुलाया गया और सादा कागज देकर कहा कि हम तुम्हें सुपरवाइजर बना रहे हैं। कागज पर लिखो कि तुम्हें सुपरवाइजर बनाया जाये और कागत पर स्वयं लिखो कि तुम्हारा वेतन कितना किया जाये। 20 हजार, 25 हजार रुपये मासिक जितना चाहिए लिखो, कहां यूनियन के चक्कर में पड़े हो ? कुछ मजदूरों को छोड़कर ज्यादातर मजदूरों ने कहा कि पिछले 5-6 सालों से वेतन नहीं बढ़ाया ? तरक्की क्यों नहीं की ? हमें बेवकूफ समझ रखा है । मजदूरों ने दो टूक कहा कि हमें एक भी रुपया नहीं चाहिए और हम मजदूर बनकर ही खुश हैं, तुम्हारी सुपरवाइजरी तुम्हें ही मुबारक हो। हमें गद्दार समझ रखा है। 5-7 मजदूरों ने कागज पर लिख दिया। कंपनी प्रबंधन द्वारा अपवाद को छोड़कर कमजोर मजदूरों को ही बुलाया गया था। छुट्टी के बाद 5-7 मजदूरों ने यूनियन नेताओं को बताया कि कंपनी प्रबंधकों ने उनसे दबाव डालकर जबरिया सादे कागज पर सुपरवाइजर बनाने और वेतन 20 से 25 हजार रुपये करने की बात लिखवायी।
यूनियन द्वारा 23.02.14 को मजदूरों की आम सभा बुलाई। मजदूरों ने बड़ें प्यार से उन मजदूरों से कहा कि यदि तुम अपने अपने 113 मजदूर भाइयों को भूलकर, यूनियन को ताक पर रखकर तरक्की पाना चाहते हो तो हम तुम्हें कुछ भी नहीं कहेंगे, परंतु याद रखना प्रबंधन किसी का नहीं होता है। तुम्हारी गलती से तुम्हारे सिर से यूनियन की सुरक्षा छतरी छिन जायेगी, इसके दोषी तुम स्वयं होगे। उपरोक्त 5-7 मजदूर आम सभा में हाथ जोड़कर रोने लगे और कहने लगे कि हमसे दबाव बनाकर कागज लिखवाया गया है, हम यूनियन और मजदूर भाइयों का साथ नहीं छोड़ना चाहते।
इसके बाद उपरोक्त मजदूरों ने श्रम विभाग, शासन-प्रशासन एवं कारखाना प्रबंधक को पत्र प्रेषित किया कि उनसे कंपनी प्रबंधकों ने नौकरी से निकालने का भय दिखाकर जबरिया दबाव में लेकर सादे कागज में सुपरवाइजर बनाने एवं वेतन बढ़ाने की बात लिखवायी, हम न तो सुपरवाइजर बनना चाहते हैं और न ही हमारी वर्तमान में वेतन बढ़ोत्तरी समेत कोई मांग है, कंपनी प्रबंधक हस्ताक्षरयुक्त इन कागजातों का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं, इसमें आवश्यक कार्यवाही की जाये।
इसकी भनक लगते ही प्रबंधक बौखला गये और उपरोक्त मजदूरों को एक-एक कर 25.02.14 को अपने केबिन में बुलाया और डराया धमकाया, परंतु मजदूरों ने भी प्रबंधकों को मुंहतोड़ जवाब दिया। एक मजदूर ने हमें बताया कि प्रबंधकों ने उसे स्टाफ में न आने पर चोरी का इल्जाम लगाने, गार्डो द्वारा जेब में कुछ डलवाने, गुण्डो द्वारा घर या रास्ते में पिटवाने और पुलिस को 10-20 हजार रुपये देकर झूठे मामले में फंसााने की  धमकी दी। फिलहाल मजदूरों के हौसले बुलंद हैं।
12 फरवरी 2014 को कंपनी मालिक कंपनी में आया था। प्रोडक्शन मैनेजर पीयूष कश्यप ने मालिक को आस्वस्थ किया हुआ है कि वह युनियन को तोड़ देगा। इसी दंभ में 12 फरवरी को पीयूष कश्यप ने यूनियन अध्यक्ष के साथ में अभद्र व्यवहार किया और और डेजीनेशन चेंज कर क्वालिटी फिटर से हेल्पर बनाने की धमकी दी। यूनियन अध्यक्ष के साथ प्रोडक्शन मैनेजर द्वारा अभद्र व्यवहार से आक्रोशित होकर उस समय कंपनी में कार्यरत लगभग 60-70 स्थाई मजदूर और बालाजी काॅनट्रेक्टर के तहत कार्यरत सभी 50-60 ठेका मजदूर कार्य छोड़कर कैंटीन में बैठ गये और प्रोडक्शन मैनेजर से मांफी मांगने की मांग करने लगे। एच.आर. हेड द्वारा प्रोडक्शन मैनेजर की ओर से मांफी मांगने और मालिक द्वारा मजदूरों के बीच में आकर स्थिति संभालने के बाद मजदूर कार्य पर वापस गये। प्रोडक्शन मैनेजर पीयूष कश्यप को मजदूरों ने उसकी असली औकात मालिक के सामने ही दिखा दी।


उन्पीड़न  के खिलाफ मजदूरों का श्रम विभाग में प्रदर्शन
        रुद्रपुर-मंत्री मैटालिस प्रा.लि. कम्पनी के मजदूरों ने 25.02.14 को उत्पीड़न के खिलाफ सहायक श्रमायुक्त कार्यालय रुद्रपुर (उधमसिंह नगर) में प्रदर्शन किया और उत्पीड़न पर रोक लगाने की बात की।
विगत लगभग 6 माह से कंपनी प्रबंधकों एवं मजदूर प्रतिनिधियों के मध्य कंपनी के स्थाई आदेश (स्टैण्डिग ऑर्डर ) को पास कराने के लिए स्टैण्डिग ऑर्डर प्रमाणितकर्ता अधिकारी/उपश्रमायुक्त (कुमाऊँ) क्षेत्र की मध्यस्थता में वार्तायें हो रही हैं। इन वार्ताओं में मजदूरों की ओर से पांच प्रतिनिधियों एवं इंकलाबी मजदूर केन्द्र के एक कार्यकर्ता मजदूरों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
कंपनी प्रबंधकों की मंशा यह है कि मजदूर प्रतिनिधियों का दबाव में लेकर अपनी मर्जी का स्टैण्डिग ऑर्डर पास करावाने में सफल हो जाये। स्टैण्डिग ऑर्डर मजदूरों की सेवा शर्तों के लिहाज से मजदूरों एवं नियोक्ता के मध्य एक तरह का करारनामा होता है। स्टैण्डिग ऑर्डर में छटनी, तालाबंदी, मजदूरों को विभिन्न परिस्थितियों में अनुशासन के उल्लंघन होने पर दिया जाने वाला दण्ड, प्रोन्नति पाॅलिसी, ट्रांसफर, मजदूरों के विभिन्न संस्तर आदि होते हैं। ट्रेड यूनियन गतिविधियां संचालित करने वाले मजदूर जानते हैं कि मालिकों द्वारा प्रमाणित स्टैण्डिग ऑर्डर को ठेंगे पर रखा जाता है और ऐसे में श्रम विभाग शासन-प्रशासन सभी अंधे-बहरे बने रहते हैं। परंतु जब मजदूरों द्वारा मजबूरी में स्टैण्डिग ऑर्डर का उल्लंघन होता है तो मालिकान के साथ-साथ श्रम विभाग, शासन प्रशासन, पुलिस सभी मजदूरों को कानून का पाठ पढ़ाते हैं।
लगभग 3 माह से वार्ता में भाग ले रहे पांच प्रतिनिधियों में से चार प्रतिनिधियों को बिना किसी जायज कारण के प्रबंधन ने नोटिस थमा दिया और अनुशासन का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए 24 घंटे में स्पष्टीकरण की मांग की जबकि कानूनी तौर पर जवाब देने की न्यूनतम समय सीमा 72 घंटे है। मजदूरों ने समय पर जवाब दिया, परंतु प्रबंधकों द्वारा जवाब से असंतुष्ट होने की बात कहकर चारों मजदूर प्रतिनिधियों के खिलाफ घरेलु जांच बैठा दी गयी। हालांकि विगत 3 माह से चारों मजदूर प्रतिनिधियों में से किसी भी प्रतिनिधि को अभी तक जांच के लिए एक भी तारीख पर नहीं बुलाया गया है और जांच पैंडिंग पड़ी हुई है।
इसके बावजूद भी मजदूर प्रतिनिधि दबाव में नहीं आये। नवंबर माह में मजदूर प्रतिनिधियों द्वारा श्रम विभाग में शिकायत पत्र लगाया गया और शिकायत की कि मजदूरों को अकुशल और अर्द्धकुशल के रूप में नियुक्ति पत्र दिये गये हैं जबकि सभी स्थाई मजदूर बी.एम.सी., सी.एन.सी. एवं एच.एम.सी जैसी मशीनों पर आॅपरेटर के रूप में कार्यरत हैं। मजदूरों ने मांग की कि उन्हें कार्य के अनुसार कुशल एवं अतिकुशल मजदूर के रूप में नियुक्ति पत्र दिये जायें। दिलचस्प बात यह है कि कंपनी में एक भी मजदूर ऐसा नहीं है जिसे कुशल मजदूर के रूप में नियुक्ति पत्र दिया गया हो। श्रम विभाग मंत्री मैटालिक्स के मालिकान पर मेहरबान है, यह इंस्पेक्टर की जांच से पता चलता है। इसकी सूचना मजदूरों का आर.टी.आई. से मिली कि
‘इंस्पेक्टर साहब’ ने जांच में संविदा अधिनियम, बोनस अधिनियम अधिनियम आदि के उल्लंघन की बात दर्ज की है। हकीकत पूरी रिर्पोट पढ़ने के बाद पता चलेगी कि जांच शिकायत पत्र में दर्ज बिन्दुओं के आधार पर की गयी है या गोलमोल तरीके से।
प्रबंधकों द्वारा विगत लगभग 20 दिनों से शिफ्ट का समय मनमाने तरीके से बदला है। शिफ्ट ए.-प्रातः 6 बजे से अप्राहन 2 :30 बजे, शिफ्ट बी-अप्राहन 2:30 बजे से रात्रि 11 बजे एवं शिफ्ट सी. रात्रि 11 बजे से प्रातः 6 बजे तक। वर्तमान में सभी स्थायी मजदूरों को जनरल शिफ्ट में ही बुलाया जा रहा है। इस विषय में मजदूर ए.एल.सी. एवं डी.एल.सी. में शिकायत कर चुके हैं। मजदूरों का आरोप है कि रात्रि शिफ्ट में 11 बजे कंपनी आने और शिफ्ट में 11 बजे छुट्टी के बाद घर वापस जाने में मजदूरों को अत्यंत परेशानी उठानी पड़ेगी क्योंकि कंपनी द्वारा मजदूरों के आने-जाने के लिए परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। कंपनी में बिन्दुखत्ता, गौलापुर, लालकुआं, हल्द्वानी, किच्छा, दिनेशपुर आदि दूर दराज के इलाकों से मजदूर कंपनी में अपने-अपने साधनों से आते हैं। ऐसे में 11 बजे रात को जब मजदूर छूटेंगे तो कैसे अपने घर जायेंगे। यदि मजदूर जैसे-तैसे मुख्य मार्ग तक किसी साधन से पहुंच भी गये तो गांवों एवं दूर-दराज के मुहल्लों में रहने वाले मजदूर आधी रात को कैसे घर जायेंगे। मजदूरों ने वार्ता के दौरान यह प्रस्ताव भी रखा कि यदि कंपनी आने-जाने के लिए बस की व्यवस्था करे तो मजदूर मान जायेंगे, परंतु कंपनी प्रबंधक अपनी जिद पर अड़ा है कि वह शिफ्ट भी बदलेगा और बस की सुविधा भी नहीं देगा।
कंपनी प्रबंधकों की मनमानी एवं उत्पीड़न से तंग आकर मजदूरों को सड़कों पर उतरना पड़ा और 25 फरवरी 2014 को ए.एल.सी. कार्यालय पर मजदूरों ने प्रदर्शन किया।

इसके अलावा मजदूरों ने हमें बताया कि एक स्थाई मजदूर जो कि ड्राइवर के पद पर कार्यरत है, पर कंपनी प्रबंधकों द्वारा श्जा एवं पूर्णिमा (दोनों मजदूर नेता थीं जिनका वर्ष 2011 मं प्रबंधकों ने गेट बंद कर दिया था, इनका लेबरकोर्ट काशीपुर में कार्यबहाली करने को केश चल रहा है) के खिलाफ लेबर कोर्ट काशीपुर में झूठी गवाही देने को दबाव डाला जा रहा था। झूठी गवाही देने से मना करने पर प्रबंधकों ने मजदूर का गेट बंद कर दिया।


शिरडी इण्डस्ट्रीज लिमिटेड के मजदूरों की शानदार हड़ताल 
समझौते के बाद प्रबंधन ने बदले की भावना से किया पलटवार
पार्टीकल बोर्ड विभाग को बन्द करने की अनुमति लेने के लिए श्रम विभाग में किया आवेदन
       सिडकुल, पंतनगर (उत्तराखंड) के सेक्टर-9, प्लाट न. 1 में यह कंपनी स्थित है। कंपनी में लगभग 200 स्थाई, 150 कैजुअल/ट्रेनी, 150 स्टाफ एवं 300 से अधिक ठेका मजदूर कार्यरत हैं। कंपनी के स्थाई, ट्रेनी/केजुअल एवं स्टाफ के मजदूरों की ‘शिरडी श्रमिक संगठन’ नाम से पंजीकृत यूनियन है। यूनियन बी.एम.एस. से संघबद्ध है। यूनियन पर इंकलाबी मजदूर केन्द्र (इमके) का भी अच्छा-खासा प्रभाव है। लगभग सभी मजदूर व नेतृत्व का एक हिस्सा इमके को पसंद करता है लेकिन नेतृत्व का एक हिस्सा इमके एवं बी.एम.एस. दोनों से तालमेल रखता है और ‘व्यवहारवाद’ का शिकार है। इस कंपनी में प्लाईवुड से संबंधित सामग्री बनायी जाती है। कंपनी में कुल 7 प्लांट हैं। इनमें से पार्टीकल बोर्ड विभाग एक है। पार्टीकल बोर्ड विभाग में सबसे अधिक स्थायी मजदूर कार्यरत हैं।
      कंपनी प्रबंधन कुछ समय के लिए पार्टीकल बोर्ड विभाग को बंद करके स्थायी   मजदूरों की छटनी करना एवं उनके स्थान पर सस्ते ठेका मजदूरों को भर्ती करने की चाहत रखता है। प्रबंधन द्वारा 90 दिन पूर्व 01/01/14 को श्रमायुक्त उत्तराखंड को पार्टीकल बोर्ड प्लांट को बन्द  करने (क्लोजर हेतु  प्रार्थना पत्र  लगाकर 10 अप्रैल 2014 से प्लांट को बंद करने एवं 94 मजदूरों की छटनी करने की अनुमति प्रदान करने का आग्रह किया गया । उसी दिन ‘शिरडी श्रमिक संगठन’ के महामंत्री को भी प्रबंधन ने इसकी एक प्रतिलिपी दी। जिन 94 मजदूरों का नाम ‘छटनी लिस्ट’ में शामिल है उनमें से कई मजदूर अन्य प्लांटों में कार्यरत हैं। ‘छटनी लिस्ट में अधिकांश यूनियन नेताओं एवं संघर्षशील मजदूरों के नाम दर्ज हैं जिनकी परख प्रबंधन ने 29/11/13 से 20/12/13 तक चली शानदार हड़ताल के दौरान की थी।
        इस  हड़ताल के प्रमुख मोड़ बिन्दु निम्नलिखित थे
(1 ) इंकलाबी मजदूर केन्द्र के बार-बार संघर्ष के बाद महिला शक्ति को आंदोलन में शामिल करना हालांकि बी.एम.एस. इसका मुखर विरोध कर रही थी। संयोग से 11 दिसम्बर  से 14 दिसम्बर तक बी.एम.एस. के नेता ट्रेड यूनियनों के दिल्ली प्रदर्शन में शामिल होने के कारण आन्दोलन से अनुपस्थित रहे। इस दौरान सैकड़ों महिलाएं कलेक्ट्रेट में चल रहे धरने में शामिल हो गयीं।
      (2) 13 दिसम्बर 2013  को सैकड़ों महिलाओं ने पहले अपर जिलाधिकारी को बंधक बनाया। उसके बाद एस.डी.एम. का घिराव करने के लिए महिलाएं आगे बढ़ीं। एस.डी.एम. अपने केबिन से बाहर निकलकर महिलाओं से मिलने आये। महिलाओं के आक्रोश को देखते हुए एस.डी.एम. के हाथ-पांव फूल गये और एस.डी.एम. ने 5-7 महिलाओं को केबिन में वार्ता के लिए बुलाया। जब महिलाएं एस.डी.एम. के केबिन में पहुंची तो वहां से भीतर ही भीतर भागकर छिप गये।
       एस.डी.एम. के ऑफिस से भाग जाने की खबर सुनते ही सैकड़ों महिलाएं और मजदूर माइक, झण्डे के साथ में कलेक्ट्रेट परिसर में जुलूस निकालते हुए एस.डी.एम. के कार्यालय पर पहुंचे और जोरदार नारेबाजी करने लगे। अन्ततः एस.डी.एम. को प्रतिनिधिमण्डल से वार्ता करनी पड़ी।
      (3) वार्ता के दौरान एस.डी.एम. ने कानून न तोड़ने को कहा, ऐसा दोबारा करने पर धारा 144 लागू करने की धमकी दी और कहा आप ‘गन प्वाइंट’ पर समझौता कराना चाहते हैं, यह तरीका गलत है। इमके कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया और कहा कि ‘जब जनभावनायें आहत होंगी तो जनता कानूनी या गैरकानूनी तरीकों को अपनाने को विवश होती है, जनता कानूनी-गैरकानूनी का भेद भूल जाती है।
       महिलाओं और मजदूरों के तेवर को जिला प्रशासन भांप गया कि ये किसी भी हद तक जा सकते हैं।
      (4) इसके बाद यूनियन द्वारा बी.एम.एम.के प्रतिनिधियों को वार्ता में शामिल नहीं किया और अन्ततः 20 दिसम्बर 2013  को जिला प्रशासन की मध्यस्थता में समझौता हुआ और यूनियन के अध्यक्ष एवं महामंत्री का निलंबन वापस लेना पड़ा।
      (5)  21 दिसम्बर 2013  को कंपनी में पूरे दिन भर संघर्ष की फिजा रही। प्रबंधन ने ट्रेनी एवं कैजुअल के 150 से अधिक मजदूरों को बहाल करने से इंकार कर दिया। ए एवं  बी शिफ्ट  के मजदूर (स्थाइ, स्टाफ/कैजुअल सभी) दिन भर कंपनी के भीतर ‘टूल डाउन’ करके बैठ गये। भारी संख्या में पुलिस फोर्स तैनात हो गयी। मजदूर दिन भर बिना किसी की परवाह किये सभी मजदूरों की बहाली को अड़े रहे। अन्ततः प्रबंधन को झुकना पड़ा और 22/12 /13  से सभी मजदूरों को बहाल करना पड़ा।
      इसके बाद 3-4 दिन प्रबंधन खामोश रहा। उसके बाद 3 डी.जी. ऑपरेटरों को काम न होने की बात कर ड्यूटी के दौरान खाली बैठाये रखा। 6 मजदूरों पर चोरी का आरोपर लगाते हुए नोटिस जारी किये गये। 20-25 ट्रेनी/कैजुअल मजदूरों को निकाला जा चुका है (जबकि यही मजदूर यूनियन की मुख्य लड़ाकू ताकत एवं जान हैं) 3 स्थायी मजदूरों का गेट बंद हो चुका है। इमके के संघर्ष करने के बावजूद यूनियन द्वारा श्रम विभाग में शिकायत पत्र लंबे समय तक नहीं लगाया गया। एक माह बीतने के बाद यूनियन द्वारा पार्टीकल बोर्ड प्लांट की क्लोजर की अनुमति न देने और मजदूरों के उत्पीड़न को रोकने को श्रमायुक्त एवं उपश्रमायुक्त का ज्ञापन दिया गया। यूनियन की खामोशी ने मजदूरों को हताश-निराश कर दिया है। दूसरी तरफ कंपनी प्रबंधन लगभग पूरी तरह से हावी हो चुका है। जब तक यूनियन द्वारा बी.एम.एम. से सम्बन्ध विच्छेद नहीं किया जाता है अपनी अवसरवादी मनोवृत्ति के खिलाफ संघर्ष नहीं किया जाता है, तब तक प्रबंधन के खिलाफ निर्णायक संघर्ष नहीं हो सकता। मजदूर यूनियन नेतृत्व से संघर्ष करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। यहां से उम्मीद की किरण दिखायी देती है।


यूनियन पंजीकृत कराने को संघर्षरत ‘ऐरा बिल्डसिस लि.’ के मजदूर

सिडकुल पंतनगर (उत्तराखंड) सेक्टर-9, प्लाट न. 11 में स्थित ‘ऐरा बिल्डसिस लि’ के स्थाई मजदूर विगत 2 माह से अपनी यूनियन पंजीकृत कराने को संघर्षरत हैं। ऐरा बिल्डसिस कंपनी पुल,सड़क, एवं भवन निर्माण के क्षेत्र में विख्यात कंपनी है। इस कंपनी में पुलों-सड़क-भवन के लिए लोहे के बीम, कॉलम आदि बनाये जाते हैं। यह कंपनी हैवी इंजीनियरिंग क्षेत्र में आती है। कंपनी में 114 स्थाई मजदूरों के साथ-साथ सैकड़ों ठेका मजदूर कार्य करते हैं। मजदूरों का न्यूनतम वेतन 7000 रुपये एवं अधिकतम 12000 रुपये मासिक है।
नवंबर 2013 को स्थाई मजदरों ने ‘ऐरा बिल्डसिस श्रमिक संगठन’ नाम से यूनियन गठित की और 27/11/2013 को पंजीकरण हेतु फाइल ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार/श्रमायुक्त उत्तराखंड के कार्यालय में लगाई। अपने वर्गीय स्वार्थो और मुनाफे को ध्यान में रखते हुए कंपनी मालिक/प्रबंधकों ने भी यूनियन के नेतओं के उत्पीड़न हेतु गैरकानूनी एवं अनैतिक हथकंडे अपनाये। 13/11/2013 को यूनियन के अध्यक्ष को जबलपुर साइट पर भेजने एवं महामंत्री का उनकी मर्जी के खिलाफ हेड ऑफिस  नोयडा (यू.पी.) में अवैध तरीके से ट्रांसफर करते हुए नोटिस जारी कर दिये, जबकि दोनों उस समय बीमार थे और मेडीकल लीव पर थे। इसके बाद कंपनी प्रबंधन द्वारा दोनों को दो अन्य नोटिस जारी किये और सेवा समाप्त करने की चेतावनी दी। हद तो यहां तक हो गयी कि यूनियन अध्यक्ष एवं महामंत्री के जवाबी पत्रों को रिसीव तक नहीं किया गया और डाक पत्रों को वापस भेज दिया।
प्रबंधन द्वारा अपने अध्यक्ष एवं महामंत्री के उत्पीड़न से मजदूर अक्रोशित हो गये। यूनियन नेताओं द्वारा इस स्थिति में लगतार समय-समय पर मजदूरों की आम सभायें की गयीं और जोश के साथ-साथ धैर्य को बनाये रखने की अपील की। दिसम्बर माह में मजदूरों ने सहायक श्रमायुक्त के कार्यालय में वेतन भुगतान 7 तारीख तक कराने को सामुहिक शिकायत पत्र लगाया और कंपनी में विरोध प्रदर्शन किया। इस शिकायत पत्र पर कृत कार्यवाही की जानकारी हेतु सहायक श्रमायुक्त के पास सूचना अधिकार के तहत पत्र लगाया। जनवरी माह को मजदूरों को 9 तारीख को वेतन भुगतान किया गया। इससे पहले लगभग 25 तारीख को होता था। इसका असर ठेका मजदूरों पर भी पड़ा और 3 दिन तक टूल डाउन किया। स्थाई मजदूरों ने उनका पूरा साथ दिया और संगठन बनाने को समझाया।
कंपनी प्रबंधन द्वारा यूनियन के अध्यक्ष एवं महामंत्री को यूनियन भंग करने को तरह-तरह के लालच देकर, यूनियन से हटने पर कार्य बहाली को कहा, भविष्य खराब होने आदि-आदि बातें की गयीं। परन्नु दोनों यूनियन बनाने को अडिग रहे। वहीं दूसरी तरफ कंपनी प्रबंधन ने यूनियन नेताओं को भी बहलाने-फुसलाने और धमकाने का कार्य किया। मजदूरों को कहा गया कि यूनियन से हट जाओ वर्ना सबका हश्र अध्यक्ष एवं महामंत्री जैसा होगा। भविष्य बर्बाद हो जायेगा आादि-आदि। प्रबंधकों ने यह प्रचारित किया कि अध्यक्ष एवं महामंत्री किसी भी कीमत पर कंपनी में वापस नहीं आ सकते हैं। यूनियन नेता एवं मजदूर प्रबंधन बंदरभभकी में नहीं आये और अपनी एकता को बनाये रखा।
यूनियन के अध्यक्ष एवं महामंत्री ने श्रम विभाग में शिकायत की। उपश्रमायुक्त पर स्टैण्डिंग आर्डर के उल्लंघन करने पर प्रबंधकों के खिलाफ कार्यवाही करने को दबाव बनाया। मजदूरों ने अपने बीच से चंदा एकत्रित कर अध्यक्ष एवं महामंत्री को वेतन भुगतान किया और यह तय किया कि जितने दिन इनका गेट बंद रहेगा उतने दिन का पूरा वेतन मजदूर उन्हें देंगे। आंदोलन एवं हड़ताल की तैयारी होने लगी, कोष को मजबूत बनाया जाने लगा। यूनियन नेताओं ने नागपुर (महाराष्ट्र) प्लांट के यूनियन नेताओं से सम्पर्क किया और नागपुर प्लांट की यूनियन ने हरसंभव मदद करने का वादा किया।
अंततः मालिक/प्रबंधन समझ गये कि यूनियन के अध्यक्ष,महामंत्री एवं मजदूरों को तोड़ा नहीं जा सकता है। ऐसे में 24/01/14 को कंपनी के कॉर्पोरेट आफिस (दिल्ली) से 3 प्रबंधक (जिनमें से एक कार्पोरेट के एच.आर.वाइस प्रेसीडेंट राज शर्मा थे) एवं 4 स्थानी प्रबंधकों के साथ में यूनियन अध्यक्ष एवं महामंत्री से वार्ता हुयी। वार्ता में प्रबंधकों ने पुनः यूनियन की बात उठाई तो यूनियन अध्यक्ष एवं महामंत्री ने इसका विरोध किया और कहा कि वार्ता हमारी कार्यबहाली पर होनी है, यूनियन पर नहीं। यूनियन पर कोई वार्ता नहीं होगी। अन्यथा श्रम विभाग में वार्ता होगी। अन्ततः 24/01/14 को कंपनी प्रबंधन ने हार मान ली और 27/01/14 से दोनों की बिना शर्त कार्यबहाली करने को लिखित में दे दिया।
27/01/14 से दोनों की कार्यबहाली हो गयी है। कंपनी प्रबंधन अभी भी यूनियन के पंजीकरण को रुकवाने के लिये पुरजोर कोशिश कर रहा है। अध्यक्ष एवं महामंत्री की जनरल ड्यूटी (9 बजे से शाम 5:30 बजे) लगा दी है ताकि दोनों श्रम विभाग आदि में पत्र व्यवहार न कर सकें। कंपनी प्रबंधन ने इसी बीच उपट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार के पास में 81 मजदूरों के फर्जी हस्ताक्षर युक्त प्रार्थना मजदूरों के नाम से लगाया और यूनियन पंजीकरण न करने की फर्जी अपील मजदूरों की ओर से की गयी।
इसकी भनक लगते ही यूनियन द्वारा अपने समस्त सदस्यों के हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार को 30/01/14 को दिया। ज्ञापन में शिकायत की गयी कि प्रबंधन यूनियन सदस्यों पर यूनियन से हट जाने को अनुचित दबाव डाल रहा है और ऐसा न करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रहा है। प्रबंधन यूनियन का पंजीकरण रुकवाने हेतु छल-कपट का सहारा ले रहा है, अतः न्याय हित में यूनियन का पंजीकरण शीघ्र करने की अपील की गयी। कंपनी प्रबंधन द्वारा यूनियन के अध्यक्ष एवं महामंत्री की जनरल ड्यूटी लगाने से यूनियन में कई अन्य नेता उभरकर सामने आये हैं और यूनियन गतिविधि जारी है।

मारुति मजदूरों को न्याय दिलाने हेतु पद यात्रा
   
       मारुति मजदूरों के बर्बर दमन-उत्पीड़न के खिलाफ एक जनजागरण पदयात्रा 15 जनवरी से कैथल (हरियाणा) से शुरु हुई। यह पदयात्रा कैथल से जींद,रोहतक,झज्जर,गुड़गांव होते हुए 31 जनवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक प्रदर्शन के साथ संपन्न होगी जिसमें मारुति मजदूरों के साथ न्याय की अपील करते हुए राष्ट्रपति को एक ज्ञापन प्रेषित किया जायेगा। पदयात्रा जत्था विभिन्न गांवों-कस्बों से गुजरते हुए मेहनतकश जनता से सीधे संवाद स्थापित करते हुए मारुति मजदूरों की न्याय की लड़ाई में भौतिक व नैतिक समर्थन एवं सहयोग मांग रहा है। हरियाणा के विभिन्न शहरों व गांवों के मजदूर, किसान व व्यापक मेहनतकश जनता इस पदयात्रा को भरपूर समर्थन दे रही है।
        हरियाणा सरकार का उत्पीड़नात्मक रुख इस पदयात्र के दौरान भी दिखा। हरियाणा सरकार के खुफिया विभाग द्वारा विभिन्न गांवों के सरपंचों को इस बाबत धमकाया गया कि वे पदयात्रियों के रात्रि विश्राम की व्यवस्था न करें। कुछ सरपंचों ने सरकार के दबाव के चलते पदयात्रियों की रात्रि पड़ाव की अपनी जिम्मेदारी से हाथ खींच लिये लेकिन इसके बावजूद ग्रामीणों ने पदयात्रियों के भोजन व रात्रि विश्राम की वैकल्पिक व्यवस्था की।
       मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के तत्वाधान में आयोजित इस पदयात्रा में मारुति सुजुकी के मजदूरों व उनके परिजनों के अलावा विभिन्न मजदूर व सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता भागीदारी कर रहे हैं। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता भी शुरुआत से ही इस पदयात्रा में शामिल रहे हैं।
       गौरतलब है कि 18 जुलाई को घटना के बाद डेढ़ साल बाद भी बिना जमानत के जेल में बंद 147 मजदूरों की रिहाई, 66 अन्य गैर जमानती वारंट जारी मजदूरों, 100 अन्य फर्जी मुकदमों में निरूद्ध मजदूरों व उनके परिजनों व सहयोगियों को आरोपमुक्त करने की मांग को लेकर तथा साथ ही 546 बर्खास्त मजदूरों सहित 2500 मजदूरों को काम पर वापस लेने की मांग को लेकर यह पदयात्रा शुरु की गयी है।

मुंजाल  किरीउ के मजदूरों पर प्रबंधक के गुंडों का हमला
       मुंजाल  किरीउ के मजदूर आई.एम.टी. मानेसर, सेक्टर-3 में पिछली 18 दिसम्बर से कम्पनी के बाहर एक पार्क में अपना धरना चला रहे थे।
       13 जनवरी को प्रबंधक वर्ग द्वारा गुंडो (बाउंसरों) को बुलाया गया। शराब पिलाई गयी और मजदूरों को धरने से हटाने के लिए भेजा गया, कम्पनी के प्रबंधकों में से जो गेट तक ही गये और 20-22 बाउंसरों ने मजदूरों को काम पर जाने के लिए बोला, मना करने पर लगभग शाम चार बजे मजदूरों पर हमला बोल दिया गया जिसमें कई मजदूर घायल हो गये। घायल मजदूरों को मना करने के बाद भी गुड़गांव के सिविल अस्पताल में भर्ती किया कर दिया गया । रविकान्त जी (हाथ टूटा हुआ है), राजकिशोर (पांव पर गम्भीर चोट है),  संतोष (पांव पर चोट है), गगन (माथे पर चोट है)।
       14 जनवरी को ट्रेड यूनियनों ने कमला नेहरू पार्क पर सुबह 10 बजे कम्पनी की यूनियनों व अन्य फैक्टरी की यूनियनों की बैठक की, जिसमें आगे के कार्यक्रमों बने।
      कई कम्पनियों के यूनियनों के द्वारा आज ही आई.एम.टी. थाने का घेराव करके एफ.आई.आर. और मुंजाल शोवा के साथी अपने धरना स्थल पर बैठने की बात की गयी। अंततः घेराव वाला कार्यक्रम ही लिया गया।
      शाम 3 बजे आई.एम.टी. के सामने इकट्ठा होकर थाने तक जुलूस निकाला गया। इसमे 400-500 मजदूर इकटृठा हुए और थाने के सामने सभा की गयी। शाम 7:30 के लगभग एफ.आई.आर. दर्ज हुयी और अगले दिन यानी 15 जनवरी को सुबह 8 बजे धरना आगे चलाने की बात हुयी। कम्पनियों की यूनियन में मित्शुबिशी इलेक्ट्रिक, बजाज मोटर्स, इण्डोरेन्स, हाई लेक्स, एफ.सी.सी रिको, ए.जी.कम्पनी, मारुति गुड़गांव शामिल थीं।

एस.डी इंजीनियर टेक के मजदूरो ने संघर्ष के दम पर हासिल किया बोनस
      फरीदाबाद-2 नवंबर-एस.डी इंजीनियर टेक के तीन प्लांटो में मजदूरों ने बोनस की मांग को लेकर पहले ही तैयारी कर ली थी। कंपनी मजदूरों के वेतन से हर माह 200 रुपये काट लेती है जिसे दीवाली पर बोनस के रूप में दिया जाता है। इस बार मजदूरों ने यह पहले ही तय कर लिया था कि बोनस के रूप में मजदूरो की तनखा से काटा गया 2400 रुपया नहीं लेगें बल्कि कानून के अनुसार निर्धारित बोनस लेंगे। बिना बोनस लिये फैक्टरी से नहीं जायेंगे। जब सेक्टर 59 तथा सेक्टर 24 के 144 न. प्लांट के कुछ मजदूरों ने 2400 रुपये ले लिये तो शेष बचे सभी मजदूर कम्पनी के मुख्य प्लांट (प्लॉट न. 177, सेक्टर-24) के गेट पर इकटठा होना शुरु हो गये। अभी मुख्य प्लांट के मजदूर अंदर ही जमे हुए थे। इन मजदूरों को मालिक के इशारे पर पुलिस ने धमकाया एवम् डंडे चलाकर गेट से बाहर कर दिया। सभी मजदूर गेट पर जम गये तथा यह घोषणा करते हुए कि यदि बोनस नहीं मिला तो यहीं काली दिवाली मनायेंगे और यहीं जमे रहेंगे,गेट पर जम गये और नारेबाजी कर सभा शुरु कर दी। 
        लगभग शाम 6.30 बजे के आस-पास दो लेबर इंसपेक्टर आये और उन्होंने मालिकों के इशारे पर दीवाली के बाद बोनस दिलाने का वादा कर मजदूरों को टरकाना चाहा परंतु मजदूर नहीं माने। मजदूरों ने कहा कि यदि श्रम विभाग और मैनेजमेंट लिखकर दे दें तो वे मान जायेंगे परंतु लेबर इंसपेक्टर व मैनेजमेंट लिखकर देने से मुकर गया। मजदूरों ने घोषित कर दिया कि वे गेट पर ही जमे रहेंगे और मैनेजमेंट को भी काली दीवाली मनाने को मजबूर कर देंगे। लगभग 8 बजे तक जददोजहद चलती रही आखिरकार 8 बजे मैनेजमेंट ने बोनस के एडवांस के तौर पर 3500 रुपये तुरंत देने तथा बोनस का बकाया बाद में चुकता करने की बात कही तथा बताया की उसके पास पर्याप्त कैश नहीं है। मजदूरों ने इस बात को स्वीकार कर लिया। तब लेबर इंस्पेक्टर की मौजूदगी में सभी मजदूरों ने बोनस लिया। वे मजदूर जो मार्च 2013 के बाद लगे थे और जिन्हें बोनस नही मिला था उनको अन्य मजदूरों ने मिठाई खरीद दी। अन्त में मीटिंग के पश्चात मजदूर अपने घरों को गये।  

अवैधानिक मिलबंदी के खिलाफ कोर्टेक एण्ड लोटे कंपनी का आंदोलन
  रुद्रपुर उत्तराखंड, कोर्टेक एण्ड लोटे इलेक्ट्रानिक्स कंपनी के लगभग 450 मजदूर 21 सितंबर 2013 से अवैधानिक मिलबंदी के खिलाफ आंदोलनरत हैं। 21.09.2013 को कंपनी के उच्च अधिकारियों ने सामूहिक रूप से आनन-फानन में कंपनी से इस्तीफा दे दिया और मालिकों ने कंपनी को बंद कर दिया।
      मजदूरों ने 21.09.2013 से कंपनी को अपने कब्जे में ले लिया है। कंपनी प्रबंधकों ने मजदूरों को विगत 2 माह से वेतन भुगतान नहीं किया है, कैन्टीन एवं परिवहन सुविधाएं बन्द हैं। कोर्टेक इलेक्ट्रानिक्स कंपनी की स्थापना 2004 में सिमला पिस्तौर, उधमसिंह नगर, उत्तराखंड में हुई थी। 2009 में यह किशनपुर, देवरिया (किच्छा), उधमसिंह नगर, उत्तराखंड चली गयी और इसमें एक ही परिसर के भीतर दो कंपनियां कोर्टेक इलेक्ट्रानिक्स व लोटे इलेक्ट्रानिक्स के नाम पर स्थापित की गयीं। यह शिफटिंग टैक्स छूट एवं अन्य सुविधाओं के कारण की गयी।
      मजदूरों के अनुसार अब यह कंपनी अकूत मुनाफा कमाकर और अधिक मुनाफा कमाने एवं टैक्स छूटों का मजा लेने के लिए 450 मजदूरों के भविष्य को अंधारमय कर बिहार राज्य में शिफ्ट हो रही है। 
      कंपनी मुख्य रूप से एल.जी. की वेंडर कंपनी है और एल.जी. के लिये एल.सी.डी., डी.वी.डी., होम थियेटर व कैरोंकी माइक बनाती है। विडियोकान के लिए टेलीविजन पार्टस, डेल्टा एवं हैलोनिक्स के लिए सी.एफ.एल. बनाती है। 
      कंपनी में 450 मजदूर कार्यरत हैं जिसमें 200 से अधिक महिला मजदूर हैं। कंपनी में 114 मजदूर स्थाई एवं अन्य संविदा के तहत कार्यरत हैं।
       मजदूरों ने लगभग एक माह पूर्व ही श्रम विभाग, शासन-प्रशासन को लिखित में इसकी सूचना दे दी थी और हस्तक्षेप की मांग की थी। इसके बावजूद भी कंपनी मालिक ने बगैर शासन की मंजूरी के अवैधानिक मिल बंदी कर दी है। शासन प्रशासन और श्रम विभाग अपनी वर्गीय पक्षधरता को निभाते हुए मौन साधे हुए हैं और मजदूरों ने कंपनी को अपने कब्जे में ले लिया है। सहायक श्रमायुक्त ने कंपनी को निरीक्षण करने के बाद अखबारी बयान दिये कि मालिक के खिलाफ आर.सी. काटी जायेगी परंतु अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है और सहायक श्रमायुक्त अब बहानेबाजी कर रहे हैं। मजूदरों ने 01.10.2013 को तहसील किच्छा में प्रदर्शन किया। एस.डी.एम. ने मजदूर प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया कि 05.10.2013 तक यदि मालिकों ने कंपनी चालू नहीं की तो 06.10.2013 को मालिक को गिरफ्तार किया जायेगा। 03.10.2013 को मजदूरों ने                          उपश्रमायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन किया। इंकलाबी मजूदर केन्द्र ने मजदूरों को सुझाव दिया कि सिडकुल एवं क्षेत्र की कंपनियों के मजदूर यूनियनों  संगठनों एवं क्षेत्र की मेहनतकश जनता को आंदोलन में शामिल कर अपने आंदोलन की धार को कंपनी मालिक के साथ-साथ शासन-प्रशासन की ओर भी करे। फिलहाल मजदूर कंपनी में तैनात हैं। एल.जी. कंपनी द्वारा मजदूरों पर अपने माल को बाहर लेजाने के लिए समय-समय पर दबाव डाला जा रहा है।

 हीरो मोटोकॉर्प के मजदूर संघर्ष की राह पर
      हरिद्वार, औद्योगिक आस्थान ‘सिडकुल’ के हीरो मोटोकॉर्प  के मजदूर अपने यूनियन गठन के प्रयासों को प्रबंधन द्वारा छल नियोजन से असफल करने तथा प्रबंधन के बढ़ते उत्पीड़नात्मक कदमों के खिलाफ 30 अगस्त से संघर्षरत हैं। अभी दो चरणों के आंदोलन में मजदूर अपने एक मुखर साथी को काम से निकालने के खिलाफ संघर्षरत थे वहीं दूसरे चरण में वे प्रबंधन व प्रशासन के द्वारा मजदूरों के  साथ समझौते के नाम पर छल नियोजन, 30 नेतृत्वकारी मजदूरों पर प्रबंधन द्वारा फर्जी मुकदमे लगाने व उनके निलंबन के खिलाफ संघर्षरत हैं।
हीरो मोटोकॉर्प, सिडकुल में मजदूरों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने से रोकने के लिए प्रबंधन किसी मजदूर को कंफर्म करने में 5-6 साल का समय लगाती है। लेकिन इतने सालों में अब जबकि मजदूरों की एक ठीक-ठाक संख्या कंफर्म हो चुकी है तो वे अपनी एक यूनियन गठित करने, अपने वेतन बढ़वाने तथा अपनी यूनियन का पंजीकरण करवाने के प्रयास में लगे।
कंपनी का प्रबंधन कंपनी के भीतर किसी पंजीकृत यूनियन की मौजूदगी को टालने के प्रयास में लगा है। मजदूरों को यूनियन पंजीकरण की तरफ बढ़ने से रोकने के लिए उसने कुछ माह पहले एक सक्रिय मजदूर को झूठे मुकदमे में फंसवा दिया था तथा मजदूरों के वेतन में वृद्धि कर दी। लेकिन इसके बावजूद जब मजदूरों ने यूनियन पंजीकरण के लिए ट्रेड यूनियन पंजीकरण के लिए ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार के पास फाइल लगायी तो कंपनी ने 45 मजदूरों से जबरन इस बात का शपथ पत्र भरवा लिया कि वे यूनियन की सदस्यता नहीं चाहते हैं। चूंकि इन्हीं 45 मजदूरों को मिलाकर आवेदन में 140 मजदूरों की सदस्यता दिखायी गयी थी, इसलिए अब यूनियन की सदस्यता 100 से कम रह गयी। अतः ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार को फाइल रिजेक्ट करने का तकनीकी कारण मिल गया।
ट्रेड यूनियन पंजीकरण पर श्रम विभाग द्वारा आपत्ति द्वारा लगने के कुछ दिनों के भीतर ही कंपनी प्रबंधन ने अगला हमला किया। कंपनी प्रबंधन ने हमले के लिए पेंट शॉप  के एक मुखर मजदूर अमरनाथ को चुना। पेंट शॉप  संस्थान का एक अहम विभाग है जहां मजदूरों पर प्रबंधन का अत्यधिक दबाव होता है। यहां पर मजदूर और प्रबंधन के बीच पिछले समय में टकराहट सबसे ज्यादा तीखी थी।
प्रबंधन ने 29 अगस्त की दूसरी पाली मे काम कर रहे अमरनाथ को ऑफिस  में बुलाया और उसे एक नोटिस थमाया जो कि अंग्रेजी में था। अमरनाथ ने मांग कि उसे नोटिस हिंदी में दिया जाय। इस पर प्रबंधन ने उसे बताया  कि इस नोटिस में लिखा हुआ है कि उसने यह बात प्रबंधन से छिपाई कि वह पहले हीरो के धारूहेड़ा प्लांट में नौकरी कर चुका है और उसे 72 घंटे की भीतर अपनी सफाई प्रस्तुत करनी है। अमरनाथ ने पूछा कि उसे नौकरी करते हुए 6 साल हो गये हैं, इस तरह का सवाल कभी नहीं किया गया।
ऑफिस में मौजूद तीन-चार लोग मिलकर अमरनाथ से जबरन हाथ पकड़कर नोटिस पर हस्ताक्षर करवाने लगे। अमरनाथ ने अपने आपको उनके चंगुल से छुड़ाकर बाहर निकल गया। इस पर कंपनी के सुरक्षाकर्मियों ने आकर उसे घेर लिया और प्रबंधन ने उससे कहा कि तुम वर्क फलोर पर नहीं जा सकते और तुम्हारा सामान यहीं ला दिया जाएगा और तुम यहीं से बाहर चले जाओ। इस पर अमरनाथ कंपनी से बाहर आ गया।
यह बात जैसे-जैसे अन्य मजदूरों को पता चली सबके समझ में यह बात आने लगी कि सारी कवायद अमरनाथ को नौकारी से निकालने के मकसद से की गयी है। मजदूरों की तरफ से जब इस मामले को समझने तथा सुलझाने का प्रयास किया गया तो उन्हें प्रबंधन की तरफ से धमकियां मिलीं। अंततः 30 अगस्त की तीसरी पॉली में मजदूर काम समाप्त करने बाद 31 अगस्त की सुबह से फैक्ट्री के भीतर ही धरने पर बैठ गये। 31 अगस्त की पहली पॉली  के मजदूर भी फैक्ट्री में घुसने के बाद उनके साथ धरने में शामिल हो गये। कंपनी प्रबंधन ने मजदूरों से कहा कि वे या तो काम करें या गेट से बाहर जाएं लेकिन मजदूरों ने अमरनाथ को काम पर वापस लिए जाने तक धरना समाप्त करने से मना कर दिया।
31 अगस्त की दूसरी पॉली  के मजदूरों को प्रबंधन ने गेट पर ही रोक दिया और वे गेट के बाहर ही धरने पर बैठ गये। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने फैक्ट्री गेट पर बैठे हीरो मोटोकॉर्प के मजदूरों के साथ अपनी एकजुटता व समर्थन व्यक्त किया। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने सक्रिय मजदूरों से बातचीत कर धरने को व्यवस्थित करन, धरने के साथ सभा चलाने, अन्य संगठनों का समर्थन हासिल करने, श्रम विभाग एवं शासन-प्रशासन तक अपनी शिकायत पहुंचाने के संबंध में योजनाएं बनायीं।
     फैक्ट्री के भीतर मजदूर प्रतिनिधियों पर 31 अगस्त की शाम को प्रबंधन ने फैक्ट्री से बाहर न निकलने पर कानूनी कार्यवाही करने का दबाव बनाना शुरु किया। फैक्ट्री परिसर में काफी संख्या में पुलिस बल तथा पी.ए.सी मौजूद थी। लेकिन इसके बावजूद जब मजदूरों ने बाहर आने से मना कर दिया तो उनका लाइट, पानी बंद कर तथा उन्हें एक सीमित हिस्से के भीतर बंद कर प्रबंधन घर चला गया। प्रबंधन ने बाहर के मजदूरों द्वारा अंदर खाना भिजवाने की भी इजाजत नहीं दी। बाहर बैठे मजदूर भी रात भर धरना स्थल पर जमे रहे।
1 सितंबर को फैक्ट्री प्रबंधन द्वारा अदालत से स्टे आर्डर लेने की आशंका के मद्देनजर मजदूरों ने केविट अर्जी डाल दी। प्रबंधन ने 1 सितंबर को अवकाश घोषित कर दिया। सुबह की पोली  में काम पर आए अंप्रेटिस के मजदूरों को सक्रिय मजूदरों ने समझा-बुझाकर धरने में शामिल कर लिया। इस दौरान धरना स्थल पर विभिन्न ट्रेड यूनियन सेंटरों, किसान संगठन, आम आदमी पार्टी के प्रतिनिधि गण समर्थन के लिए आते रहे। लेकिन मजदूरों का हौसला सबसे अधिक तब बढ़ा जब हिंदुस्तान यूनीलीवर और एवरेडी के मजदूर धरना स्थल पर समर्थन देने पहुंचे।
इस विवाद में श्रम उपायुक्त व परगनाधिकारी द्वारा मध्यस्थता कर सुलह समझौता की कोशिश की गयी। उन्होंने मजदूरों व प्रबंधक पक्ष से अलग-अलग बातचीत करने के बाद दोपहर को  यह घोषणा की कि प्रबंधन अमरनाथ को वापस काम पर लेने को तैयार हो गया है, कि प्रबंधन बदले की भावना से मजदूरों पर कार्यवाही नहीं करेगा। मजदूरों ने इसे अपनी जीत माना और वे फैक्टरी से बाहर आ गये। मजदूरों द्वारा थकान दूर करने हेतु अगले दो दिन अवकाश की मांग को भी प्रबंधन द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
दरअसल जिसे मजदूरे अपनी जीत समझ रहे थे वह असल में फैक्टरी प्रबंधन व प्रशासन की एक सोची समझी चाल थी जिसका उददेश्य फैक्ट्री के भीतर जमे हुए मजदूरों को बाहर निकालना था।
दो दिन के अवकाश के बाद 2 सितंबर (सोमवार) को जब मजदूर फैक्टरी पहुंचे तो प्रबंधन ने अपनी तरफ से एक और दिन के लिए मजदूरों को काम पर न आने को कहा। मजदूरों को फैक्टरी प्रबंधन के इरादों में कुछ दाल में काला नजर आने लगा।
बहरहाल जब 3 सितंबर (मंगलवार) को मजदूर फैक्टरी पहुंचे तो प्रबंधन द्वारा उन्हें ‘उत्तम आचरण प्रमाण पत्र’ (गुड कंडक्ट बाण्ड) भर कर ही फैक्टरी के भीतर जाने के लिए बाध्य किया गया। मजदूरों ने ‘ गुड कंडक्ट बाण्ड’ भरने से मना कर दिया और वे गेट के बाहर ही जम गये। मजदूरों को बाद में पता चला कि प्रबंधन ने 30 मजदूरों पर अन्य मजदूरों को जबरदस्ती रोकने का मुकदमा दर्ज कर रखा है। मजदूरों ने प्रबंधन की इस कार्यवाही का विरोध करते हुए स्थानीय कलेक्टरेट पर प्रदर्शन किया। ताजा समाचार मिलने तक मजदूर कलेक्टरेट पर जमे हुए थे। इस जददो जहद के बीच फिलहाल जहां मजदूर संघर्ष के मैदान में डटे हुए हैं वहीं प्रबंधन अभी 16 नेतृत्वकारी मजदूरों को निलंबित करने पर अड़ा हुआ है।

उत्तराखंड सरकार ने दिखाये अपने बनैले पंजे, असाल के 98 मज़दूरों को जेल
      उत्तराखंड के औद्योगिक अस्थान सिडकुल पंतनगर में 30 मई को टाटा मोटर्स की  वेण्डर कंपनी आटोमोटिव स्टम्पिंग  एण्ड असेम्बलिंग लिमिटेड (असाल) कंपनी में कार्यरत ठेका मजदूर सुशील कुमार की बेहद दर्दनाक मौत के बाद मजदूरों का प्रबंधन के खिलाफ संचित अक्रोश सतह पर आ गया। मजदूर अपने इस साथी की मौत के लिए  असाल प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराते हुए कंपनी प्रबंधन पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने, अप्रशिक्षित ठेका मजदूरों से गैरकानूनी रूप् से मशीनों पर काम करवाने तथा 28 मई को काम से निकाले गये 170 प्रशिक्षित ट्रेनी मजदूरों को काम पर वापस रखने व कंपनी में श्रम कानूनों की समुचित परिपालना के लिए संघर्षरत हैं। जहां असाल मजदूरों के इस संघर्ष का सिडकुल की कई अन्य फैक्ट्रियों के मजदूरों का द्वारा जुझारू एकजुटता प्रदर्शित कर समर्थन किया जा रहा है वहीं शासन-प्रशासन असाल प्रबंधन की गैरकानूनी गतिविधियों को संरक्षण देने तथा मजदूरों का दमन करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखा।
         इस कंपनी में स्थायी मजदूर नाम मात्र के हैं। कंपनी में श्रम कानूनों का नाम मात्र का भी पालन नहीं होता है। कंपनी में जब मजदूरों ने अपने श्रम अधिकारों के लिए संघर्ष करना शुरु किया तो कंपनी प्रबंधन, श्रम विभाग व शासन-प्रशासन का गठजोड़ नंगे रूप में सामने आ गया।
         कंपनी प्रबंधन भारी मात्रा में ट्रेनी मजदूर रखकर उनसे काम करवाता रहा है जिनका कभी स्थायीकरण नहीं हुआ।
         28 मई को कंपनी प्रबंधन द्वारा 170 प्रशिक्षित ट्रेनी मजदूरों को कंपनी से निकाल दिया और पूरी कंपनी को अप्रशिक्षित ठेका मजदूरों से चलाया गया। 28 मई को मजदूरों ने जिलाधिकारी,श्रम विभाग एवं एस.एस.पी. को अपनी लिखित शिकायत दी और कहा कि असाल इंजीनियरिंग उद्योगों के अन्तर्गत भारी उद्योगों के तहत आती है। ऐसे उद्योगों में अप्रशिक्षित ठेका मजदूरों से कार्य करवाना मजदूरों को मौत के मुंह में धकेलने के समान है, कंपनी में मजदूरों को जान माल से खतरा है।
       मजदूरों की शिकायत पर कार्यवाही के नाम पर अपर जिलाधिकारी ने ए.एल.सी. पंतनगर को लिखकर अपना पल्ला झाड़ लिया और लेबर इंसपेक्टर ने 29 मई को कंपनी के प्रबंधकों के साथ में कंपनी का एक राउण्ड लगाकर, ज्यादातर समय प्रबंधकों के केबिन में बिताकर खानापूरी कर दी। जांच के समय कंपनी में कार्यरत स्थाई मजदूरों ने केबिन में घुसकर लेबर इंसपेक्टर को ललकारा कि जांच करनी है तो हमसे पूछो, हम बताते हैं कि सभी मजदूर ठेके के हैं। परन्तु लेबर इंसपेक्टर पर इसका कोई असर न हुआ और जांच पूरी हो गयी।
      30 मई को प्रातः 7 बजे प्रेस मशीन पर कार्य करते समय ‘फोर्क लिफ्ट ’से कुचलकर व कटकर ठेका मजदूर सुशील कुमार की मौत हो गयी। सुशील कुमार को कंपनी में कार्य करते हुए महज 2 दिन हुए थे, उसके बावजूद उससे खतरनाक प्रेस मशीन चलवायी जा रही थी और फोर्क लिफ्ट  का चालक भी ठेके के तहत ही  कार्यरत था। हादसा इतना खतरनाक था कि सुशील कुमार का भेजा  3-4 फिट की दूरी पर पड़ा था और शरीर गाड़ी के भीतर धंसा पड़ा था। 
      कंपनी प्रबंधकों ने लाश को ठिकाने लगाने के लिए स्वीपरों को बुलाया तो स्थायी मजदूरों ने हाथ में डंडे थाम लिये और प्रबंधकों व ठेकेदारों को लाश को हाथ न लगाने को कहा। उस समय शिफ्ट  में महज 5 स्थायी मजदूर ही कार्यरत थे। स्थायी मजदूरों ने फोन से अपने मजदूर साथियों को घटना की सूचना दी। तुरंत ही कंपनी में आंदोलनरत 200 मजदूर एवं इंकलाबी मजदूर केन्द्र, नील ऑटो , वेरोक , सिरडी, बड़वे, ब्रिटानिया, इंपीरियल आटो, पारले, इंडोरेन्स आदि कंपनियों के मजदूर भारी संख्या में पहुंच गये और कंपनी का गेट जाम कर दिया।
       कुछ ही समय पश्चात एस.डी.एम., सी.ओ. भारी पुलिस फोर्स के साथ में कंपनी पहुंचे और मजदूरों को कंपनी गेट से लाश को निकलने देने को धमकाने लगे। मजदूरों ने एस.डी.एम. की धमकी की तनिक भी परवाह नहीं की और कंपनी प्रबंधकों एवं ठेकेदार के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर तुरंत गिरक्तारी की मांग की। कुछ ही समय बाद भाजपा के क्षेत्रीय विधायक भी कंपनी पहुंच गये। एस.डी.एम., सी.ओ. व क्षेत्रीय विधायक प्रबंधकों को बचाने का खेल खेलने लगे।
     एस.डी.एम., क्षेत्रीय विधायक ने एक समझौता पत्र बनाया जिसमें मृतक की पत्नी को साढ़े पांच लाख मुआवजा, कंपनी में नौकरी, मृतक की पुत्री की पढ़ाई एवं शादी की जिम्मेदारी कंपनी की ओर से उठाने की बात दर्ज थी। मजदूरों ने इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं को पत्र दिखाया तो उन्होंने उसे खारिज कर दिया और प्रंबधकों की गिरफ्तारी की मांग की। इस पर पर एस.डी.एम. ने मौखिक आश्वासन दिया कि सायं 4:00 बजे तक गिरफ्तारी हो जायेगी।
       इसके बाद एस.डी.एम. ने लाश को जाने देने के लिए कहा परंतु मजदूरों द्वारा इसका विरोध किया गया। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकताओं ने एस.डी.एम. से पूछा कि समझौते में यह बात दर्ज नहीं है कि कल से कंपनी अप्रशिक्षित मजदूरों से चलायी जायेगी या नहीं ? इस पर एस.डी.एम ने कहा कि हां कंपनी चलेगी। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने एस.डी.एम. से लिखित में देने को कहा कि यदि कंपनी में मजदूरों को जान माल से नुकसान होगा तो इसकी जिम्मदारी स्वयं एस.डी.एम. की होगी। एस.डी.एम. इससे मुकर गयीं और मृतक की लाश पर राजनीति करने का आरोप लगाने लगीं। मजदूरों ने कहा कि राजनीति तो आप कर रही हैं, हम अपने मजदूर साथियों की सुरक्षा चाहते हैं।
      अंत में शाम लगभग 3:00 बजे कंपनी प्रबंधकों, एस.डी.एम एवं क्षेत्रीय विधायक द्वारा लिखित में दिया गया कि समस्या का समाधान होने तक कंपनी बंद रहेगी, मृतक की पत्नी को 10 लाख रु. मुआवजा एवं कंपनी में स्थायी नौकरी, मृतक की पुत्री की पढ़ाई की जिम्मेदारी कंपनी की होगी। मजदूरों ने गेट खोल दिया और लाश जाने दी।
       मजदूरों ने कंपनी गेट पर शिफ्ट  लगाकर मजदूरों को तैनात कर दिया कि कंपनी चल रही है अथवा नहीं। पहली जून को एस.डी.एम. की मध्यस्थता में वार्ता हुई। कंपनी प्रबंधन निकाले गये ट्रेनी मजदूरों को वापस लेने एवं स्थायीकरण के लिए पालिसी  बनाने को कुछ हद तक तैयार हुआ। कंपनी प्रबंधन सस्पेंड किये गये 5 स्थाई मजदूरों को घरेलू जांच में परिणाम के आधार पर ही फैसला लेने पर अड़ गया, एस.डी.एम. पांचो सस्पेंड किये गये मजदूर नेताओं की 200 मजदूरों की खातिर कुर्बानी देने का पाठ पढ़ाने लगा।
       असाल कंपनी में उत्पादन बंद होने से टाटा मोटर्स भी बंद हो गयी और साथ ही टाटा मोटर्स द्वारा अपनी 72 वेंडर कंपनियों का माल भी उत्पादन बंद होने के कारण वासप लौटाया गया। पांच-छः दिनों तक टाटा मोटर्स में उत्पादन ठप्प होने के बाद टाटा मोटर्स ने सरकार एवं प्रशासन पर दबाव बनाने  के लिए 10 जून तक कंपनी को बंद करने की घोषणा कर दी। टाटा मोटर्स का जी.एम. ‘असाल’ कंपनी के टॉप  मैनेजमेंट के साथ में देहरादून में मुख्यमंत्री से मिला। इसका तुरंत असर देखने को मिला। सिडकुल कें प्रबंधकों की एशोसिएशन तुरंत सक्रिय हो गयी  और अपनी-अपनी  कंपनी के मजदूरों को ‘असाल’ मजदूरों के आन्दोलन में शामिल न होने के लिए दबाव बनाने लगे।
        4 जून को अपर जिलाधिकारी ने मजदूरों को समझौता न करने पर कंपनी को चालू करवाने की धमकी दी और कहा कि देखता हूं कि कौन कंपनी को चलाने से रोकता है ? मजदूर नेताओं ने अपर जिलाधिकारी की घुड़की के आगे झुकने से इंकार कर दिया और कहा कि जिला प्रशासन यदि अपने लिखित वादे से मुकरता है तो इसके गंभीर परिणाम होगें।
        4 जून की  रात में एस.डी.एम. भारी पुलिस फोर्स के साथ कंपनी पहुंच गये और मजदूरों को माल डिस्पेच करने देने के लिए कहने लगे। तुरंत ही कई कंपनियों से ट्रेड यूनियन पदाधिकारी मौके पर पहुंच गये। ‘असाल’ के मजदूर गाडि़यों के आगे लेट गये। 2 घंटे से भी अधिक समय की कसरत के बाद एस.डी.एम. को कंपनी से दबे पांव वापस लौटना पड़ा।
       6 जून को रात में पुनः एस.डी.एम. भारी पुलिस एवं पी.ए.सी. के साथ मजदूरों को हटाने लगे। मजदूरों पर लाठी चार्ज किया गया और उनके कपड़े तक फाड़ दिये गये परंतु मजदूरों ने गेट नहीं छोड़ा। रात 8 बजे  डी.एम. ने अपने आवास पर वार्ता के लिए बुलाया, वार्ता विफल हो गयी। डी.एम. ने मजदूरों को धमकाया कि यह तुम्हारे लिये आखिरी मौका है, शासन ने आदेश दिया है, मै कुछ नहीं कर सकता। वार्ता के बाद मजदूर नेता कंपनी गेट पहुंचे और गेट पर डट गये। रात्रि 12 बजे लगभग 43 मजदूरों को गिरफ्तार  कर लिया। बचे हुए मजदूरों ने अगली सुबह पुनः गेट जाम कर दिया और पुलिस ने पुनः 55 मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया। सरकार और प्रशासन को उम्मीद थी कि मजदूरों को लाठी-जेल के भय से खामोश कर दिया जायेगा। परंतु ‘असाल’ मजदूरों ने सिडकुल में अपने जुलूसों  एवं कंपनी प्रबंधन की शवयात्रा निकालकर काफी हद तक मजदूरों की सहानुभूति हासिल कर ली थी।
       जिस समय प्रशासन द्वारा 98 मजदूरों को हल्द्वानी, नैनीताल एवं अल्मोड़ा भेजने की तैयारी की जा रही थी, ठीक इसी समय जे.बी.एम., इन्डोरेन्स, वेरोक , सिरडी आदि  कंपनियों की पूरी शिफ्टों  से सैकड़ों मजदूर डी.एम. कोर्ट पहुंच गये। मजदूरों ने हत्यारे असाल के प्रबंधकों को बचाने एवं निर्दोष मजदूरों को जेल भेजने के विरोध में डी.एम. कोर्ट में जुलुस निकाला। 9 जून को मुख्यमंत्री विजय बहुगुंणा के हल्दूचैड़ यात्रा पर सभा में मजदूरों ने पर्चे बांटे और दूसरी ओर डी.एम के आवास पर प्रदर्शन किया।
      11 जून को कलेक्ट्रेट, रुद्रपुर एवं 16 जून को श्रम मंत्री के आवास पर मजदूर महापंचायत आयोजित की जा रही है।

      शासन-प्रशासन पूरी निर्लज्जता के साथ में हत्यारे असाल प्रबंधन को बचा रहे हैं और मजदूरों के बर्बर दमन पर उतारू हैं। असाल प्रबंधन शासन-प्रशासन के सहयोग से पुनः अप्रशिक्षित ठेका मजदूरों से कंपनी चलवाकर खून की होली खेलने पर आमादा है। वहीं दूसरी तरफ असाल के मजदूर नवंबर 2012 से असंवैधानिक ट्रेनी के धंधे के खिलाफ अपनी यूनियन पंजीकृत करवाने के लिए संघर्षरत हैं।

हरियाणा सरकार मुर्दाबाद !  मारुति सुजुकी मजदूरों का संघर्ष जिन्दाबाद !!     
 18-19 मई को भारतीय पूंजीपतियों की सरकार ने एक बार फिर अपना बनैला चेहरा दिखाया। हरियाणा सरकार ने कैथल में शान्तिपूर्ण धरने पर बैठे  मारुति सुजुकी के मजदूरों को 18 मई की आधी रात को गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद अगले दिन हरियाणा के ग्रामीणों द्वारा मारुति सुजुकी मजदूरों के समर्थन में आयोजित प्रदर्शन पर बर्बर लाठी चार्ज किया। करीब दो हजार लोगों के इस प्रदर्शन को आंसू गैस के गोलों तथा पानी की बौछारों का भी सामना करना पड़ा। प्रदर्शनकारी ग्रामीण महिलाओं को बुरी तरह पीटा गया। उन्हें थाने घसीट कर ले जाया गया। इसी के साथ ग्यारह लोगों पर हत्या की कोशिश और हथियार रखने इत्यादि सहित संगीन धारायें लगाकर चौदह  दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। 
     यह सब इसलिए किया गया कि करीब दो साल से संघर्षरत मारुति सुजुकी के मजदूरों को कुचला जा सके। यह याद रखने की बात है कि 18 जुलाई 2012 की घटना के बाद 151 मजदूरों पर फर्जी मुकदमे लगाकर जेल में बंद कर दिया गया। इसमें मारुति सुजुकी मजदूर यूनियन का पूरा नेतृत्व शामिल है। करीब 9 महीने गुजर जाने के बाद भी इन्हें जमानत नहीं मिल सकी है। 
      मारुति सुजुकी प्रबंधन द्वारा 18 जुलाई की घटना के बाद निष्कासित कर दिये मजदूरों ने (जो जेल में बंद नहीं हैं) पिछले 9 महीनों में अपना संघर्ष जारी रखा। इसी क्रम में इस 24 मार्च से वे हरियाणा के उद्योग मंत्री सुरजेवाला के शहर कैथल में जमे हुए थे। शुरु में कुछ मजूदरों ने आमरण अनशन किया। जिसे उपरोक्त मंत्री और स्वयं हरियाणा के मुख्यमंत्री के आश्वासन पर खत्म कर दिया गया। लेकिन जब मजदूरों ने इन आश्वासनों पर कोई कार्रवाई होती नहीं देखी तो उन्होंने हरियाणा के ग्रामीणों को अपने समर्थन में लाने की कोशिश की। चूंकि मारुति सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों में ढेर सारे हरियाणा के गांवों से आते हैं, इसलिए उन्हें ग्रामीणों का समर्थन मिला। 
      संघर्षरत मजदूरों और करीब दो हजार ग्रामीणों का एक प्रदर्शन 8 मई को कैथल में आयोजित हुआ। इसमें मारुति मजदूरों के समर्थन में लम्बे समय से सक्रिय क्रांतिकारी संगठन भी शामिल हुए। इसी प्रदर्शन में ग्रामीणों ने घोषणा की कि यदि दस दिनों में सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की तो वे 19 मई को सड़क जाम इत्यादि का रास्ता अपनायेंगे। मजदूरों के संघर्ष को कुचलने में लगी सरकार यह किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। पहले तो इस प्रदर्शन में शामिल पंचायतों को धमकी दी गई कि उनका सरकारी अनुदान रोक दिया जायेगा और फिर 18 मई की रात और 19 मई को उपरोक्त बर्बर दमन की कार्रवाई की गई। 
      इसके द्वारा सरकार ने यह संदेश दिया कि वह पूंजीपतियों को लूटने की खुली छूट से खुद को पीछे नहीं खींचने वाली। अभी मनमोहन सिंह ने दो दिन पहले श्रम मंत्रालयों की बैठक में प्रकारान्तर से यही बात कही। 
ऐसे में स्पष्ट है कि मजदूरों का संघर्ष पूंजीपतियों तथा उनकी सरकार के और भी ज्यादा बर्बर दमन का शिकार होगा। इसका मुकाबला करने के लिए मजदूरों को और भी ज्यादा दृढ़तापूर्वक संघर्ष में उतरना होगा। मारुति सुजुकी के मजदूरों ने अपने वर्तमान ट्रेड यूनियन संघर्ष में शानदार एकता और जुझारुपन का परिचय दिया है। इसे बनाये रखना और बढ़ाना होगा। इसी के साथ देशभर के मजदूरों को इस तरह के संघर्षों में अपनी संग्रामी एकजुटता कायम करनी होगी। 
       इंकलाबी मजदूर केन्द्र मारुति सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों तथा उनके समर्थन में आये ग्रामीणों और क्रांतिकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं पर बर्बर दमन की इस कार्रवाई की भर्तसना करता है तथा एक बार फिर इस संघर्ष के पक्ष में अपनी एकजुटता बुलंद करता है।    
   
वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में गरम रोला फैक्टरियों के मजदूरों का जुझारू संघर्ष   
       वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में  गरम रोला मशीन वाली सभी 26 फैक्ट्रियों के लगभग 1000 मजदूरों ने अपने श्रम अधिकारों के लिए विगत  अप्रैल माह से एक जुझारू हड़ताल की । 
       आन्दोलन की शुरुआत 10 अप्रेल से हुई ।  10 अप्रैल को मजदूरों द्वारा  वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र से उप श्रम आयुक्त नीमड़ी कालोनी, अशोक विहार तक एक रैली निकाली गयी। रैली में  अन्य मजदूरों समेत लगभग 1500 मजदूर शामिल थे। उप श्रम आयुक्त कार्यालय पर एक सभा करने के पश्चात उप श्रम आयुक्त को  एक ज्ञापन दिया। इसके  बाद मजदूरों का आन्दोलन स्थानीय  वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के बी -ब्लॉक  के राजा पार्क में एक नियमित  शांतिपूर्ण धरने में जारी रहा । 12 अप्रेल को मजदूरों के पास संदेश आया कि मालिकों  ने 1000 रुपये वेतन बढ़ा दिया है अत: वे काम लौट  जायें लेकिन मजदूरों ने इस पेशकश को ठुकरा दिया । 
         इंकलाबी मजदूर केन्द्र व एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता के नेतृत्व में 12 अप्रेल को मजदूरों ने अपनी एक कमेटी ’गरम रोला मजदूर एकता कमेटी’ का गठन किया। उसके बाद इसी कमेटी के नेतृत्व में मजदूरों का यह आन्दोलन आगे बढ़ा। 
मजदूरों की कमेटी बनने व उनकी एकता से फैक्टरी मालिक बौखला गये  और मजदूरों की एकता को भंग करने की  चालें चलने लगे।
      15 अप्रैल को पुलिस प्रशासन ने मजदूरों को धरना स्थल से हटाने का प्रयास किया। पुलिस ने मजदूरों पर दबाव हुए कहा  कि उनके पास धरना  करने की इजाजत नहीं है। इस पर  मजदूरों ने स्पष्ट किया  कि 13 अप्रैल को अशोक विहार थाने में धरने की सूचना दे दी थी । मालिकों के इशारे पर काम कर रही पुलिस मजदूरों के आन्दोलन को ख़त्म करने का दबाव बना रही थी जिसका मजदूरों ने पुरजोर विरोध किया। अंतत: डराने धमकाने की नियत से जब पुलिस मजदूरों का नेतृत्व करने वाले साथियों को पुलिस चौकी ले जाने लगी तो सभी मजदूर साथ हो लिए तथा उन्होंने पुलिस चौकी तक एक शानदार जुलूस निकाला तथा पुलिस के मजदूर विरोधी पक्ष का विरोध किया और जबरदस्त नारेबाजी की । मजदूरों ने एक तरह से  वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के ए-ब्लॉक  पुलिस चौकी का घेराव कर दिया । मजदूरों के जुझारू तेवर देखकर अंतत: पुलिस को पीछे हटना पड़ा और उसे पार्क में धरना करने की रजामंदी देनी पड़ी ।
श्रम विभाग द्वारा लगातार मजदूरों के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार से क्षुब्ध होकर  15 अप्रैल को ही लगभग 1000 मजदूर चौकी से सीधे उप श्रम आयुक्त के कार्यालय  पहुंचे और उन्होंने वहां पर विरोध प्रदर्शन किया और 26 फैक्ट्रियों की शिकायत उप श्रम आयुक्त को लिखित में दी, जिसमें निम्नलिखित मुख्य मांगें थीं : - 
दिल्ली सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन लागू किया  जाये।
8 घंटे का कार्यदिवस लागू किया जाये।  
ई. एस. आई व पी. एफ।  की सुविधा लागू की जाये।
          उप श्रम आयुक्त ने भी मजदूरों को टालने  की कोशिश की और कहा कि मजदूर अपनी फैक्ट्रियों में वापस  काम पर लौट जायें और इन्सपेक्टर आकर फैक्ट्रियों में जांच कर लेगा। मजदूरों द्वारा इस प्रस्ताव को ठुकरा देने पर उप श्रम आयुक्त ने कहा कि 17 अप्रैल को असिस्टेंट लेबर कमिश्नर (ए. एल. सी) और 2 इन्सपेक्टर राजा पार्क धरना स्थल पर आकर मजदूरों के साथ फैक्ट्रियों में आकर जांच करेंगे।
       16 अप्रैल को मालिकों ने मजदूरों की हड़ताल खत्म करने के लिए  फिर कोशिश की। पूर्व निगम पार्षद धरना स्थल पर आये और मजदूरों से हड़ताल खत्म करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से धमकी दी। मालिकों की तरफ से एक प्रस्ताव उन्होंने रखा जो सिर्फ 1400 रुपये वेतन बढ़ाने का था। मजदूरों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इसी बीच एक बार फिर पुलिस वाले आये। उन्होंने मजदूरों से धरना खत्म को कहा  और धमकी दी कि अभी भारे संख्या में पुलिस आयेगी तथा सबको गिरफ्तार करेगी और भगा देगी। पुलिस ने नेतुत्वकारी साथियों से पुलिस चौकी  चलकर बात करने के लिए कहा इस पर मजदूरों  ने पुलिस वालों जवाब दिया वे  शांतिपूर्ण धरना दे रहे हैं और अगर पुलिस को किसी को ले जाना है तो सभी मजदूरों को गिरफ्तार करके ले जाना होगा। मजदूरों के जुझारू तेवर ओ प्रतिरोध को देखकर एक बार फिर पुलिस को वापस लौटना पड़ा।
        16 अप्रैल को जब अधिकांश मजदूर अपने घर चले गए थे तो शाम  6 बजे पुलिस ने मजदूरों को बातचीत के लिए बुलाया। इंकलाबी मजदूर केंद्र के एक कार्यकर्ता व एक सामाजिक कार्यकर्ता जब पुलिस चौकी पहुंचे तो पुलिस ने एक षड़यंत्र के तहत उन पर आरोप लगाया की तुम  लोग मजदूरों के साथ एक फैक्टरी में जाकर  ठेकेदार व मजदूरों के साथ मारपीट की । जब मजदूरों को इस घटना का पता चला तो वह भी पुलिस चौकी पहुँच गए । इस पर पुलिस ने उनमें एक छात्र समेत  8 मजदूरों को  पकड़ कर चौकी में बिठा लिया । चौकी के अन्दर पुलिस ने सभी के नाम, पिता का नाम, पता  आदि लिखकर व क्या क्या-सामान है, उसका एक फॉर्म भर कर हस्ताक्षर कराये। चौकी  के बाहर  बाकी मजदूरों पर लाठी चार्ज कर मार  भगाया जिसमें कुछ मजदूर घायल हो गये। 
        पुलिस चौकी  में पहले से ही मालिकों की एसोसिएशन के लोग तथा  सभी मालिक इकट्ठा हो रखे थे। उसके बाद मजदूरों के नेतृत्व पर दबाव डाला कि वे हड़ताल खत्म करें जिसका नेतृत्व ने विरोध किया तथा पोलिस से स्पष्ट कहा कि उन्हें जो भी फर्जी केश बनाने हैं वे बनायें लेकिन इस तरह वे हड़ताल खत्म नहीं करेंगे। अंत में पुलिस को अपना रुख बदलना पड़ा और उसने औपचारिक तौर पर तिरपक्षीय ( मजदूर,मालिक व प्रशासन ) समझौता वार्ता की पेशकश की समझौता वार्ता में भी पुलिस ने मालिकों का भरपूर पक्ष लिया। लगभग 2 -3 घंटे तक खींचतान और बहस के बाद मालिकों की एसोसिएशन व मजदूरों के बीच एक समझौते पर राय बनी, जिसमें  निम्नलिखित बिन्दुओं पर सहमति बनी :-
सभी मजदूरों का 1500 रुपये बढ़ाने ।
सभी मजदूरों को ई एस आई देने ।
हड़ताल के सात दिनों में से 4 दिन का पैसा देने ।
मालिक किसी मजदूर को काम से नहीं निकालेंगे।
        हालांकि मजदूर इस समझौते को लेकर पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे लेकिन अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते वे आन्दोलन को और लम्बा नहीं खीचना चाहते थे। अंतत: हालात को देखते हुए चौकी पर मौजूद सभी मजदूरों ने इस समझौते पर हामी भरी। इस तरह मजदूरों ने अपने संघर्ष के दम पर आंशिक व छोटी जीत हासिल की।
इस आन्दोलन में मजदूरों की सफलता यह रही कि मजदूरों ने ‘गरम रोला मजदूर एकता समिति’ का गठन कर एकता को व्यापक बनाया तथा नेतृत्व को अपने हाथ में लिया। जो मालिक शुरुआत में मजदूरों से बात करने को राजी नहीं थे उनको वार्ता के लिए तैयार होना पड़ा।
       फिलहाल मजदूरों ने तय किया है कि वे अपनी ‘गरम रोला मजदूर एकता समिति’ को मजबूत करेंगे और संघर्ष को जारी रखेंगे।

इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथियों पर लगे फर्जी मुकदमों का विरोध करो !
               इंकलाबी मजदूर केन्द्र के सम्मेलन से कुपित होकर हरिद्वार प्रशासन व उत्तराखंड सरकार द्वारा 32 नामजद तथा अन्य 150 अज्ञात (कुल 182) मजदूरों पर  फर्जी मुकदमे दर्ज कर दिये। इस तरह उत्तराखंड सरकार ने अपने मजदूर विरोधी, पूंजीपरस्त व फासिस्ट चरित्र का प्रदर्शन किया है। इन सथियों पर सम्मेलन के खुले सत्र के बाद निकाले गये जुलूस के दौरान भड़काऊ भाषड़ देने,सरकारी भूमि पर बलात कब्जा करने, बलवा करने, हिंसा उकसाने जैसे झूठे आरोप लगाकर भा.द.स.की धारा 147,341,447,505 एवं क्रिमिनल ला एमेन्डमेंट एक्ट जैसे फर्जी मुकदमे लगा दिये।
               गौरतलब है कि इंकलाबी मजदूर केन्द्र के सम्मेलन में खुले सत्र के बाद स्थानीय चिन्मय कालेज के सामने पीठ के मैदान से एक जुलूस का कार्यक्रम तय था जिसकी पूर्व सूचना स्थानीय परगनाधिकारी को पहले ही दी जा चुकी थी और उनके द्वारा स्थानीय एस.एच.ओ.को जुलूस में व्यवस्था बनाये रखने का निर्देश दिया गया था जिसकी प्रति इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता स्थानीय पुलिस को सौंप आये थे।
               सम्मेलन के दौरान पुलिस की एक टीम खुफिया विभाग के लोगों के साथ सम्मेलन स्थल पर पहुंची और बगैर इजाजत वहां उपस्थित लोगों के वीडियो बनाने लगी। आयोजकों द्वारा इसका तीखा विरोध करने पर पुलिस व खुफिया विभाग के लोग चिन्मय कालेज सामने पीठ के मैदान में इकट्ठा न होने देने व जुलूस न निकालने देने की धमकी देते हुए चले गये।
              सम्मेलन के दूसरे दिन जब साथी जुलूस के लिए घोषित जगह पहुंचे तो पुलिस व खुफिया विभाग के लोगों ने उनकी सघन फोटोग्राफी की तथा जुलूस को रोकने के पुरजोर प्रयास किये। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं व मजदूर साथियों ने पुलिस प्रशासन के दबाव को धता बताकर पूर्व निर्धारित मार्ग से जुलूस निकाला। जुलूस में क्रांतिकारी गीत व नारे माहौल को जोशीला बना रहे थे। मजदूर बस्तियों में मजदूर पूरे उत्साह के साथ जुलूस को देखते तथा कुछ दूर तक साथ हो लेते। मजदूरों को पूर्ण गुलामी की स्थिति में रखने व देखने के आदी शासन प्रशासन के लोगों को यह बात बेहद नागवार गुजरी। जुलूस के दौरान एक-एक व्यक्ति की वीडियोग्राफी करने, चेस्ट कार्ड से नाम नोट करने जैसे हथकंडे अपना वे मजदूरों का मनोबल तोड़ने में लगे रहे और अंततः जब उनके सारे प्रयास विफल हो गये तो उन्होंने अपनी खीज मिटाने के लिए जुलूस में शामिल 32 मजदूर साथियों को नामजद कर तथा अन्य फर्जी मुकदमे लाद दिये। पुलिस-प्रशासन, खुफिया विभाग व सकार की यह कार्यवाही किस कदर फर्जी थी इसका अंदाज इसी से लग जाता है कि स्थानीय अमर उजाला व दैनिक जागरण के संस्करणों में जुलूस के शांतिपूर्ण होन व पुलिस के फर्जी मुकदमे लगाने की बात प्रमुखता से छापी गयी।
               इस  तरह उत्तराखंड सरकार की यह कार्यवाही कायरतापूर्ण, नीचतापूर्ण होने के साथ उसकी नग्न पूंजीपरस्ती की एक मिसाल है। यह पूंजीपरस्त सरकारों द्वारा मजदूर वर्ग संगठित करने वाली क्रांतिकारी शक्तियों के लिए एक चुनौती है। मजदूर वर्ग को संगठित करने के प्रयास में लगे सभी लोगों को इसका पुरजोर विरोध करना होगा।

मारुति सुजुकी विस्फोट : दोषी पूंजीपति वर्ग है
        मारुति सुजुकी के मानेसर कारखाने में 18 जुलाई की घटना ने अब उन लोगों को भी सोचने को मजबूर कर दिया है जो अभी तक चमकते भारत की चमक से मदहोश थे। वे लोग बेहद मासूमियत से पूछ रहे हैं कि आखिर मजदूरों ने ऐसा क्यों किया? मजदूरों और प्रबंधन के बीच इतना बड़ा ‘कम्युनिकेशन गैप’ कैसे हो गया था कि इस तरह की घटना घट गई।
       पूंजीपति वर्ग, भारत सरकार तथा पूंजीपति वर्ग के लगुए-भगुए इस तथ्य को झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं कि घटना कोई अकेली घटना नहीं है। अभी कुछ महीने पहले ही उसी गुड़गांव में ओरियेन्ट फैक्ट्री में एक घटना घटी थी।  पिछले साल साहिबाबाद और उससे भी पहले ग्रे.-नौएडा में ग्रेजियानों में इससे मिलती-जुलती घटनायें हुई हैं। देश के अन्य औद्योगिक केन्द्रों से भी इसी तरह की घटनाओं की लगातार खबरें आती रही हैं।
       मानेसर की वर्तमान घटना का यदि महत्व ज्यादा है तो केवल इसीलिए कि यह देश के पूंजीपति वर्ग और मध्यम वर्ग के लिए एक हद तक माडल बनी कम्पनी में घटित हुई है और इसमें विदेशी कोण भी मौजूद है। आज यह कम्पनी जापानी कम्पनी के नियंत्रण में है और इस घटना में जापानी नागरिक भी घायल हुये हैं।    
        इस पूरे मामले में सबसे संगीन बात यह है कि केवल इस तरह की घटनायें ही आज पूंजीपति वर्ग को मजदूरों की हालत और पूंजीपति-मजदूर संबंधों पर चिन्तन करने के लिए मजबूर कर रही हैं। और तब वे बेहद आहत मासूमियत से पूछते हैं कि यह ‘कम्युनिकेशन गैप’ कैसे हो गया?
        पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकार दोनों ही आज स्वीकार नहीं कर सकते कि उन्होंने पिछले दो-ढाई दशकों में मजदूर वर्ग को धकेल कर वहां पहुंचा दिया है कि मजदूरों को इसके अलावा कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। यहां तक कि वे अपने ट्रेड यूनियन नेताओं तथा अपने ईमानदार व लड़ाकू शुभचिन्तकों की बात भी सुनने को तैयार नहीं हैं। मानेसर में यही हुआ। मजदूरों ने इन सबको अनसुना कर वह कार्यवाही की। आखिर किसने मजदूरों को वहां तक पहुंचाया?    
       हरियाणा के कांग्रेसी मुख्यमंत्री हुडा दहाड़ कर कहते हैं कि दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा और उन्हें सख्त सजा मिलेगी। लेकिन दोषी कौन है? दोषी तो स्वयं हुडा ही हैं। दोषी मनमोहन सिंह हैं। दोषी सारे पूंजीवादी नेता और उनकी सरकारें हैं दोषी समूचा पूंजीपति वर्ग है। क्या हुडा इन सबको दंडित करेंगे?
       मानेसर के मजदूरों का दोष केवल इतना था कि उन्होंने मारुति प्रबंधन का गुलाम बनने से इंकार किया। उन्होंने स्वयं पूंजीपति वर्ग द्वारा घोषित नियमों को लागू करने की मांग की। और पिछले साल उन्होंने छः महीने तक पूर्णतया शांतिपूर्ण आंदोलन किया। 9 महीने बाद उस जगह से 18 जुलाई तक मजदूरों को किसने पहुंचाया, इसके लिए कौन दोषी है?
        यह घटना इसीलिए घटी कि प्रबंधन के सारे छल-छद्म के बावजूद मजदूर हार मानने को तैयार नहीं थे। वे प्रबंधन के सामने घुटने टेकने को तैयार नहीं थे। और प्रबंधन अपनी हेकड़ी में किसी भी हद तक चला गया।
        सवाल यह है कि मारुति के प्रबंधन को इस हद तक जाने का साहस कैसे हुआ। केवल एक कारण से। प्रबंधन आश्वस्त था कि देश की हरियाणा की सरकार उसके साथ खड़ी है। उसके एक इशारे पर कितना भी पुलिस बल कारखाना गेट पर तैनात हो जाता था। पूरे देश मे पिछले दो-ढाई दशकों के पूंजीपतियों और सरकार के व्यवहार से वह आश्वस्त था कि वह मजदूरों को किसी भी हद तक दबा लेगा। बस मानेसर कारखाने के मजदूरों ने उसके इस भ्रम को तोड़ दिया।
       यदि मानेसर की 18 जुलाई की घटना के लिए कोई  दोषी है तो वह पूंजीपति वर्ग है। इसके लिए दोषी सरकार है। इसके लिए दोषी साम्राज्यवादी पूंजीपति वर्ग है।
        परन्तु पूंजीपति वर्ग इसे स्वीकार नहीं करेगा। उल्टे गुलाम बनने से इंकार करने वाले मजदूरों को सख्त से सख्त सजा देकर वह मजदूर वर्ग को संदेश देना चाहेगा कि पूंजीपति वर्ग द्वारा थोपी गई उजरती गुलामी के खिलाफ कोई भी प्रतिरोध सख्ती से कुचल दिया जायेगा। पूंजीपति वर्ग के एक आदमी की जान की कीमत सैकड़ों मजदूरों की जान से चुकाई जायेगी। घटना को ‘पूर्व नियोजित साजिश’ बता कर मारुति प्रबंधन तथा सख्त सजा देने की बात कर सरकार इसी दिशा में बढ़ रही है।
       मजदूर वर्ग को पूंजीपति वर्ग तथा सरकार के इस प्रयास का दृढ़ता से मुकाबला करना होगा। वर्ग सचेत मजदूरों के लिए यह सहज ही मानी हुई बात है कि मजदूरों द्वारा गुस्से में इस तरह की कार्रवाई संघर्ष का सही तरीका नहीं है। यही नहीं, यह मजदूर वर्ग के लिए नुकसान देह है। इस तरह की कार्रवाइयों से बचते हुए पूरे पूंजीपति वर्ग के खिलाफ संगठित संघर्ष ही एकमात्र रास्ता है। यह संघर्ष साथ ही मजदूर वर्ग की मुक्ति के आम संघर्ष का हिस्सा है।    
       वर्ग सचेत मजदूर और उनके क्रांतिकारी नेतृत्व को आम मजदूरों को इसी के लिए गोलबंद करने का कठिन काम हाथ में लेना है।




लखानी (वरदान ग्रुप) के मजदूर सड़कों पर
पिछले कई सालों से संचित हो रहा लखानी वरदान ग्रुप के मजदूरों का अक्रोश स्वतः स्फूर्त तरीके से सड़ाकों पर फूट पड़ा। दिनांक 28/04/2012 को लखानी के प्लाट न. 265,144 और 131 के करीब 1000 मजदूर एक के बाद एक करीब दो महीनों से रूकी तनख्वाह 4-6 महीनों से रूके ओवर टाइम, ई.एस.आई., पी.एफ. में की जा रही धांधलियों के खिलाफ काम बंद कर सड़कों पर उतर आये। इससे सेक्टर 24 में यकायक अराजकता का माहौल कायम हो गया।
इंकलाबी मजदूर केन्द्र को इस स्वतः स्फूर्त उबाल का  तुरंत पता चल गया। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने तुरंत ही पूरे मामले में दखल देकर इस स्वतः स्फूर्त उबाल को नियंत्रित कर एक जुलूस की शक्ल दे दी। जुलूस हरियाणा के श्रम मंत्री शिवचरण लाल शर्मा के आवास पर पहुंचा और और आवास को घेरकर जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। मंत्री को मजबूर होकर मजदूरों के बीच आना पड़ा। विरोध प्रदर्शन से उनके होश गुम हो गये थे। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था । उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था।  उन्होंने  इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं से कहा कि इन्हें  यहां क्यों ले आये ? मैं इसमें क्या करूं ? काफी देर तक मंत्री जी के साथ झड़प जैसी स्थिति बनी रही। प्रदर्शन में शामिल महिला मजदूरों ने अपने निश्छल सवालों से मंत्री जी को निरूत्तर कर दिया और मंत्री जी अपने ही घर से भाग खड़े हुए।
इसके बाद प्रशासन ने मोर्चा संभाला। अंततः करीब 4 घंटे के घेराव के बाद एक मांग पत्र पर समझौते के साथ मंत्री के आवास से घेराव को उठा लिया गया। इस समझौते के अनुसार तय हुआ कि 30/04/2012 को  मद्रास से पी.डी.लखानी के आने के बाद 1 मई को एक त्रिपक्षीय वार्ता आयोजित की जायेगी जिसमें सभी समस्याओं का समाधान कर लिया जायेगा। समझौते में यह भी तय हुआ कि 30/04/2012 को सोमवार के दिन सभी मजदूर ड्यूटी पर जायेंगे।
30/04/2012 को जब सभी मजदूर ड्यूटी पर पहुंचे तो प्लांट न. 265 और 144 पर ताला लटका हुआ था। इस पर मजदूरों का अक्रोश एक बार फिर अराजक तरीके से सड़कों पर फूट पड़ा। मजदूरों ने सेक्टर 24 से निकलकर मथुरा रोड पर जाम लगा दिया। मजदूरों के बीच अनुशासन के अभाव में जाम ज्यादा देर नहीं लग चल सका और पुलिस-प्रशासन ने हलके बल-प्रयोग के साथ जाम खुलवा लिया। 
अगले दिन 1 मई मजदूर दिवस के दिन मजदूर पुनः इंकलाबी मजदूर केन्द्र के नेतृत्व में एकजुट हो गये। इस दिन प्रशासन द्वारा आयोजित त्रिपक्षीय वार्ता किसी नतीजे पर पहुंचे बिना समाप्त हो गयी जिसके विरोध में पुनः शहर में जुलूस निकालकर स्थानीय बी.के. चौक पर प्रदर्शन किया। 
त्रिपक्षीय वार्ता में उपश्रमायुक्त, पूंजीपतियों के एक ‘कामरेड’ एवं श्रम मंत्री ने मजदूर प्रतिनिधयों को लखानी के पक्ष पर सहमत कराने का भरसक प्रयास किया लेकिन वे सहमत नहीं हुए।
शासन-प्रशासन ने कहा कि लखानी 9 मई को मार्च की तनख्वाह और उसके 15 दिन बाद अप्रैल की तनख्वाह और ओवर टाइम का भुगतान कर देगा। बाकी विवादों पर उसके बाद बात की जायेगी। 8 मई तक दोनों प्लांट बंद रहेंगे। इस पर मजदूर प्रतिनिधि सहमत नहीं हुए। 
2 मई को मजदूर पूर्व घोषित कार्यक्रम के साथ फैक्टरी गेट पर इकटठा हुए। वहां सभा कर आंदोलन को आगे बढ़ाने की योजना बनाई गयी। इसके बाद पुनः शहर मं जुलूस प्रदर्शन कर फरीदाबाद के उपायुक्त को ज्ञापन सौंपा गया। उपायुक्त महोदय ने भी मंत्री जी के कोरे आशवासनों को ही अपने शब्दों को दोहराया। आंदोलन को आगे बढ़ाने के संकल्प और अगले दिन पुनः फैक्टरी गेट पर इकट्ठा होने की घोषणा कर मजदूरों ने उपायुक्त महोदय को अपना जवाब दे दिया। अगले दिन 3 मई को मजदूर पूर्व घोषित योजना के अनुसार फैक्टरी गेट पर इकटठा हुए और उन्होंने जबरदस्त नारेबाजी के साथ जोरदार सभा की। ततपश्चात लखानी वरदान गु्रप के मालिक पी.डी. लखानी का पुतला तैयार कर एक जुलूस बनाकर शहर के व्यस्त चैराहे बी.के. चौक पर पहुंचे और पुतले का दहन किया। इसके पश्चात मजदूर प्लाट न.131 के गेट पर पहुंचे। इस दौरान जुलूस से थोड़ा आगे चल रहे कार्यकर्ता पर कार में सवार होकर आये लखानी के पालतू गुंण्डो ने लाठी-डंडो से हमला कर दिया। इससे पहले कि बाकी साथी उन्हें देख पाते और उनके बचाव के लिए आते, वे कार में सवार में होकर भाग निकले। साथी को इस हमले में गम्भीर चोटें आयीं। उनके दायें हाथ में फ्रेकचर होने की सम्भावना है और कान व कान के ऊपर सिर में गम्भीर चोट पहुंची व सुनाई देने में दिक्कत आ रही है।
          इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने उस कार के नंबर सहित इस घटना की लिखित तहरीर मुजेसर  के थाने में   दी लेकिन पुलिस ने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है।

सत्यम आटो और  राकॅमैन के मजदूरों का जुझारू संघर्ष
          आजकल उत्तराखण्ड के मजदूरों ने भारी पैमाने पर अपने शोषण के खिलाफ आंदोलनों की झड़ी लगा रखी है। पिछले दिनों उत्तराखण्ड के कई कारखानों के मजदूरों ने अपने प्रबंधकों को कड़ी टक्कर दी है और अब हरिद्वार के सत्यम आटो और  राकॅमैन कारखाने के मजदूरों ने जबरदस्त जुझारू आंदोलन छेड़ रखा है। ये दोनों कम्पनियां हीरो मोटर्स की वेन्डर कंम्पनियां हैं।
        सत्यम आटो और  राकॅमैन कारखाने के मजदूरों ने पिछले दिनों यूनियन निर्माण की गतिविधियां तेज कीं। इससे बौखलाये प्रबन्धन ने दोनों ही कारखानो के नेतृत्वकारी  मजदूरों  को निलंबित करना और निकालना शुरू कर दिया। मार्च माह के मध्य में दोनों ही कारखानों के  मजदूरों  को प्रबंधन की कारगुजारियों से तंग आकर हड़ताल पर जाना पड़ा। जैसा कि आमतौर पर होता है मालिक मजदूर की लड़ाई में शासन -प्रशासन, कोर्ट -कचहरी सब मालिकान के पक्ष मे खडे हो गये । हड़ताल के दौरान फैक्टरी के अन्दर से मजदूरों को बाहर निकालना, फैक्टरी परिसर से  कई सौ मीटर दूर रहने का कोर्ट का स्टे आर्डर, शासन -प्रशासन द्वारा मजदूरों  को डरा -धमकाकर  हड़ताल  तोडनें को बाध्य करना, मजदूरो के धरना -प्रर्दशन के कार्यक्रमों को रोकने  की काशिश करना, धारा 144 लगा देना, मजदूर नेताओं को झूठे मारपीट के मुकदमों मे फंसाना फैक्टरी के आगे से मजदूरों के टैण्ट वगैरह हटाकर वहां जबरन जे सी बी से जमीन खोद डालना इन सारी कार्यवाहीयो से शासन -प्रसासन ने मालिको के प्रति बपनी पक्षधरता जाहिर की। 
       इन सब से परेशान होकर राकॅमैन  और सत्यम आटो के मजदूरों ने उत्तराखंड  की राजधानी देहरादून, जहां शासन -प्रसासन  के बड़े लोग मौजूद है वहां  पहुचकर के जूलूस निकालने की कोशिश की इस कोशिश को शासन-प्रसासन ने दबाया तो मजदूर वहीं  के परेड ग्राउन्ड में धरने पर बैठ गये। मजदूरें का उत्पीडन शासन-प्रसासन ने और बढाया तो  6 अप्रेल से 6 मजदूर भूख  हड़ताल  पर बैठ गये। इसी प्रक्रिया को आगे बढाते हुए  9 अप्रेल को  5  और मजदूर पुराने 6 मजदूरों के साथ भुख  हड़ताल  पर बैठ गये ।अब भूख हड़तालियों की संख्या  ग्यारह हो गयी थी। इन ग्यारह मजदूरो के साथी सैकड़ों मजदूरों ने अपने नारे व क्रांतिकारी गीतों से परेड ग्राउन्ड व पूरे  देहरादून में शासन-प्रसासन की नींद हराम कर दी। शासन-प्रसाशन  ने फिर अपनी पक्षधरता दिखाई और 15 अप्रेल को भूख  हड़ताल  व धरने पर बैठे मजदूरों पर लाठी चार्ज किया। बेदर्दी के साथ मजदूरों को पीटा और 326 लोगों को गिरफ्तार  कर शुद्वोवाला जेल में डाल दिया। 11 अनशनकारियों को दून  अस्पताल में भर्ती करा दिया । अस्पताल में ग्यारह अनशनकारियों ने किसी भी तरह का इलाज लेने से मना कर दिया और डाक्टरों को लिखकर दे दिया कि हमारे  साथ कोई जबरदस्ती की गई तो हम अस्पताल प्रशासन के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराएंगे । उधर जेल में 326 लोगो ने भूख  हड़ताल  का ऐलान कर दिया जेल प्रशासन के होश फाख्ता हो गये। पहले जेलर ने मजदूरों को डराने की कोशिश की पर जब बात  नहीं  बनी तो प्यार - दुलार से भी  मनाने की कोशिश की। पर मजदूरो नें साफ कह दिया कि जब तक हमारी मांगे  नहीं मानी जाती, हम भूख  हडताल पर रहेंगे । परेशान होकर जेल प्रशासन को इन 326 मजदूरो को 17 अप्रेल की  शाम बिना किसी जमानत के ही जेल से रिहा करना पड़ा। जेल से वापस आकर 326 व अन्य मजदूर फिर परेड ग्राउन्ड में जम गये। उधर अस्पताल में भूख  हड़ताल  जारी थी। अस्पताल में लगातार शासन-प्रसासन के लोग आ-आकर अनशनकारियो को समझाने- पटाने की कोशिश में लगे रहे। मगर  अनशनकारियो के जोश - खरोश को कम कर पाने में असफल रहे। इधर 16 अप्रेल को आंदोलनरत मजदूरों पर लाठीचार्ज और जेल में डालने के खिलाफ नेतृत्वकारी इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने कुछ जनपक्षधर सगंठनो और अन्य मजदूरो का साथ लेकर देहरादून प्रशासन का पुतला फूंककर अपना विरोध जताया और परेड ग्राउन्ड में  एक छोटी सभा कर सरकार की इस कार्यवाही की निंदा की। 18  अप्रेल  को जेल से आये 326 मजदूरों व अन्य मजदूरो तथा तमाम जनपक्षधर लोगो ने मिलकर सैकड़ों  की संख्या में देहरादून की सड़कों पर शानदार जुलूस  निकाला। 17 अप्रेल को जबकि  इसी  जुलूस  के लिये प्रशासन ने इजाजत नहीं दी।  जुलूस  से पहले प्रशासन अपने लाव-लश्कर के साथ परेड ग्राउन्ड पंहुच गया था। सैकडों की संख्या में हाथो मे लाठियां लिये पुलिस वाले, एम्बुलेन्स, फायर बिग्रेड की गाड़ी, पुलिस बस ने परेड ग्राउन्ड के मजदूरो में दहशत  कायम करने की कोशिश की। मगर मजदूरों  के  हौसले इतने बुलन्द थे की उन्हें वापस जाना पड़ा। पूरा देहरादून मजदूरो के नारो से गूँज उठा। जुलूस सचिवालय पर जाकर सभा में बदल गया। मजदूर वापस परेड ग्राउन्ड में जम गये। गौरतलब है कि इन सैकड़ों  मजदूरों का देहरादून में कोई ठिकाना नहीं है। ये परेड ग्राउन्ड में ही सामूहिक तौर  पर भोजन  पकाते- खाते और सोते है। 20-21 अप्रेल को अस्पताल में अनशनकारियों को कई पुलिस वालो ने पकड कर जबरन ड्रिप लगवा दी। मगर अनशनकारियों ने अब तक मुंह से कुछ नहीं खाया है जबरन ड्रिप् लगाने के विरोध में और  12 मजदूर 22 अप्रेल से परेड ग्राउन्ड में अनशन पर बैठे गये हैं।

आई एम पी सी एल मोहान का आन्दोलन : एक संक्षिप्त विवरण
   इण्डियन मेडिसन्स फार्मास्युटिकल कारपोरेशन लिमिटेड, अल्मोड़ा जिले में मोहान में स्थित है। यह केन्द्र सरकार का उपक्रम है तथा यह आयुर्वेदिक व यूनानी दवाइयां बनाती है। इस फैक्टरी में लगभग 100-110 मजदूर स्थायी व 250 मजदूर ठेके के अंतर्गत दिहाड़ी श्रमिक के रूप में काम करते थे जिनकी संख्या घटती-बढ़ती रहती है। 
सन् 2008 से लागू ठेका प्रथा के तहत यहां मजदूरों को रखना शुरू हुआ तथा सितम्बर 2011 तक मजदूरों की ई.एस.आई., बोनस, पी.एफ. का 61 लाख रुपया मैनेजमेण्ट व ठेकेदार ने मिलकर हड़प लिया। जब मजदूरों ने अपने पैसे का हिसाब मांगा तो मैनेजमेण्ट व ठेकेदार ने 29 मजदूरों को बाहर निकाल दिया। आक्रोशित मजदूरों ने हड़ताल शुरू कर दी तथा मैनेजमेण्ट के सामने मांग रखी कि वह फैक्टरी से ठेका प्रथा खत्म कर मजदूरों के पी.एफ., बोनस व  ई.एस.आई. का हिसाब मजदूरों को दे। आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने मजदूरों को संगठित कर उनको ठेका मजदूर कल्याण समिति  से संबद्ध कर लिया । 
      6 दिन चली इस हड़ताल में मैनेजमेण्ट को मजदूरों के सामने घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा और 6 सितम्बर को एक समझौता हुआ जिसमें मैनेजमेण्ट ने ठेका प्रथा समाप्त करने का प्रस्ताव बोर्ड की बैठक में भेजने की बात कही तथा मजदूरों के ई.एस.आई., पी.एफ.,बोनस का 61 लाख का हिसाब ठेकेदार से लेकर मजदूरों को देने की बात स्वीकार की। 
  परंतु मैनेजमेण्ट इस समझौते के द्वारा अपने लिए कुछ समय हासिल करना चाहता था। इस आन्दोलन में चूंकि महिला श्रमिकों ने अच्छी खासी भूमिका निभायी थी अतः मैनेजमेण्ट ने महिला श्रमिकों को काम से निकालने की साजिश रची तथा 24 सितम्बर को उसने काम कम होने का बहाना बनाते हुए सभी महिलाओं को बाहर निकाल दिया। श्रमिकों ने महिला व पुरुषों के भेद को मिटाते हुए फिर हड़ताल शुरू कर दी। 
परंतु इस बार मैनेजमेण्ट ने पूरी तैयारी कर रखी थी। मजदूरों का एक प्रतिनिधिमण्डल एस.डी.एम.सल्ट (अल्मोड़ा), लेबर डिपार्टमेंट, हल्द्वानी व दिल्ली में कम्पनी के उच्चाधिकारियों से मिला परंतु कहीं से उनको सकारात्मक परिणाम हासिल नहीं हुए। 18 अक्टूबर को दिल्ली में आयुष विभाग पर मजदूरों ने प्रदर्शन कर डारयरेक्टर को ज्ञापन दिया। डायरेक्टर ने कार्यवाही करने का आश्वासन दिया। इसके बाद मजदूर केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत से मिले। उन्होंने भी आश्वासन दिया। परंतु जमीनी स्तर पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। इधर मैनेजमेण्ट आन्दोलन को तोड़ने के लिए हर प्रयास कर रहा था। उसने स्थानीय व बाहरी मजदूरों का भेद डालकर मजदूरों की एकता को तोड़ने का प्रयास किया। परंतु इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने मजदूरों को इन सभी साजिशों से लड़ने के लिए राजनीतिक रूप से शिक्षित किया। 
अंत में सब जगह मिलने के पश्चात मजदूरों ने फैक्टरी गेट पर टैन्ट लगाकर क्रमिक अनशन प्रारम्भ कर दिया। इस बीच मैनेजमेण्ट ने नये मजदूरों की भर्ती शुरू कर दी। मजदूरों ने आक्रोशित होकर आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। अंत में मजदूरों के 47 दिन चले लम्बे संघर्ष के सामने मैनेजमेण्ट को पुनः हार माननी पड़ी। तथा समझौते के अनुसार 31 दिसम्बर तक सभी मजदूरों को काम पर लेने की बात स्वीकार की तथा पुराने समझौते को लागू करने का आश्वासन दिया।
        परंतु मैनेजमेण्ट ने ठेकेदार से न तो कोई वसूली की और न मजदूरों को उनके 61 लाख का हिसाब दिया। इसके बदले उसने पुनः ठेकेदारी प्रथा को जारी रखने के लिए टेण्डर निकालने की तिथि 26 मार्च पुनः घोषित कर दी। मजदूरों के विरोध के कारण उसने टेण्डर प्रक्रिया की तिथि 11 अप्रैल घोषित कर दी। 31 मार्च को ब्रेक  देने के पश्चात उसने पुनः उनकी अनुपस्थिति में ठेका प्रथा लागू करने की चाल चली थी। परंतु मजदूरों ने पहले 7 अप्रैल को सांकेतिक प्रदर्शन कर विरोध प्रकट किया और 9 अप्रैल को उन्होंने टेण्डर प्रक्रिया को निरस्त करने के लिए क्रमिक अनशन प्रारम्भ कर दिया। मैनेजमेण्ट ने टेण्डर निकालने की तिथि अब 17 अप्रैल कर दी। मजदूर भी अपनी ताकत को समेटकर ठेका प्रथा को पूर्णतः समाप्त करने की तैयारी कर रहे हैं। 

गुडगांव मजदूर विस्फोट संगठित अनुशासित संघर्ष  की जरूरत
         पिछले एक सप्ताह के दौरान गुडगांव में मजदूरों का अक्रोश  दो बार भीषण तरीके से फूट चुका है। पहली घटना 19 मार्च को ओरियंट फैक्टरी के मजदूरों ने फैक्टरी के ठेकेदारों पर हमला कर उन्हें खदेड़ने ने  के बाद पुलिस की गाडियों  के  हवाले किया। मजदूरों का गुस्सा तब फूटा जब एक ठेकेदार ने एक मजदूर को कैंची मार दी जो उसके हाथ के आर पार हो गयी। दूसरी घटना में 24 मार्च को एक इमारत से एक मजदूर गिरने के बाद  मजदूर आकोशित  हो गये और कुछ वाहनों में आग लगा दी। दोनों ही मामलों में पुलिस ने दर्जनों मजदूरों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। वह मजदूरों को उत्पीडित कर रही है और उनमें दहशत कायम करने का प्रयास का रही है है।
       गुडगांव की ये घटनायें संयोग मात्र नहीं हैं। न ही यह संयोगमात्र है कि ये दोनों घटनाऐं कपड़ा  और निर्माण क्षेत्र  में हुयी। ये दोंनों ही क्षेत्र आज मजदूरों के भयंकर शोषण-उत्पीडन के अडडे हैं।
       गुडगांव पिछले पांच-छः सालों से कई फैक्टरियों में शानदार मजदूर संघर्षों का गवाह रहा हैं। ये संघर्ष संगठित और अनुशासित रहे हैं । इनमें से कुछ में आंशिक जीत हुयी है कुछ में हार। लेकिन इन्होंने गुडगांव के मजदूरों सहित देश भर के मजदूरों के लिए प्रेरणास्रोत का काम किया है।
        ऐसे में इन दोनों घटनाओं में मजदूरों का रूख मजदूर संघर्षों को स्वस्थ तरीके से आगे बढाने वाला नहीं कहा जा सकता हालाकि यह एकदम  स्पष्ट  है कि इनके लिए पूरी तरह से पूजीपतियों द्वारा भयंकर शोषण-उत्पीडन तथा सरकारी तंत्र जिसमें पुलिस भी शामिल है जिम्मेदार है, पूरी नंगई से पूजीपतियों को शह दे रहा है। मजदूरों के संघर्ष का यह रास्ता नहीं हो सकता। मजदूरों के सघर्ष का वही संगठित और अनुशासित रास्ता हो सकता है जो अभी हाल में मारुति-सुजुकी के मजदूरों ने प्रदर्शित किया था।
मजदूर वर्ग को इंकलाब तथा ट्रेड यूनियन संघर्षों के लिए संगठित करने वाले इंकलाबी संगठनों का दायित्व इस तरह की घटनाओं के मददेनजर और बढ़ जाता है। मजदूर वर्ग की आज काम और जीवन की भीषण परिस्थितियों को देखते हुए इस तरह के विस्फोट होगें ही। भविष्य में और बड़े पैमाने पर हो सकते हैं। विस्फोटक स्थितियों में आगे बढ़कर मोर्चा संभालना तथा इस तरह के विस्फोट के बदले संघर्ष को सही संगठित और अनुशासित रूप देना होगा। इसी के साथ जहां कहीं ऐसा हो जाय वहां राज्य द्वारा मजदूरों के दमन के खिलाफ प्रतिरोध खड़ा करना भी अहम कार्य बन जाता है। यह स्पष्ट है कि मजदूर संघर्षों के नये उभार का रास्ता ऐसे ही टेढ़े-मेढ़े रास्तों से प्रशस्त होगा।

Maruti Suzuki  Workers' strike

      Workers of Maruti Suzuki waged a valiant struggle against oppressive policies and practice of management and forced it to retreat. The struggle continued for about six months from May to October 2011. Inqlabi  Mazdoor Kendra  wholeheartedly supported this struggle.

       Now Inqlabi  Mazdoor Kendra has issued a pamphlet on this strike in which it has tried to sum up the struggle. We hope that the pamphlet entitled मारुति सुजुकी के मजदूरों का संघर्ष : सबक और चुनौतियां will be useful to all struggling workers of the country.   


काशीपुर सूर्या रोशनी लिमिटेड के मजदूरों का संघर्ष जारी है 
      सूर्या रोशनी लिमिटेड काशीपुर उधमसिंह नगर उत्तराखण्ड के मजदूर 8 अगस्त 2011 से प्रबंधन द्वारा गैरकानूनी मिल बन्दी के खिलाफ संघर्षरत हैं। पहले शहर के पार्क में धरना प्रदर्शन फिर 16 अगस्त से एसडीएम कार्यालय काशीपुर में अनिश्चितकालीन क्रमिक अनशन चलाया गया। प्रबंधन द्वारा बगैर किसी सूचना व राज्य सरकार की सहमति के यह कृत्य कर 660 स्थायी एवं 2700 ठेकेदार के मजदूरों को भूखों मरने हेतु सड़क पर पटक दिया। फैक्टरी में 1997 से यूनियन मौजूद है लेकिन यूनियन किसी भी संघर्ष में लगने की जगह मैनेजमेण्ट की जी हजूरी पर कार्य करती रही थी।
       यूनियन का मैनेजमेण्ट से सांठगांठ का यह रूप पूरे संघर्ष में भी दिखायी दिया । इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता शुरू से ही आन्दोलन में रहे और मजदूरों को यूनियन की मैनेजमेण्ट से सांठगांठ व यूनियन की संघर्ष के प्रति नकारात्मक रुख के बारे में बताती रही लेकिन मजदूर अपनी पिछड़ी चेतना के चलते कभी भी पहलकदमी न ले सके। और यूनियन नेता आन्दोलन को घसीटकर समय व्यतीत करते रहे। 15 सितम्बर 2011 को इंकलाबी मजदूर केन्द्र के सुझाव पर आन्दोलन के समर्थन में एक मजदूर महापंचायत बुलाई गयी। 16 सितम्बर को डी.एम. कार्यालय एवं ए.एल.सी. कार्यालय का घेराव कर फैक्टरी प्रबंधन को मिलबंदी के लिए कारण बताओ नोटिस जारी करवाया गया। वार्ताओं का दौर ए.एल.सी. एवं डी.एल.सी. कार्यालय में चलती रही और प्रबंधक इन मजदूरों को लेकर फैक्टरी चालू न करने के अड़ियल  रुख अपनाये रहा। 20 सितम्बर 2011 को सचिवालय देहरादून में विशाल प्रदर्शन किया गया। भाजपा सरकार के मुख्यमंत्रियों निशंक, खण्डूरी, श्रममंत्रियों, प्रकाश पंत, गोविन्द सिंह  बिष्ट व अनेकों अधिकारियों से मिलने के बावजूद मजदूरों को न्याय नहीं मिला। 
      मजदूरों के संघर्ष के बदौलत श्रम विभाग ने फैक्टरी प्रबंधन गैरकानूनी मिलबंदी का दोषी पाया व 14(ठ) की कार्यवाही कर प्रबंधन के खिलाफ सी.जी.एम. कोर्ट रुद्रपुर में आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया। बावजूद इसके मजदूरों को 6(B)(6) के तहत मिलबंदी के दौरान का वेतन भत्ता दिलाने में श्रम विभाग आनाकानी कर रहा है। 
3 दिसम्बर से 4 जनवरी 2012 तक अलग-अलग स्थानों पर आमरण अनशन चलता रहा जिसमें पुलिस द्वारा चुनावी आचार संहिता के बहाने अनशनकारियों के साथ मारपीट, जबरन अस्पताल में भर्ती करना आदि चला। इसी बीच यूनियन महामंत्री ने गद्दारी कर अपना हिसाब ले लिया। 4 जनवरी को मजदूरों ने आम सभा कर शेष बचे यूनियन प्रतिनिधियों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें यूनियन के नेतृत्व से हटा दिया व उनके स्थान पर 5 मजदूरों की कमेटी चुन ली जो अगले चुनाव तक यूनियन के सभी बैधानिक कामों को देखेगी। 5 जनवरी को एक तरफ हटाये गये नेताओं ने मैनेजमेण्ट व प्रशासन से सांठ-गांठ कर आन्दोलन समाप्ति हेतु समझौता कर लिया। मजदूरों ने इस बात का पता लगते ही श्रम विभाग में आपत्ति दर्ज की। दूसरी तरफ प्रशासन ने आचार संहिता का भय दिखाकर अनशन स्थल का टैन्ट उखाड़ दिया व मजदूरों को कहीं भी प्रदर्शन करने की अनुमति देने से मना कर दिया। तब इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने मजदूरों को आन्दोलन को बनाये रखने हेतु विधानसभा चुनाव में एक मजदूर को खड़ा करने की सलाह दी और एक मजदूर को काशीपुर सीट से चुनाव में खड़ा किया गया। मजदूर चुनावी कार्यालय पर एकत्र होकर अपने आन्दोलन की रणनीति बनाते हुए चुनावी प्रचार में निकलते, जनता से आर्थिक सहयोग लेते व शासन प्रशासन के गठजोड़ का भण्डाफोड करते। चुनाव में मजदूर प्रत्याशी को 1074 वोट हासिल हुए। 
आन्दोलन के लम्बा चलने व नेताओं का मैनेजमेण्ट से सांठगांठ के चलते आन्दोलन को सक्रिय ढंग से चलाने के स्थान पर उदासीनता व आर्थिक तंगी एवं मानसिक यंत्रणा के चलते एक मजदूर की दिमाग की नस फटने से मौत हो गयी एवं करीब 500 मजदूरों ने फैक्टरी से अपना हिसाब ले लिया। 

मालिक के गुण्डों द्वारा मार-पिटाई
         मैकवेल टूल के मजदूरों ने मालिक के गुण्डों का मुकाबला किया। मैकवेल टूल के मजदूरों ने अपने पांच-छः साल की नौकरी पर वापसी के लिये कानूनों के बदले आन्दोलन का रास्ता चुना। 28 दिसम्बर से मैकवेल टूल के गेट पर मजदूरों और उनके परिवार ने धरना शुरू किया। दूसरे दिन मालिक ने गुण्डों के दम पर उनकों वहां से खदेड़ना चाहा लेकिन निहत्थे मजदूरों ने लाठी-डंडों से लैस गुण्डों का मुकाबला किया। धरने पर बैठे मजदूरों पर गुण्डों ने अचानक हमला कर दिया। एक मजदूर को सिर पर, एक को हाथ में गम्भीर चोट आई। लेकिन मजदूरों ने धरना स्थल को नहीं छोड़ा। तब पुलिस को आकर हस्तछेप करना पड़ा और मालिक के गुण्डों को गिरफ्तार करना पड़ा।
           मैकवेल टूल एण्ड गेजेज प्रा.लि. संजय कालोनी सैक्टर- 23 फरीदाबाद में स्थित है। फैक्ट्री में मारूती, हौण्डा के स्पेयर पार्टस बनाने का काम होता है। इसमें अलग अलग शापों में बांटकर काम किया जाता है। इन शापों में मालिक के अपने पाले पोसे सुपरवाईजर, फोरमैन काम करवाते हैं जिनका मजदूरों पर काफी दब-दबा रहता है। मालिक दो भाई हैं जिनका कुछ साल पहले बंटवारा हो गया है। मालिक ने वैबटेक नाम से एक बड़ी फैक्ट्री सैक्टर 25 और एक सैक्टर 24 में लगाई है। दूसरे भाई ने एस.डी.इन्जीनियर्स नाम से सैक्टर 24 और 25 में कई कम्पनियां लगाई हैं। इनमें मजदूरों को न्यून्तम कानूनी अधिकार भी नहीं हैं। मजदूरों की संख्या कम रखकर उनसे चैबीस से अड़तालिस घंटे तक काम करवाया जाता है। ओवर टाइम सिंगल दिया जाता है। वह भी कई महीनों तक रोक कर रखा जाता है।
           मालिक के श्रम विभाग में वकील नियुक्त रहते हैं जहां सारी कानूनी अड़चनों से निजात मिल जाती है। छः महीने पहले निकाले गये मजदूर का फैसला आज तक नहीं हो पाया है।
           अभी तीन मजदूरों ने ठंड और थकान की वजह से एक दिन ओवर टाइम में रुकने से मना कर दिया। मालिक ने उनका गेट बन्द कर दिया। अपने एक पुराने साथी का छः माह से मामला लटका देख मजदूरों ने कानून की बजाय आन्दोलन का रास्ता चुना। पुराने साथी सहित चारों मजदूर अपने पत्नी-बच्चों के साथ गेट पर धरना देकर बैठ गये। यह इंकलाबी मजदूर केन्द्र के नेतृत्व में हो रहा था। लगातार दो दिन का धरना चलने से मालिक के हाथ पांव फूलने लगे। अन्य मजदूर भी काम करते हुए नैतिक समर्थक बन गये। मालिक का सब्र टूट गया और उसने गुण्डों से हमला करवाकर मजदूरों को भगाना चाहा। मजदूर डटे रहे और अन्ततः मालिक को पचास-पचास हजार रुपये और परमानैन्ट काम के आश्वासन का चारा फेंकना पड़ा जिसे मजदूरों ने ठुकरा दिया। मजदूरों ने समझौते के बजाय पुलिस कार्यवाही की बात की और अपनी मांग पर अड़े रहे।
         देर शाम तक अन्य फैक्ट्री के मजदूर भी पुलिस चौकी पर एकत्र हुए और इस घटना के विरोध में एक जलूस निकाला और फैक्ट्री गेट पर एक सभा कर श्रम मन्त्री को ज्ञापन सौंपा।

मारुति सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में जुलूस  व श्रम मत्री को ज्ञापन
       मारुति सुजुकी, मानेसर के संघर्षरत मजदूरों के समथर्न में फरीदाबाद के मजदूरों के द्वारा एकजुटता प्रदर्शित करते हुए औद्योगिक क्षेत्र, सेक्टर-24 व शहर के विभिन्न इलाकों से होते हुए एक जुजूस निकाला गया तथा हरियाणा के श्रम मंत्री को उनके आवास पर जाकर ज्ञापर सौंपा। जुलूस में इंकलाबी मजदूर केन्द्र,वीनस इंडस्टरीयल कार्पोरेशन वर्कर्स यूनियन के संयुक्त तत्वाधान में निकाला गया। जुलूस में वीनस,रीवा इडस्टरीज, रेक्समैक्स, प्रसीजन स्टैपिंग आदि आधा दर्जन कारखानों के मजदूर शामिल थे।
        मजदूरों ने जुलूस में मारुति प्रबंधन के तानाशाहीपूर्ण रवैये,पूंजीपतियों व सरकार के गठजोड़ के खिलाफ रोष व्यक्त करते हुए तथा मारुति सुजुकी के मजदूरों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए गगनभेदी नारे लगाये। मंत्री महोदय से मजदूरों ने मारुति विवाद के निपाटारे के संबंध में सरकार की भूमिका पर सवाल जवाब किये। अंत में मंत्री महोदय ने मारुति सुजुकी के प्रतिधिमंडल के साथ मिलकर समस्या के समाधान कराने में सहयोग करने एवं सघर्षरत एवं संघर्षरत मजदूरों को सम्मानजनक तरीके से बिना छटनी के कारखाने के अन्दर करवाने का आश्वासन दिया। इस बीच इंकलाबी मजदूर केन्द्र के द्वारा फरीदाबाद औद्योगिक क्षेत्र के विभिन्न चौकों व औद्योगिक इलाकों में मारुति सुजुकी के मजदूरों के समर्थन में मजदूरों की सभायें की तथा मारुति सुजुकी के साथ मजदूर वर्ग की व्यापक एकजुटता प्रदर्शित करके मारुति सुजुकी के मजदूरों के आन्दोलन को तन मन धन से सहयोग करने की अपील की।

मारुति सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों से एकता कायम करो !        
        मारुति सुजुकी के मजदूरों के आन्दोलन को नैतिक,भौतिक व आर्थिक समर्थन व सहयोग करो !
जैसा कि आप सभी को विदित होगा कि मानेसर (गुड़गांव,हरियाणा)स्थित मारुति सुजुकी के मजदूर अपनी यूनियन गठन हेतु तथा प्रबंधन के उत्पीड़नात्मक रवैये के प्रतिकार हेतु पिछले तीन माह से बार-बार संघर्षरत रहे हैं। यूनियन गठन के अपने जनवादी अधिकार पर प्रबंधन द्वारा कुठाराघात करने व दमनात्मक रुख अपनाने के खिलाफ जून माह में 13 दिन तक संघर्षरत रहे। तत्पश्चात प्रबंधक वर्ग द्वारा गैरकानूनी व तानाशाही व्यवहार करते हुए अपनी मनमानी शर्तो को मनवाने के लिए एक ‘अंडरटेकिंग’ पर हस्ताक्षर करने हेतु मजदूरों को बाध्य किया गया। प्रबंधन के इस तानाशाहीपूर्ण कृत्य को शासन का सहयोग प्राप्त था।
        मजदूरों ने इस गुलामी के बंधक पत्र पर जब हस्ताक्षर करने से मना किया तो शासन प्रशासन के सहयोग से प्रबंधकों ने गैरकानूनी तालाबंदी कर दी। इस गैरकानूनी तालाबंदी के खिलाफ मजदूर तीन सप्ताह से अधिक समय तक आंदोलनरत रहे। श्रमिकों के नेतृत्व सहित भारी संख्या में सक्रिय मजदूरों को प्रबंधन ने इस दौरान निलंबित व निष्कासित कर दिया। इस बार समझौता होने के बाद फिर प्रबंधन ने मजदूरो पर हमला बोलकर बदले की भावना से कई नेतृत्वकारी मजदूरों को बिना कारण व उकसावे के कारखाने से बाहर कर दिया। मारुति सुजुकी के मजदूर फिर एक बार फिर अपने स्वाभिमान व जनवादी अधिकारों की खातिर संघर्षरत हैं।
        मारुति सुजुकी का आंदोलन महज उसमें कार्यरत मजदूरों का आंदोलन नहीं है। यह पूंजीपतियों व शासक वर्गों द्वारा मजदूरों को पूरी तरह अधिकारविहीनता की स्थिति में धकेलकर पूरी तरह गुलामी की स्थिति में पहुंचाने की नीयत के खिलाफ मजदूरों का प्रतिरोध है।
      उदारीकरण-वैश्वीकरण के दौर में मारुति सुजुकी के मजदूरों का आंदोलन पूंजीपतियों व सरकार के श्रम विरोधी अभियान के खिलाफ एक सशक्त प्रतिरोध है।
        पूंजीपति वर्ग और सरकार मारुति सुजुकी के मजदूरों के हौसलों को पस्त करना चाहते हैं। व उनके आंदोलन को तोड़ने-कुचलने के लिए दमन से लेकर छल-फरेब सभी का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में मारुति सुजुकी के मजदूरों के आंदोलन को मजदूर व न्यायप्रिय जनता के व्यापक समर्थन व सहयोग की जरूरत है।
इंकलाबी मजदूर केन्द्र सभी टरेड यूनियनों, मजदूर संगठनों व न्यायप्रिय जनता से अपील करता है कि मारुति सुजुकि के संघर्षरत मजदूरों को नैतिक,भौतिक व आर्थिक मदद पहुंचायें। चूंकि यह संघर्ष काफी लंबी अवधि से चल रही है जिसके चलते मजदूरों की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गयी है अतः अधिक मात्रा में आर्थिक सहयोग भेजें व जनता के व्यापक हिस्सों में आंदोलन के समर्थन में आर्थिक मदद जुटायें। हमारे द्वारा की गयी यह मदद मजदूरों के न्यायपूर्ण संघर्ष को आगे बढ़ाने में मददगार होगी।

अमेरिका के मजदूरों का क्रांतिकारी अभिनंदन
        कल्पना करें कि किसी प्रदेश के विधान सभा भवन पर मजदूर, सरकारी कर्मचारी और छात्र नौजवान कब्जा कर लें और सरकार दो-तीन हफ्तों तक उन्हें वहां से हटा न पाए।भारत में यह थोड़ा अकल्पनीय लगता है, लेकिन अमेरिका में मजदूरों ने यह कर दिखाया है। वहां विस्कांसिन प्रांत की राजधानी मैडिसन में मजदूर डटे हुए हैं। और सरकार उन्हें वहां से खदेड़ नहीं पा रही है।
       यह सब तब शुरु हुआ जब विस्कांसिन के गवर्नर स्काट वाकर ने सरकारी कर्मचारियों की यूनियन तोड़ने का फैसला किया। उसने एक नया विधेयक प्रस्तावित किया जिसका कुल मिलाकर यह अर्थ निकलता है कि बिना औपचारिक तौर पर प्रतिबंधित किए भी यूनियनें समाप्त हो जाएंगी। उसने बहुत चालाकी के साथ फायर ब्रिगेड और पुलिस की यूनियनों को इससे अलग रखा। उसका निशाना खास तौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी यूनियनें थीं। गवर्नर वाकर का यह कदम अमेरिका में कोई नायाब नहीं है। दसियों हजार अरब डालर साम्राज्यवादी पूंजीपतियों पर लुटाने के बाद अमेरिका की केन्द्रीय सरकार से लेकर प्रांतीय सरकारें तक वित्तीय संकट से उबरने के नाम पर सरकारी बजट में कटौती कर रही हैं और इसका सारा बोझ मजदूरों कर्मचारियों, गरीब लोगों पर डाल रही हैं। अमेरिकी सरकार वही कर रही है जो यूनान की सरकार।
      अमेरिका की सरकारों के खिलाफ मजदूरों-कर्मचारियों और छात्रों के बड़े  आंदोलन फूट रहे हैं। ओहियो प्रांत में दसियों हजार मजदूरों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किया। विस्कोसिन का आंदोलन इनमें सबसे बड़ा है। इसमें एक लाख तक के प्रदर्शन हो चुके हैं और वे अभी जारी हैं।
      इस आंदोलन में अध्यापक, डाक्टर, नर्स, सफाई कर्मचारी सभी शामिल हैं। इसमें छात्र भी आ मिले हैं। हालांकि गवर्नर का विधेयक सरकारी विभागों की यूनियनों के खिलाफ है लेकिन इस आंदोलन में निजी क्षेत्र के मजदूर भी शामिल हो रहे हैं। भारत की तरह अमेरिका में सरकारी कर्मचारी ज्यादा यूनियनबद्ध हैं (करीब 35 प्रतिशत ) जबकि निजी क्षेत्र के मजदूर कम (करीब 9 प्रतिशत)। निजी क्षेत्र के मजदूर जानते हैं कि सरकारी क्षेत्र की यूनियनों के कमजोर होने का सीधा असर उनपर भी पड़ेगा।
      विस्कोंसिन का यह आंदोलन उस सबके खिलाफ है जो साम्राज्यवादी पूंजीपति वर्ग पिछले तीन-चार दशक से कर रहा है। इसकी सबसे तीखी बानगी वर्तमान संकट में मिली जब हजारों अरब डालर खर्च करके सरकार ने विशाल पैमाने की लूट करने वाले पूंजीपतियों को बचाया और मजदूर को बेघर होकर भूखों मरने के लिए छोड़ दिया। अभी वहां संकट जारी है लेकिन पूंजीपति बेतहाशा मुनाफा कमा रहे हैं जबकि मजदूर भयंकर बेरोजगारी से जूझ रहे हैं।
      इस आंदोलन का नेतृत्व वे यूनियनें कर रही हैं जो ए एफ एल सी आई ओ से जुड़ी हैं । और यही इस आंदोलन की सबसे बड़ी कमजोरी है। अभी से ही यूनियन नेतृत्व यह बात करने में लगा है कि पीछे हटकर समझौता कर लिया जाए या फिर इस समय लड़ाई को बंद कर अगले चुनाव की तैयारी की जाय जिससे अपनी पंसद का गवर्नर चुनवा कर उससे विधेयक को निरस्त करवाया जा सके। इनका सुझाव डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर है जिसके विधायक विधेयक पर मतदान से बचने के लिए प्रदेश छोड़कर भाग गए हैं। वास्तव में यह आंदोलन ए एफ एल सी आई ओ नेतृत्व के कारण नहीं बल्कि उसके बावजूद हो रहा है। यह आंदोलन दरअसल आम कर्मचारियों और मजदूरों की लड़ाकू भावना के कारण हो रहा है जो पूंजीपति वर्ग की लूट और उसकी सरकार की वर्तमान नीतियों से बेहद आक्रोशित हैं। विधान सभा भवन पर कब्जा केंद्रीय यूनियन के नेतृत्व की चाहत के कारण नहीं हुआ। यह आम मजदूरों-कर्मचारियों-छात्रों की पहलकदमी थी।
      15-16 फरवरी से शुरु इस आंदोलन में लाखों की संख्या में भागीदारी के बावजूद गवर्नर वाकर अपनी जगह पर अड़ा हुआ है। लेकिन मजदूर-कर्मचारी और छात्र भी दृढ़ता से जमे हुए हैं। इस आंदोलन को पूरे देश का समर्थन प्राप्त हो रहा है और पूरे देश से ही मजदूर-कर्मचारी छात्र इसमें शामिल होने के लिए आ रहे हैं। आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए इस समय आम हड़ताल की चर्चा जोर पकड़ रही है। आम हड़ताल के चरित्र और उसकी उपयोगिता पर बहस हो रही है।1910,20 और 30 के दशक के सबक याद किए जा रहे हैं।
      यह एक शानदार शुरुआत है। इसके साथ अमेरिका के मजदूर भी अब यूनान, इटली और फ्रांस के मजदूरों की पातों में शामिल हो रहे हैं। किन्हीं मामलों में तो आगे भी निकल रहे हैं। अरब जनता के विद्रोह के बाद अब अमेरिकी मजदूरों की यह उठान निश्चित तौर पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। लेकिन ठीक इसी कारण दुनिया भर के मजदूर इसका क्रांतिकारी अभिनंदन करते हैं।

एक्सपोर्ट हाउस : सस्ते श्रम की लूट के अड्डे     
       जब बस में भीड़ बहुत बढ़ जाती है। तो हर कोई खुद को ऐसी दशा में लाना चाहता है कि वह लटका महसूस करने के बजाय खड़ा महसूस कर सके। हर कोई तब यह सोचता है कि जिन हाथों के सहारे वह खड़ा है वो ऐंठ न जायें। उसके पंजों पर किसी की एड़ी न टिके। किसी की पीठ उसकी पीठ को न धकेले। बल्कि सही बात तो यह है कि वह सोचता नहीं है। खुद को बचाने के लिए थोड़ा सा सुकून हासिल करने के लिए सक्रिय हो उठता है। ऐसे में वह चाहे&अनचाहे अपना बोझ किसी दूसरे पर डाल देता है।
      कुछ ऐसी ही होती है एक्सपोर्ट की नौकरी। बिलकुल खचाखच भरी बस के सफर जैसी। ऐसे सफर में आप बाहर की हवा को महसूस नहीं कर सकते। आप किसी दूसरे यात्री को देखकर उसके बारे में सोच नहीं सकते। सफर के दौरान बस आप सफर के खात्मे का इंतजार कर रहे होते हैं और बस में अपनी जगह बनाने की जद्दोजहद में लगे होते हैं। एक्सपोर्ट फैक्टरी का मजदूर भी बस नौकरी कर रहा होता है। अपनी नौकरी को बचाने के लिए जूझते हुए और शाम की छुट्टी का इंतजार करते हुए। बल्कि कुछ महीनों में ही यह नौकरी और जिन्दगी ही एक अंतहीन जद्दोजहद का सफर बन जाती है जिसके समापन के बारे में सोचने की फुर्सत और ऊर्जा नहीं बचती।
        पर कभी-कभी अचानक कुछ ऐसा हो जाता है जो सबको नहीं भी तो बहुतों को झकझोर जाता है और सोचने पर मजबूर कर देता है। रमेश फ़रीदाबाद में एक्स पोर्ट का एक वर्कर है। उसका काम सिलाई विभाग में है। सिलाई विभाग] कटिंग विभाग फिनिशिंग विभाग] सैम्पलिंग विभाग] वाषिंग विभाग] एम्ब्रायडरी] कढ़ाई विभाग ये तमाम विभाग एक्सपोर्ट कम्पनियों में होते हैं। किसी एक विभाग के कर्मचारी को दूसरे विभाग के बारे में जानने में महीनों लग जाते हैं] क्योंकि फ़ैक्टरी में घुसते ही अपने विभाग में और अपने विभाग में अपनी जगह पर यानि अपनी मशीन या अपनी मेज पर पहुँच जाना होता है और जुट जाना होता है अपने काम पर-बिलकुल खचाखच भरी बस के सफर की तरह नौकरी पर लटकती तलवार से अपनी गर्दन बचाने के लिए।
        खचाखच भरी बस के सफर में कोई पड़ोसी के बच्चे से यह नहीं पूछता कि बेटा आपका क्या नाम है] कौन सी क्लास में पढ़ते हो आप] बल्कि अक्सर ही यात्रियों के बीच कहासुनी हो जाती है। सिलाई विभाग में एक बड़े हॉल में लाइन से सिलाई मशीनें लगी होती हैं और बीच-बीच में मेजें लगी होती हैं। मशीनों पर कारीगर बैठे होते हैं और मेजों पर हेल्पर आदि खड़े रहते हैं। कपड़ा एक तरफ से कई टुकड़ों के रूप में प्रवेश करता हैं और इन लाइनों में तेजी से गुजरता हुआ अपनी कीमत बढ़ा चुका होता हैA वह लत्ते के चन्द टुकड़ों से एक समूचे नए फैशनेबुल कपड़े में बदल चुका होता है जिसे देखकर उसे तैयार करने वाली मर्दाना और जनाना आँखें भी ललचा जाती हैं। मशीनों मेजों की इन लाइनों के बीच कुछ तेज-तर्रार पढ़े-लिखे व्यक्ति भागते-फिरते नजर आते हैं जो मशीनों के बीच बैठी या खड़ी मशीनों (कारीगरों] हेल्परों के कान उमेठते रहते हैं। ये लगातार भागते हैं। कारीगरों के बीच में स्थित मशीनों के कान उमेठने के लिए भी कोई आता है। वह मशीन मैकेनिक होता है पर वह केवल जरूरत पड़ने पर ही आता है] जब मशीन में खराबी आ जाती है । पर लगातार भागते- दौड़ते] चीखते- चिल्लाते लोग हमेशा सक्रिय रहते हैं। ये सुपरवाइजर कहलाते हैं। दुर्भाग्यवश इन्हें भी मास्टर जी कहा जाता है जो कि वास्तव में किसी कुशल अनुभवी कारीगर के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है।
        सुपरवाइजरों की निगाहें कारीगरों पर कम कपड़े पर ज्यादा होती हैं] जहां कपड़ा इकट्ठा हुआ उस कारीगर की शामत। हर कारीगर कपड़े पर एक  निष्चित कार्यवाही कर रहा होता है] एक मशीनों से सिलाई कर रहा होता है। वह यदि कॉलर की प्राथमिक या अंतिम सिलाई कर रहा है तो सुबह से शाम तक वह हजार बार यही कार्यवाही दुहराता जाता है और इस प्रकार हजार तैयार होने वाले कपड़ों में अपना श्रम जोड़ चुका होता है। अब यदि कॉलर की सिलाई के बाद गले की सिलाई होनी है तो उपरोक्त कारीगर के बाद वाला कारीगर हजार बार गले की सिलाई करेगा। पूरा कपड़ा मशीनों की लम्बी श्रृंखला में तमाम सिलाइयों के लम्बे सिलसिले के बाद ही तैयार होता है। कपड़ा इस श्रृंखला में जितनी तेज भागेगा उतना मुनाफा बढ़ेगा इसलिए सुपरवाइजर भागते रहते हैं ताकि कपड़ा तेज भागे। मशीन की रफ्तार तो  निशचित होती है] अब यदि श्रृंखला की पहली सिलाइयों पर ज्यादा कारीगर तैनात कर दिए जाएं तो दूसरी और आगे की सिलाइयों पर बैठे कम कारीगरों पर तेज काम का दबाव बढ़ जाएगा। यह सबसे सरल चाल है जो हर बेवकूफ सुपरवाइजर भी जानता है। पर सुपरवाइजर को और तेज होना होता है क्योंकि मैनेजर उससे और मालिक मैनेजर से ज्यादा प्रोडक्शन मांगता है। क्योंकि ज्यादा प्रोडक्शन का मतलब ज्यादा मुनाफा होता है। और ज्यादा प्रोडक्शन का मतलब तेजी से भागता कपड़ा तेजी से भागती मशीनें और तेजी से चलते मजदूरों के हाथ पैर। और तेज  और मुनाफा] और तेज मुनाफा] और तेज।
        मालिक को मुनाफा मिलता है। एक्सपोर्ट में कहते हैं कि मजदूर को भी ज्यादा पैसा मिलता है। और मजदूरों को कुछ और भी मिलता है।
      रमेश जिसकी बात उपर की गई है और जो एक एक्स पोर्ट कम्पनी के सिलाई कारीगर ने उससे सिलाईमैडम को खुश कर दिया। सुलह हो गई ।कुछ दिनों बाद मैडम ने इस संबोधन मैडम पर ऐतराज जताया कि भैया आप मुझे मैडम क्यों कहते हो। रमेश ने अब दीदी कहना शुरू किया तो वह झेंप गई। दो&चार दिन बाद उसने फिर विरोध किया कि मैं आपसे छोटी हूँ आप मुझे दीदी मत कहो तो रमेश ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता। सौहार्दपूर्ण बहस का अंत प्रत्यक्षतः सौहार्दपूर्ण रहा पर रमेश के अंतस्तल को झकझोर गया। वह महिला रमेश से तीन साल छोटी थी। वह मात्र 25 साल की उम्र में 40 साल की दिखती थी। उसकी आँखों के नीचे गड्ढे थे। उसके निचुड़े हुए चेहरे पर गालों की हड्डियाँ या दाँत ही दिखते थे। मशीन पर झुक कर काम करते हुए उसकी गर्दन और पीठ आगे की ओर झुक गई थी । उसकी बातों की सहजता और शायद उसकी आँखों में बची कुछ चमक उसकी बताई उम्र पर भरोसा करने देती थी।
     यही मिलता है मजदूरों को। पर काम की मशीनी तेजी में इस पर सोचने की फुर्सत भी नहीं है। अगला कपड़ा पकड़ो सिलो और आगे बढ़ाओ और फिर यही करो। सोचोगे तो स्पीड कम हो जाएगी और सुपरवाइजर तुम्हारी मशीन पर आकर भला&बुरा कहेगा। खचाखच भरी बस में चढ़ गए तो बीच रास्ते चाहकर भी नहीं उतर सकते। और फिर मजबूरी हो तो ऐसी ही बस में सफर की आदत पड़ जाती है।
        एक्सपोर्ट की नौकरी करने वालों की मजबूरी क्या होती है] धवन 10वीं पास है। बाप बूढ़े हैं] नगरपालिका के माली पद से रिटायर हुए है] उनका कमाया पैसा बहनों की शादी में खर्च हो गया है, छोटे भाई की पढ़ाई सुचारु रूप से हो जाए] इसलिए अपनी पढ़ाई कुर्बान कर दी। 6 साल में कई एक्सपोर्ट कम्पनियों में काम कर चुका है। कहता है अब पहले जैसी मेहनत नहीं होती पहले जैसा प्रोडक्शन नहीं निकाल पाता। और कहता है कि पहले न गाली देता था और न ही सुनता था] अब एक्सपोर्ट में सुनता भी है] देता भी है। उसकी उम्र 24 साल है।
        सितारा 4 साल से एक्सपोर्ट में है। उम्र 19 साल। छोटा भाई एक वर्कशाप में काम करने लगा है। माँ&बाप बहुत बूढ़े हैं और बीमार रहते हैं। खुशमिजाज सितारा अपने घर की खेवनहार है। उसकी जिम्मेदारी की प्रवृत्ति ही उसकी एक्सपोर्ट में नौकरी की मजबूरी है। बड़ा भाई है] पर अभी तक निकम्मा। अब सितारा द्वारा उधार का इंतजाम करने के बाद भाई की शादी हुई तो उसने कुछ काम करना शुरू किया है। भाई&भाभी दूसरे शहर में रहने लगे हैं। दस घंटे की ड्यूटी व्यवहारतः 12 घंटे की होती है आना-जाना मिलाकर। जाडे़ में बारह घंटे की ड्यूटी कर वह कपड़े और अपने बाल रात को ही धो पाती है। अगर किसी दिन ओवरटाइम नहीं लगता तो उसे सुकून मिलता है और वह अपनी सहेली से उत्साह में कहती है कि आज वह बाल धोएगी। सुबह नाश्ता और माँ-बाप का लंच तैयार करके फ़ैक्टरी आती है, रात को चार प्राणियों की रसोई संभालती है।
        विभूति अभी गुस्सैल है। उम्र 18 साल। अभी गुस्सैल है क्योंकि एक्सपोर्ट में अभी  आये दो साल ही हुए हैं। उसे उसकी एक उम्रदराज (एक्सपोर्ट की दुनिया में 34 साल की उम्र उम्रदराज ही कही जायेगी दीदी ने साथ लाकर एक्सपोर्ट में लगवाया। इंटर पास है विभूति। भाई एक शॉपिंग मॉल में काम करता है। पिता मजदूरी की जिंदगी में लीवर का एक ऐसा रोग मोल ले चुके हैं जिसका दिल्ली में बड़े से बड़े डाक्टर कोई पुख्ता इलाज नहीं बताते हैं] वो मजदूरी से रिटायर हो चुके हैं बेसमय बीमारी की वजह से।
        संदीप पांच साल से फरीदाबाद में एक्सपोर्ट में काम कर रहा है उससे पहले छः साल में दस नौकरियाँ बदल चुका था। एक्सपोर्ट में भी चार&पाँच कम्पनियाँ बदल चुका है। उसे बस के कठिन सफर की आदत पड़ चुकी है। कंपनी बदलना बस बदलने के समान। दूर के ढोल सुहाने होते हैं पर पाँच कंपनी बदलने के बाद किसी नई कंपनी का ढोल उसके कानों को नहीं सुहाता है। उम्र 25 साल। शादी से डरता है क्योंकि उसे यह पता है कि अब वह पहले के सालों की तरह प्रोडक्शन नहीं निकाल पाएगा। और कोई जमा पूंजी है नहीं क्योंकि जो कमाया अपने खर्चे के बाद गांव में बूढ़े माँ&बाप को भेज दिया । बीच&बीच में बेरोजगार भी रहा। शाम तनाव में गुजरती है] सुबह फैक्टरी के लिए तैयार होने में। दिन में न उत्साह न तनाव क्योंकि फैक्टरी में डेढ़ हड्डी के शरीर समेत वह एक मशीन होता है जिसे सुपरवाइजर पूरी रफ्तार से दौड़ाते रहते हैं।
        तिवारी जी एक्सपोर्ट में अपवादस्वरूप पाए जाने वाले बुजुर्गों में से एक हैं] उनकी उम्र 40 साल है । सामान्यतः एक्सपोर्ट में 18 &28 साल के लड़के&लड़कियाँ काम करते हैं। इसके बाद उनकी प्रोडक्शन की उम्र खत्म हो चुकी होती है और वे निकाल दिए जाते हैं। यह दीगर बात है कि 18 साल के नौजवान जब 28 साल की उम्र तक काम करने के बाद रिटायर किए जाते हैं तो वे काम के बोझ से निचुड़ कर रिटायरमेंट वाली उम्र के दिखते हैं। ग्रैच्युटी के रूप में वे कोई बीमारी ही पा सकते हैं। पर तिवारी जी अभी हफ्ते भर तक रोज सुबह साढ़े नौ बजे से रात के दो बजे तक खड़े रह कर अपने फिनिशिंग डिपार्टमेट की मेज पर कपड़ों और इंचटेप के साथ  धींगामुश्ती कर सकते हैं। इसके बाद उन्हें आराम करने के लिए एक दिन छुट्टी की जरूरत होती है] यह छुट्टी ऐसी होती है कि उन्हें रात दो बजे के बदले शाम छः बजे ही छुट्टी मिल जाती है और अगले दिन सुबह 9 बजे वे फिर हाजिर हो जाते हैं। लगता है कि उनका शरीर अचानक ही जवाब देगा। उनके दिमाग-जवान से हनुमान चालीसा से अशलील बड़बड़ाहट तक दोनो समान भाव व राग से पैदा होते हैं । उनकी मंजिल उनके 8 वीं में पढ़ने वाले होशियार बकौल तिवारी जी बेटे जिसे वे 300 रूपये प्रतिमाह खर्च कर ट्यूशन भी पढ़वाते हैं को पढ़ा लिखाकर बड़ा नौकर बनाने तक है उसके बाद वे कुछ नहीं करेंगे आराम करेंगे। मालूम नहीं यह एक्सपोर्ट-बस उन्हें उनकी मंजिल तक पहुँचा पाएगी कि नहीं।
        एक्सपोर्ट कंपनियों में भारी तादाद में महिलाएं काम करती हैं। अधिकांश कंपनियों में नियुक्ति घोषित तौर पर ही छः माह के लिए ठेकेदारी पर होती है । अन्यथा कभी भी काम कम या खत्म होने पर तुरंत भारी तादाद में श्रमिकों को हिसाब पकड़ा दिया जाता है। तब उनका जीवन तात्कालिक हफ्तों या महीनों के लिए अधर में लटक जाता है। हर नई जगह भर्ती काम की परीक्षा लेकर की जाती है। परीक्षा उतनी कठिन होती जाती है जितने कम मजदूरों की जरूरत होती है।
        जब कंपनी के पास काम होता है तो ओवरटाइम इलास्टिक की तरह असीमित रूप से बढ़ जाता है और ऐसा भी सुनने में आता है कि कुछ मजदूरों को महीने-महीने भर फैक्टरी में रहने की व्यवस्था भी मालिक कर देता है। नहीं तो 16 घंटे की ड्यूटी तो सामान्य हो ही जाती है। यह ओवरटाइम किसी भी तरह से स्वैच्छिक नहीं होता है। प्रशासन इस पर अपना नैतिक अधिकार समझता है और यह मजदूरों से जबरदस्ती करवाया जाता है। ओवरटाइम के दौरान इक्का&दुक्का फ़ैक्टरियों में ही चाय मट्ठी की व्यवस्था होती है। अक्सर 16 घंटे की ड्यूटी होने पर 12 रूपये से 22 रूपये तक रात्रि भोजन के लिए अलग से दिया जाता है। काम में कोई भी त्रुटि मिलने पर चार दिन गेट बंद से लेकर निष्कासन तक कोई भी सजा मजदूर को मिल सकती है। मालिकों मैनेजरों का मजदूरों के प्रति व्यवहार भी मशीन या कम्प्यूटर  की तरह होता हैं जिसमें अक्सर कुत्ते  की भौं&भौं फीड रहती है। जब यह कहा जाता है कि एक्सपोर्ट में पैसा ज्यादा है तो उसका तात्पर्य ओवरटाइम की संभावना से होता है। दो&चार फीसदी कंपनियों में ही ओवरटाइम का डबल भुगतान होता है और इतने ही में स्थायी रोजगार होता है अन्यथा अधिकतम छह महीने की ठेकेदारी के तहत नियुक्ति होती है।
        एक्सपोर्ट फ़ैक्टरियों मजदूरों को अल्प समय में ही निचोड़ लेती हैं। ओवरटाइम का लालच मजदूरों को शीघ्र ही बुढ़ापे में धकेल देता है। ये नंगे पूंजीवाद का एक स्पष्ट  उदाहरण हैं। मौजूदा श्रम कानूनों को बदलना पूरे मजदूर वर्ग को भी ऐसे ही नंगे हालातों की ओर ले जाएगा । दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग की रिपोर्ट केन्द्र सरकार की आँखों में नाच रही है।
        एक्सपोर्ट का मतलब निर्यात होता है। इन फैक्टरियों के उत्पाद विविध तरह से कपड़े निर्यात किए जाते हैं जो भारी मुनाफे के बावजूद विदेशियों के लिए शायद सस्ते होते हैं। मुनाफे का अंदाजा 300 मजदूरों वाली फरीदाबाद की एक एक्सपोर्ट कंपनी वैसे अन्य कंपनियां 500&1000 या 5000 तक मजदूरों वाली भी हैं के पैकिंग विभाग के एक मजदूर की सूचना से लगाया जा सकता है । बच्चों के कपड़े बनाने वाली इस एक्सपोर्ट कंपनी के कपड़ों पर पैकिंग विभाग प्रति कपड़ा 150 अमरीकी डालर लगभग 7000 रू0 अंकित करता है। ये कपड़ा 300 मजदूर प्रति दिन हजारों की तादाद में पैदा करते हैं। गौर करें कि ये कपड़े बच्चों के हैं बड़ों के कपड़ों के दाम और अधिक होंगे। मुनाफे के फलस्वरूप एक्सपोर्ट कंपनियों की शाखाएं नए-नए शहरों में खुलती जाती हैं। पिछले 10 सालों में तेजी से विकसित होने वाले एक्सपोर्ट उद्योग पूंजीपति वर्ग के बीच एक नया आकर्शक क्षेत्र है।
        श्रम कानूनों को ताक पर रखने वाले एक्सपोर्ट उद्योग क्षेत्र में किसी एक फैक्टरी में यूनियन बनने के हालात बहुत दुश्कर हैं । फैक्टरी-दर-फैक्टरी भटकने वाले मजदूरों की पहचान एक्सपोर्ट मजदूर के रूप में होती है] किसी फैक्टरी के मजदूर के रूप में नहीं। अपनी इस वृहत्तर पहचान को अपनाकर ही एक्सपोर्ट क्षेत्र के मजदूर संगठन की सार्थक दिशा में बढ़ सकते हैं । अर्थात समग्र एक्सपोर्ट क्षेत्र के मजदूरों का एक बैनर के तले संगठनबद्ध होना पूंजीपति वर्ग के खिलाफ संघर्ष में उनकी विजय और मुक्ति के रास्ते का पहला पग हो सकता है। आगे के कदम अन्य क्षेत्रों के मजदूरों के हाथों को दृढ़तापूर्वक पकड़कर के ही उठाये जा सकते हैं। मजदूर साथियों की नौकरी की सुरक्षा की दृष्टि  से उनके नाम बदल दिये गये हैं।
                                                          - फरीदाबाद 

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