आस्ट्रेलिया के शहर ब्रिसबेन में 15-16 तारीख को हुई जी-20 की बैठक ने एक बार फिर दिखाया कि साम्राज्यवादियों-पूंजीपतियों के पास पिछले सात साल से जारी विश्व आर्थिक संकट से निपटने का केवल एक तरीका है-मजदूरों को और चूसना।
इस बैठक के अंत में जो कम्यूनीक जारी किया गया उसमें दबे स्वर में स्वीकार किया गया कि संकट अभी जारी है और इसका वास्तव में कोई समाधान संभव नहीं है। इसके पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष व आई सी डी इत्यादि सारी साम्राज्यवादी संस्थाएं यह कह चुकी हैं कि वृद्धि दर उम्मीद से कम हो रही है और कुछ देश और क्षेत्र सीधे मंदी में प्रवेश कर रहे हैं। इनकी आशाभरी भविष्यवाणियां गलत साबित हो रही हैं।
ऐसे में साम्राज्यवादी और पूंजीपति “संरचनागत सुधार” की जोर-शोर से बात कर रहे हैं। इस कूट शब्द का मतलब है जनता पर होने वाले सरकारी खर्चों में कटौती तथा मजदूरों की मजदूरी को कम करना। भारत जैसे देशों में छोटी खेती-किसानी वाले छोटे संपत्ति धारक भी इसका निशाना बनते हैं। इनके जरिए साम्राज्यवादी-पूंजीपति अपना गिरता मुनाफा बढ़ाना चाहते हैं।
असल में पिछले सात सालों में यही हुआ है। मजदूर वर्ग और अन्य मेहनतकशों की हालत खराब हुई है जबकि पूंजीपति वर्ग का मुनाफा बढ़ा है। अमीरी-गरीबी की खाई चौड़ी हुई है। अमेरिका-रूस से लेकर भारत-चीन तक खरबपतियों की संख्या और उनकी दौलत में बेतहाशा वृद्धि हुई है। यह परिघटना इतने बड़े पैमाने पर हुई है कि टामस पिकेटी नामक फ्रांसीसी अर्थशास्त्री ने तो “इक्कीसवीं सदी में पूंजी” नाम से इस पर एक किताब ही लिख मारी है जो इस समय काफी नाम कमा रही है।
भारत का पूंजीवादी प्रचारतंत्र इन तथ्यों को ढकते हुए बेहद नंगे तरीके से मोदी भजन में लगा हुआ है। जी-20 बैठक में भी उसे बराक ओबामा और पुतिन के बदले मोदी ही नजर आए। जी-20 बैठक के मूल एजेण्डे यानी विश्व आर्थिक संकट से भारत में धराशाई हुई वृद्धि दर का संबंध उसे नजर नहीं आता है। उसे चिंता भी नहीं है। वह जानता है कि मोदी तो पहले से ही “संरचनागत सुधार” के लिए प्रतिबद्ध है और सत्ता में आते ही उन्होंने इस ओर कदम बढ़ा दिए हैं। मजदूरों-किसानों की खैर नहीं!
पर इन सबके बावजूद यह स्पष्ट है कि न तो विश्व आर्थिक संकट हल्का पड़ रहा है और न ही उससे पैदा सामाजिक-आर्थिक तनाव। दुनिया भर में सट्टेबाजी का बुलबुला एक बार फिर सातवें आसमान पर जा पहुंचा है और रघुराम राजन जैसी सुधीजन इसके फूट पड़ने की चेतावनी दे रहे हैं। दूसरी ओर उक्रेन से लेकर सीरिया-लीबिया तक मार-काट और उसमें साम्राज्यवादियों की घृणित चालें निरंतर नए आयाम ग्रहण कर रही है। एक नए शीत-युद्ध की घोषणा की जा रही है।
ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि 2011-12 का जन सैलाब एक बार फिर बड़े पैमाने पर उमड़ पड़े और एक के बाद एक सरकारों को अपनी चपेट में लेने लगे। जी-20 के लिए इक्ट्ठा शासकों के मुस्काराते चेहरे के पीछे यह भय आसानी से देखा जा सकता था। मोदी की तरह सभी इससे निपटने के लिए अपनी संगीने तैयार कर रहे हैं।
उन्हें तैयारी करने दो। वक्त आने पर यह संगीनें उन्हीं के ऊपर तनी होंगीं।
No comments:
Post a Comment