इस बात के स्पष्ट संकेत दिख रहे हैं कि संघ परिवार एक बार फिर अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा उठाने की ओर बढ़ रहा है। यह 2017 में उत्तर प्रदेश में विधान सभा के चुनावों के मद्दे नजर होगा।
बीते दिसंबर में खबर आई कि अयोध्या स्थित विश्व हिन्दू परिषद के दफ्तर में राजस्थान से राम मंदिर के लिए निर्माण सामग्री आ रही है। यह याद रखना होगा कि 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से ही अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भांति-भांति की निर्माण सामग्री तैयार करने का सिलसिला अवनरत जारी है। समय-समय पर इसे अयोध्या लाया भी जाता रहा है।
यह खबर इसलिए भी ज्यादा महत्व ग्रहण कर लेती है कि संघ परिवार से जुड़े किसी व्यक्ति ने इस खबर का खण्डन नहीं किया। संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने तो खुलेआम कहा कि भाजपा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है।
भाजपा का पिछले तीन दशकों में उत्थान किसी न किसी रूप में राम मंदिर से जुड़ा रहा है। 1980 के दशक के मध्य और 90 के दशक की शुरुआत में इसने इस मुद्दे पर बड़े पैमाने का साम्प्रदायिक धुव्रीकरण करके भारत की पूंजीवादी राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत की। 1986 में बाबरी मस्जिद का ताला खुलने से लेकर आडवाणी रथ यात्रा और अंततः बाबरी मस्जिद विध्वंस तक यह कई चरणों से गुजरा। इस सबके परिणाम स्वरूप भाजपा राजग गठबंधन के रूप में 1998 में केन्द्र में सत्तारूढ़ हो गई।
केन्द्र में वर्तमान मोदी सरकार का संबंध भी राम मंदिर से है। मोदी ने 2002 में जो गुजरात में मुसलमानों का जनसंहार रचाया और जिसके फलस्वरूप आज वे देश के प्रधानमंत्री हैं वह भी अयोध्या से ‘राम सेवकों’ की वापसी यात्रा में गोधरा में उनकी मृत्यु से संबंधित है। मोदी ने इसके बाद गुजरात में जो साम्प्रदायिक माहौल बनाया वह आज भी कायम है।
अब आत्म रति में डूबे नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के लिए भी स्पष्ट हो गया है कि पूंजीवादी प्रचार माध्यमों के बल पर कायम किया गया उनका आभा मण्डल तार-तार हो चुका है। दिल्ली और बिहार के चुनावों में धराशाई होने के बाद स्वयं इनकी पार्टी के भीतर भी इनके ऊपर सवाल उठने लगे हैं। केवल विदेशी यात्राओं के दौरान मोदी के गुणगान से ही इसकी क्षतिपूर्ति करने की कोशिश की जा रही है।
ऐसे में मोदी के लिए यह बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है कि वे क्या करें ? वे अपनी डूबती नैया को कैसे बचायें ? बिहार में अपनी डूबती नैया को बचाने के लिए इन्होंने हर तरीके से संकोच का परित्याग कर दिया था। मोदी और शाह खुलेआम चुनावी मंचों से हिन्दू साम्प्रदायिकता पर उतर आये थे। यह अलग बात है कि चुनावी समीकरणों के चलते वे कामयाब नहीं हो पाये।
अब उत्तर प्रदेश में वे उसे बड़े पैमाने पर करना चाहेंगे। लोकसभा चुनावों के ठीक पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक माहौल बनाकर उन्होंने भारी फायदा उठाया था। अब राम मंदिर का अपना चिर परिचित मुद्दा उठाकर उत्तर प्रदेश में अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहेंगे। वे इस मुद्दे को इस तरह भी उठा सकते हैं कि यह अगले लोकसभा चुनावों तक गरम रहे।
कांग्रेस पार्टी का इस मामले में रिकार्ड बहुत खराब रहा है। बाकी पूंजीवादी पार्टियां भी हिन्दू साम्प्रदायिकता के सामने अवसर के हिसाब से समर्पण करती रही हैं। इसलिए इस मामले में इनकी भूमिका पहले की तरह घृणित ही होगी।
इस स्थिति में सारी प्रगतिशील और क्रांतिकारी शक्तियों को अभी से सचेत होकर आने वाली चुनौती का मुकाबला करना होगा। सभी संभव तरीकों से हिन्दू साम्प्रदायिकों को टक्कर देनी होगी।
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