वैश्विक नेताओं में अपना नाम शामिल कराने के लिए हर समय विदेश यात्रा पर रहने वाले नरेन्द्र मोदी ने वास्तव में एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है जो उनके लिए इस दिशा में प्रमाण का काम करेगा। उन्होंलने म्यामार की सीमाओं का उल्लंघन करते हुए म्यामार के भीतर अपनी सेनाओं से गोलाबारी करवा दी। इसका घोषित कारण सरकार द्वारा वहां स्थित मणिपुर और नागालैण्ड के विद्रहियों के कैम्पों को नष्ट करना था।
साम्राज्यवादी, खासकर अमरीकी साम्राज्यवादी ऐसी हरकतें लगातार करते रहते हैं। पड़ोस में अफगानिस्तान पर तो उन्होंने कब्जा कर ही रखा है साथ ही पाकिस्तान में भी वे अक्सर हमला बोलते रहते हैं। घोषित उद्देश्य हमेशा वहां पनाह लिए आतंकवादियों को खत्म करना होता है।
साम्राज्यवादियों की नकल मोदी में सरकार ने जो कार्रवाही की है उससे संघियों के सीने फूल कर छप्पन इंच के दोगुने हो गये। स्थिति यह हो गयी है कि सूचना और प्रसारण मंत्री डा जयवर्धन राठौर ने पाकिस्तान के भीतर भी ऐसे ही हमले की डींग दी। इस पर पाकिस्तान की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई कि प्रमाणु हथियार सम्पन्न पाकिस्तान से छेड़खानी करने की हिम्मत भारत न करे।
कश्मीर और उत्तर-पूर्व में अलगाववाद और उससे संबन्धित आतंकवाद की समस्याऐं राजनीतिक हैं। पर भारतीय राज्य पिछले सात दशक से ही उन्हें कानून-व्यवस्था और सुरक्षा के मामले के रूप में लेता रहा है। पूरे देश में वह इसी के अनुरूप माहौल बनाता रहा है। अंधराष्ट्रवाद के इस विष वमन में पडोसी देशों के खिलाफ दुष्प्रचार एक अहं हिस्सा रहा है। म्यांमार और बांग्लादेश जैसे कमजोर देश इसकी धौंसपट्टी का शिकार होते रहे हैं। कभी-कभी भारतीय सेना इन देशों की सीमाओं का अतिक्रमण कर कार्रवाईंयां भी करती रही है।
स्वनामधन्य राष्ट्रवादी संघी हमेशा ही भारत की सरकारों पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि वे कमजोर हैं और पड़ोसी देशों के खिलाफ कड़ी कार्रवाही नहीं करतीं। वे तो हमेशा दावा करते रहे हैं कि उनकी सरकार बनने पर वे पाकिस्तान को तुरंत सबक सिखा देंगे।
अब जबकि संघियों की अपनी बहुमत की सरकार बन गयी है तो उन्हें दिखाने का समय आ गया है कि असलियत क्या है। पाकिस्तान के प्रति पिछली सरकारों की तरह ही व्यवहार करने को लेकर तो अब उस पर चुटीले मजाक भी होने लगे हैं।
इसी पृष्ठभूमी में भारत सरकार ने यह कार्रवाई की है। इसमें दो राय नहीं की यह कार्रवाई म्यांमार सरकार की सहमती से सम्पन्न की गई। म्यांमार सरकार की खस्ता हालत और भारत के साथ उसके नजदीकी संबंधों को देखते हुए यह आश्चर्यजनक नहीं है।
संघियों का इस कार्रवाई पर फूलकर कुप्पा होना समझ में आने वाली बात है। लेकिन उतनी यह समझ में आने वाली बात है कि इस तरह की कार्रवाइयों से उत्तर-पूर्व की राष्ट्रीयता की समस्याओं का समाधान नहीं होने वाला। घोर अंधराष्ट्रवादी संघी सरकार इन राष्ट्रीयताओं को केवल और जटिल ही बनायेगी तथा और ज्यादा दमन की ओर बढेगी।
इस संघी अंधराष्ट्रवाद और दमन का विरोध किया जाना चाहिए।
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