Wednesday, September 30, 2015

एक बार फिर पैशाचिक घटनाएं

      पिछले दो दिनों में फिर ऐसी दो घटनाएं हुईं जिन्होंने दिखाया कि भारतीय समाज और राज्य किस हद तक मुस्लिम विरोधी गतिविधियों में लिप्त है। 
     बीती रात राजधानी दिल्ली के ऐन बगल में, ग्रेटर नोएडा में एक गांव में हिन्दुओं की पगलाई भीड़ ने एक बुजुर्ग मुसलमान को पीट-पीट कर मार डाला। इस भीड़ को इस बात पर उकसाया गया था कि उस व्यक्ति ने गाय मारकर मांस अपने यहां रखा हुआ है। उकसाने वालों की हिम्मत इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने बाकायदा मंदिर के लाउडस्पीकर से इसका ऐलान किया। मोबाइल के इस जमाने में पुलिस ने वहां पहुंचने में आधे घन्टे लगाये और वह भी साइरन बजाते हुए जिससे मुख्य अपराधी भागने में कामयाब हो गये। हत्यारों ने घर के बाकी लोगों को भी मारा-पीटा और घायल कर दिया।

     सुबह अखबारों की इस खबर से उबर पायें कि दिन में खबर आई कि 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन विस्फोट मामले में मकोका अदालत ने 5 लोगों को मौत और 7 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। महाराष्ट्र में लागू मकोका पोटा और टाडा की तरह का काला कानून है। जहां तक अभियुक्तों की बात है उन पर मुंबई के ए.टी.एस. ने मुकदमा दायर किया था। मुंबई की ही क्राइम ब्रांच ने इंडियन मुजाहिदीन के सह नेता को पकड़ने का दावा किया था जिसने बताया था कि वे विस्फोट इस संगठन ने कराये थे यानी उपरोक्त अभियुक्त निरपराध हैं। 
     लेकिन हमेशा की तरह इन सबको नजरअंदाज करते हुए निचली अदालत ने मनमानी सजाएं दे डाली हैं। अब इन पर ऊपरी अदालत में सालों तक मुकदमा चलेगा और हो सकता है वे अक्षरधाम मसले की तरह छूट जायें या हो सकता है कि अंततः याकूब मेनन की तरह फांसी पर लटका दिये जायें। जो भी हो एक बार फिर यही होगा कि ये लोग इसलिए सालों तक जेल में रहे या फांसी लटके कि वे मुसलमान थे। अन्यथा तो मुंबई लोकल ट्रेन बम विस्फोट में मरने वाले 180 लोग गुजरात के 2002 के नरसंहार के दस प्रतिशत से भी कम थे और नरसंहार के लिए एक भी व्यक्ति फांसी पर नहीं लटकाया गया है। सारे अभियुक्त जमानत पर बाहर घूम रहे हैं और सबसे बड़े अपराधी देश का शासन चला रहे हैं। 
     ऐसे में जरूरी है कि इन अंधेरी-शैतानी ताकतों को मुकाबला करने के लिए और ज्यादा कमर कसी जाय। 

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