Friday, October 21, 2016

नंगई की सीमा पार करता पूंजीवादी प्रचारतंत्र

इस समय देश का पूंजीवादी मीडिया सारी शर्मो-हया त्याग कर सरकार का भोंपू बन गया है। वह समूची पूंजीवादी व्यवस्था का प्रचारतंत्र होने के बदले देश की संघी मोदी सरकार का प्रचारतंत्र बन गया है।
पूंजीवादी मीडिया ने अपनी निस्पक्षता प्रदर्शित करने के लिए कुछ उसूल बना रखे थे। इसमें प्रमुख यह था कि समाचार और विचार को अलग-अलग रखा जाये। विचार के लिए संपादकीय पृष्ठ रहते थे जबकि समाचार को स्त्रोतों के हवाले से प्रस्तुत किया जाता था। ‘आरोप है‘ ‘पुलिस’ या ‘सरकार’ का कहना है, ‘कथित अपराधी’ इत्यादि शब्दावली इसका हिस्सा होती थी। 
अब यह सब त्याग दिया गया है। अब सरकार के बयान सत्य हैं। अब ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ ब्रहम सत्य है। अब नोएडा से ‘नक्सली’ पकड़ा जाना ब्रहम सत्य है। अब इन पर जरा भी सवाल उठाना देशद्रोह हैै। अब संघी सरकार स्वयं देश बन गयी है और इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। 
यह सब पूंजीवादी मालिकाने और संघी सरकार के दबाव का मिला-जुला परिणाम है। पूंजीपति वर्ग संघी सरकार के पक्ष में इस कदर खड़ा है कि वह इसकी बैसाखी बन कर खड़ा हो गया है। वह संघी सरकार की गिरती साख को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। 
यह सब इस हद तक हो रहा है कि गंभीर पत्रकारिता का दावा करने वाला एन डी टी वी स्वयं पर ही प्रतिबंध लगाते हुए पी चिदंबरम जैसी शख्सियत का साक्षात्कार प्रसारित  करने से मना कर देता है-दिन भर इस प्रसारण का ढिंढोरा पीटने के बाद।
इसके पहले आपातकाल में पूंजीवादी प्रचारतंत्र ने इस तरह की सरकार भक्ति प्रदर्शित की थी। लेकिन तब सरकार की ओर से घोषित दबाव था। अब फर्क यह है कि बिना किसी आपातकाल के, बिना किसी दबाव के भी पूंजीवादी प्रचारतंत्र यह सरकार भक्ति दिखा रहा है।
आपातकाल के दौरान पूंजीवादी प्रचार तंत्र के व्यवहार पर लाल कृष्ण आडवाणी ने टिप्पणी की थी कि जब उसे झुकने के लिए कहा गया तो वह रेंगने लगा। अब कहा जा सकता है कि वह बिना कहे ही संघी सरकार की चरण वन्दना में लिप्त है।
पूंजीवादी प्रचारतंत्र अपने इस व्यवहार से संघी सरकार की चाहे जितनी सेवा कर रहा हो, पर वह पूंजीवादी व्ववस्था की जड़ों पर प्रहार कर रहा है। यह अच्छा ही हैं। जितना ज्यादा पूंजीवादी प्रचारतंत्र निष्पक्षता का आवरण त्याग कर अपने असली रूप में सामने आयेगा, उतना ही ज्यादा मजदूर वर्ग इसके प्रभाव से मुक्त होगा।

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