Tuesday, December 16, 2014

सिडनी और पेशावर - जरूरत असली गुनहगारों को पहचानने की है

       सिडनी और पेशावर की आंतकवादी घटनाओं के बाद साम्राज्यवादियों और पूंजीपति वर्ग की ओर से फर्जी संवेदनाओं और घोषणाओं की बाढ़ आ गई है। इनकी आड़ में असल में इन आतंकवादियों और उनकी घृणित कार्रवाइयों के असली गुनहगारों को छिपा लिया जा रहा है।
     कुछ इस तरह पेश किया जा रहा है कि यह खूंखार आतंकवादी जो किसी भी तरह की मानवीय संवेदनाओं से वंचित हैं, जगह-जगह इस तरह की हरकतें करते फिर रहे हैं। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा इनकी धार्मिक कट्टरपंथी भावनाओं को दोषी ठहराया जा रहा है।  असल में इन सारे घृणित हत्यारों के पीछे वे सफेदपोश हैं जो वॉशिंगटन,कैनबरा, इस्लामाबाद और दिल्ली में विराजमान हैं। इन सबके हाथ खून से रंगें हैं। आतंकवादी तो महज इनके औजार हैं। सेना के जवानों की तरह ये भी वे मानव कठपुतलियां हैं जिन्हें नचाने वाले पर्दे के पीछे रहते हैं।
       अल कायदा, इस्लामिक स्टेट से लेकर तालिबान तक सभी साम्राज्यवादियों और तीसरी दुनिया के उनके घृणित सहयोगी शासकों की संतान हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में ढेरों आतंकवादी गुटों और आतंकवादी कार्रवाइयों के पीछे भारतीय शासकों का हाथ है ठीक उसी तरह जैसे भारत में ऐसी घटनाओं में पाकिस्तानी शासकों का हाथ होता है। इनकी इसी हरकतों से अफगानिस्तान तीन-साढ़े तीन दशकों से कब्रगाह बना हुआ है। पाकिस्तान एक असफल राज्य के करीब बढ़ रहा है और भारत में हजारों लोग मौत के मुंह में जा चुके हैं।
      इसलिए ऐसी घटनाओं पर मानवतावादी आँसू गिराने के बदले इसके पीछे की साम्राज्यवादी और पूंजीवादी ताकतों की राजनीति को समझने की जरूरत है। इस बात को रेखांकित करने की जरूरत है कि घृणित पूंजीवाद के इस निजाम का खात्मा ही इन सबका वास्तविक समाधान पेश करेगा।

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