Tuesday, December 1, 2015

पर्यावरण नष्ट करने वालों का पेरिस में जमावड़ा

     धरती का पर्यावरण नष्ट करने वाले सारे अपराधी इस समय पेरिस में इकट्ठा हैं और दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि वे इस नष्ट होते पर्यावरण के प्रति बहुत चिंतित हैं। वे यह भी जताने का प्रयास कर रहे हैं कि लूट-पाट की इस पूंजीवादी व्यवस्था के रहते भी धरती के पर्यावरण को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
     साम्राज्यवादियों और पूंजीपतियों के इस नाटक को अब कई दशक हो गये हैं। पर्यावरण नष्ट करने वाले ये सारे अपराधी समय-समय पर इकट्ठा होते हैं और फिर-फिर वही बातें दुहराते हैं जबकि इस बीच और पानी सर से गुजर गया होता है।
      धरती के नष्ट होते पर्यावरण को बचाने का एक ही तरीका है-पूंजी की बेतहाशा लूट पर लगाम लगायी जाये। प्राकृतिक संसाधनों के बेलगाम दोहन पर रोक लगाई जाये तथा पूंजीपति वर्ग को मजबूर किया जाये वह पर्यावरण के अनुकूल तकनोलोजी का इस्तेमाल करे, भले ही इससे मुनाफा कितना ही क्यों न कम हो जाये।
     पर उदारीकरण के इस दौर में, जब एकमात्र मुनाफा ही सभी चीजों का मापदंड हो, यह नहीं किया जा सकता। पूंजीपति वर्ग और उनकी सरकारें मुनाफे में किसी भी तरह की कटौती के लिए तैयार नहीं होंगी। ऐसे में इस सबके लिए बचता केवल यही है कि पर्यावरण को नष्ट करने का सारा उद्यम करते हुए भी इसके प्रति चिंतित होने का दिखावा करें।
पेरिस में मूलतः यही हो रहा है। लेकिन, जैसा कि हमेशा होता है, पूंजीपति यहां भी मुनाफा कमाने की जुगत में लगे हुए हैं। ‘कार्बन’ की खरीद-बेच और उस पर सट्टेबाजी की व्यवस्था की जा रही है। साम्राज्यवादी आपस में तथा पिछड़े पूंजीवादी शासकों के साथ इस पर धींगा-मुश्ती कर रहे हैं। गैर सरकारी संगठनों के कारकून पेरिस की सैर करते हुए अपनी कमाई पक्की कर रहे हैं। मुख्य धन्धे के साथ ‘साइड बिजनेस’ भी खूब फल-फूल रहा है।
पर्यावरण की विकराल समस्या पिछले कुछ सौ सालों में पूंजीवादी विकास ने पैदा की है। इस समस्या का हल केवल और केवल पूंजीवादी व्यवस्था के खात्मे में है। इसके खात्मे के बाद योजनाबद्ध उत्पादन और वितरण  ही  पर्यावरण को फिर दुरुस्त करेगा-शहर और देहात के बीच विभाजन का खात्मा इसकी एक प्रमुख शर्त होगा। 

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