हैदराबाद विश्वविद्यालय की दलित उत्पीड़न की घटना इस बात का एक और उदाहरण है कि संघ परिवार की नस-नस में जहर भरा हुआ है। उसकी सारी ऊपरी बातें पलक झपकते ही गायब हो जाती हैं और उसका बनैला खूनी चेहरा सामने आ जाता है।
अभी बहुत दिन नहीं हुए जब संघियों ने जोर-शोर से अंबेडकर का संसद में जय-जयकार किया था। संघियों के मुखपत्र ‘पाण्चजन्य’ ने तो अप्रैल में एक विशेषांक ही निकाला था-अंबेडकर का गुणगान करते हुए। इस सबमें संघियों ने यह दिखाने की कोशिश की थी कि उन्होंने अपनी मध्ययुगीन ब्रामणीय मानसिकता को त्यागकर पुनाने गुनाहों का प्रायश्चित करने का फैसला कर लिया है। पर ऐसा था नहीं और वह हैदराबाद की दलित उत्पीड़न की घटना से स्पष्ट हो गया।
इसके पहले संघियों का शिक्षा मंत्रालय आई आई टी चेन्नई में भी अंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल मामले में अपनी इस दलित विरोधी ब्राहमणीय मानसिकता का परिचय दे चुका है। यह एक तरह से उसी मामले का दुहराव था जो एक त्रासद आत्महत्या तक पंहुच गया।
संघियों ने जिस तरह से याकूब मेनन को फांसी पर लटकाया था वह बेहद घृणित था। उस पर लाखों लोगों ने सवाल उठाये थे-तथाकथित मुख्यधारा के लोगों ने भी। पर यह संघियों को जरा भी स्वीकार नहीं था। इसीलिए उन्होंने जहां मौका मिला, लोगों को प्रताडि़त करने का प्रयास किया। हैदराबाद विश्वविद्यालय की प्रताड़ना की घटना इसका हिस्सा थी। यह मामला बेहद संगीन इसलिए बन गया कि इसमें दो केन्द्रीय मंत्री सीधे शामिल थे।
इस मामले में आम आदमी पार्टी या कांग्रेस पार्टी जैसी पार्टियों जैसी पार्टियों का आंसू बहाना संघियों के कुकृत्य से कम घृणित नहीं है। इन पार्टियों ने याकूब मेनन की फांसी के मामले में संघियों का पूरी तरह साथ दिया था। बर्बर देशभक्ति के खूनी खेल में वे भी संघियों के साथ थे।
आज का संघी सरीखा राष्ट्रवाद सारे शोषित-उत्पीडि़त लोगों के दमन-उत्पीड़न पर टिका हुआ राष्ट्रवाद है। इसीलिए इस खूनी राष्ट्रवाद के विरोध में सभी शोषित-उत्पीडि़त लोगों को गोलबंद होना होगा चाहे वे दलित हों या पिछड़े, चाहे मुसलमान हों या इसाई, चाहे स्त्रियां हों या एल जी बी टी, चाहे मजदूर हों या गरीब किसान।
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