इस समय बैंकों के खराब कर्जों (बैंकों की तकनीकी भाषा में नाॅन परफॉर्मिंग एसेट्स) का काफी शोर मचा हुआ है। भाजपा के अनुसार इसकी वजह कांग्रेस शासन में राजनीतिक प्रभाव में बैंकों द्वारा बड़े उद्योगपतियों को दिया हुआ कर्ज है।
बैंकों का यह खराब कर्ज इस समय ज्यादा चर्चा में विजय माल्या के कारण है जिन पर सोलह बैंकों का करीब नौ हजार करोड़ रुपये बकाया है। पता चला है कि इस समय विजय माल्या विदेश में पलायन कर चुके हैं।
पूंजीवादी प्रचारतंत्र में सारे हो-हल्ले और भाजपा की बयानबाजी के बावजूद सच यही है कि एक लम्बे समय से बड़े उद्यमी सार्वजनिक बैंकों से कर्ज लेकर डकार जाते हैं और बैंक इसे बाद में अपने खाते से निकाल देते रहे हैं। उदारीकरण के दौर में यह बहुत ज्यादा बढ़ गया, ठीक उसी दौर में जब किसानों के छोटे-छोटे कर्जों का पूंजीपति वर्ग ने खूब हल्ला मचाया। अभी पिछले कुछ सालों में ही बैंकों ने करीब चार लाख करोड़ रुपये अपने खातों से बाहर किये।
इस समय बैंकों के खराब कर्जों की चर्चा इसलिए हो रही है कि इतनी बड़ी रकम को खाते से बाहर करने के बावजूद बैंकों पर खराब कर्जों का बोझ लदा हुआ है और वह बढ़ता जा रहा है। इस समय जबकि एक बार फिर आर्थिक हालात बेहद विषम हो रहे हैं, यह खतरनाक होता जा रहा है। इसलिए रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि वे अपने खाते-बही सही करें यानी अपने खराब कर्जे कम करें।
पर बैंक करें तो क्या करें ? एक ओर सरकार ‘मेक इन इंडिया’ इत्यादि-इत्यादि के नाम पर बैंकों को कह रही है कि वे जिस-किसी को कर्ज दें, दूसरी ओर ये सारे पूंजीपति जानते हैं कि बैंकों से कर्ज लेकर डकारा जा सकता है। उनका कुछ नहीं होगा। उद्योग और खेती की हालत खस्ता होने के चलते बैंकों के सामने ग्राहकों की भी टोटा है। ऐसे में वे खुद भी जिस-किसी उद्यमी को पकड़ कर लोन दे रहे हैं। उन्हें मुनाफा कमाना है। सरकार द्वारा उन पर मुनाफा कमाने का भयंकर दबाव है।
ऐसी स्थिति में बैंकों का इस दुष्चक्र से निकलना मुश्किल है। वे बड़े उद्यमियों पर पैसा लुटाते रहेंगे और वे पैसा डकारते रहेंगें। और यह होगा इसके साथ कि किसानों को अपनी खेती के लिए छोटा-मोटा कर्ज नहीं मिलेगा और यदि मिला व उन्होंने नहीं चुकाया तो उनकी कुर्की हो जायेगी, उन्हें जेल भिजवा दिया जायेगा इत्यादि-इत्यादि। बड़े उद्यमियों का, जो हजारों करोड़ रुपये डकार जायेंगे, उनका कोई नाम नहीं जानेगा पर छोटे-मझोले किसान का नाम खासो-आम जानेगा।
किसी जमाने में कहा जाता था कि बैंक लूटने का सबसे आसान तरीका है कि किसी बैंक का मालिक बन जाना। आज यह करने की जरूरत नहीं है। बस लुटेरे को बड़ा पूंजीपति होना चाहिए। बैंक स्वयं ही उसे बुलाकर उस पर अपना पैसा लुटा देंगे और उसे एन पी ए घोषित कर बाद में उसे अपने खाते से बाहर कर देंगे। और यह सब होगा छोटे-छोटे जर्माकर्ताओं की कीमत पर या सरकारी धन के बल पर ।
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