सरकारी आंकड़ों के हिसाब से अब तक देश में स्वाइन फ्लू से सात सौ से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। किसी भी विकसित देश में मौतों का यह आंकड़ा पूरे समाज के लिए चिंता का विषय होता पर अपने देश में यह सामान्य बात है। जिस देश में हर छोटी-मोटी बीमारी से हजारों लोग मरते रहते हों वहां सात सौ मौतों को सरकार महामारी की संज्ञा नहीं दे सकती।
भारतीय डाक्टरों का कहना है कि स्वाइन फ्लू से मरने का खतरा उससे ज्यादा नहीं है जितना किसी भी तरह के अन्य फ्लू से। इसलिए घबराने की बात नहीं। डाक्टरों की बात सच हो सकती है क्योंकि इस देश में सामान्य सर्दी-जुकाम से भी लोग मरते ही रहते हैं। यदि सामान्य सर्दी जुकाम से लोग मरते हैं तो इसकी एक खास किस्म यानी स्वाइन फ्लू से घबराने की क्या बात है।
भारतीय समाज का यही कटु यथार्थ है। चिकित्सा विज्ञान के इस आधुनिक युग में बच्चों से लेकर बूढ़े तक अति सामान्य बीमारियों से मौत का शिकार हो जाते हैं। डायरिया से लेकर सर्दी जुकाम तक सब इसमें शामिल हैं। टीबी जैसी बीमारी तो लाखों लोगों को निगल रही हैं। इस अवस्था में कोई आश्चर्य नहीं कि भारत में मृत्यु दर इतनी ज्यादा है। भारत स्वास्थ्य मानकों पर श्रीलंका जैसे देशों से पीछे है।
इस सिथति को सुधारने के लिए पूरी चिकित्सा व्यवस्था को सरकारी हाथों में लेकर उस पर पर्याप्त खर्च करने के बदले सरकार उसे निजी हाथों में अधिकाधिक दे रही है जिससे पूंजीपति उससे मनचाहा मुनाफा कमा रहे हैं। वे बिमारियों और मौत का व्यवसाय धड़ल्ले से कर रहे हैं।
स्वाइन फ्लू के मामले में भी यही हो रहा है। इस बिमारी से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर हर तरह का प्रबंध करने के बदले उससे मुनाफा कमाने के लिए निजी अस्पतालों को पूरा मौका दिया जा रहा है। निजी अस्पताल और जांच केंæ चार-पांच हजार रुपए में जांच कर रहे हैं। इस बीमारी के भय से मरीजों का भरपूर दोहन करने के लिए भी वे तरह-तरह के रास्ते निकाल रहे हैं।
स्वाइन फ्लू का ताजा मामला भी इसी बात को रेखांकित करता है कि देश की समूची चिकित्सा व्यवस्था को सरकारी हाथों में लेकर उसमें आमूल-चूल परिवर्तन की मांग के लिए संघर्ष को तेज किया जाए। कम से कम पिछले योजना आयोग द्वारा गठित हाई लेवल ग्रुप की इस संबंध में रिपोर्ट को लागू किया जाए। क्यूबा या यहां तक तक कि इंग्लैंड का भी उदाहरण दिखाता है कि इसके लिए देश में संसाधनों की कमी नहीं है। जरूरत इस बात की है कि सरकार देश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में अमरीकी माडल लागू करना बंद करे जिसमें स्वास्थ्य क्षेत्र अस्पतालों, दवा-औजार कंपनियों तथा बीमा कंपनियों के मुनाफे का बहुत बड़ा क्षेत्र बन गया है जबकि गरीब आबादी चिकित्सा पाने से लगातार वंचित है।
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