Monday, May 16, 2016

मोदी सरकार के दो साल : झूठ-फरेब और गुण्डागर्दी के दो साल

केन्द्र की संघी मोदी सरकार ने आज 16 मई को अपने दो साल पूरे कर लिये हैं। ये दो साल पूरी तरह से झूठ-फरेब और गुण्डागर्दी के दो साल रहे हैं। ये संघ के हिन्दू फासीवाद के भारतीय समाज में पूरी नंगाई के साथ मुखर होने के दो साल हो रहे हैं। एम.एम. कलबुर्गी, अखलाक, पुरस्कार वापसी, एफ टी आई आई, हैदराबाद विश्वविद्यालय, जे एन यू राष्ट्रवाद,-राष्ट्रद्रोह, भारत माता की जय, कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा इत्यादि शब्द ही इसे बताने के लिए काफी हैं।
संघी सरकार के झूठ-फरेब अब देश की सीमाओं से परे जाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा के विषय बन गये हैं। तमाम वैश्विक संस्थाएं भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठा रही हैं, उन आंकडों पर जिन्हें लेकर संघी सरकार गाहे-बगाहे अपनी डींग हाकती रहती है। देश के भीतर देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पर सवाल उठाने वाले रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को अगला कार्यकाल न दिये जाने की चर्चा है। गौरतलब है कि यही रघुराम राजन दो-तीन साल पहले भारतीय पूंजीपतियों के आंखों के तारे थे। देश के औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार वृद्धि दर शून्य के पास पहुंच गयी है जबकि कभी मेक इन इंडिया के नाम पर तो कभी डिजिटल इंडिया के नाम पर पूंजीपतियों पर लाखो करोड़ रुपये लुटाये जा रहे हैं। दूसरी ओर देश की एक बड़ी आबादी सूखे से जूझ रही है और पूंजीपति इससे भी अकूत मुनाफा कमा रहे हैं। 
इन आर्थिक हालात के बीच संघी सरकार पूरी हेकड़ी के साथ भारतीय राजनीति और समाज पर हावी होना जारी रखे हुए हैं। ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के नाम पर कांग्रेसी प्रदेश सरकारों को उखाड़ा जा रहा है। सरकार की निष्क्रियता या उसकी गैर-संवैधानिक हरकतों पर उंगली उठाने वाले सर्वोच्च न्यायालय तक को लताड़ा जा रहा है और उसे नसीहत दी जा रही है। ऐसे में सामान्य नागरिक की क्या औकात ! उसे सरेआम सड़कों पर पीटा जा रहा है और फर्जी मुकदमों से लेकार आतंकवाद के आरोप में जेलों में ठूंसा जा रहा है। देश के सम्मानित बुद्धिजीवियों को अपमानित किया जा रहा है और छात्रों को उनके शिक्षा संस्थानों में पुलिस की लाठियों से सबक सिखाया जा रहा है। हर किसी को संघ से देशभक्ति का प्रमाणपत्र लेने को मजबूर किया जा रहा है। देश में जो कुछ भी थोड़ी सी वैज्ञानिक चेतना मौजूद थी उसे तहस-नहस किया करने के लिए संघी कूढ़-मग्जों को सारे बौद्धिक संस्थानों पर थोपा जा रहा है। मुसलमान दूसरे दर्जे के नागरिक की हैसियत में पहुंचा दिये गये हैं। मुसलमान या ईसाई होना देश में वास्तव में अपराध हो गया है। 
यह सब केवल दो साल में ! तीन साल अभी बाकी हैं। ‘सबका साथ-सबका विकास’ का खोखलापन जितना उजागार होता जायेगा यह और भी बढ़ता जायेग। देश और भी ज्यादा संघी खूनी मंजर देखेगा। 
इसीलिए इस सबका मुकाबला करने के लिए और भी ज्यादा कमर कसनी होगी। पिछले दो सालों में संघी बर्बरता के खिलाफ प्रतिरोध के नये क्षितिज खुले हैं। इन्हें और भी विस्तार देना होगा, और मजबूती देनी होगी। 

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