बिहार में अपनी जबर्दस्त पराजय के ठीक दो दिन के भीतर ही मोदी सरकार ने पन्द्रह विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश के लिए और ज्यादा छूटों की घोषणा कर दी। इन छूटों की घोषणा पर स्वयं नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आर्थिक सुधारों का अभियान जारी रहेगा। इसके पहले चुनाव परिणाम के दिन ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इन परिणामों का मोदी सरकार द्वारा जारी आर्थिक सुधारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
जिन पन्द्रह क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश में और छूट दी गई है वे भांति-भांति के हैं। इनमें निर्माण क्षेत्र भी है, रक्षा और संचार क्षेत्र भी है तथा खुदरा व्यापार भी। किसी क्षेत्र में पूंजी निवेश की सीमा बढ़ाई गई तो किसी में सरकारी लाइसेन्स से मुक्ति देकर उसे स्वतः वाली श्रेणी में डाला गया। स्वयं ‘सुधारकों’ और उनके समर्थकों का कहना है कि यह विदेशी निवेश के मामले में एक झटके में किया जाने वाला सबसे बड़ा सुधार है।
मोदी सरकार द्वारा ये आर्थिक सुधार इस सरकार के चरित्र के अनुरूप हैं। इस सरकार का घोषित लक्ष्य ‘विकास’ है जिसका मतलब है देशी-विदेशी पूंजी को हर तरह की छूट।
लेकिन तब भी यह तथ्य बना रहता है कि मोदी सरकार इन ‘सुधारों’ के प्रति जनता के रुख से किसी हद तक डरी हुई है। इन सुधारों की घोषणा के लिए उसने बिहार के चुनावों के खात्मे का इंतजार किया। उसे भय था कि विरोधी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह भी हो सकता है कि बिहार के चुनावों में पराजित होने के बाद तुरंत इन ‘सुधारों’ की घोषणा विदेशी पूंजीपतियों को यह संदेश देने की कोशिश हो कि चाहे हार हो या जीत यह सरकार पूंजीपतियों की सेवा के अपने वायदे पर कायम है। उसमें कोई कमी नहीं आने वाली। साथ ही सहिष्णुता के मुद्दे पर विदेशियों के निशाने पर आई यह सरकार इसके द्वारा उनकी आलोचना के स्वर को कुछ धीमा भी करना चाहती होगी।
जो भी हो, हर कोण से यही बात जाहिर होती है कि मोदी की यह संघी सरकार देशी-विदेशी पूंजी की सेवा में समर्पित है और इसमें कोई ढील नहीं होने देगी।
मोदी सरकार के इस चरित्र को संघी कारिन्दों द्वारा फैलाये जा रहे इस दुष्प्रचार के साथ देखना दिलचस्प है जिसमें वे साहित्यकारों-कलाकारों के विरोध को अमेरिका-सऊदी अरब और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित बताते हैं। जो सरकार स्वयं साम्राज्यवादियों की सेवा के लिए पूरी तरह समर्पित हो उसके खिलाफ साम्राज्यवादियों का सरगना अमेरिका षडयंत्र करेगा, इस तरह का विचार केवल संघी कूपमंडूक कारिन्दों के दिमाग में ही समा सकता है। उनके जैसे कूढ़मगज ही इस पर विश्वास कर सकते हैं।
बाकी तो सच्चाई यही है कि इस समय देश के सबसे बड़े दुश्मन संघी हैं। उन्हीें की सरकार देश को विदेशी पूंजी के हाथ में सौंप रही है।
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