Wednesday, June 17, 2015

ललित मोदी बनाम नरेंद्र मोदी यानी छोटे नटवरलाल बनाम बड़े नटवरलाल

       फटाफट क्रिकेट में बड़े पैमाने का गोरखधंधा करने के आरोपी ललित मोदी के साथ भाजपा के नेताओं के नजदीकी संबंधों और उनके द्वारा उन्हें मदद करने की लगातार सामने आ रही खबरों के बीच भाजपाइयों के लिए यह शेखी बघारना मुश्किल होने लगा है कि उनके वर्तमान शासन काल में भ्रष्टाचार खत्म कर दिया है। पहले भी स्पष्ट था कि भाजपाई सच्चाई के सामने न आने का फायदा उठा रहे हैं। पर यह पूंजीवादी राजनीति की बेहयाई ही है कि कोई पूंजीवादी पार्टी ऐसा दावा करे। 
        अब भाजपाईयों की बोलती बंद है। इतना ही नहीं, उनके भीतर का कलह किसी फोड़े के मवाद की तरह सामने आ रहा है। माना जा रहा है कि ललित मोदी के बारे में भाजपाई नेताओं के रहस्यों का रहस्योद्घाटन अंदरूनी कलह का ही नतीजा है पर जैसा कि हमेशा होता है, इसमें पूरी पार्टी ही लिपटती नजर आ रही है।
      अभी बहुत समय नहीं हुआ जब भाजपाईयों ने ढोल-नगाड़े के साथ घोषणा की थी कि मोदी सरकार की एक सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने देश में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खात्मा कर दिया है। इसके पहले की कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार से, उनकी नजर में यह बहुत बड़ा फर्क था। ठीक इसी तरह दिल्ली में केजरीवाल एंड कंपनी ने घोषित कर दिया था कि उनके उनके चंद महीनों के शासन के दौरान ही दिल्ली में भ्रष्टाचार खत्म हो गया है।
        पर अभी ढोल-नगाड़ों की आवाज हल्की भी नहीं पड़ी थी कि ललित मोदी और जितेंद्र सिंह तोमर प्रकरण सामने आ गए। मानो ये प्रकरण कोने में खड़े होकर इंतजार कर रहे थे कि मोदी और केजरीवाल घोषणा करें और वे सामने आकर उन्हें चार जूते लगाएं।
       कहते हैं कि झूठ के पांव नहीं होते। पर पतित पूंजीवादी राजनीति तो झूठ पर ही टिकी है। ऐसे में बिना पांव के भी उसे चलना तो पड़ेगा ही। यह संपन्न होता है एक के बाद दूसरे झूठ से और पूंजीवादी प्रचार की ताकत से। झूठों का अंबार और पूंजीवादी प्रचार इतना गर्दो-गुबार खड़ा कर देता है कि एक पूंजीवादी पार्टी द्वारा कुछ साल तक शासन करना यानी मजदूर-मेहनतकश जनता का दमन करना तथा स्वयं के लिए लूट-पाट करना संभव हो जाता है। जब यह अप्रभावी हो जाता है तो दूसरी पूंजीवादी पार्टी उतने ही झूठ और प्रचार के साथ उसका स्थान ले लेती है। कांग्रेस के बदले भाजपा या भाजपा के बदले कांग्रेस सत्ताशीन हो जाती है या फिर इन दोनों के बदले कोई तीसरा नटवरलाल भी सामने आ सकता है।
     यह सब तब तक चलता रहेगा जब तक कि झूठ और प्रचार के पीछे से झांक रही पूंजीवादी समाज की हकीकत को मजदूर वर्ग साफ-साफ पहचान नहीं लेता। और तब ललित मोदी जैसे छोटे नटवरलाल ही नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी जैसे बड़े नटवरलाल भी जहन्नुम रसीद कर दिए जाएंगे।

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