नये साल की पूर्व संध्या पर मोदी सरकार ने देश के किसानों को तोहफा दिया। यह तोहफा एक अध्यादेश की शक्ल में था जिसके जरिये जमीन अधिग्रहण कानून, 2013 के प्रावधानों को ढीला कर किसानों की जमीनों को उनसे छीना जाना और आसान कर दिया गया। यह निवेश और परियोजनाओं को प्रोत्साहन देने के नाम पर किया गया जिसका मतलब है पूंजीपतियों को किसानों की जमीनें औने-पौने दामों पर लुटाना।
जमीन अधिग्रहण कानून, 2013 तब बना जब देश में एक के बाद एक किसानों की जमीनें छीनने की ऐसी घटनाएं हुईं जिनमें किसानों ने तीखा प्रतिरोध किया और फलस्वरूप कई जानें गयीं। नंदीग्राम-सिंगूर से लेकर ग्रेटर नोएडा तक ऐसी घटनाओं की एक पूरी श्रंखला थी। इसके अलावा मध्य भारत में आदिवासी जमीनों को छीनने की बड़े पैमाने की मुहिम तो थी ही जिसे स्वयं भारत सरकार के देहात मंत्रालय द्वारा एक रिपोर्ट में इतिहास की सबसे बड़ी लूट घोषित किया गया था।
इन घटनाओं के दबाव में संप्रग सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल केे अंत में इस कानून को बनवाया जिसमें उसकी यह चाल भी शामिल थी कि वह इसके जरिये किसानों की हितैषी के रूप में सामने आये जिससे उसे आगामी चुनावों में फायदा मिले। इस कानून के जरिये अंग्रेजो के जमाने से चले आ रहे जमीन अधिग्रहण के कुछ कानूनों को बदला गया तथा किसानों को इस मामले में कुछ राहत प्रदान की गयी। लेकिन इसके बावजूद इसमें इस बात के प्रावधान रखे गये कि सरकार जरूरत पड़ने पर किसानों की जमीन छीन सकती थी या फिर पूंजीपतियों द्वारा जमीनें छीनने को सुगम बना सकती थी।
पर छुट्टे पूंजीवाद के इस जमाने में लुटेरू पूंजीपति वर्ग को इतना भी अंकुश पसंद नहीं था। इसीलिए वह इस नये कानून के सख्त खिलाफ था। संप्रग सरकार से नाराजगी का उसका यह भी एक कारण था। इसीलिए उसने मोदी को आगे बढ़ाया। मोदी का इस मामले में अन्य मामलों की तरह, गुजरात में रिकार्ड पूंजीपतियों के लिए बहुत अच्छा था। यह इस हद तक था कि अडानी को लाखों एकड़ जमीन टाफी के भाव दे दी गयी और फिर उसने उसमें से कुछ जमीन 15 गुना दाम पर एक सरकारी कंपनी को दे दी।
मोदी को पूंजीपति वर्ग को किया गया अपना वादा पूरा करना ही था। वे भूमि अधिग्रहण कानून में परिवर्तन के लिए कृत संकल्प थे पर राज्य सभा में बहुमत न होने के कारण इसमें उनके सामने बाधा है। इसी के साथ कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल राजग के नक्शे कदम पर चलते हुए लगातार मोदी सरकार को घेर रहे हैं और संसद नहीं चलने दे रहे हैं। दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला कर कानून में परिवर्तन कराना आसान काम नहीं है।
लेकिन पूंजीपति वर्ग तो देरी बर्दाश्त नहीं कर सकता। वह पहले ही काफी इंतजार कर चुका है। दूसरी ओर बराक ओबामा जैसे विदेशी अजीज मेहमान भी आने वाले हैं जिनके सामने व्यवहारतः यह प्रस्तुत करना है कि पूंजीपतियों की लूट के सामने से सारी बाधाएं वास्तव में हटायी जा रही हैं। इसीलिए जमीन अधिग्रहण कानून में परिवर्तन के लिए आनन-फानन में यह अध्यादेश लाया गया। पिछले छः महीनों में मोदी सरकार का यह छठा अध्यादेश है जिसमें से चार इसी चरित्र के हैं। पूंजीपति वर्ग की सेवा में चौबीस में से बीस घंटे सन्नद्ध मोदी पूंजीवादी जनतंत्र की संसदीय प्रक्रियाओं की भी ऐसी-तैसी कर पूंजीपतियों के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं ।
यह स्पष्ट ही है कि लागू होने से पहले ही कानून को इस तरह ढीला करना उस समस्या को विकराल और विस्फोटक बनायेगा जिसकी वजह से यह कानून बनाया गया था। किसान अपनी जमीनों का छीना जाना चुपचाप बर्दाश्त नहीं करेंगे।
मोदी जिस तरह बढ़-चढ़कर पूंजीपतियों के लिए लूट की खुली छूट दे रहे हैं, वह उन्हें और पूंजीपति वर्ग को तात्कालिक तौर पर भले ही पसंद हो पर दूरगामी तौर पर यह व्यवस्था के खिलाफ विस्फोटक सामग्री इकट्ठा करने में भूमिका निभायेगा। अपने चरित्र के अनुरूप पूंजीपति वर्ग अपनी मौत का सामान खुद ही जुटा रहा हैं।
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