Monday, February 29, 2016

संघी सरकार का नया बजट

       वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आज केन्द्र सरकार का बजट संसद में पेश किया। कल प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात में कहा था कि यह बजट उनका इम्तहान है। मतलब उनकी सरकार का इम्तहान। क्या परिणाम रहा इस बजट का ? सरकार पास हुई या फेल!
हमेशा की तरह इस सवाल का जवाब समाज के अलग-अलग वर्गों  से अलग-अलग निकलेगा। पूंजीपति वर्ग सरकार को पास बता रहा है हालांकि अच्छे नंबरो से नहीं। मध्यम वर्ग की बात करें तो वह सरकार को पास होने के लिए ग्रेस देने का तैयार है। लेकिन मजदूर वर्ग बिना किसी हिचकिचाहट के सरकार को फेल कर देगा। इसी तरह गरीब किसान सरकार को शर्तिया फेल कर देगा।
अभी बहुत दिन नहीं हुए जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूंजीपतियों की एक महफिल में बोलकर आये थे कि जब पूंजीतियों को सरकार सहायता देती है तो इसे इंसेंटिव कहा जाता है पर जब गरीब लोगों को यह सहायता दी जाती है तो इसे सब्सिडी कहा जाता है। उन्होंने पूंजीपतियों को दी जाने वाली भांति-भांति की सहायता गिनाई थी। पिछले साल के बजट में इसका अनुमान छः लाख करोड़ का था।
पूंजीपतियों के बारे में प्रधानमंत्री की इस स्वीकारोक्ति के बाद यह उम्मीद की जानी चाहिए थी कि इस बजट में पूंजीपतियों के बदले गरीबों को दी जाने वाली सहायता में कुछ बढ़ोत्तरी होगी। पर बेसूद। इस बार भी, हमेशा तरह पूंजीतियों की झोली भरी गयी।
इस समय देश का लगभग आधा हिस्सा भयानक सूखे से गुजर रहा है। ऐसे में रोजगार के लिए बड़े कार्यक्रमों और किसानों को बड़ी सहायता की जरूरत है। पर इस बार भी मनरेगा को महज 38500 करोड़ रुपये ही मिले। दस साल  पहले भी यह राशि इसी के आस-पास थी। फसल बीमा के लिए कुल साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये का आवंटन है जबकि प्रधानमंत्री अपने भाषणों में जता रहे थे कि इसके बल पर किसान सूखे-बाढ़ को मजे में झेल ले जायेगा। किसानों के लिए और कोई विशेष योजनाएं नहीं हैं हालांकि बजट में कहा गया है कि अगले पांच सालों में किसानों की आय दोगुनी हो जायेगी। ऐसा लगता है कि मोदी-जेटली मानकर बैठे हैं कि पांच साल बाद वे सत्ता में नहीं होंगे, इसलिए इस संबंध में उनसे कोई सवाल नहीं पूछेगा।
बजट में कहा गया है कि नये लोगों को रोजगार देने पर उनका तीन साल तक ई.पी.एफ. में योगदान सरकार देगी (उद्यम के मालिक के बदले)। सरकार के हिसाब से यह नये रोजगार का सृजन करेगा। लेकिन होगा यही कि अब मालिक पुराने मजदूरों को निकालकर नये भर्ती करेंगे और इस तरह ई.पी.एफ. अंशदान से मुक्त हो जायेंगे। यह छटनी का नया दौर लायेगा।
इसी तरह रोजगार सृजन के नाम पर पूंजीपतियों को अन्य तरीके की छूटें दी गयी हैं। ये सब वही इंसेंटिव या प्रोत्साहन है जिसका संघी प्रधानमंत्री ने जिक्र किया था। पहले की तरह इस प्रोत्साहनों का इस्तेमाल पूंजीपति अपना मुनाफा बढ़ाने में करेंगे।
स्वास्थ्य के क्षेत्र को बीमा योजना के तहत सरकार निजि क्षेत्र के हवाले करने की ओर तेजी से बढ़ रही है। इसीलिए इस बजट में भी विशेष तौर पर स्वास्थ्य बीमा के लिए राशि आबंटित की गयी है।
इस समय स्वयं सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार उद्योग और कृषि क्षेत्र की हालत काफी खराब है। देश सूखे की चपेट में है जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था के हालत खराब हैं। ऐसे में मजदूरों, गरीब किसानों और अन्य गरीब लोगों की स्थिति आने वाले दिनों विकट होने वाली है। पर बजट में इस दिशा में कुछ करने के बदले एक बार फिर वही किया गया है जो पिछले सालों होता रहा है।
कुल मिलाकर संघी सरकार का यह बजट वही है जो इससे उम्मीद की जानी चाहिए यानी पूंजीपयिों की झोली को समर्पित। पर पूंजीपति आज झोली के बदले बोरा लेकर खड़े हैं इसलिए उन्हें भी बजट उतना अपना नहीं लग रहा है। 

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