Monday, August 8, 2016

गुजरात में सत्ता परिवर्तन

       गुजरात में अमित शाह ने नरेन्द्र मोदी की प्रिय आनंदीबेन पटेल को हटाकर अपने प्रिय विजय रूपाणी को गद्दी पर बैठा दिया। यह तख्तापलट जैसा न भी हो तब भी यह दिखाता है कि अमित शाह कभी मोदी के साथ भी यह कर सकते हैं। तब शायद अपदस्थ मोदी शिकायत भी नहीं कर पायेंगे क्योंकि अमित शाह ने यह गुण मोदी से सीखा है। 
गुजरात में इस मुख्यमंत्री परिवर्तन के बारे में कहा जा रहा है कि यह वहां पाटीदार और दलित आंदोलनों का परिणाम है। इन दोनों ने गुजरात में भाजपा सरकार की साख बहुत खराब की है और मामले को सभांलने के लिए किसी मजबूत आदमी की जरूरत है। और यह मजबूत आदमी मिला विजय रूपाणी के रूप में जो व्यवसायी होने के साथ-साथ आर.एस.एस. के भी आदमी हैं। इससे क्या हुआ कि वे पहली बार विधायक बने हैं। 
एक समय था जब भाजपा कांग्रेस पर आरोप लगाया करती थी कि उसके यहां कांग्रेसी प्रदेशों के मुख्यमंत्री हाई कमान तय करता है। अब यह भाजपा की गौरवशाली कार्यशैली है जिसमें अपदस्थ मुख्यमंत्री को डांट-फटकार कर उसे अस्वीकार व्यक्ति को स्वीकार करने के लिए कहा जाता है। नतीजा यह निकलता है कि सुबह मुख्यमंत्री बनने की मिठाइयां बांट रहा व्यक्ति शाम को उपमुख्यमंत्री तय हो जाता है। उसे यह अपमान हलक से नीचे उतारना पड़ता है। 
गुजरात में इस अंदरूनी सत्ता परिवर्तन के पीछे मोदी-शाह की छटपटाहट स्पष्ट है। ये दोनों इस बात से भली भांति वाकिफ हैं कि स्वयं भाजपा के भीतर बहुत सारे मगरमच्छ इस इंतजार में बैठे हैं कि ये अपने सत्ता शिखर से नीचे टपकें। उत्तर प्रदेश और गुजरात के चुनाव इस मामले में अहम हैं। यहां मात खाने पर इन दोनों हीरा-मोती या रंगा-बिल्ला को 2019 तक जाने का मौका नहीं मिलेगा। वे इसके पहले ही सिंहासन से नीचे ढकेल दिये जायेंगे।
कोई आश्चर्य नहीं कि मोदी को अचानक यह इल्हाम हुआ कि गौ-रक्षकों में अस्सी प्रतिशत असामाजिक तत्व हैं जो रात में और धन्धे करते हैं तथा दिन में गौ-रक्षा की बात करते हैं। यह इल्हाम होने में अखलाक की हत्या होने से अब तक दस महीने निकल गये। इस बीच पचासों और मुसलमान भी गौरक्षकों द्वारा पीट-पीट कर मार डाले गये। यदि गुजरात में गौरक्षकों ने दलितों को पूरी गुण्डागर्दी से निशाना नहीं बनाया होता और उस पर इस कदर बवाल नहीं मचता तो मोदी को अभी-भी यह ज्ञान नहीं होता कि गौरक्षकों का भारी बहुलांश असामाजिक है। 
पर मोदी का यह नया ज्ञान भी मोदी-शाह और उनकी संघी बिरादरी की रक्त-पिपाशा शांत नहीं कर सकता। उत्तर-प्रदेश में इस समय साम्प्रदायिक उन्माद की हर सम्भव कोशिश की जा रही है। यह जातिगत समीकरण बैठाने के साथ की जा रही है। बस दिक्कत यह हो जा रही कि संघ और संघियों का वास्तविक चरित्र दलितों-पिछड़ों को भी निशाने पर लेकर उन्हें दूर कर दे रहा है। साम्प्रदायिक धुव्रीकरण जातिगत विग्रह से बाधित हो जा रहा है। 
आने वाले समय में मोदी-शाह की छटपटाहट और बढ़ेगी तथा वे अधिक हताशा भरी कार्रवाईयों की ओर बढ़ेंगे।

1 comment:

  1. लगता है लेखक किसी खुशफ़हमी का शिकार हैं जहां उन्हें लगता है कि किसी असफलता के चलते २०१९ तक शाह मोदी का तख्त पलट करेंगे। यह दोनों अपनी उद्दंडता पुरजोर से लागू करेंगे। उसका एक कारण और है की विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है। २०१९ तक कुछ तत्व जन आवाज़ बनकर उभरेंगे ऐसा प्रतीत नहीं होता ,पर उम्मीद जरुर है।

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