Wednesday, November 9, 2016

स.रा. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत

अमेरिका में एक संघी, जिसका नाम डोनाल्ड ट्रंप है, राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गया। भारत के संघियों न उसकी जीत के लिए हवन-यज्ञ किया था। उनकी प्रार्थना सफल हुई।
भारत के संघियों ने डोनाल्ड ट्रंप की जीत की कामना इसके बावजूद की थी कि संघी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बराक ओबामा को अपना दोस्त बताते रहे हैं। बराक ओबामा ट्रंप की विरोधी उम्मीदवार हिलेरी क्लिटंन की पार्टी के हैं और उन्होंने हिलेरी के पक्ष में जोरदार प्रचार किया था। स्वभावतः ही संघियों की बिरदराना भावना उन्हें ट्रंप के पक्ष में ले गई।

डोनाल्ड ट्रंप भी संघियों की तरह मुसलमानों से घृणा करते हैं। वे भी संघियों की तरह नस्लवादी और नारी विरोधी हैं। वे अमेरिका में गरीब देशों से आने वाले आप्रवासियों के खिलाफ हैं, उन देशों से जिन्हें अमरीकी साम्राज्यवादियों ने अपनी लूट या अपने सैनिक हमले से तबाह कर दिया। 
लेकिन अपनी पार्टी के नेताओं के और ज्यादातर अमरीकी प्रचारतंत्र के विरोध के बावजूद  ट्रंप राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गये। ऐसा इसलिए कि उन्होंने स्वयं को सत्तातंत्र के बाहर के व्यक्ति के रूप में पेश किया और वादा किया कि वे आमजन के पक्ष में लड़ेंगे। उन्होंने अमरीकी जनमानस में व्याप्त पिछड़े ख्यालों को संघियों की तरह की भड़काया। उन्होंने लोगों की समस्याओं के लिए विदेशी लोगों और सरकारों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने अमरीकी समाज की हर प्रतिक्रियावादी सोच को हवा-पानी दी और उसका फल उन्हें मिला। 
डोनाल्ड ट्रंप की जीत साम्राज्यवादी अमेरिकी समाज की पतनशीलता की और उसकी संकटग्रस्तता की एक और अभिव्यक्ति है। इन चुनावों में दोनों प्रमुख उम्मीदवारों से लोग बराबर घृणा प्रदर्शित कर रहे थे। उनमें से एक घृणित व्यक्ति जीत गया क्योंकि वह कुछ अन्य लोगों की प्रतिक्रियावादी सोच को भुनाने में कामयाब रहा। भारत के ‘छिः न्यूज’ की तरह अमेरिका का ‘फाक्स न्यूज’ जश्न मना रहा है। 
भारत में संघी जश्न मना रहे हैं। अमेरिका में टी पार्टी वाले और कू-क्लू-क्लान जश्न मना रहे हैं। पर इनके जश्न के मंडप के नीचे वह आग जल रही है जो हिटलर के इन नये वारिसों को एक दिन जला डालेगी। 

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