25 जून 1975 की आधी रात को इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाये जाने को अब चालीस साल यानी चार दशक हो गये हैं। भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त आधे-अधूरे जनवादी अधिकारों का भी हनन करने वाला यह आपातकाल महज अठारह महीने रहा पर यह एक बड़ी नजीर छोड़ गया। इस नजीर की वजह से भाजपा से नाखुश बुजुर्ग आडवाणी नरेन्द्र मोदी में इंदिरा गांधी का अक्स देखते हैं।
इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाये जाने का तात्कालिक कारण इंदिरा गांधी का लोक सभा चुनाव (1971) इलाहबाद उच्च न्यायालय द्वारा रद्द किया जाना था। यह उन्हें प्रधानमंत्री के अयोग्य घोषित कर देता था। लेकिन इसी के साथ इसकी पृष्ठभूमि में पिछले एक-दो सालों के बड़े जनआंदोलन भी थे जिनमें से कुछ स्वतः स्फुर्त थे और कुछ संघ से लेकर समाजवादियों द्वारा आयोजित किये गये थे। जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में ये सारे गोलबंद हो गये थे। जे. पी. ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया और दूसरी आजादी का नारा भी पहली बार इसी समय गूंजा था।
इन सबकी पृष्ठभूमि में भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति का वह संकट था जो 1960 के दशक के मध्य में शुरु हुुआ था और जो विभिन्न चरणों से गुजरते हुए आपातकाल तक ले गया। इसमें 1965-66 तथा 1972-73 की तीखी मंदी तथा कांग्रेस पार्टी का विभाजन शामिल है। प्रीवीपर्स का खात्मा, बैंकों का राष्ट्रीयकरण तथा गरीबी हटाओ का नारा भी इसी दौर की चीजें हैं, साथ ही हरित क्रांति भी।
समाजवाद तथा गरीबी हटाओ के नाम पर इंदिरा गांधी ने जो नीतियां लागू की थीं वे पूंजीपति वर्ग के हितों के एकदम अनुकूल थी, इसलिए वह उनके साथ खड़ा था। वह लम्बे समय से जारी राजनीतिक अस्थिरता का खात्मा चाहता था। इसीलिए जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया तो उन्हें पूंजीपति वर्ग का पूरा समर्थन मिला। वह अराजकता की समाप्ति से खुश था। जब आपातकाल हटा और जनता पार्टी सत्त्ता में आई तो सारा कुछ शान्त हो चुका था।
अब जब आपातकाल के चालीस साल बाद आडवाणी जैस संघी बुजुर्ग तब की और आज की परिस्थितियों में कुछ समानता देख रहे हैं तो उसके वाजिब कारण हैं। आज इंदिरा गांधी जैसी तानाशाही प्रवृत्ति का एक व्यक्ति यानी नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री है जिसने कार्यकर्ता आधारित पार्टी का दावा करने वाली भाजपा को ठीक इंदिरा कांग्रेस की तरह ही एक व्यक्ति की पार्टी में तब्दील कर दिया है। आज भी राजनीतिक तौर पर एक अस्थिरता मौजूद है जो कभी भ्रष्टचार विरोधी अन्ना आंदोलन में दृष्टिगोचर होती है तो कभी नारी उत्पीड़न विरोधी आंदोलन में। इस सबकी पृष्ठभूमि में एक आर्थिक संकट भी मौजूद है जो और भी बड़े एक विश्वव्यापी आर्थिक संकट के साथ नत्थी है।
ऐसे में स्थितियां कभी भी तेजी से मोड़ ले सकती हैं और पूंजीपति वर्ग उससे निपटने के लिए आपातकाल की शरण ले सकता है। चूंकि पहले की तरह अभी भी आपातकाल का प्रावधान संविधान में मौजूद है इसलिए यह बिल्कुल कानूनी तरीके से होगा। वैसे भी हमें याद रखना चाहिए कि हिटलर पूर्णतया वैधानिक तरीके से सत्ता मे आया था और उसने सारे फासीवादी कदम वैधानिक तरीके से उठाये थे।
आपातकाल के चालीस साल बाद एक महत्वपूर्ण फर्क यह है कि आज मोदी के पीछे संघ परिवार नाम की एक दानवी शाक्ति खड़ी है जो अपने चरित्र में पूर्णतः फासीवादी है। इसलिए यदि श्रीमान मोदी आपातकाल की ओर बढ़ते हैं तो यह इंदिरा गांधी वाला आपातकाल नहीं होगा बल्कि फासीवाद का कोई एक या दूसरा रूप होगा- हिन्दु फासीवाद का। इसी में ज्यादा बड़ा खतरा मौजूद है।
इसलिए जरूरत केवल खुन्नसी आडवाणी सरीखी चेतावनी की नहीं है। जरूरत आज मौजूदा चुनौती को उसकी संपूर्णता में समझने की और उसका मुकाबला करने के लिए तैयारी की है।
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