ग्रीस की जनता ने यूरोप-अमेरिका के वित्तीय सट्टेबाजों को 5 जुलाई के जनमत संग्रह में साफ बता दिया कि उनकी खून चूसने वाली शर्तों को मानने को तैयार नहीं है। परन्तु यह स्पष्ट है कि ये आधुनिक सूदखोर पीछे नहीं हटेंगे।
5 जुलाई को हुए जनमत संग्रह में 62 प्रतिशत मतदाताओं ने भाग लिया। इसमें से 61 प्रतिशत ने ‘ना’ कहा यानी यूरोपीय आयोग, यूरोपीय केन्द्रीय बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा नये किफायत कदम थोपने का विरोध किया। किसी भी लिहाज से यह बेहद स्पष्ट जनादेश है।
पर इस स्पष्ट जनादेश का अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सट्टेबाजों के लिए क्या महत्व है वह इसी से पता चल जाता है कि जनमत संग्रह जीतने के तुरंत बाद बड़बोले वित्त मंत्री वारोफाकी को इस्तीफा देना पड़ा। वित्तीय सट्टेबाजों ने साफ कह दिया था कि वे इस मुंहफट वित्त मंत्री को जो वित्तीय सट्टेबाजों के ‘‘वित्तीय आतंकवाद’’ की शिकायत करता था, सहन नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री अलेक्सी सिपारा ने उनके सामने झुकते हुए वारोफाकी का इस्तीफा ले लिया।
सिरिजा पार्टी तथा इसके सिपारा और वारोफाकी जैसे नेता ग्रीस की जनता पर एक के बाद एक थोपे जाने वाले किफायत कदमों का विरोध कर सत्ता में आये थे। पर सत्तानशीन होने के बाद उन्होंने वित्तीय सट्टेबाजों के सामने घुटने टेकने शुरु कर दिये। जब सट्टेबाजों ने और दबाव बनाया तो इन्होंने अपनी खाल बचाने के लिए किफायत कदमों पर जनमत संग्रह की चाल चल दी। यदि जनमत संग्रह किफायत कदमों के पक्ष में हो जाता तो इनकी खाल बच जाती। पर न ऐसा हो सकता था और न हुआ। अब सट्टेबाजों की शर्तों को नकार दिये जाने के बावजूद सिपारा ने वारोफाकी का इस्तीफा ले लिया।
सीरिजा और सिपारा आने वाले दिनों में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सट्टेबाजों के सामने और घुटने टेकेंगे। पर इससे इन सूदखोरों की रक्त पिपासा और बढ़ेगी। ग्रीस की अर्थव्यवस्था और गहरे खड्ड में जायेगा तथा लोगों का जीवन स्तर और गिरेगा।
इस जनमत संग्रह पर वित्तीय सट्टेबाजों की प्रतिक्रिया से यह भी स्पष्ट है कि उनके लिए जनवाद का कोई महत्व नहीं है। यह उनके लिए तब प्रचार का काम करता है जब यह उनके मुनाफे के रास्ते की बाधाओं को हटाने के काम आता है। अन्यथा वे चुनाव और जनमत संग्रह को टायलेट पेपर से ज्यादा महत्व नहीं देते। पहले तो उन्होंने जनमत संग्रह को अपने पक्ष में प्रभावित करने की हर चन्द कोशिश की पर असफल होने पर उसे सिरे से नकार दिया।
पूंजीवादी जनवाद की यही हकीकत है !
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