मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही जब बीमा क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा बढ़ाने के लिए आनन-फानन में कदम उठाया (जिसमें उसे कांग्रेस पार्टी से सहयोग के चलते सफलता भी मिली) तो सब के जहन में यही सवाल था कि इसको व्यवहार में उतारने का तरीका क्या होगा। भारत में बीमा कराने वालों की संख्या काफी कम है और अभी भी इस क्षेत्र में कार्यरत ढेरों कंपनियों का व्यवसाय कोई अच्छा नहीं चल रहा है (पहले से ही स्थापित सरकारी बीमा कंपनी एल आई सी को छोड़कर)।
लेकिन अब वक्त गुजरने के साथ तस्वीर कुछ स्पष्ट होने लगी है। इस बीच सरकार ने कुछ ऐसे कदम उठाए हैं जिससे पता चल रहा है कि आगे बीमा कंपनियों को कैसे व्यवसाय मिलेगा और वे कैसे बढ़-चढ़कर मुनाफा कमाएंगी।
सरकार ने संगठित क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों के लिए कर्मचारी राज्य बीमा यानी ई एस आई को अब वैकल्पिक कर दिया है। अब यह अनिवार्य के बदले मजदूर की इच्छा पर हो गई है। ई एस आई का गठन 1948 में हुआ था जिसके अनुसार मजदूरों के वेतन से एक छोटा सा हिस्सा कटता था और नियोक्ता लगभग उतना ही (थोड़ा सा ज्यादा) पैसा और डालकर ई एस आई कोष में जमा करा देता था। इससे जो कोष बनता था उससे ई एस आई विभाग मजदूरों के लिए अस्पताल चलाता था, कुछ निजी अस्पतालों में इलाज के लिए उन्हें पैनल पर रखता था तथा दुर्घटना की स्थिति में मजदूर को मुआवजा देता था। संगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए यह एक बड़ी सुविधा थी, यह इसके बावजूद कि ई एस आई के अस्पतालों की हालत खस्ता है और मजदूरों को दर-दर भटकना पड़ता था।
अब ई एस आई वैकल्पिक हो जाने के बाद या तो मजदूर निजी अस्पतालों में अपने पैसे से इलाज कराएँगे या फिर वे निजी बीमा कंपनियों से स्वास्थ्य बीमा करवाएंगे। ई एस आई की खस्ता हालत से वाकिफ मजदूर निजी स्वास्थ्य बीमा की ओर जाएंगे और वहां बेतहाशा लुटेंगे। जब तक मजदूर वर्ग को वास्तविकता का एहसास होगा तब तक ई एस आई पूरी तरह बंद किया जा चुका होगा। निजी बीमा कंपनियों और अस्पतालों की चांदी ही चांदी होगी।
बात इतनी ही होती तो गनीमत होती। लेकिन मोदी सरकार तो हर तरह की सीमा तोड़ रही है। पहले जन-धन योजना के तहत खाता खोलने पर तीस हजार रुपए के स्वास्थ्य बीमा और एक लाख रुपए का दुर्घटना बीमा की सरकार ने घोषणा की। सरकार के हिसाब से अब तक इस योजना में पंद्रह करोड़ खाते खोले गए हैं। यानी सरकार ने कुल करीब बीस लाख करोड़ रुपए का बीमा व्यवसाय बीमा कंपनियों को दिया।
यहां तो तब भी बीमे का प्रीमियम सरकार ने भरा। पर अब सरकार ने दो नई दुर्घटना बीमा योजना और एक पेंशन योजना की घोषणा की है। एक दुर्घटना बीमा योजना में सरकार की ओर से बैंकों को कहा गया है कि वह खाताधारक के खाते से 330 रुपया काटकर बीमा के प्रीमियम के तौर पर भेज दें। आगे भी हर हर साल 330 रुपए का प्रीमियम भरना होगा। इसमें सरकार की ओर कोई पैसा नहीं दिया जाएगा। दूसरी दुर्घटना बीमा भी लोगों के पैसों से ही होगी। जहां तक पेंशन योजना का संबंध है, उसमें आधा पैसा सरकार देगी। लेकिन इसमें जीवन भर कुछ तीन-चार लाख रुपया जमा करने के बाद साठ साल की उमर के बाद प्रति माह एक हजार रुपया पेंशन मिलेगी। मरने पर सारा पैसा बीमा कंपनी का हो जाएगा।
कहने की बात नहीं कि यह सारी बीमा योजनाएं निजी बीमा कंपनियों और पेंशन फंडों द्वारा संचालित होंगी। सरकारी बीमा कंपनियों में भी और ज्यादा विनिवेश कर उन्हें पूर्णतया निजी कंपनियों की तरह संचालित किया जाएगा। इस तरह बीमा कंपनियों का एक बड़ा जाल अस्तित्व में आएगा। इसीलिए रोज-रोज नई बीमा कंपनियां कुकुर मुत्तों की तरह पैदा हो रही हैं। यह सारी बीमा कंपनियां शेयरों से लेकर अन्य वित्तीय सट्टा बाजार में अपना पैसा लगाएंगी जो पहले से अंतरराष्ट्रीय वित्तयी बाजार से जुड़ा हुआ है। इस तरह वह भारत में भी भारी लूट-पाट के साथ वह वित्तयी हालत पैदा करेंगी जिसके चलते 2007-08 का वित्तयी संकट सारी दुनिया में आया था और जिसकी मार आज भी सारी दुनिया झेल रही है।
संघी मोदी सरकार इन वित्तीय सट्टेबाज लुटेरों के रास्ते न केवल सुगम कर रही है बल्कि लोगों को मजबूर कर रही है कि वह इसके जाल में फंसे। वह लोगों से बिना पूछे उनका पैसा इन्हें सौंप दे रही है। वह वित्तीय सट्टेबाज लुटेरों की सेवा में सारी हदें पार कर रही हें।
मोदी सरकार की इन लुटेरी नीतियों का हर संभव विरोध करना होगा।
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