Sunday, May 17, 2015

मोदी का मेक इन इंडिया यानी मेड इन चाइना

      जनवरी में ओबामा की भारत यात्रा के समय टाइम्स आव इंडिया में एक कार्टून छपा था। इसमें मेक इन इंडिया के साइन बोर्ड के पास नरेन्द्र मोदी खड़े हैं। नीचे ओबामा एक मैग्नीफाइंग ग्लास से साइन बोर्ड के पांव पर लिखा महीन अक्षर पढ़ रहे हैं। यानी मेक इन इंडिया का साइन बोर्ड भी चीन से बनकर आया था। 
नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा का कटु सच यही है। भारत के पूंजीपति वर्ग ने पूरी बेशरमी के साथ प्रचारित किया कि इस यात्रा में जो समझौते हुए हैं उससे भारत में चीनी निवेश और तकनीक आयेगी। इस तरह प्रकारान्तर से भारत के पूंजीपति वर्ग ने अपने रिश्तों में वही चीज स्वीकार कर ली जिससे अन्यथा वह हमेशा इंकार करता रहता है यानी आज भारत की चीन से कोई तुलना नहीं है। तुर्रा यह कि गाहे-बगाहे चीन से प्रतिद्वंद्विता  की खबरे आती रहती हैं। 
आज भारत का पूंजीपति वर्ग बड़ी हसरत के साथ चीन के पूंजीवादी विकास को देखता है। वह अपने यहां भी उसे हासिल करने के सपने पालता है। पर वह यह भूल जाता है कि चीन के इस पूंजीवादी विकास की पृष्ठभूमि में एक आमूलगामी क्रांति है। चीन की क्रांति और करीब चैथाई सदी के समाजवाद के बिना आज चीन का पूंजीवादी विकास नहीं होता। 
भारत का पूंजीपति वर्ग हमेशा से ही समझौतापरस्त रहा है। उसने सामन्तवाद और साम्राज्यवाद से समझौता किया। एक लम्बे समय में उसने पूंजीवादी समाज कायम तो कर लिया पर यह ऐसा पूंजीवाद है जो नये और पुराने दोनों समाजों की बुराइयों से ग्रस्त है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा यहां की मजदूर-मेहनतकश जनता को भुगतना पड़ रहा है। 
लेकिन मजदूर वर्ग इस सबसे निजात किसी अच्छे किस्म के विकसित पूंजीवाद में नहीं देख सकता। पूंजीपति वर्ग के सपने चाहे जो हों, मजदूर वर्ग का सपना केवल इस मौजूदा पूंजीवाद का विनाश ही हो सकता है। मेक इन इंडिया, मेड इन चाइना हो या मेड इन अमेरिका-यूरोप, मजदूर वर्ग इसके पूर्णतया खिलाफ है। 

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