Monday, April 25, 2016

सरकार बनाने और गिराने का खेल

उत्तराखंड में सरकार बनाने-गिराने को लेकर जो कवायद चल रही है उसने न्यायपालिका को भी पूंजीवादी राजनीति के दलदल में घसीट लिया है। पूंजीपति वर्ग और पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा पवित्र घोषित न्यायपालिका भी अभिशप्त है कि अपने दामन पर कीचड़ पोते।
उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी और भाजपा ने पूंजीवादी राजनीति के नंगे नाच का प्रदर्शन करते हुए बेशर्मी की सारी हदें पार दीं। जहां भाजपा ने प्रदेश का शासन हथियाने की कोशिश में कांग्रेसी विधायकों की खरीद-फरोख्त की वहीं कांग्रेस पार्टी ने भी अपनी सरकार बचाने की कोशिश में यही सब किया। इस सबमें विधान सभा अध्यक्ष और राज्यपाल का भी जमकर इस्तेमाल हुआ। अंत में केन्द्र की भाजपाई सरकार ने ब्रहमास्त्र इस्तेमाल किया और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया।
ऐसी अवस्था में जब कांग्रेसी मामले को नैनीताल उच्च न्यायालय ले गये तो उसने पहले एक उलझा हुआ फैसला दिया। बाद में एक दो सदस्यीय बेंच ने ज्यादा स्पष्ट फैसला तो दिया पर वह भी मामले को पूरी तरह नहीं सुलझा पायी। इस दिशा में कुछ होता इसके पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले का स्थगित कर दिया। 
बाद में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला चाहे जो आये पर यह स्पष्ट है कि पूंजीवादी पार्टियां अपनी छिछोरी राजनीति में मामले का वहां पहुंचा दे रही हैं जहां मामला न्यायालयों के भी बूते के बाहर हो जाता है। वे इसे हल करने के प्रयास में स्वयं भी कीचड़ से सन जाते हैं। पूंजीवादी संविधान-कानून की धज्जियां उड़ाने वाले संघियों के वर्तमान राज में इस तरह की घटनाएं और बढ़ेंगी। चूंकि बाकी पूंजीवादी पार्टियां भी किसी नैतिक जमीन पर नहीं खड़ी हैं इसलिए वे भी इसमें अपना योगदान करेंगी।
भारत की सड़ती-गलती पूंजीवादी व्यवस्था इसी तरह से अपने अंत की ओर बढ़ रही है।

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