Friday, October 17, 2014

‘श्रमएव जयते’ नहीं पूंजीपतियों की जय हो !

        संघी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चरित्र के अनुरूप ही 16 अक्टूबर को एक कार्यक्रम की घोषणा की। इसका नाम रखा गया दीन दयाल उपाध्याय श्रमएव जयते कार्यक्रम जबकि यह पूर्णतया पूंजीपतियों की जय-जयकार वाला कार्यक्रम है। वैसे संघी प्रधानमंत्री पिछले पांच महीने से यही कर रहे हैं: नाम कुछ और, काम कुछ और।
       16 अक्टूबर को उन्होंने जो घोषणा की उसमें दो बेहद महत्वपूर्ण थीं। एक थी पूंजीपतियों को अपने रजिस्टरों को खुद प्रमाणित करने की छूट। यह इंस्पेक्टर राज के खात्मे के नाम किया जा रहा है। अब इंस्पेक्टर फैक्टरियों और संस्थानों की नियमित जांच करने नहीं जायेंगे। बीच-बीच में वे एकाध नमूने की जांच कर रिपोर्ट वेबसाइट पर डाल देंगे। बस !
        पूंजीपतियों की यह लम्बे समय से मांग रही है और पूंजीपतियों के सभी बड़े संगठनों-फिक्की, सी.आई.आई. और एशोचेम ने प्रधानमंत्री की इस घोषणा का स्वागत किया है।
      दूसरी घोषणा अप्रेन्टिस से संबंधित है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अप्रेन्टिस के दो साल के वजीफे का आधा सरकार देगी। पूंजीपति भला इससे ज्यादा क्या चाहेंगे ! एक तो सरकार अप्रेन्टिस के नाम पर नौजवान मजदूरों से तीन साल तक बेगार कराने के लिए अप्रेन्टिस कानून में संशोधन कर रही है, ऊपर से अब इसमें भी दिये जाने वाले वजीफे का (अप्रेन्टिस मजदूरों को तनख्वाह के बदले वजीफा मिलेगा) आधा सरकार वहन करेगी। पूंजीपति कुशलता न होने के नाम पर उन्हीं मजदूरों से बार-बार अप्रेन्टिस के नाम पर बेगार करा सकते हैं और उसमें भी होने वाले खर्चे का आधा सरकार के मत्थे मढ़ते रहेंगे। 
       कोई भी कह सकता है कि इस तरह पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली योजनाओं की श्रमएव जयते का नाम कैसे दिया जा सकता है ? पर संघी तो हमेशा से ही इसमें माहिर रहे हैं। वे अपने को धर्म निरपेक्ष घोषित कर देते हैं, लव के खिलाफ जेहाद छेड़कर वे इसे ‘लव जेहाद’ के नाम पर मुसलमानों के मत्थे मढ़ देते हैं आदि-आदि। इसलिए श्रमिक विरोधी कार्यक्रम को ‘श्रमएव जयते’ कार्यक्रम घोषित करना उनके खास चरित्र के अनुरूप ही है।
        पूंजीपतियों को विश्वास है कि नरेन्द्र मोदी अपनी बात के पक्के हैं। नेहरू ने हर आंख के आंसू पोछने का नियति से वादा किया था। उन्होंने वादा नहीं निभाया। मोदी ने पूंजीपतियों से वादा किया है कि उन्हें श्रम-कानूनों से मुक्ति दिला देंगे। मोदी अपना वादा निभाने में जी जान से जुटे हैं। वे पूंजीपतियों को दी गयी अपनी जुबान के पक्के हैं। हों भी क्यों न ? अपने मालिकों से गद्दारी वे कैसे कर सकते हैं।
       इसीलिए वे आगे भी ‘श्रमएव जयते’ का आयोजन कर पूंजीपतियों की जय-जयकार करेंगे। बदले में पूंजीपति उनकी पीठ ठोकेंगे। जहां तक मजदूरों की बात है, वे संघर्ष के लिए कमर कस रहे हैं।  

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