Thursday, December 25, 2014

अंधा बांटे रेवड़ी ...

कहावत है कि अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को दे। और जब अंधा संघी हो तो कहना ही क्या? संघी सरकार ने घोषणा की है कि मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से नवाजा जायेगा। अब से ये भारत के रत्न हो जायेंगे। 
इन दोनों विभूतियों की खासियत क्या है जिसकी वजह से मोदी की संघ सरकार इन्हें भारत रत्न घोषित कर रही है? यही कि दोनों हिन्दू मानसिकता के व्यक्ति हैं? 
मदन मोहन मालवीय वे सज्जन हैं जिन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सीधे विरोध में था। मालवीय महोदय हिन्दू महासभा से भी जुड़े रहे। अपने विचारों की वजह से वे कांग्रेस में सबसे हिन्दूवादी तत्वों में गिने जाते थे। 
जहां तक अटल बिहारी वाजपेयी की बात है वे जनसंघ की स्थापना से ही उसके सदस्य थे और भाजपा के सर्वोच्च नेता। इसी रूप में वे प्रधानमंत्री बने। वे खूंखार संघ परिवार के उदार चेहरा थे। 
स्पष्ट ही है कि संघी सरकार ने अपने लोगों को भारत रत्न घोषित किया है। यह आगे भी होगा। और भी हिन्दूवादी भारत रत्न अपनी कब्रों से या मृत्युशैया से खड़े होकर लाइन लगा रहे होंगे। 
लेकिन यहां यह कहना होगा कि मोदी की संघी सरकार पहले की परम्परा को ही आगे बढ़ा रही है। जवाहर लाल नेहरू ने 1955 में और इंदिरा गांधी ने 1971 में खुद को भारत रत्न घोषित कर दिया था। यह आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि नरेन्द्र मोदी अगले दो-तीन सालों में भारत रत्न हो जायें। 
पूंजीपति वर्ग और इसके जर खरीद गुलाम बहुत जोर-शोर से मजदूर वर्ग के ऐतिहासिक नेताओं पर व्यक्ति पूजा का अरोप लगाते हैं। पर इन ऐतिहासिक नेताओं के नाखूनों के बराबर भी नहीं बैठने वाले अपने पूंजीवादी नेताओं की ये हर तरह से बढ़-चढ़कर प्रशंसा करते हैं। उन्हें हर तरह से स्थापित करने का प्रयास करते हैं। 
पर माटी के ये पुतले देवता नहीं बन पाते और बारिश की पहली ही बौछार उन्हें अपने साथ बहा ले जाती है। 

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