(यह टिप्पणी 28 दिसम्बर, 2013 को तब प्रकाशित की गई थी जब अरविन्द केजरीवाल ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। तब से स्थितियों में थोड़ा ही परिवर्तन हुआ है। इसीलिए इसे पुनर्प्रकाशित किया जा रहा है। फेंकू की हवा प्रधानमंत्री बनाने के बाद पिछले नौ महीले में काफी निकल चुकी है। पल्टू की भी हवा निकलने में ज्यादा देर नहीं लगेगी, खासकर इसलिए कि गरीब जनता को उससे बहुत उम्मीदें हैं।)
इतिहास में दिल्ली कई बार लुटी है। लेकिन हर बार दिल्लीवासियों को पता था कि आने वाला लुटेरा आतताई है। उन्हें उसके बारे में कोई भ्रम नहीं था। लेकिन इस बार दिल्लीवासी लुटेरे का दिल खोलकर स्वागत कर रहे हैं और उसे सर आखों पर बिठा रहे हैं।
इतिहास में दिल्ली कई बार लुटी है। लेकिन हर बार दिल्लीवासियों को पता था कि आने वाला लुटेरा आतताई है। उन्हें उसके बारे में कोई भ्रम नहीं था। लेकिन इस बार दिल्लीवासी लुटेरे का दिल खोलकर स्वागत कर रहे हैं और उसे सर आखों पर बिठा रहे हैं।
वैसे सही-सही कहें तो यह बहरूपिया, मजमेबाज लुटेरा अकेला नहीं है। उसका एक पूरा गैंग है। इससे भी आगे यह कि इस गैंग को देश के पूंजीपति हर तरीके से स्थापित कर रहे हैं। इसके पहले ऐसा कब हुआ कि एक प्रदेश के (जो पूर्ण प्रदेश भी न हो) मुख्यमंत्री का पद शपथ ग्रहण समारोह पूंजीवादी प्रचार माध्यमों में उत्सव बन गया हो ?
इस बहरूपिये मजमेबाज ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अपनी क्रांति के लिए भगवान,अल्लाह,गॉड , वाहेगुरू को धन्यवाद दिया और कहा कि वह देश को पांच साल में सोने की चिडि़या बना देगा। इतिहास में यह सबसे नायाब क्रांति है जो किसी को दिखी नहीं और जिसे मजमेबाज सम्पन्न करने का दावा करता है।
इस देश ने पहले भी यह देखा है कि 1947 में आजादी के समय हर आंख के आंसू पोंछने का वायदा किया गया था। फिर 1977 में दूसरी आजादी आने की घोषणा की गयी। अब ये मजमेबाज इनसे भी आगे बढ़कर क्रांति हो जाने की बात कर रहे हैं।
ये बहरूपिये मजमेबाज इतने धूर्त हैं कि इस सामान्य तथ्य को कभी रेखांकित नहीं होने देते कि वे उन्हीं भ्रष्ट लोगों के समर्थन से सरकार बना रहे हैं जिन्हें ठीक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही उन्होंने चुनावों में घेरा था। ये ऐसे ‘ईमानदार’ लोग हैं जो बेईमानों के सहयोग से सरकार बना रहे हैं और उन बेईमानों की मदद से बेईमानी दूर करने का दावा करते हैं। सड़क किनारे वाले मजमेबाज भी इतनी बड़ी बाजीगरी नहीं दिखा सकते।
ये बहरूपिये मजमेबाज दावा कर रहे हैं कि वे पांच साल में देश को सोने की चिडि़या बना देंगे। पर देश तो पहले ही सोने की चिडि़या है। यदि ऐसा नहीं होता तो यहां रोज-रोज अरबपति कैसे पैदा होते और उनकी दौलत घड़ी-घड़ी कैसे बढ़ती ? इन अरबपतियों-खरबपतियों के बारे में यह कुछ नहीं बोलते क्योंकि ये वास्तव में उन्हीं की तो जारज संतान हैं। उनके बिना क्या ये दिल्ली में लुटेरे बन सकते थे ?
ये बहुरूपिये मजमेबाज अच्छी तरह जानते हैं कि आज मजदूर-मेहनतकश जनता की गरीबी-बदहाली सहित भ्रष्टाचार का असली स्रोत छुट्टा पूंजीवाद है। ऐसा इसलिए कि इनके एक सदस्य ने तो इस बारे में एक अच्छा-खासा लेख ही लिखा था। लेकिन छुट्टे पूंजीवाद पर लगाम लगाने की जुबानी जमाखर्च भी न करने वाले ये मजमेबाज बदहाल जनता को बता रहे हैं कि वे उसकी बदहाली दूर कर देंगे। निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियां जारी रहेंगी लेकिन जनता को बिजली-पानी मिलने लगेगा !
आज मजदूर-मेहनतकश जनता की जिन्दगी में रत्ती भर भी बेहतरी के लिए जरूरी है कि निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों को पलटा जाये। इसका सीधा सा मतलब है - देश के अरबपतियों-खरबपतियों के मुनाफे में कटौती। आज सभी पूंजीवादी पार्टियां इस मुनाफे को बढ़ाने के प्रति समर्पित हैं। यही बात इन मजमेबाजों के बारे में भी सच है। पर इस सच्चाई को ये हजार तरीके से छुपा रहे हैं। पर यह कब तक छिपेगा ?
बहुरूपिया मजमेबाज होने के चलते ये राजनीतिक तौर पर पहले से मौजूद पूंजीवादी पार्टियों से भी ज्यादा पतित और भ्रष्ट हैं क्योंकि ये लोगों की उदात्त भावनाओं से खेल रहे हैं। ये हजारों आदर्शवादी नौजवानों को छल रहे हैं। ये उस मेहनतकश आबादी को छल रहे हैं जो कांग्रेस-भाजपा इत्यादि को बखूबी पहचानती है।
वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि पतित पूंजीवादी व्यवस्था के जीवन को लम्बा खींचा जा सके। इसीलिए पूंजीपति वर्ग इन्हें आगे बढ़ा रहा है। लेकिन भांडा बहुत जल्द ही फूट जायेगा। तब ये और भी ज्यादा मजदूर-मेहनतकश जनता की घृणा के पात्र होंगे।
राजनीति में बहुरूपिये मजमेबाजों का जीवन कभी भी लम्बा नहीं रहा है।
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