Monday, August 31, 2015

हिन्दू फासीवादियों से दृढ़ता से टकराना होगा

पहले नरेन्द्र दाभोलकर, फिर गोविन्द पनसारे और अब एम.एम. कुलबुर्गी ! भारत के हिन्दू  फासीवादियों के हौसले अब इतने बुलंद हो गये हैं कि वे अपने वैचारिक विरोधियों को गोलियों से भून रहे हैं। वे खुलेआम धमकी दे रहे हैं कि बाकियों का भी यही हश्र होगा। 
हिन्दू फासीवादियों के हौसले इस कदर इसलिए बुलंद हैं क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी सरकार इस समय केन्द्र में और कई प्रदेशों में काबिज है तथा देश की दूसरी बड़ी पार्टी भी उनके रास्ते में नहीं आयेगी। उन्हें पता है कि लाल किले से सद्भाव का भाषण देने वाला संघी प्रधानमंत्री मन ही मन उनकी पीठ ठोंकेगा। 
ये तीनों लोग इसलिए नहीं मारे गये कि वे मुसलमान थे। कि उनकी देशभक्ति संदेह के दायरे में थी। कि संभावित आतंकवादी थे। कि वे ढेर सारे बच्चे पैदा कर भारतवर्ष में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बनाने की साजिश में लिप्त थे। 
वे इसलिए मारे गये कि पैदायशी हिन्दू होते हुए भी वे हिन्दुओं के पोंगापंथ और धार्मिक अंध-विश्वासों के विरोधी थे। वे तर्क में विश्वास करते थे और समाज को तर्कशील बनाना चाहते थे। वे भारत के पूंजीवाद के संविधान के घोषित लक्ष्य यानी तर्कशीलता को व्यवहार में उतारना चाहते थे। 
पर पूरे समाज को मध्युगीन बर्बरता के युग में ले जाने की ख्वाहिश रखने वाले हिन्दू फासीवादियों को मंजूर नहीं है। यह वैज्ञानिक तर्कशीलता उनकी ऐतिहासिक परियोजना के आड़े आती है। इस्लामिक स्टेट और तालीबान के ये बिरादर किसी भी कीमत पर इस तर्कशीलता को रोकना चाहेंगे। और जब वे सरकार में हों तो उनका काम बहुत आसान हो जाता है। 
इन खूनी दरिंदों की रक्त पिपाशा खून पीकर और बढ़ेगी। वे तीन पर शांत नहीं होंगे। वे तीन हजार, तीन लाख या यहां तक कि तीन करोड़ तक भी जाना चाहेंगे। 
ठीक इसीलिए इनका बहुत दृढ़ता से मुकाबला करने की जरूरत है। इनके सामने ताल-ठोंक कर खड़े होने की जरूरत है। इन्हें बताने और दिखाने की आवश्यकता है कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जायेगा।  

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