Saturday, October 10, 2015

संघी प्रधानमंत्री की ‘एडवाइजरी’

   संघी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने सभी सरकारों को ‘एडवाइजरी’ भेजी है कि अपने यहां साम्प्रदायिक घटनाओं पर अंकुश लगाएं और माहौल न बिगड़ने दें। यह ‘एडवाइजरी’ दादरी की घटना के एक सप्ताह बाद भेजी गई है जब इस पर केन्द्र सरकार और इसके सर्वशक्तिमान मुखिया की चुप्पी पर चारों तरफ से सवाल उठने लगे। 
     यह ‘एडवाइजरी’ एक तीर से दो निशाने करती है। एक तो वह इन घटनाओं में शामिल संघियों पर किसी तरह कार्रवाई करने से मोदी एण्ड कंपनी को बचा लेती है। दूसरी ओर वह इन घटनाओं की सारी जिम्मेदारी प्रदेश सरकारों पर डाल देती है। मोदी के संघी दरिन्दे दादरी जैसी घटनाएं अंजाम देते रहेंगे और मोदी एण्ड कंपनी इसके लिए संबधित प्रदेश सरकारों को जिम्मेदार ठहराती रहेगी। अपनी पार्टी की सरकारों के मामले में तो यह भी नहीं किया जायेगा।
     असल में मोदी द्वारा ऐसी ‘एडवाइजरी’ मोहन भागवत, प्रवीण तोगडि़या, योगी आदित्यनाथ, साध्वी प्राची, साक्षी महाराज, संगीत सोम, महेश शर्मा इत्यादि-इत्यादि को भेजी जानी चाहिए थी। उन्हें दादरी जैसी अमानुषिक घटनाओं को अंजाम देने से दूर रहने को कहा जाना चाहिए था। पर उन्हें तो चुपके से दूसरी ‘एडवाइजरी’ भेजी गई होगी। उसमें उनको इन घृणित कारनामों के लिए शाबाशी दी गयी होगी तथा इसे और आगे बढ़ाने को कहा गया होगा। बिना इस तरह की ‘एडवाइजरी’ के ये संघी छुटभैये इस तरह की बातें करते नहीं घूम रहे होते। 
     मोदी ने इस तरह की ‘एडवाइजरी’ का एक प्रमाण भी दे दिया। उन्होंने 8 अक्टूबर को अपनी एक सभा में लालू यादव को गो मांस पर उसी तरह घेरा जिस तरह उनके संघी छुटभैये घेर रहे थे। इस तरह गो मांस पर संघी नरभक्षियों के जुलूस में शामिल होकर उन्होंने जता दिया कि इन नरभक्षियों के कारनामे सही हैं। कि मोदी इनके साथ हैं। यह याद रखने की बात है कि यह स्वयं मोदी ही थे जिन्होंने ठीक इसी इलाके में लोक सभा चुनावों के दौरान ’पिंक रिवोल्यूशन’ का राग छेड़ा था और इसके लिए संप्रग सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। यह अलग बात है कि मोदी के शासन काल में ‘पिंक’ मांस का निर्यात बढ़ा ही है और रिकाॅर्ड स्तर पर जा पहुंचा। ‘बीफ’ निर्यात में अब भारत केवल ब्राजील से पीछे है। 
     अभी तक विकास के नाम पर मोदी का गुणगान करने में लगे उदार पूंजीपतियों में इन संघी कारनामों को लेकर चिंता हैं। इसीलिए संघी बिग्रेड पूंजीवादी प्रचारतंत्र, वह प्रचारतंत्र जो वैसे तो निरंतर मोदी गुणगान में लगा रहता है, पर दादरी मामले में पक्षपाती होने का आरोप लगा रहा है। पूंजीवादी अखबारों में आशंकाग्रस्त संपादकीय और लेख लिखे जा रहे हैं। पर यह उदार पूंजीपति हिस्सा अपने हितों के मद्देनजर मोदी और संघ के नरभक्षी चरित्र को स्वीकार करने से लगातार इंकार कर रहा है। ठीक इसी कारण वह संघी नरभक्षियों की फासीवादी परियोजना में सहायक बन रहा है। 
     नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी जैसे लोग इसमें अपवाद हैं जो विरोध स्वरूप अपने साहित्यक पुरस्कार लौटा रहे हैं और खड़े होने का सहस कर रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या बढ़े तथा और लोग भी संघी जघन्यता के खिलाफ खड़े होने का साहस करें, इसके लिए जरूरी है कि वामपंथी और क्रांतिकारी ताकतें इस मामले में ज्यादा सक्रियता, पहलकदमी और द्रढ़ता का परिचय दें। वे संघी फासीवादी खतरे के मामले में ज्यादा ‘अर्जेन्सी’ दिखाएं।

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