Sunday, March 29, 2015

बेहया पूंजीवाद के बेहया लोग अथवा आम आदमी पार्टी

      आम आदमी पार्टी के ड्रामे का दूसरा और शायद सबसे महत्वपूर्ण अंक खेला जा चुका है। इस अंक के बाद इस ड्रामे को त्रासदी या प्रहसन दोनों की श्रेणी में रख पाना मुश्किल होने लगा है। यह विदूषकों की जमात की उछल-कूद ज्यादा लगती है जिसमें ट्रेजडी-कमेडी, षडयंत्र-प्रतिषडयंत्र, धरना-प्रदर्शन, मार-पीट सब आपस में इस कदर गुथ गये हैं कि चेहरे पहचानने मुश्किल हो गये हैं। होली पर हुल्लड़ों की जमात भी यह नजारा पेश नहीं कर सकती।
     बहुत समय नहीं हुआ जब कई सारे स्वनामधन्य बुद्धिजीवियों  ने वाम को गाली देते हुए इस उत्तर-आधुनिक, विचारधारा विहीन या उत्तर-विचारधारा वाली पार्टी की शान में कसीदे गढ़े थे। पूंजीवादी प्रचारतंत्र द्वारा पाली-पोषी गयी इस पार्टी की शान में इस कसीदे और प्रचार का ही असर था कि वाम के भी कुछ लोग अपने ऊपर भरोसा न करते हुए इसकी ओर झुकने लगे थे। एक ओर जहां सरकारी कम्युनिष्ट पार्टियों के कमल मित्र चिनाय जैसे लोग सीधे इसमें शामिल हो गये तो दूसरी ओर क्रांतिकारी संगठनों के भी कुछ दृढ़ आस्था विहीन लोग चुपके-चुपके इसकी ओर निहारने लगे और क्रांतिकारी संगठनों को कोसने लगे कि वे इस पार्टी जैसी सफलता क्यों नहीं हासिल कर रहे हैं। पूंजीवादी पार्टियों से लेकर सरकारी कम्युनिष्ट पर्टियों तक इस पार्टी से सीखने की मांग उठने लगी। 
      और अब दिल्ली में अभूतपूर्व और अप्रत्याशित चुनावी सफलता के दो महीने बाद ही हर ऐरे-गैरे नत्थू खैरे के लिए यह आम हो गया कि यह पार्टी पूंजीवादी पार्टियों का ईलाज नहीं बल्कि उनकी सड़ान्ध की सबसे घनीभूत अभिव्यक्ति है। यह इन पार्टियों की सड़ान्ध का समाधान पेश नहीं करती बल्कि उनका सबसे घृणित नमूना पेश करती है। 
     और ऐसा होना भी चाहिए। यह पूंजीवादी पार्टी बाकी पूंजीवादी पार्टियों की तरह एक लम्बे समय में स्थापित और विकसित पार्टी नहीं है जो एक लम्बी प्रक्रिया में कट-छंट कर पूंजीवादी व्यवस्था के अनुरूप परिपक्व हो जाती है। यह पूंजीपति वर्ग के पैसे और उसके प्रचारतंत्र के द्वारा ऊपर से टपकाई गयी पार्टी है। इसके सारे कारकून बेहद महत्वकांक्षी ऐसे व्यक्ति हैं जो गैर सरकारी संगठनों के संचालक या पूंजीवादी प्रचारतंत्र-पूंजीवादी संस्थानों में पेशेवर लोग रहे हैं। कोई विचारधारा इन्हें आपस में नहीं जोड़ती। इन्हें जोड़ती है उनकी तीव्र महत्वकांक्षा-रातों रात नरेन्द्र मोदी बन जाने की महत्वकांक्षा, रातों रात एक चाय वाले से देश का प्रधानमंत्री बन जाने की महत्वकांक्षा। और जब दिल्ली चुनावों में इन्हें अप्रत्याशित सफलता मिल गयी तो इनके बीच इस बात को लेकर संघर्ष तीव्र रूप में फूट पड़ा कि अगला नरेन्द्र मोदी कौन हो। लेकिन इस पार्टी के पीछे न तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ताना-बाना और अनुशासन था और न ही भाजपा का लम्बे समय का सांगठनिक अनुशासन। इसलिए तुरंत ‘फ्री फॉर आल’ हो गया। इस ‘फ्री फॉर आल’ में उसका पलड़ा भारी होना ही था जिसके हाथ में फिलहाल सत्ता है। इसीलिए केजरीावाल एण्ड कंपनी यादव-भूषण एण्ड कंपनी को मारपीट कर किनारे लगाने में कामयाब हो गयी। आम आदमी पार्टी को अपना असली चरित्र दिखाने में जनता पार्टी की तरह दो साल भी नहीं लगे, यह दो महीने में हो गया। 
       इस घटनाक्रम ने उस चिर स्थापित बात को एक बार फिर रेखांकित किया कि पूंजीवादी व्यवस्था की इस सांध्य बेला में इसके भीतर सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। कि इसे सुधारने की बात करने वाले पहले वालों से ज्यादा बुरे साबित होते हैं।  कि नयों का मुंह काला होने में और भी कम समय लगता है। कि इसमें जो ईमानदारी की जितनी जोर-शोर से बात करता है वह उतना ही बड़ा बेईमान साबित होता है। कि इसकी आम प्रवृत्ति तानाशाही और फासीवाद की ओर है, जनवाद की ओर नहीं। 
      कम से कम क्रांतिकारी वाम में इन बातों को लेकर कोई संशय नहीं होना चाहिए। 


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