Wednesday, August 31, 2016

2 सितंबर की आम हड़ताल को सफल बनाओ !

2 सितंबर की प्रस्तावित आम हड़ताल ने पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकार में इतनी बैचैनी पैदा कर दी है कि हड़ताल को असफल करने के लिए संघी बड़बोले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने की घोषणा कर दी। अब से राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी प्रतिदिन 240 रुपये के बदले 350 रुपये होगी। इस घोषणा के जरिये वित्त मंत्री ने उम्मीद की होगी कि ठेके और असंगठित क्षेत्र के मजदूर आम हड़ताल में शामिल नहीं होंगे।
पिछले साल 2 सितंबर की आम हड़ताल में बड़ी संख्या में ठेके और असंगठित क्षेत्र के मजदूर शामिल हुए थे। उन्होंने ही सबसे ज्यादा लड़ाकू भावना का परिचय दिया था। पूंजीपति वर्ग बखूबी जानता है कि यदि मजदूर वर्ग का यह हिस्सा, जो वैसे भी मजदूर आबादी का नब्बे प्रतिशत से ज्यादा है, संघर्ष में उतर आया तो उसके लिए बेहद मुश्किल खड़ी हो जायेगी। अभिजात मजदूरों को तो उनके पालतू और व्यवस्थापरस्त नेताओं के जरिये बहलाया-फुसलाया जा सकता है पर इसे नहीं। पिछली आम हड़ताल में इन मजदूरों ने अपने लड़ाकूपन से पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकार को ही नहीं, अभिजात मजदूर नेताओं को भी काफी परेशान किया था। इन मजदूरों पर लगाये गये फर्जी मुकदमे अभी भी चल रहे हैं।
संघी वित्त मंत्री न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने के अपने प्रस्ताव से मजदूरों को नहीं छल सकते। तब तो और भी नहीं जब न्यूनतम मजदूरी की मांग बाइस हजार रुपये प्रति माह (सातवें वेतन आयोग द्वारा घोषित सरकारी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन) हो। अरुण जेटली द्वारा घोषित मजदूरी इसकी आधी भी नहीं बैठती। 
लेकिन असल सवाल तो न्यूनतम मजदूरी से भी बड़ा है। जब विद्यमान श्रम कानून लागू न हो रहे हों और संघी सरकार का इरादा इन्हें भी सिरे से समाप्त करने का हो तो कोई भी न्यूनतम वेतन का मापदंड लागू कैसे होगा ? जब सरकार और पूंजीपति वर्ग मजदूरों को संगठित होकर संघर्ष करने से हर कीमत पर रोक रही हो और हर संघर्ष का क्रूरता से दमन कर रही हो तो इस तरह की न्यूनतम मजदूरी की घोषणा का क्या मतलब रह जाता है ? 
दूसरी ओर इस आम हड़ताल का आहवान करने वाला और उसे नेतृत्व देने वाला अभिजात मजदूर वर्ग का पालतू और व्यवस्था परस्त नेतृत्व है जो मजदूर अंसतोष को कम करने के लिए और अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए आम हड़ताल का आहवान तो कर देता है पर उसे हर तरह से अनुष्ठानिक ही बनाये रखना चाहता है। वह न केवल संघर्ष से भयभीत होता है बल्कि किसी भी संघर्ष से उसे अपने अस्तित्व का भय लगता है। उसे लगता है कि मजदूर उसके हाथ से निकल जायेंगे।
ऐसे में मजदूर वर्ग को स्वयं आगे आकर इस अनुष्ठानिक हड़ताल को वास्तविक आम हड़ताल में बदलना होगा। उसे इस सम्भावना को तलाशना होगा कि इस एक दिवसीय आम हड़ताल को अनिश्चित कालीन आम हड़ताल में बदल दिया जाये। केवल इसी तरह से पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकार को झुकाया जा सकता है और छुट्टे पूंजीवाद पर लगाम लगायी जा सकती है। केवल इसी तरह के संघर्षों से शुरु करके की अंततः पूंजीपति वर्ग की सत्ता पलटने की ओर बढ़ा जा सकता है। कहने की बात नहीं है कि इस सबमें मजदूर वर्ग में सक्रिय क्रांतिकारी संगठनों की अहम भूमिका होगी।

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