पेरिस में आतंकवादी हमले के बाद एक बार फिर शासक वर्गों, खासकर साम्राज्यवादियों की ओर से इस घृणित कार्रवाई में अपनी भूमिका से ध्यान भटकाने वाली बातें की जाने लगी हैं। फ्रांसुआं ओलां, बराक ओबामा और डेविड कैमरून से लेकर भारत के संघी फासीवादी मोदी तक सभी आतंकवाद की निंदा कर रहे हैं और इसे मानवता के खिलाफ घोषित करते हुए इससे लड़ने की बात कर रहे हैं। इनकी ये बातें इस तरह की घटनाओं में इनकी स्वयं की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका पर पर्दा डालती हैं। इसी
वर्तमान घटना की ही बात करें तो इसकी जिम्मेदारी आई एस आई एस ने ली है। और यह आतंकवादी संगठन कौन है? अन्य ढेरों आतंकवादी संगठनों की तरह यह भी साम्राज्यवादियों द्वारा खड़ा किया गया और पालित-पोषित संगठन है। इसे खड़ा करने और आगे बढाने में अमेरिका सहित सभी पश्चिमी साम्राज्यवादियों की भूमिका है। वक्त के साथ आई एस आई एस भी अल कायदा की तरह भष्मासुर बन गया और अब पश्चिमी देशों के मासूम नागरिक इसे शिकार बन रहे हैं।
पश्चिमी साम्राज्यवादी चीख-चीख कर आई एस आई एस की बर्बरता बात कर रहे हैं। पर इस संगठन की फुटकर बर्बरता के मुकाबले बहुत बड़े पैमाने की अपनी बर्बरता पर वह चुप हैं। बल्कि इसे वे आतंकवाद के खिलाफ युद्ध इत्यादि के नाम पर जायज ठहराते है।। यू के के भूतपूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर जैसे यु़द्ध अपराधी तो आज भी इराक की अपने द्वारा तबाही को यह कहकर जायज ठहराते हैं कि इसके द्वारा इराक को सद्दाम हुसैन जैसे तानाशाह से मुक्ति मिल गई।
आई एस आई एस या अल कायदा जैसे फुटकर आतंकवादी साम्राज्यवादियों द्वारा ढाई गई इसी बर्बरता का इस्तेमाल कर अपने घृणित कारनामों को न केवल जायज ठहराते हैं बल्कि इसके द्वारा वे नये लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते है। ये भी इस तथ्य को छिपा ले जाते हैं कि ये साम्राज्यवादियों की ही नहीं बल्कि वहां के मासूम नागरिकों की हत्या कर रहे हैं, उनकी जो स्वयं साम्राज्यवादियों के के शिकार हैं।
इस तरह साम्राज्यवादी और इस तरह के आतंकवादी अपनी-अपनी बर्बरता को दूसरे की बर्बरता से जायज ठहराते हैं और राजनीतिक लक्ष्य को साधने का प्रयास करते हैं।
पेरिस जैसे आतंकवादी हमले के संदर्भ में सबसे ज्यादा जरूरत आतंकवादियों और साम्राज्यवादियों के इसी चरित्र और उनके आपसी संबंधों को रेखांकित करने की है। इससे अलग आतंकवाद की अमूर्त भर्त्स्ना साम्राज्यवादियों को उनके कुकृत्यों से दोषमुक्त कर देगी और समस्या की वास्तविक जड़ से ध्यान भटका देगी।
इसी के साथ पिछड़े पूंजीवादी देशों के शासकों की भी इस संबंध में घृणित भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। भारत सरकार की भूमिका आज किसी भी जानकार के लिए रहस्य की चीज नहीं है। संघी सरकार तो इसे मामले में और भी चार कदम आगे है। इसके राज में संसद पर फर्जी आतंकवादी हमला और इसके आरोप में अफजल गुरु को फांसी आज भी इनके मुकुट में हीरे की तरह चमक रहा है।
इसी के साथ पिछड़े पूंजीवादी देशों के शासकों की भी इस संबंध में घृणित भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। भारत सरकार की भूमिका आज किसी भी जानकार के लिए रहस्य की चीज नहीं है। संघी सरकार तो इसे मामले में और भी चार कदम आगे है। इसके राज में संसद पर फर्जी आतंकवादी हमला और इसके आरोप में अफजल गुरु को फांसी आज भी इनके मुकुट में हीरे की तरह चमक रहा है।
शासकों और आतंकवादी समूहों की इस तरह की बर्बरताओं का सड़े-गले पूंजीवाद के भीतर कोई समाधान नहीं है। ये एक-दूसरे को खाद-पानी पहुंचायेंगे। इस बर्बरता का खात्मा केवल सड़े-गले पूंजीवाद के खात्मे से ही संभव है। दोनों की बर्बरता की शिकार जनता को इसी सच को आत्मसात करने की जरूरत है।
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