Tuesday, May 26, 2015

फन्ने खां की पिपहरी अथवा मोदी के एक साल

      मोदी ने स्वयं को और अपनी पार्टी को एक विशेष काम में झोंक दिया है। यह काम है राजा का बाजा बजाना यानी स्वयं नरेन्द्र मोदी का ढिंढोरा पीटना।  
      मोदी स्वघोषित तीसमार खां है। उनके अनुसार उन्होंने एक साल के भीतर ही भारत को तरक्की के उस स्तर पर पहुंचा दिया जिस पर वह पिछले सरसठ सालों में नहीं पहुंचा था-अटल बिहारी वाजपेयी के छः साल के दौरान भी नहीं ।
     पर इस देश की नामुराद जनता का क्या करें ? यह एकदम एहसान फरामोश है। वह मोदी के इस शानदार कारनामे को नजरअंदाज कर राहुल गान्धी जैसे बच्चों के चक्कर में आ जाती है जो अपने दो-चार भाषणों से ही उसे कायल कर देते हैं कि मोदी की सरकार पूंजीपतियों की सरकार है, सूट-बूट की सरकार है। वह गरीब विरोधी, मजदूर विरोधी, किसान विरोधी सरकार है। 
       इसीलिए मोदी ने स्वयं को और अपनी पार्टी को इस काम में झोंका है कि वे जाकर इस देश की मेहनतकश जनता को समझाएं कि मोदी की सरकार ने इस एक साल में उसके लिए कौन-कौन से आकाश-कुसुम तोड़े हैं। इसके लिए एक सप्ताह के भीतर 200 रैलियां और पांच हजार सभााएं की जायेंगी। 
     आजाद भारत की यह पहली सरकार है जो अपने एक साल के कारनामों का ढिंढोरा पीटने के लिए इतने बड़े स्तर का आयोजन कर रही है। वह भी तब जब लगभग पूरा का पूरा पूंजीवादी प्रचार तंत्र उसके साथ है और उसके पक्ष में हर संभव प्रचार कर रहा है। 
      पर नतीजा क्या निकल रहा है ? इस भीषण प्रचार के ठीक बीच में यह खबर आती है कि भाजपा से जुड़ा हुआ भारतीय मजदूर संघ भी सभी मजदूर संगठनों द्वारा 2 सितंबर को आहूत राष्ट्र व्यापी हड़ताल में शामिल होगा। इस हड़ताल के दो प्रमुख मुद्दे होंगे-श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तन तथा भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन।
      मोदी और उसके सेवक उसी काम में लगे हुए हैं जिसे मुहावरे में कहा जाता है कि जबरा मारे और रोने भी न दे। बल्कि इससे भी आगे बढ़कर वह कहे कि पिटकर हंसो।
     पिछले साल भर में देश में न तो गरीबी में कोई कमी आई और न बेराजगारी और मंहगाई में। सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार भी कम नहीं हुआ। बल्कि उल्टे ये सब बढ़े ही। पर मोदी और उनके सेवक चाहते हैं कि अच्छे दिन आने का जश्न मनाया जाये। उन्हें यह बात चुभ जाती है कि वे अच्छे दिन अपने पूंजीपति आकाओं के लिये लाये हैं, मेहनतकश जनता के दिन तो खराब ही हुए हैं। 
     झूठे प्रचार के इन उस्तादों ने इस अभियान में भी अपने पिछले सारे रिकाॅर्ड तोड़ने की कोशिश की है। साल भर में सी.आई.सी, सी.वी.सी और लोकपाल नियुक्त न करने वाली सरकार दावा कर रही है कि थोक भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है। डकैत कोतवाल की छुट्टी कर स्वयं की ईमानदारी का तमगा बांट रहे हैं। भूमि अधिग्रहण, श्रम कानून तथा खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी निवेश इत्यादि के मामले में इनके अपने ही संगठन विरोध कर रहे हैं पर ये प्रचार करने में व्यस्त हैं कि मेहनतकश जनता के हितों में इन्होंने बहुत कुछ कर डाला है। आंकड़ों में फेरबदल से सकल घरेलु उत्पाद की जो ऊंची वृद्धि दर सामने आई है उसे भी इन्होंने अपने खाते में डाल लिया है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल कीमतों में कमी को तो इन्होंने पहले की अपना नसीब घोषित कर दिया है। 
     मोदी और उनके सेवक तथा इनकी मातृ संस्था यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ झूठे प्रचार के उस्ताद हैं। पर इनकी सारी अफवाहें फैलाने वाली मशीनरी भी 2004 में ‘इंडिया शाइनिंग’ को स्थापित नहीं कर पायी। किसी ने उस पर विश्वस नहीं किया और वाजपेयी-आडवाणी युग का अवसान हो गया। इस बार के झूठे प्रचार पर भी कोई विश्वास नहीं करेगा और इसीलिए हो सकता है कि चार साल बाद मोदी-शाह युग का अवसान  हो जाये हालांकि गुजरात नरसंहार के ये दोनों हत्यारे ऐसा न होने देने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।

No comments:

Post a Comment