Thursday, August 6, 2015

एक अर्थहीन समझौता

    खबर है कि सोमवार यानी 3 अगस्त को भारत सरकार और नागालैंड के संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आॅफ नागालैंड (आई-एम) के बीच समझौता हुआ है। यह समझौता 18 सालों में करीब सौ वार्ताओं के बाद हुआ। समझौते के समय स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मौजूद थे।
     इस समझौते की खबर प्रसारित होते ही चारों तरफ से इस पर सवाल उठने शुरु हो गये। जहां नागालैंड के अन्य संगठनों ने इस पर सवाल उठाये वहीं हर कोई इस बात पर आश्चर्य चकित था कि इस समझौते की किसी भी बात का खुलासा नहीं किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि अगले छः महीनों मेें इस समझौते को लागू किया जायेगा।
     आजादी के समय से भी नागा लोग अपने अलग देश की मांग करते रहे हैं। पहले यह मांग नागा नेशनल काउंसिल ने उठाई। लेकिन जब इसने 1975 में भारत सरकार से समझौता कर लिया तो इसके विरोध में एन.सी.सी.एन. 1980 में पैदा हुआ। भारत सरकार के षडयंत्र से इसमें 1987 में विभाजन हुआ और एनएससीएन (आई-एम) और एनएससीएन (कपलांग) अस्तित्व में आये। बाद में कपलांग धड़े से दो और संगठन बने। एनएससीएन (आई.एम.) ने भारत सरकार से 1997 में युद्धविराम किया तो कपलांग धड़े ने 1920 में। इसने अभी चार महीने पहले युद्धविराम की समाप्ति की घोषणा कर दी और जून में सेना पर हमला इसी की कार्यवाई माना जा रहा है। 
       उत्तर पूर्व की राष्ट्रीयता की समस्यओं में से सबसे पुरनी समस्या का समाधान देश की सबसे अंधराष्ट्रवादी पार्टी की सरकार से करना एकदम ही भोलापन होगा। भाजपा सबसे बढ़-चढ़कर ‘अखंड भारत’ की समर्थक है। वह ऐसा कुछ नहीं करेगी जिससे उसके ‘अखंड भारत’ को चोट पहुंचे।
      इसलिए इस समझौते में ऐसा कुछ नहीं होगा जिससे नागा राष्ट्रीयता की समस्या का समाधान हो। शायद इसीलिए इस समझौते का खुलासा भी नहीं किया जा रहा है। ज्यादा संभावना यही है कि यह 1975 की तरह का कोई समझौता हो जो केवल नये सिरे से नागा विद्रोह की जमीन तैयार करेगा। 
      भारत के पतित पूंजीवाद से देश की राष्ट्रीयता की समस्याओं का समाधान करने की उम्मीद करना परले दरजे की नादानी होगी। इसका वास्तविक समाधान इसके खात्मे के बाद बने समाजवादी संघ के द्वारा ही संभव है जिसमें हर राष्ट्रीयता को अलग हो जाने सहित आत्मनिर्णय का अधिकार होगा। 

No comments:

Post a Comment