Tuesday, September 6, 2016

कश्मीरी जनता से फर्जी बातचीत का तमाशा

कश्मीर के लोगों को लगातार दो महीने से घरों मेें कैद रखने वाली भारतीय राज्य सत्ता के नुमाइंदे (संयुक्त संसदीय प्रतिनिधि मंडल) कश्मीर में अपने ही जैसे लोगों से बातचीत कर लौट आये। कश्मीर में संगीनों से राज कर रही राज्य सत्ता ने एक और रस्म अदायगी की। इसकी ओर से बोलते हुए गृहमंत्री ने बयान दिया कि कश्मीरी जनता के नेताओं को कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत में विश्वास नहीं है। 
लोगों को घरों में और उनके नेताओं को जेलों में कैद कर संगीनों के दम पर हुकूमत कर रही राज्य सत्ता की जम्हूरियत और इंसानियत की अपनी ही परिभाषा है। रही कश्मीरियत की बात तो उसे नष्ट करने के लिए भारतीय राज्य सत्ता ने हरचन्द कोशिश की है।

इस प्रतिनिधिमंडल की फर्जी कोशिशों का सबसे मार्मिक दृश्य वह था जिसमें भाकपा, माकप, जद (यू) और राजद के नेता गिलानी के घर के बाहर टकटकी बांधे दिखे। घर में नजरबंद गिलानी ने इनसे मिलने से इंकार कर दिया था। भारतीय राज्य सत्ता के ये ‘नरम’ चेहरे सरकार से अलग कोशिश कर रहे थे। हकीकत यह थी कि भारतीय राज्य सत्ता ने न तो कश्मीरी नेताओं को रिहा किया था और न ही उन्हें वार्ता का निमंत्रण दिया था। भारतीय राज्य सत्ता की कश्मीरी लोगों से बातचीत की यह रस्म कितनी भौंड़ी थी उसका अंदाज इसी से लग जाता है कि इस बातचीत से ठीक वही लोग गायब थे जिनसे बातचीत जरूरी थी यानी कश्मीरी जनता और उसके नेता। बातचीत में जो शामिल हुए वे भारतीय राज्य सत्ता के पालतू और एजेन्ट हैं तथा कश्मीरी जनता में उनकी साख बहुत पहले ही खत्म हो चुकी है। 
कश्मीरी लोगों से बातचीत कोई चाय पर चर्चा नहीं है कि उसे कभी भी और कहीं भी कर ली जाय। वह जन्मदिन का उत्सव भी नहीं है जिसमें कोई ऐन वक्त पर यूं ही बधाई देने टपक पड़े।
कश्मीरी जनता से कोई भी बातचीत राज्य सत्ता के लिए बहुत ऊंचे स्तर का पाप मोचन है। यह ऐसा पाप मोचन है जो कुंभ में गंगा नहाने से नहीं होगा। इसके लिए भारतीय राज्य सत्ता को 1953 से अब तक भारतीय राज्य सत्ता के कश्मीरी जनता से संबंध विश्वासघात, धोखाधड़ी और क्रूर दमन के रहे हैं। बल्कि यह सिलसिला तो 1947 से ही शुरु हो गया था जब कश्मीरी जनता और संयुक्त राष्ट्र संघ से वायदा करने के बावजूद भारतीय राज्यसत्ता ने कश्मीर में जनमत संग्रह नहीं करवाया। 1989 से तो कश्मीर फौजी बूटों के तले ही जी रहा है। इस दौर में करीब एक लाख लोग मौत के घाट उतार दिये गये, हजारों गायब हो गये और हजारों लड़कियों/औरतों के साथ बलात्कार किया गया। अब तो भारतीय राज्य सत्ता बच्चों को भी अंधा बनाने पर तुली है।
इन सारे पापों की खुली स्वीकृति और 1949 से लंबित जनमत संग्रह को करवाना ही कश्मीरी जनता से वास्तविक बातचीत है। इनके अलावा बातचीत की हर कोशिश रस्मी और इससे बढ़कर फर्जी है। पर भारतीय राज्य सत्ता कश्मीरी जनता से यह असली बातचीत करेगी नहीं। तब तो और भी नहीं जब इस राज्य सत्ता पर संघी फासीवादी हावी हों। फासीवादियों से जनवाद की उम्मीद करना भी जनवाद के प्रति अपराध है। 
ऐसे में भारतीय राज्य सत्ता उसी रास्ती पर चलते हुए अपन क्रूर दमन जारी रखेगी और कश्मीरी जनता भी इस दमन के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेगी। तमाम जनवादी शक्तियों को इस स्थिति में कश्मीरी जनता के साथ खड़ा होना होगा। 

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