Wednesday, July 29, 2015

उसे फांसी दे दो !

     याकूब मेनन को कल फांसी लग जायेगी। उसे फांसी पर लटका दिया जायेगा जिससे कि देश के लोगों की अंतरआत्मा शान्त हो सके। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि याकूब मेनन को मौत की सजा देश के लोगों की अंतरआत्मा शान्त करने के लिए जरूरी है। 
     याकूब मेनन 1993 के मुंबई बम विस्फोटों का एक आरोपी है। वह लगातार अपने को बेनुगाह बताता रहा है और कहता रहा है कि उसके भाई टाइगर मेनन ने बिना उसके जाने उसकी कंपनी का बम विस्फोटों के लिए पैसा आदान-प्रदान करने में इस्तेमाल कर लिया। दाउद इब्राहिम सहित टाइगर मेनन भी देश से बाहर फरार है।
      याकूब मेनन बेगुनाह हो सकता है और नहीं भी। याकूब मेनन का कहना है कि अपनी बेगुनाही के कारण ही उसने देश लौटने और अदालतों का सामना करने का फैसला लिया। कुछ लोगों का कहना है कि याकूब मेनन भारतीय खुफिया एजेंसियों के साथ एक सौदे के तहत भारत लौटा जिसके अनुसार उसके द्वारा लाये गये सबूतों और उसकी गवाही के बदले उसे कम सजा मिलती। सच्चाई जो भी हो, यदि याकूब मेनन को विश्वास होता कि उसके अपराध इतने बड़े हैं कि उसे फांसी चढ़ना ही होगा तो वह कभी नहीं लौटता।
इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है सर्वोच्च न्यायालय का तर्क। याकूब मेनन के अपराध इतने बड़े नहीें थे जिसके लिए उसे मौत की सजा मिलती ही मिलती। इसके बदले उसे मौत सजा इसलिए दी जायेगी कि देश के लोगों की अंतरात्मा शान्त हो सके। यानी दंड का कारण अपराध नहीं है। यह अजीबोगरीब न्याय है कि दंड का कारण अपराध नहीं कुछ और है। इस आधार पर यह भी हो सकता है कि कभी किसी बेगुनाह को बिना किसी अपराध के केवल इसलिए मौत की सजा दे दी जाये जिससे रक्त पिपासु लोगों की खूनी अंतरआत्मा शान्त हो सके। 
वैसे देश के ये लोग कौन हैं जिनकी अंतरआत्मा शान्त करने के लिए नरबलि की जरूरत है ? इस ‘आधुनिक’ ‘सभ्य’ भारतीय समाज में नरबलि की मांग करने वाली आत्माएं कौन सी हैं ?
ये देश के मजदूर नहीं हो सकते जिन्हें स्वयं मोदी सरकार पूंजी की बलिवेदी पर चढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहीे है। ये किसान भी नहीं हो सकते जिनकी जमीनों को छीनने के लिए यही मोदी सरकार हर जुगत भिड़ा रहीे है और जो कंगाली के कारण स्वयं ही फांसी पर लटक रहे हैं। ये आम औरतें नहीं हो सकती हैं जो दहेज की खातिर आग में ढकेली जा रही हैं। ये दलित नहीं हो सकते जो जगह-जगह भूने जा रहे हैं। ये धार्मिक अल्पसंख्यक नहीं हो सकते जो अपने ही देश में ‘रिफ्यूजी’ हो चुके हैं और हर साल दंगो में अपने दो-चार हजार लोगों को कुर्बान होते देख रहे हैं। ये मध्य भारत के आदिवासी भी नहीं हो सकते जिनका आखेट किया जा रहा है।  खूनी अंतरआत्मा वाले लोग असल में वे लोग हैं जो देश पर शासन कर रहे हैं और देश की सारी सम्पदा पर कब्जा कर बैठे हुए हैं। इनके साथ थोड़े से वे लोग भी हैं जो इनकी जूठन पर इतराते हैं और गला फाड़ कर चिल्लाते फिरते हैं कि ‘गर्व से कहो हम हिन्दु हैं’।
अपनी प्राचीन सभ्यता पर इतराने वाले, स्वयं को दुनिया की सबसे शान्तिप्रिय और सहिष्णु कौम बताने वाले, वसुधैव कुटुम्बकम का नारा लगाने वोल यही गर्वीले हिन्दु ही हैं जो आज खूनी मूर्तिंयों का रूप धारण कर हर जगह प्रस्थापित हो रहे हैं क्योंकि दिल्ली में उनकी सरकार है। इन्हें ही नरबलि चाहिए जिससे इनका ‘हिन्दु राज’ का सपना पूरा हो सके और वे गर्व से हिटलर और मुसोलिनी की जमात में शामिल हो सकें।
अपनी प्राचीन सभ्यता पर इतराने वाले उन असभ्य/म्लेच्छ देशो की श्रेणी में खुद को शामिल नहीं करेंगे जिन्होंने अपने यहां मौत की सजा खत्म कर दी है। इनकी प्रचीन सभ्यता इतनी महान है कि उन्हें यह स्वीकार नहीं करने दे सकती कि किसी भी अपराध के लिए व्यक्ति से ज्यादा समाज जिम्मेदार होता है-बहुत-बहुत ज्यादा। वे कभी नहीें मान सकते कि एक भयंकर अपराधी समाज ही व्यक्ति को सजा देकर खुद को संतुष्ट कर ले सकता है। 
याकूब मेनन की वैधानिक नरबलि अफजल गुरू की नरबलि की तरह ही भारतीय राज्य, उसके कारकूनों तथा गुर्वीले हिन्दुओं द्वारा दी जाने वाली विशुद्ध राजनीतिक नरबलि है। यह एक जघन्य अपराध है जिसका हिसाब इन्हें एक दिन देना होगा।   

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