फ्रांस के रष्ट्रपति फ्रांसुआं आलां और जर्मनी की चांसलर अंजेला मार्केल इस समय रूस की राजधानी मास्को में हैं। वे वहां रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के साथ वार्ता कर उक्रेन का भविश्य तय करना चाहते हैं। ठीक इसी समय अमेरिकी साम्राज्यवादी उक्रेन के राष्ट्रपति के साथ लगातार संपर्क में हैं।
उक्रेन को लेकर दुनिया के चार प्रमुख साम्राज्यवादी देशों की इस उच्च स्तरीय सरगर्मी की वजह पूर्वी उक्रेन के अलगाववादियों की वह सैनिक बढ़त है जो उन्होंने पिछले दिनों में हासिल की है। इस क्षेत्र में उक्रइंनी सेना हारने के कगार पर है। पूर्वी उक्रेन के अलगाववदियों को जहां रूसी साम्राज्यवादीयों का खुला समर्थन प्राप्त है वही उक्रेन सरकार को पश्चिमी साम्राज्यवादियों का।
उक्रेन को लेकर पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने खुली जंग 2013 में शुरू की थी जब उन्होंने रूस की ओर झुकी सरकार को सत्ताच्युत करने के लिए आंदोलन अयोजित किया था। इसमें उन्हें सफलता मिली। उक्रेन में पश्चिम परस्त लोग सत्तारूढ हो गये। पर रूसी साम्राज्यवादीयों ने हार नहीं मानीं। उन्होंने पहले तो क्रीमियां को रूस में मिला लिया और फिर उक्रेन के पूर्वी हिस्से को अलग हो जाने के लिए प्रोत्साहित किया।
रूसी साम्राज्यवादीयों के इस दुःस्साहस से भड़क कर पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने न केवल धुआंधार प्रचार अभियान चलाया बल्कि रूस पर प्रतिबंध लगाने पर उतर आये। G8 से भी रूस को बाहर कर दिया। पर रूसी साम्राज्यवादी अभी भी पीछे हटने को तैयार नंही हैं और अब किसी तरह का समझौता करने के लिए आलां और मार्केल पुतिन से बातचीत में मशगूल हैं।
उक्रेन का यह ताजा घटनाक्रम अपने प्रभाव क्षेत्र को लेकर साम्राज्यवादियों के बीच जंग का ही उदाहरण है। इसमें उन्हें एक पूरे देश की तबाही और हजारों-लाखों लोगों की जान की कोई चिन्ता नहीं है। अब तक उक्रेन के इस विवाद में पांच हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और उक्रेन की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है। ऊपर से तुर्रा यह कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष उक्रेन की सहायता के नाम पर उसे निचोड़ने के लिए वहां पहुच चुका है। वैसे साम्राज्यवादियों का वास्तविक लक्ष्य भी यही है।
ओबामा, पुतिन, आलां और मार्केल जैसे यमदूतों के विनाश के बिना उक्रेन जैसे देश इनकी चालों का शिकार होकर तबाह हाते रहेंगे।
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