Sunday, March 1, 2015

जम्मू-कश्मीर में संघी सरकार

       आखिरकार चुनावों के दो महीने बाद जम्मू और कश्मीर में नयी सरकार बन गयी। पी डी पी के मुफ्ती मुहम्मद सईद मुख्यमंत्री बन गये हैं जबकि भाजपा को उपमुख्यमंत्री का पद मिला है। चुनावों में धुर विरोधी रहे पी डी पी और भाजपा ने मिलकर सरकार बनायी है और इसके पीछे संघ परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
        जब जम्मू-कश्मीर में विधान सभा के चुनाव हुए थे तो पी डी पी और भाजपा ने जमकर एक दूसरे के खिलाफ प्रचार किया था। तब तक नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस की मिली जुली सरकार सत्ता में थी। जैसा कि हमेशा होता है इन सत्ताधारी पार्टियों के खिलाफ लोगों में बेतरह गुस्सा था और पी डी पी व भाजपा दोनों इस गुस्से को अपने पक्ष में भुनाना चाहते थे। 
           भाजपा ने पहली बार कश्मीर घाटी में भी अपने पांव पसारने का गंभीर प्रयास किया लेकिन उसका साम्प्रदायिक और कश्मीर विरोधी चेहरा इसमें बड़ा बाधक था। पूरी धूर्तता के साथ भाजपा ने जम्मू इलाके में पूर्णतया हिन्दु साम्प्रदायिक रुख अपनाया पर कश्मीर घाटी में मुस्लिम आबादी को लुभाने के लिए चिकनी चुपड़ी बातें की। पर एक खुली हिन्दु साम्प्रदायिक पार्टी के झांसे में कश्मीर के लोग नहीं आ सकते थे तब तो और जब इस पार्टी का सात दशकों का अतीत पूर्णतया मुसलमान विरोध, पाकिस्तान विरोध और कश्मीर विरोध का रहा हो। कहा तो यहां तक जा रहा है कि भाजपा के कश्मीर में पांव पसारने के प्रयास के कारण ही वहां इस बार बड़े पैमाने का मतदान हुआ क्योंकि लोग किसी भी कीमत पर वहां भाजपा को नहीं जीतने देना चाहते थे। 
          दूसरी ओर पी डी पी ने कश्मीर घाटी को लुभाने के लिए चिकनी-चुपड़ी बातें कीं। उसने न केवल धारा-370 में छेड़छाड़ का विरोध किया बल्कि कश्मीर घाटी से सेना और आफ्सपा हटाने की भी मांग की। ऐसा करते हुए उसने सुविधापूर्वक अपने पुराने शासन के अतीत को भुला दिया। 
         इन सारी चालबाजियों का परिणाम यह निकला कि भाजपा और पी डी पी दोनों क्रमशः जम्मू क्षेत्र और कश्मीर घाटी की ज्यादातर सीटें जीतने में कामयाब रहे। भाजपाई जम्मू-कश्मीर का पूर्ण साम्प्रदायिक ध्रुवीकरणर करने में कामयाब हो गये। इस आधार पर वे आगे प्रदेश के विभाजन की मांग कर सकते हैं। वर्तमान चुनाव भाजपा और संघ परिवार की सफलता लेकर आये। 
          पर भाजपा के लिए निराशाजनक रहा कि वे सबसे बड़ी पार्टी  नहीं बन सके अन्यथा वे सरकार बनाने के लिए सहज दावेदार होने का दावा करते। अब उनके पास पी डी पी से सांठ-गांठ करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। 
         इसके बाद सांठ-गांठ के लिए मोल-भाव का लम्बा सिलसिला चला। चुनावों में एक दूसरे का विरोधी दल होने का दावा करने वालों के लिए यह आसान नहीं था, खासकर जब कश्मीर का मुद्दा बीच में हो। पी डी पी के लिए यह ज्यादा मुश्किल था। इसीलिए वह यह दिखाने के लिए जी-तोड़ प्रयास करती रही कि आगामी सरकार में कश्मीर के लोगों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं होगा। अंततः उसने इसके लिए भाजपा की ओर से धारा 370 में छेड़-छाड़ न करने का औपचारिक बयान दिलवाया। राज्यसभा में भाजपा सरकार के औपचारिक बयान के बाद ही जम्मू कश्मीर की नयी सरकार ने शपथ ली। 
         वास्तव में पी डी पी या नेशनल कान्फ्रेंस कश्मीर के पूंजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं जो कि शेष भारत के शासक पूंजीपति वर्ग के साथ एकीकरण का पक्षधर है। इसी कारण वे जम्मू-कश्मीर के आत्म निर्णय के अधिकार का पक्षधर होने के बदले केवल ज्यादा स्वायत्ता की बात करती हैं। दूसरी ओर कश्मीर की लगभग सारी आबादी आजादी के संदर्भ में ही सोचती है। इसी कारण जम्मू-कश्मीर की कोई भी सरकार नाम मात्र की होती है और वास्तविक शासन सेना के हाथों में होता है। 
          आने वाले समय में इस हकीकत में कोई तबदीली नहीं होने वाली। हां, भाजपा के सरकार में शामिल होने से और केन्द्र में भाजपा की सरकार होने से कश्मीर में विद्रोही जनता का दमन तेज ही होगा। 
           सभी जनवादी व क्रांतिकारी शक्तियों को इस दमन का हर स्तर संभव विरोध करना होगां  

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