Saturday, February 28, 2015

मोदी-जेटली का काॅरपोरेट बजट

      मोदी के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज 2015-16 के लिए केन्द्र सरकार का बजट पेश किया। यह उनका दूसरा बजट था।
      जैसा कि मोदी के वित्त मंत्री से उम्मीद थी इसमें दोनों बातें थीं- पूंजीपतियों के लिए सौगातों की बौछार तथा जनता के लिए झूठ का अंबार।
       पूंजीपति वर्ग के मोदी पर किये गये एहसान के बदले इस बजट में सम्पत्ति कर समाप्त कर दिया गया। अब पूंजीपतियों के पास चाहे जितनी सम्पत्ति हो उन्हें कोई कर नहीं देना पड़ेगा। इसी के साथ काॅरपोरेट टैक्स को भी घटाकर 30 प्रतिशत से 25 प्रतिशत कर दिया गया। ध्यान देने की बात है कि भारत में काॅरपोरेट टैक्स अन्य देशों के मुकाबले पहले ही बहुत नीचे है।
       देशी पूंजीपतियों को यदि इतनी छूटें मिल रही हैं तो विदेशी पूंजीपतियों को भी कुछ क्यों न मिले ? इस बजट से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा पोर्टफोलियो निवेश में अंतर समाप्त कर दिया गया है। अब से दोनों विदेशी पूंजी निवेश एक समान माने जायेंगे। यह वित्तीय पूंजी के एकीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।
       पूंजीपति वर्ग को इन सौगातों के बरक्स जनता के क्या हाल हैं ? जैसी आशंका थी, उसी के अनुरूप व्यवहार करते हुए इस बजट में कुल सब्सिडी में करीब दस प्रतिशत की कटौती कर दी गयी है। यह पिछले साल के दो लाख तिरपन हजार करोड़ रुपये के बदले अब केवल दो लाख सत्ताइस हजार करोड़ रुपये होगी। वास्तव में यह कटौती करीब पच्चीस प्रतिशत है क्योंकि इस साल सकल घरेलू उत्पाद (चालू कीमतों पर) पिछले साल के मुकाबले करीब पन्द्रह प्रतिशत ज्यादा होगा। मोदी ने लोकसभा में बड़े जोर-शोर से घोषणा की कि जनता के लिए सभी योजनाएं जारी रहेंगी। पर यदि इन योजनाओं पर खर्च राशि में इसी दर से कटौती होती रहीे तो ये योजनाएं नाम भर की रह जायेंगी। मनरेगा की राशि पिछले सालों में सकल घरेलू उत्पाद के 0.84 प्रतिशत से घटते-घटते 0.2 प्रतिशत से भी नीचे जा चुकी है।
       चुनावों में किसानों से बड़े-बड़े वायदे करने वाले मोदी ने इस बजट में खाद सब्सिडी में कटौती की। फसलों के समर्थन मूल्य को पचास प्रतिशत बढ़ाने के वायदे का कहीं अता-पता नहीं है और न ही कर्जों की माफी का। हाॅं, सरकारी खाद्य भंडारण को समाप्त करने की दिशा में कदम की जरूर चर्चा है।
        झूठ का आलम यह है कि आर्थिक सर्वे से लेकर इस बजट तक में देश की अर्थव्यवस्था के हाल बेहतर होने की दुदुंभि बजायी जा रही है। सच्चाई यह है कि वित्त मंत्री के मुख्य सलाहकार अरविन्द सुब्राणियम लिखकर घोषणा कर रहे हैं कि उन्हें पता नहीं है कि आखिर पिछले दो सालों में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के इतने ज्यादा आंकड़े कहां से आ गये। सकल घरेलू उत्पाद के प्रमुख क्षेत्र यानी उद्योग, कृषि और आयात-निर्यात की स्थिति खस्ता है लेकिन वृद्धि दर को एन.एस.ओ. ने 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत तक पंहुचा दिया और अगले साल आठ-साढ़े आठ प्रतिशत वृद्धि दर की घोषणा कर दी।
        इस तरह की बाजीगरी और उस पर आधारित खुद की झूठी तारीफ आसान है। लेकिन अर्थव्यवस्था की असली स्थिति अंततः अपने को जनता की थाली में रोटी की मात्रा और गुण में अभिव्यक्त करती है। जहां पूंजीपतियों को तिजोरियां पिछले दशकों में सोने-चांदी से और लदती गयीं है वहीं गरीब जनता की थाली और मोहताज होती गयी है। इसी हकीकत ने पिछले चुनावों में कांग्रेस पार्टी की दुर्गति की। बहुत जल्दी ही यह हकीकत मोदी के सिर पर भी ओले बरसायेगी।
       तब तक मोदी, जेटली इत्यादि अपने झूठ-फरेब का खेल खेल सकते हैं। 

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