Wednesday, October 29, 2014

काले धन पर एक बार फिर चखचख

       लोकसभा चुनावों के दौरान लोगों को लुभाने के लिए भाजपा ने जो लम्बे-चैड़े वादे किये थे अब वे गले की फांस बन रहे हैं। इनमें से एक वादा काले धन से संबंधित था।
      भाजपाइयों और बाबा रामदेव सरीखे भाजपा के समर्थकों ने तब कहा था कि देश का करीब चार सौ लाख करोड़ रुपया विदेशी बैंको में जमा है। यदि यह पैसा वापस आ जाय तो हर भारतीय को करीब तीन लाख रुपये मिल जायेंगे। भाजपा ने और उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने ताल ठोककर कहा था कि वे तीन महीनों के अन्दर काला धन ले आयेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस सरकार इसलिए काला धन नहीं ला रही है क्योंकि वह स्वयं कालेधन को बढ़ावा दे रही है और काले धन के मालिकों को संरक्षण दे रही है। 

        अब पिछले दस दिनों से काले धन पर सर्वोच्च न्यायलय में प्रहसन खेला जा रहा है उसकी खासियत यह है कि उसमें भाजपा सरकार काले धन पर ठीक वही तर्क दे रही है जो किसी समय कांग्रेस सरकार दे रही थी और कांग्रेस पार्टी अब पलट कर वैसे सरकार की टांग खींच रही है जैसे कभी भाजपा किया करती थी। दोनों की भूमिका आपस में बदल गयी है। कभी काले धन पर शेर की तरह दहाड़ने वाले वाले नरेन्द्र मोदी अब इस मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं। 
        जानकार लोगों के अनुसार इस समय देश के सकल घरेलु उत्पाद का करीब आधा काले धन के रूप में पैदा हो रहा है। यानी करीब पचास लाख करोड़ रुपये। इसका करीब दस प्रतिशत देश के बाहर चला जाता है लेकिन उसका अधिकांश सफेद धन के रूप में वापस आ जाता है। यानी विदेशी बैंकों में जमा काला धन उतना नहीं है जितना देश के कारोबार में लगा हुआ है। यह काला धन भी सफेद धन की तरह मजदूर वर्ग का शोषण कर रहा है और पूंजीपति वर्ग की पूंजी बढ़ा रहा है। बस यह खाते-बही में दर्ज नहीं है और इस पर सरकार को कर अदा नहीं किया जाता है। 
       अब यदि विदेशों में मौजूद सारा काला धन देश में वापस आ जाये और देश में मौजूद सारा काला धन सफेद हो जाये तो क्या इससे मजदूर वर्ग और बाकी मेहनतकश जनता की जिन्दगी बेहतर हो जायेगी ? क्या इनके लिए शिक्षा-स्वास्थ्य, यातायात की सुविधाएं बेहतर हो जायेंगी ? क्या गांवों-शहरों के भूखे मरते लोगों को भोजन मिलने लगेगा ? क्या शहरों की झुग्गी बस्तियां समाप्त हो जायेंगी ? क्या देश की बेरोजगार आधी आबादी को रोजगार मिलने लगेगा ?
      नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होगा। बस इतना ही होगा कि पूंजीपतियों को जो सालाना पांच लाख करोड़ रूपया छूट करों में दी जा रही है वह दोगुना हो जायेगी। पूंजीपतियों पर लगने वाले करों की दरें और कम हो जायेंगी। उन पर लुटाया जाने वाला सरकारी पैसा और बढ़ जायेगा। 
       मुद्दा असल में काले धन-सफेद धन का नहीं है। मुद्दा असल में यह है कि इस धन का मालिक कौन है ? इस देश में मौजूद सफेद धन का सारा का सारा पूंजीपतियों के पास है। यदि काला धन सफेद हो भी जाये भी जाय तब भी वह पूंजीपतियों के पास ही रहेगा जैसे वह अभी उनके पास है। सरकार मजदूर वर्ग और बाकी मेहनतकश जनता की लूट को और सुगम बना कर पूंजीपतियों के इस धन को और बढ़ाती रहेगी। 
       इसी के साथ यह भी सच है कि उदारीकरण के इस दौर में काले धन का गोरख धंधा बढ़ेगा ही। कांग्रेस राज में यह खूब बढ़ा अब भाजपा राज में खूब बढ़ेगा जैसा कि वाजपेयी के राजग काल में हुआ था। पूंजीपति और पूंजीवादी नेता इस खेल में खूब लिप्त होंगे। लेकिन साथ की मजदूर-मेहनतकश जनता के गुस्से को ठंडा करने के लिए काले धन का मुद्दा उछाला भी जाता रहेगा। उस पर बीच-बीच में चख-चख भी मचती रहेगी। इस समय भी यही हो रहा है। 
       लानत है कांग्रेसियों और भाजपाइयों पर ! लानत है मनमोहन सिंहों और नरेन्द्र मोदियों पर !! लानत है इनके मालिक पूंजीपतियों पर !!!

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