पिछले कुछ दिनों में चीन के शेयर बाजार में तीस प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है। इसके प्रभाव में दुनिया के शेयर बाजारों में हलचल हुई है। भारत का सेनसेक्स 8 जुलाई को 400 प्वाइंट लुढ़क गया।
चीन में मामला केवल शेयर बाजार तक सीमित नहीं है। यह समूची अर्थव्यवस्था के संकट का मामला है। इसकी एक अभिव्यक्ति इस बात में हुई है कि चीन की आशंका के मद्दे नजर दुनिया भर के माल बाजार (कमोडिटी मार्केट) नीचे की ओर जा रहे हैं।
चीन की अर्थव्यस्था संकट की ओर बढ़ रही है इसके संकेत लम्बे समय से मिलते रहे हैं। रीयल स्टेट से लेकर भारी उद्योगों तक सभी में जरूरत से ज्यादा निवेश और मांग का अभाव चारों ओर प्रत्यक्ष है। इसी तरह चीन के निर्यात पर दबाव भी साफ दीख रहा है।
इन्हीं परिस्थितियों के तहत दुनिया की सारी संस्थानों ने चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को नीचा जाता हुआ माना था। लम्बे समय तक दस प्रतिशत या उससे ऊपर रहने वाली दर सात प्रतिशत या उससे नीचे जाती दिखी। हालांकि यूरोप-अमेरिका या दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले अभी भी यह काफी ऊपर है पर इसकी नीचे की ओर की गति स्पष्ट है।
अब चीन के शेयर बाजार का तेजी से नीचे लुकढ़ना इस बात का संकेत है कि हालात उससे ज्यादा खराब हैं जितना अधिकारिक तौर पर बताया जा रहा है। साथ ही यह भी कि ग्रीस संकट के साथ मिलकर ये पहले से संकटग्रस्त विश्व अर्थव्यवस्था को तेजी से नीचे धकेल सकते हैं।
यह चीन ही था जिसने 2007 से शुरु हुए आर्थिक संकट को किसी हद तक थामा। उसकी अर्थव्यवस्था बहुत नीचे नहीं गयी। लेकिन अब स्वयं संकट में जा रही है। ऐसे में हालात वाकई बहुत संगीन हो सकते हैं। तब बड़बोले भारत के शासकों की भी बोलती बन्द हो जायेगी।
चीन का मजदूर वर्ग ओर मेहनतकश जनता चीन की ऊंची विकास दर के समय भी भीषण कष्ट झेलती रही है। वह इसके खिलाफ प्रतिरोध भी करती रही है। अब संकट के गहराने पर चीन के पूंजीवादी शासक इसका सारा बोझ चीनी मजदूर वर्ग एवं मेहनतकश जनता पर डालने का प्रयास करेंगे। ऐसे में इनका प्रतिरोध और तीखा हो उठना स्वाभाविक है। चीन के नकली कम्युनिष्ट जो कम्युनिज्म के नाम पर चीनी मजदूरों पर शासन कर रहे हैं और स्वयं अरबपति बन रहे है, इस प्रतिरोध का दमन करेंगे। लेकिन इसी प्रक्रिया में अपने वास्तविक चरित्र की अधिकाधिक उजागार करेंगे।
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