नरेन्द्र मोदी अमेरिका (जिसका असली नाम संयुक्त राज्य अमेरिका है क्योंकि अमेरिका में तो और भी बहुत सारे देश हैं) से लौटकर झाड़ू फेरने और फिरवाने में मशगूल हो गये हैं। पर इसके पहले जब वे अमेरिका में थे तो खूब तमाशा हुआ और खूब मजा भी आया।
सबसे ज्यादा मजा तो स्वयं अमरीकियों को ही आया। यदि किसी गांव या गली-मुहल्ले में मदारी आकर तमाशा दिखाये तो वहां किसे मजा नहीं आयेगा ? और तमाशा भी मुफत का। अमरीकियों ने इस तमाशे के मजे कि लिए इस पर फब्तियां कसीं और अपने प्रचार माध्यमों में किसी कोने में दो-चार लाइन की खबरें डाल दीं। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तो इससे इतने मगन हुए कि गुजराती भाई के हाल-चाल गुजराती में पूछने लगे। हां, मिशेल ओबामा कामकाजू महिला हैं और उन्हें इतनी फुरसत नहीं मिली कि ‘उपवास’ वाले ‘डिनर’ में गुजराती भाई से दुआ-सलाम कर लें।
यहां अपने देश में भी लागों का खूब मनोरंजन हुआ। साथियों को नाचते-गाते देखना वैसे भी एक नायाब अनुभव था जिसका सबने जमकर लुत्फ उठाया। और जब भाड़ों की कतार में सारे समाचार चैनल तथा अखबार शामिल होकर संघी बैण्ड पर मार्च करने लगे तो दृश्य सचमुच दिलचस्प हो उठा। कुछ लोग इसे जुगुस्सित और वीभत्स भी कह सकते हैं।
बहरहाल हर तमाशे का अंत होता है और इस तमाशे का भी अंत हो चुका है। ढोल-तुरहियां समेटी जा चुकी हैं। शामियाने उखाड़े जा चुके हैं और तमाशे के कारकून लड़खड़ाते कदमो से मोदी की झाड़ू फिरा रहे हैं। महात्मा गांधी की हत्या करने वाले और आज भी उसका गांधी के नाम पर वास्तविक सफाई कर्मियों द्वारा चिक्कड़ की गयी जमीन पर झाड़ू फिरा रहे हैं। अगले दंगो में की जाने वाली हत्याओं को छिपाने के लिए गांधी का नाम कारगर हो सकता है।
अमेरिका में मोदी काी संघी मंडली द्वारा आयोजित तमाशो का यदि कोई गंभीर मतलब है तो बस यही कि अमेरिकी साम्राज्यावादियों को हर तरीके से यह बताने की कोशिश की गयी कि कांग्रेस की सरकार जाने के बाद अब देश में लूट-पाट का माहौल एकदम बदल गया है और साम्राज्यवादियों को यहां वह सब कुछ मिलेगा जिसकी वे संप्रग सरकार से मांग कर रहे थे। मजदूर, किसान, आदिवासी, पर्यावरणवादी, देश के कानून इत्यादि अब कोई भी बाधा नहीं खड़ी करेंगे और यदि खड़ी करेंगे तो उनसे निर्णायक तरीके से निपट लिया जायेगा। मोदी के ‘निर्णायक’ होने का सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण मतलब यही है। 25 सितंबर को ‘मेक इन अमेरिका’ की घोषणा करने के बाद अगले पांच दिनों में मोदी ने अमरीकी साम्राज्यवादियों को हर तरीके से यही संदेश दिया। तमाशों के बीच यही वास्तविक संदेश था तथा तमाशे इसी संदेश के लिए ही आयोजित किये गये थे। इस अति आधुनिक जमाने में अति आधुनिक अमेरिका में रूखा-सूखा संदेश भी तमाशे के जरिये ही प्रसारित किया जाता है। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने तो इसे कला के स्तर तक उपर उठा दिया है।
तमाशा खत्म हुआ। पर जिसे कहते हैं, अंतिम हंसी ही वास्तविक हंसी होती है और उसका वक्त अभी नहीं आया है।
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